“स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं में महिलाओं के लिए सीटों के आरक्षण का भारत के राजनीतिक प्रक्रम के पितृतंत्रात्मक अभिलक्षण पर एक सीमित प्रभाव पड़ा है।” टिप्पणी कीजिए । (250 words) [UPSC 2019]
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भारत में स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं में महिलाओं के लिए सीटों के आरक्षण के बावजूद, इसका पितृतंत्रात्मक राजनीतिक प्रक्रम पर सीमित प्रभाव पड़ा है। इस स्थिति की विवेचना निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से की जा सकती है:
1. आरक्षण की प्रक्रिया और प्रभाव:
स्थानीय स्वशासन के लिए महिलाओं के लिए 33% सीटों का आरक्षण संविधान के 73वें और 74वें संशोधनों के तहत किया गया है। इसका उद्देश्य महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी को बढ़ाना और उन्हें निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में शामिल करना है। हालांकि, आरक्षण ने महिलाओं की संख्या में वृद्धि की है, लेकिन यह पितृतंत्रात्मक संरचना के प्रभाव को पूरी तरह समाप्त नहीं कर पाया है।
2. पितृतंत्रात्मक बाधाएँ:
अनेक मामलों में, आरक्षित सीटों पर महिलाओं को नामांकित किया जाता है, लेकिन वास्तविक राजनीतिक शक्ति उनके हाथ में नहीं होती। अक्सर, महिलाओं को पितृसत्तात्मक परिवारों द्वारा उम्मीदवार के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, जहां वे खुद चुनावी प्रक्रिया में सक्रिय भूमिका निभाने की बजाय, परिवार के पुरुष सदस्य की ओर से प्रतिनिधित्व करती हैं। इस प्रकार, महिला आरक्षण के बावजूद, पारंपरिक पितृतंत्रात्मक संरचनाएँ कायम रहती हैं।
3. सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव:
महिलाओं के लिए आरक्षण के बावजूद, भारतीय समाज में गहरी जड़ी हुई पितृसत्तात्मक धारणाएँ और सांस्कृतिक मान्यताएँ महिलाओं की प्रभावी भागीदारी में बाधक बनती हैं। इन सामाजिक बाधाओं के कारण, महिलाओं की वास्तविक स्थिति में सुधार नहीं हो पाता और उनके निर्णय लेने की क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
4. प्रशासनिक और कानूनी समर्थन की कमी:
स्थानीय स्वशासन संस्थाओं में महिलाओं को सशक्त करने के लिए पर्याप्त प्रशासनिक और कानूनी समर्थन की कमी भी है। प्रशिक्षण, संसाधनों और अधिकारों की कमी महिलाओं की राजनीतिक प्रभावशीलता को सीमित करती है।
इस प्रकार, जबकि महिलाओं के लिए सीटों का आरक्षण एक महत्वपूर्ण कदम है, पितृतंत्रात्मक अवशेष और सामाजिक बाधाएँ महिलाओं की राजनीतिक स्थिति पर सीमित प्रभाव डालती हैं। इन समस्याओं के समाधान के लिए और अधिक सशक्तिकरण और समर्थन की आवश्यकता है।