निजता के अधिकार पर उच्चतम न्यायालय के नवीनतम निर्णय के आलोक में, मौलिक अधिकारों के विस्तार का परीक्षण कीजिए। (250 words) [UPSC 2017]
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निजता का अधिकार भारत में मौलिक अधिकारों के विस्तार का एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। उच्चतम न्यायालय ने 2017 में “के. एस. पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ” मामले में निर्णय दिया कि निजता का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत “जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता” के मौलिक अधिकार का एक अनिवार्य हिस्सा है। यह निर्णय न केवल व्यक्तिगत स्वतंत्रता और गरिमा के संरक्षण में महत्वपूर्ण है, बल्कि मौलिक अधिकारों के व्यापक स्वरूप को भी दर्शाता है।
मौलिक अधिकारों का विस्तार:
निजता का अधिकार: उच्चतम न्यायालय ने यह माना कि निजता का अधिकार व्यक्ति की गरिमा, स्वायत्तता, और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के लिए आवश्यक है। इसके अंतर्गत, शारीरिक स्वतंत्रता, निजी संचार, जानकारी की गोपनीयता, और व्यक्तिगत निर्णय लेने की स्वतंत्रता जैसे पहलू शामिल हैं।
सूचना का अधिकार: निजता के अधिकार का विस्तार यह सुनिश्चित करता है कि सरकारी निगरानी, डेटा संग्रह, और व्यक्तिगत जानकारी के प्रसंस्करण में पारदर्शिता और वैधता हो। यह विशेष रूप से डिजिटल युग में महत्वपूर्ण है, जहाँ व्यक्तिगत डेटा की सुरक्षा चिंता का विषय है।
व्यक्तिगत स्वतंत्रता: इस निर्णय ने मौलिक अधिकारों के दायरे को व्यक्तिगत पहचान, यौनिकता, भोजन की पसंद, और जीवन शैली के अधिकार तक विस्तारित किया है। इसने समलैंगिकता के विरुद्ध धारा 377 को समाप्त करने और समानता के अधिकार की पुष्टि में भी योगदान दिया।
डिजिटल अधिकारों का संरक्षण: आधार योजना और अन्य सरकारी परियोजनाओं में डेटा सुरक्षा और व्यक्तिगत गोपनीयता की आवश्यकताओं को बढ़ावा दिया गया है। न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि नागरिकों की जानकारी का उपयोग केवल वैध उद्देश्यों के लिए होना चाहिए और इसके दुरुपयोग से बचने के लिए ठोस सुरक्षा उपाय आवश्यक हैं।
निष्कर्ष:
इस निर्णय ने मौलिक अधिकारों को एक व्यापक और समग्र दृष्टिकोण प्रदान किया है, जिसमें आधुनिक समय की आवश्यकताओं और चुनौतियों का समावेश है। निजता का अधिकार अब भारतीय संविधान के मूल्यों और उद्देश्यों के साथ पूरी तरह से संगत हो गया है, जो व्यक्तिगत स्वतंत्रता और गरिमा के संरक्षण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह निर्णय न केवल भारतीय न्यायिक प्रणाली की प्रगतिशीलता को दर्शाता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि मौलिक अधिकार समय के साथ प्रासंगिक बने रहें।