‘एकदा स्पीकर, सदैव स्पीकर’! क्या आपके विचार में लोकसभा अध्यक्ष पद की निष्पक्षता के लिए इस कार्यप्रणाली को स्वीकारना चाहिए ? भारत में संसदीय प्रयोजन की सुदृढ कार्यशैली के लिए इसके क्या परिणाम हो सकते हैं ? (150 words) [UPSC 2020]
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“एकदा स्पीकर, सदैव स्पीकर” का सिद्धांत इस विचार पर आधारित है कि एक बार जब कोई व्यक्ति लोकसभा अध्यक्ष बन जाता है, तो उसे सदन की अध्यक्षता के दौरान पूरी निष्पक्षता बनाए रखनी चाहिए, और राजनीतिक पूर्वाग्रहों से दूर रहना चाहिए। यह सिद्धांत लोकसभा अध्यक्ष की निष्पक्षता को सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है।
सकारात्मक परिणाम:
निष्पक्षता और स्वतंत्रता: अध्यक्ष को एक बार निर्वाचित होने के बाद राजनीति से अलग माना जाएगा, जिससे वह निष्पक्ष निर्णय ले सकेगा और सदन की कार्यवाही को स्वतंत्रता से संचालित कर सकेगा।
विश्वसनीयता: यह सिद्धांत अध्यक्ष की भूमिका की विश्वसनीयता और सम्मान बढ़ा सकता है, जिससे सदन की कार्यवाही पर विश्वास मजबूत होगा।
संभावित चुनौतियाँ:
दीर्घकालिक प्रभाव: लंबे समय तक अध्यक्ष बने रहने से राजनीतिक दबावों से बचना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
सुधार में कठिनाई: एक ही व्यक्ति लंबे समय तक पद पर रहने से सुधार की प्रक्रिया में रुकावट आ सकती है, यदि अध्यक्ष प्रणाली की कमियों को दूर नहीं कर पाता।
इसलिए, “एकदा स्पीकर, सदैव स्पीकर” का सिद्धांत निष्पक्षता को बढ़ावा दे सकता है, लेकिन इसकी प्रभावशीलता सुनिश्चित करने के लिए समुचित निगरानी और निरंतर सुधार की आवश्यकता होगी।