कार्ल मार्क्स के सामाजिक एवं राजनीतिक विचारों की समकालीन लोकसेवा में भूमिका की परीक्षा कीजिए। (200 Words) [UPPSC 2019]
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कार्ल मार्क्स के सामाजिक एवं राजनीतिक विचारों की समकालीन लोकसेवा में भूमिका
1. वर्ग संघर्ष का सिद्धांत
कार्ल मार्क्स का वर्ग संघर्ष का सिद्धांत, जिसमें वह पूंजीपतियों और श्रमिकों के बीच संघर्ष की बात करते हैं, समकालीन लोकसेवाओं पर प्रभावी रहा है। उदाहरण के लिए, भारत में श्रमिक अधिकारों की सुरक्षा और न्यूनतम वेतन सुनिश्चित करने के लिए श्रम कानूनों का निर्माण किया गया है, जो मार्क्स के श्रमिकों की सुरक्षा की विचारधारा को दर्शाता है।
2. राज्य की भूमिका
मार्क्स के अनुसार, राज्य मुख्य रूप से शासक वर्ग के हितों की सेवा करता है। इस विचारधारा का प्रभाव वर्तमान में निजीकरण और सरकारी सेवाओं के वितरण पर देखा जा सकता है। जैसे कि भारत में स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में निजीकरण की प्रक्रिया, जिनके माध्यम से यह चिंता उठती है कि क्या ये सेवाएँ आम जनता की जरूरतों को पूरा कर रही हैं या आर्थिक लाभ के लिए संचालित हो रही हैं।
3. समाजिक परिवर्तन का उपकरण
मार्क्स ने कहा था कि सार्वजनिक सेवाएं समाज में बदलाव के लिए एक उपकरण हो सकती हैं। भारत में, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGA) और प्रधानमंत्री आवास योजना जैसे कार्यक्रम इस दिशा में उठाए गए कदम हैं, जो समाजिक समानता और विकास को बढ़ावा देते हैं।
4. संसाधनों का पुनर्वितरण
मार्क्स के विचार में, संसाधनों का पुनर्वितरण आर्थिक असमानताओं को कम करने के लिए आवश्यक है। समकालीन उदाहरणों में, उत्तरी यूरोप के देशों जैसे स्वीडन और नॉर्वे में प्रगतिशील कराधान और सामाजिक कल्याण योजनाएं लागू की गई हैं, जो सामाजिक समानता को बढ़ावा देने का प्रयास करती हैं।
इन विचारों के माध्यम से, कार्ल मार्क्स के सामाजिक और राजनीतिक विचार समकालीन लोकसेवा में सामाजिक न्याय, राज्य की भूमिका, और संसाधनों के उचित वितरण की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं।