एक आयोग के सांविधानिकीकरण के लिए कौन-कौन से चरण आवश्यक हैं ? क्या आपके विचार में राष्ट्रीय महिला आयोग को सांविधानिकता प्रदान करना भारत में लैंगिक न्याय एवं सशक्तिकरण और अधिक सुनिश्चित करेगा ? कारण बताइए। (250 words) [UPSC 2020]
Lost your password? Please enter your email address. You will receive a link and will create a new password via email.
Please briefly explain why you feel this question should be reported.
Please briefly explain why you feel this answer should be reported.
Please briefly explain why you feel this user should be reported.
एक आयोग के सांविधानिकीकरण के लिए निम्नलिखित चरण आवश्यक हैं:
1. प्रस्ताव और विधेयक:
सर्वप्रथम, एक आयोग के सांविधानिकीकरण के लिए एक विधेयक तैयार किया जाता है, जिसमें आयोग की संरचना, कार्यक्षेत्र और अधिकारों की विस्तृत जानकारी होती है। यह विधेयक संसद में प्रस्तुत किया जाता है।
2. विधेयक का पारित होना:
विधेयक को संसद के दोनों सदनों—लोकसभा और राज्यसभा—से पारित होना आवश्यक है। यह प्रक्रिया विधायिका की समीक्षा और संशोधन के बाद पूरी होती है।
3. राष्ट्रपति की स्वीकृति:
विधेयक के संसद से पारित होने के बाद, इसे राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए प्रस्तुत किया जाता है। राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद, विधेयक कानून बन जाता है और आयोग को सांविधानिक मान्यता मिलती है।
4. संविधान में संशोधन:
यदि आवश्यक हो, तो संविधान में उपयुक्त संशोधन किए जाते हैं ताकि आयोग को सांविधानिक दर्जा प्रदान किया जा सके। यह संशोधन संविधान की पहली अनुसूची या अनुच्छेद में शामिल किया जाता है।
राष्ट्रीय महिला आयोग को सांविधानिकता प्रदान करने के लाभ:
संवैधानिक दर्जा: राष्ट्रीय महिला आयोग को सांविधानिक दर्जा मिलने से आयोग की स्वायत्तता और अधिकारों की पुष्टि होगी, जो उसकी कार्यप्रणाली और प्रभावशीलता को बढ़ाएगा।
लैंगिक न्याय सुनिश्चित करना: सांविधानिक दर्जा आयोग को अधिक अधिकार और संसाधन प्रदान करेगा, जिससे वह महिलाओं के अधिकारों की रक्षा और लैंगिक न्याय को अधिक प्रभावी ढंग से लागू कर सकेगा।
सशक्तिकरण: आयोग के लिए स्पष्ट कानूनी आधार और शक्ति होने से महिलाओं के सशक्तिकरण की दिशा में स्थायी और प्रभावी नीतियाँ और कार्यक्रम विकसित किए जा सकेंगे।
प्रशासनिक प्रभाव: सांविधानिक दर्जा प्राप्त करने के बाद, आयोग को बेहतर संसाधन और समर्थन मिलेगा, जिससे उसकी प्रशासनिक कार्यप्रणाली और सामाजिक प्रभावशीलता में सुधार होगा।
इस प्रकार, राष्ट्रीय महिला आयोग को सांविधानिकता प्रदान करने से भारत में लैंगिक न्याय और सशक्तिकरण की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति हो सकती है। यह महिलाओं के अधिकारों की रक्षा को सुनिश्चित करेगा और समाज में समानता को बढ़ावा देगा।