प्रश्न का उत्तर अधिकतम 200 शब्दों में दीजिए। यह प्रश्न 11 अंक का है। [MPPSC 2023]
हिमालय के अपवाह तन्त्र की विवेचना कीजिये।
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भारत में जल अपवाह प्रतिरूपों का वर्णन
भारत का जल अपवाह तंत्र विभिन्न भौगोलिक और जलवायु परिस्थितियों के कारण विविध प्रतिरूपों में बंटा हुआ है। ये प्रतिरूप नदियों और जलग्रहण क्षेत्रों के अनुसार वर्गीकृत होते हैं और देश की जलवायु, कृषि और पारिस्थितिकी पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालते हैं। निम्नलिखित में भारत के प्रमुख जल अपवाह प्रतिरूपों का विस्तृत वर्णन किया गया है:
1. हिमालयी जल अपवाह प्रतिरूप:
परिभाषा: हिमालयी जल अपवाह प्रतिरूप उन नदियों को शामिल करता है जो हिमालय की ऊंची पहाड़ियों से उत्पन्न होती हैं। ये नदियाँ मुख्यतः ग्लेशियरी पिघलन और स्नोमल्ट से भरती हैं और उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों में बहती हैं।
उदाहरण:
2. पेनिन्सुलर जल अपवाह प्रतिरूप:
परिभाषा: पेनिन्सुलर जल अपवाह प्रतिरूप उन नदियों का समूह है जो पश्चिमी घाटों से उत्पन्न होती हैं और पूर्व या पश्चिम की ओर बहती हैं। ये नदियाँ आमतौर पर छोटी और मौसमी होती हैं।
उदाहरण:
3. रेगिस्तानी जल अपवाह प्रतिरूप:
परिभाषा: रेगिस्तानी जल अपवाह प्रतिरूप उन नदियों और नालों को संदर्भित करता है जो शुष्क और अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों में बहती हैं और अक्सर लवणीय झीलों या सूखे बिस्तरों में समाप्त होती हैं।
उदाहरण:
4. तटीय जल अपवाह प्रतिरूप:
परिभाषा: तटीय जल अपवाह प्रतिरूप उन नदियों का समूह है जो सीधे समुद्र में बह जाती हैं और अक्सर डेल्टा और एस्टुरी बनाती हैं।
उदाहरण:
5. आंतरिक जल अपवाह प्रतिरूप:
परिभाषा: आंतरिक जल अपवाह प्रतिरूप उन नदियों और जल प्रणालियों को संदर्भित करता है जो समुद्र तक नहीं पहुंचती बल्कि आंतरिक झीलों, दलदलों या रेगिस्तानों में समाप्त होती हैं।
उदाहरण:
निष्कर्ष
भारत का जल अपवाह तंत्र एक जटिल और विविध प्रणाली है जिसमें हिमालयी, पेनिन्सुलर, रेगिस्तानी, तटीय, और आंतरिक जल अपवाह प्रतिरूप शामिल हैं। ये प्रतिरूप देश की जलवायु, कृषि, और पारिस्थितिकी पर गहरा प्रभाव डालते हैं। हाल के वर्षों में जल प्रबंधन, प्रदूषण और जलविवाद जैसे मुद्दे महत्वपूर्ण बन गए हैं, और इन समस्याओं के समाधान के लिए प्रभावी योजनाएँ और नीतियाँ विकसित करने की आवश्यकता है।