भारत में जैव विविधता किस प्रकार अलग-अलग पाई जाती है? बनस्पतिजात और प्राणिजात के संरक्षण में जैव विविधता अधिनियम, 2002 किस प्रकार सहायक है? (250 words) [UPSC 2018]
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भारत में जैव विविधता का प्रकार
भौगोलिक विविधता:
भारत में जैव विविधता अपने विशाल भौगोलिक और जलवायु विविधताओं के कारण अत्यधिक भिन्न होती है। देश की विविधता में हिमालयी क्षेत्र, गंगा-ब्रह्मपुत्र का मैदान, पश्चिमी घाट, और दकन पठार शामिल हैं। उदाहरण के लिए, हिमालय में 7,000 से अधिक पौधों की प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जबकि पश्चिमी घाट में 139 विभिन्न प्रकार के अभयारण्य हैं।
वन्यजीव विविधता:
भारत में वन्यजीवों की विविधता भी उल्लेखनीय है, जिसमें बाघ, सिंह, साल्ट-डॉक्स और गंगा डॉल्फिन शामिल हैं। किराट और रेनफॉरेस्ट जैसे अनूठे पारिस्थितिक तंत्र इन प्रजातियों का समर्थन करते हैं।
जैव विविधता अधिनियम, 2002 के योगदान
संरक्षण और प्रबंधन:
जैव विविधता अधिनियम, 2002 का उद्देश्य बनस्पतिजात और प्राणिजात के संरक्षण को सुनिश्चित करना है। इस अधिनियम के तहत, राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (NBA) और राज्य जैव विविधता प्राधिकरण (SBA) की स्थापना की गई है, जो जैव विविधता संरक्षण की दिशा में नीतिगत और प्रशासनिक समर्थन प्रदान करते हैं।
पेटेंट और बौद्धिक संपदा संरक्षण:
अधिनियम पारंपरिक ज्ञान और आयुर्वेदिक पौधों की रक्षा करता है। इससे भारत ने हाल ही में तुलसी, अश्वगंधा जैसी पारंपरिक जड़ी-बूटियों के पेटेंट को सुरक्षित किया है। यह पेटेंट अधिकार भारतीय समुदायों को उनके ज्ञान और संसाधनों पर नियंत्रण प्रदान करते हैं और विदेशी कंपनियों द्वारा इनका दुरुपयोग रोकते हैं।
स्वदेशी समुदायों के अधिकार:
जैव विविधता अधिनियम ने स्वदेशी समुदायों के सांस्कृतिक और पारंपरिक अधिकारों की रक्षा की है। इसके माध्यम से, ये समुदाय अपने पारंपरिक ज्ञान और संसाधनों के उचित उपयोग और लाभांश के अधिकार प्राप्त करते हैं।
संरक्षण प्रयासों में योगदान:
अधिनियम ने विविध प्रजातियों और पारिस्थितिक तंत्र के संरक्षण में नागरिक भागीदारी को प्रोत्साहित किया है। उदाहरण स्वरूप, साइबर ट्री और सपारी जैसे महत्वपूर्ण वनस्पतियों के संरक्षण में स्थानीय समुदायों की भूमिका को बढ़ाया गया है।
निष्कर्ष
जैव विविधता अधिनियम, 2002 ने भारत की जैव विविधता को संरक्षित करने और प्रबंधित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। यह पारंपरिक ज्ञान की रक्षा, स्वदेशी समुदायों के अधिकारों की रक्षा, और विविध प्रजातियों के संरक्षण को सुनिश्चित करता है। इससे जैव विविधता की रक्षा और उसके सतत उपयोग को बढ़ावा मिला है।