सुशिक्षित और व्यवस्थित स्थानीय स्तर शासन-व्यवस्था की अनुपस्थिति में ‘पंचायतें’ और ‘समितियाँ’ मुख्यतः राजनीतिक संस्थाएँ बनी रही हैं न कि शासन के प्रभावी उपकरण। समालोचनापूर्वक चर्चा कीजिए। (200 words) [UPSC 2015]
स्थानीय स्वशासन पद्धति की प्रभावशीलता: समालोचनात्मक परीक्षण स्थानीय स्वशासन (Panchayati Raj और नगर निगम) भारत में शासन का प्रभावी साधन बनने में कई चुनौतियों का सामना कर रहा है: 1. वित्तीय संसाधनों की कमी: स्थानीय निकायों को अक्सर अपर्याप्त बजट और संसाधनों की कमी का सामना करना पड़ता है, जिससे वे बुनिRead more
स्थानीय स्वशासन पद्धति की प्रभावशीलता: समालोचनात्मक परीक्षण
स्थानीय स्वशासन (Panchayati Raj और नगर निगम) भारत में शासन का प्रभावी साधन बनने में कई चुनौतियों का सामना कर रहा है:
1. वित्तीय संसाधनों की कमी: स्थानीय निकायों को अक्सर अपर्याप्त बजट और संसाधनों की कमी का सामना करना पड़ता है, जिससे वे बुनियादी सेवाएँ और विकास योजनाएँ प्रभावी ढंग से लागू नहीं कर पाते।
2. शक्तियों का संकुचन: स्थानीय निकायों को आवश्यक शक्ति और स्वायत्तता नहीं दी गई है। राज्य सरकारें कई बार स्थानीय स्वायत्तता पर अंकुश लगाती हैं।
3. प्रशासनिक अक्षमता: स्थानीय निकायों में प्रशासनिक क्षमता और तकनीकी विशेषज्ञता की कमी होती है, जो उनकी कार्यक्षमता को प्रभावित करती है।
स्थिति में सुधार के सुझाव:
1. वित्तीय स्वायत्तता: स्थानीय निकायों को अधिक वित्तीय स्वायत्तता और संसाधन प्रदान किए जाएं, जैसे कि केंद्रीय और राज्य वित्तीय सहायता।
2. शक्तियों का विकेंद्रीकरण: स्थानीय निकायों को अधिक शक्ति और निर्णय लेने की स्वतंत्रता दी जाए।
3. क्षमता निर्माण: प्रशासनिक और तकनीकी प्रशिक्षण प्रदान कर स्थानीय निकायों की क्षमता और कार्यकुशलता को बढ़ाया जाए।
इन सुधारों से स्थानीय स्वशासन पद्धति को अधिक प्रभावी और नागरिकों के प्रति जवाबदेह बनाया जा सकता है।
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सुशिक्षित और व्यवस्थित स्थानीय स्तर शासन-व्यवस्था की अनुपस्थिति में 'पंचायतें' और 'समितियाँ': शिक्षा और प्रशिक्षण की कमी: पंचायतें और समितियाँ अक्सर अपर्याप्त शिक्षा और प्रशिक्षण से जूझती हैं। उदाहरण के लिए, बिहार और उत्तर प्रदेश के कुछ ग्रामीण इलाकों में, पंचायत सदस्य प्रशासनिक क्षमताओं की कमी के कRead more
सुशिक्षित और व्यवस्थित स्थानीय स्तर शासन-व्यवस्था की अनुपस्थिति में ‘पंचायतें’ और ‘समितियाँ’:
शिक्षा और प्रशिक्षण की कमी: पंचायतें और समितियाँ अक्सर अपर्याप्त शिक्षा और प्रशिक्षण से जूझती हैं। उदाहरण के लिए, बिहार और उत्तर प्रदेश के कुछ ग्रामीण इलाकों में, पंचायत सदस्य प्रशासनिक क्षमताओं की कमी के कारण ग्रामीण विकास परियोजनाओं का प्रभावी कार्यान्वयन नहीं कर पाते। ये सदस्य आमतौर पर राजनीतिक गतिविधियों में अधिक व्यस्त रहते हैं, जिससे प्रशासनिक कार्यकुशलता प्रभावित होती है।
राजनीतिक हस्तक्षेप: स्थानीय राजनीति अक्सर इन संस्थाओं की कार्यप्रणाली को प्रभावित करती है। हाल ही में, पंजाब में देखा गया कि पंचायत चुनावों में राजनीतिक दलों ने अपने समर्थकों को चुनकर विकास की बजाय राजनीतिक हितों को प्राथमिकता दी। इस तरह के हस्तक्षेप से पंचायतों की स्वतंत्रता और प्रभावशीलता पर नकारात्मक असर पड़ता है।
संसाधनों की कमी: पंचायतों और समितियों को आवश्यक वित्तीय और प्रशासनिक संसाधनों की कमी का सामना करना पड़ता है। उदाहरण के तौर पर, मध्य प्रदेश के कई ग्रामीण क्षेत्रों में, विकास परियोजनाओं के लिए बजट की कमी ने प्रभावी कार्यान्वयन में बाधा डाली है।
संस्थागत ढांचे की कमी: इन संस्थाओं के पास एक स्पष्ट और मजबूत संगठनों की कमी होती है। इस कमी के कारण, जैसे कि झारखंड में पंचायतों में, निर्णय-निर्माण और कार्यान्वयन की प्रक्रियाएँ प्रभावी ढंग से संचालित नहीं हो पातीं।
सुधार के उपाय:
इन सुधारात्मक उपायों को अपनाकर पंचायतें और समितियाँ अपने वास्तविक उद्देश्य की ओर बढ़ सकती हैं और प्रभावी शासन के उपकरण बन सकती हैं।
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