क्या आपके विचार में भारत का संविधान शक्तियों के कठोर पृथक्करण के सिद्धान्त को स्वीकार नहीं करता है, बल्कि यह ‘नियंत्रण एवं संतुलन’ के सिद्धान्त पर आधारित है ? व्याख्या कीजिए । (150 words) [UPSC 2019]
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भारत का संविधान शक्तियों के कठोर पृथक्करण के सिद्धान्त को पूर्णतः स्वीकार नहीं करता है, बल्कि यह ‘नियंत्रण एवं संतुलन’ के सिद्धान्त पर आधारित है।
व्याख्या:
1. शक्ति का पृथक्करण: भारतीय संविधान में केंद्र और राज्य सरकारों के बीच शक्तियों का वितरण किया गया है, लेकिन इसे कठोर पृथक्करण के बजाय लचीले तरीके से लागू किया गया है। संघीय ढांचा शक्तियों के विभाजन को मान्यता देता है, परंतु कुछ क्षेत्रों में केंद्र को अधिक प्रभावी प्राधिकरण प्रदान किया गया है।
2. नियंत्रण और संतुलन: संविधान में ‘नियंत्रण और संतुलन’ का सिद्धान्त लागू होता है, जहाँ विभिन्न अंग (विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका) एक-दूसरे की शक्तियों की निगरानी और संतुलन बनाए रखते हैं। उदाहरण के लिए, राष्ट्रपति का वीटो अधिकार, उच्चतम न्यायालय की समीक्षा शक्ति, और संसद द्वारा विधायकों की नियुक्ति यह सुनिश्चित करते हैं कि कोई भी अंग अत्यधिक शक्ति का प्रयोग न करे और सभी अंग आपस में संतुलित रहें।
इस प्रकार, भारतीय संविधान शक्तियों के कठोर पृथक्करण के बजाय एक समन्वित और संतुलित दृष्टिकोण को अपनाता है, जिससे प्रशासनिक और न्यायिक प्रणाली की कार्यप्रणाली को सुचारु रूप से संचालित किया जा सके।