भारत में मंदिर स्थापत्य कला का एक प्रमुख चरण 11वीं से 14वीं शताब्दी ई. के होयसल राजवंश से जुड़ा हुआ है। उदाहरण सहित वर्णन कीजिए।(250 शब्दों में उत्तर दें)
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भारत में मंदिर स्थापत्य कला का एक प्रमुख चरण 11वीं से 14वीं शताब्दी ई. के होयसल राजवंश के तहत विकसित हुआ। होयसल स्थापत्य कला की विशेषताएँ उनके समय के दौरान मंदिरों के निर्माण में प्रदर्शित होती हैं, जिसमें उत्कृष्ट कला, जटिल उत्कीर्णन, और विस्तृत वास्तुशिल्प के उदाहरण मिलते हैं।
होयसल मंदिरों की एक प्रमुख विशेषता उनकी उत्कृष्ट सजावट और समृद्ध उत्कीर्णन है। इन मंदिरों की दीवारों और शिखरों पर धार्मिक कथाओं, देवी-देवताओं, और मिथकीय दृश्यों का जटिल और बारीक काम देखा जा सकता है। एक प्रमुख उदाहरण इस काल के होयसल स्थापत्य का है—चन्नकेश्वरा मंदिर जो बेलूर में स्थित है। यह मंदिर होयसल स्थापत्य की विशिष्टता को प्रदर्शित करता है, जिसमें जटिल नक्काशी और कलात्मक विवरण हैं।
हलेबिड मंदिर भी एक महत्वपूर्ण उदाहरण है। हलेबिड में स्थित होर्यू मंदिर की वास्तुकला, संगमरमर पर की गई उत्कीर्णन और उनके अद्वितीय स्तूप के डिजाइन ने होयसल स्थापत्य को नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया।
इन मंदिरों की संरचनाएँ अक्सर शेर, हाथी, और अन्य चित्रों से सज्जित होती हैं, जो उस समय की सांस्कृतिक और धार्मिक जीवन की गहराई को दर्शाते हैं। होयसल वास्तुकला ने मंदिर निर्माण में न केवल धार्मिक प्रेरणा को बल्कि कला और शिल्प के प्रति गहरी समझ को भी दर्शाया।
इन मंदिरों की जटिल नक्काशी और अद्वितीय वास्तुशिल्प की विशेषताएँ आज भी भारतीय स्थापत्य कला के महत्त्वपूर्ण उदाहरण हैं।