प्रश्न का उत्तर अधिकतम 10 शब्दों में दीजिए। यह प्रश्न 02 अंक का है। [MPPSC 2023]
चार्वाक का आत्मा सम्बन्धी मत क्या है?
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चार्वाक का आत्मा सम्बन्धी मत
चार्वाक दर्शन, जिसे लोकायत के नाम से भी जाना जाता है, प्राचीन भारतीय भौतिकवादी दर्शन है जो आत्मा, कर्म, पुनर्जन्म और मोक्ष जैसी पारंपरिक अवधारणाओं को खारिज करता है। यह दर्शन नास्तिक और भौतिकवादी दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है और इसे भारतीय दार्शनिक परंपराओं में विधर्म (heterodox) माना जाता है क्योंकि यह वेदांत और सांख्य जैसे सिद्धांतों का विरोध करता है।
1. आत्मा की अस्वीकृति
चार्वाक के अनुसार, आत्मा का कोई स्वतंत्र या अमर अस्तित्व नहीं होता। चार्वाक मत में आत्मा को शरीर से अलग कोई स्थायी इकाई नहीं माना गया है। उनका तर्क है कि चेतना केवल शरीर और मस्तिष्क की एक उत्पादक प्रक्रिया है, जो चार तत्वों—पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु—के संयोजन से उत्पन्न होती है। इस प्रकार, चार्वाक दर्शन आत्मा के अमर या शाश्वत होने की अवधारणा को अस्वीकार करता है।
2. पुनर्जन्म और परलोक का खंडन
चार्वाक दर्शन पुनर्जन्म और आत्मा के आवागमन के विचार को भी अस्वीकार करता है। उनके अनुसार, जीवन केवल शरीर के भौतिक अस्तित्व तक ही सीमित है, और जैसे ही शरीर की मृत्यु होती है, चेतना समाप्त हो जाती है। चार्वाक मानते हैं कि मृत्यु के बाद कुछ भी नहीं बचता—न कोई परलोक है, न स्वर्ग, न नरक, और न आत्मा जो शरीर के नाश के बाद भी जीवित रहे।
3. धार्मिक कर्मकांडों और मोक्ष की आलोचना
चार्वाक दर्शन धार्मिक कर्मकांडों और मोक्ष (मुक्ति) प्राप्त करने के प्रयासों की कड़ी आलोचना करता है। चार्वाक के अनुसार, मोक्ष की अवधारणा एक मिथ्या है, और इसके लिए किए गए धार्मिक अनुष्ठान व्यर्थ हैं क्योंकि न तो कोई परलोक है और न ही आत्मा जिसे मुक्त किया जा सके। इसके विपरीत, चार्वाक सांसारिक सुखों को जीवन का उद्देश्य मानते हैं और उनका मत है कि जीवन का उद्देश्य भौतिक जगत का आनंद लेना है।
निष्कर्ष
चार्वाक दर्शन का आत्मा सम्बन्धी मत अन्य भारतीय दार्शनिक परंपराओं से बिल्कुल भिन्न है। चार्वाक आत्मा के शाश्वत अस्तित्व और पुनर्जन्म, परलोक जैसी अवधारणाओं को खारिज करता है और केवल भौतिकवादी जीवन और सांसारिक सुखों को प्राथमिकता देता है। इस दृष्टिकोण की तुलना आधुनिक समाज में धर्मनिरपेक्षता, वैज्ञानिक सोच, और उपभोक्तावादी जीवनशैली से की जा सकती है, जहाँ धार्मिक और आध्यात्मिक सिद्धांतों की आलोचना की जाती है और भौतिकवादी सिद्धांतों को प्राथमिकता दी जाती है।