खनन, बाँध एवं अन्य बड़े पैमाने की परियोजनाओं के लिए आवश्यक भूमि अधिकांशतः आदिवासियों, पहाड़ी निवासियों एवं ग्रामीण समुदायों से अर्जित की जाती है। विस्थापित व्यक्तियों को कानूनी प्रावधानों के अनुरूप मौद्रिक मुआवज़ा दिया जाता है। फिर भी, भुगतान प्रायः ...
नीतिशास्त्र केस स्टडी: ग्रामीण से शहरी प्रवासन a. शिक्षित ग्रामीण युवा शहरी क्षेत्रों में स्थानांतरित होने की कोशिश कर रहे हैं आर्थिक अवसरों की खोज: शिक्षित ग्रामीण युवा बेहतर रोजगार के अवसरों की तलाश में शहरी क्षेत्रों में स्थानांतरित हो रहे हैं। उदाहरण के तौर पर, उत्तर प्रदेश और बिहार के ग्रामीण यRead more
नीतिशास्त्र केस स्टडी: ग्रामीण से शहरी प्रवासन
a. शिक्षित ग्रामीण युवा शहरी क्षेत्रों में स्थानांतरित होने की कोशिश कर रहे हैं
आर्थिक अवसरों की खोज: शिक्षित ग्रामीण युवा बेहतर रोजगार के अवसरों की तलाश में शहरी क्षेत्रों में स्थानांतरित हो रहे हैं। उदाहरण के तौर पर, उत्तर प्रदेश और बिहार के ग्रामीण युवा दिल्ली और बंगलुरु जैसे शहरों में IT और सेवा क्षेत्रों में काम करने के लिए जाते हैं। ये शहरी क्षेत्र उनकी शिक्षा के अनुसार उच्च वेतन और करियर की बेहतर संभावनाएँ प्रदान करते हैं।
अधोसंरचना की कमी: ग्रामीण इलाकों में आधुनिक शिक्षा और कौशल विकास की कमी के कारण युवा शहरी क्षेत्रों की ओर आकर्षित हो रहे हैं।
b. भूमिहीन निर्धन लोग नगरीय मलिन बस्तियों में प्रवसन कर रहे हैं
आर्थिक असमानता: भूमिहीन निर्धन लोग रोजगार के लिए नगरीय मलिन बस्तियों की ओर प्रवास कर रहे हैं, जहाँ वे कम वेतन वाली अनौपचारिक नौकरियों में काम करते हैं। उदाहरण के लिए, झारखंड और ओडिशा के ग्रामीण मजदूर मुंबई और दिल्ली के स्लम क्षेत्रों में काम करने के लिए पहुँच रहे हैं।
सार्वजनिक सेवाओं की कमी: ग्रामीण क्षेत्रों में पर्याप्त स्वास्थ्य और शिक्षा सुविधाओं की कमी के कारण ये लोग शहरी क्षेत्रों में बेहतर जीवन की उम्मीद में आ रहे हैं।
c. यहाँ तक कि कुछ किसान अपनी ज़मीन बेच रहे हैं और शहरी क्षेत्रों में छोटी-मोटी नौकरियाँ लेकर बसने की कोशिश कर रहे हैं
कृषि में संकट: कई किसान अपनी ज़मीन बेचकर शहरी क्षेत्रों में प्रवास कर रहे हैं क्योंकि कृषि में गिरावट और अत्यधिक ऋण के कारण उनकी आर्थिक स्थिति दयनीय हो जाती है। उदाहरण के तौर पर, महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र में किसान अपनी भूमि बेचकर पुणे और नागपुर जैसे शहरों में छोटे-मोटे रोजगार की तलाश में आ रहे हैं।
सामाजिक और आर्थिक दबाव: कृषि से जुड़े संकटों के चलते किसान शहरी जीवन की ओर रुख कर रहे हैं, जहाँ वे भिन्न-भिन्न प्रकार की श्रम-संबंधी नौकरियाँ कर सकते हैं।
d. प्रभावी कदम और समाधान
ग्रामीण विकास: ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी ढाँचे, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार करना आवश्यक है। जैसे कि प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (PMGSY) और महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGS) ने ग्रामीण जीवन की गुणवत्ता को सुधारने का प्रयास किया है, लेकिन इन्हें और प्रभावी बनाने की आवश्यकता है।
कृषि सुधार: कृषि में सुधार के लिए योजनाएँ जैसे कि प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (PM-KISAN) और फसल बीमा योजना को मजबूती प्रदान करनी चाहिए ताकि किसानों की आय में स्थिरता आए और वे अपनी ज़मीन को न बेचें।
ग्रामीण उद्यमिता को प्रोत्साहन: ग्रामीण उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए सब्सिडी और प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन करना चाहिए। उदाहरण के लिए, डेयरी विकास और ग्रामीण उद्योगों को समर्थन देकर स्थिर रोजगार के अवसर पैदा किए जा सकते हैं।
शहरी योजना में सुधार: शहरी क्षेत्रों में किफायती आवास और बेहतर बुनियादी ढाँचे के विकास से मलिन बस्तियों की समस्या को कम किया जा सकता है। स्लम सुधार योजनाओं और उचित शहरी नियोजन के माध्यम से शहरी जीवन की गुणवत्ता में सुधार किया जा सकता है।
इन उपायों को अपनाकर ग्रामीण से शहरी प्रवासन की समस्या को नियंत्रित किया जा सकता है और सामाजिक और आर्थिक संतुलन को बनाए रखा जा सकता है।
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खनन, बाँध और बड़े पैमाने की परियोजनाओं में भूमि अधिग्रहण और विस्थापन: एक समालोचनात्मक विश्लेषण भूमि अधिग्रहण और विस्थापन भारत में खनन, बाँध और अन्य बड़े पैमाने की परियोजनाओं के लिए आवश्यक भूमि अक्सर आदिवासियों, पहाड़ी निवासियों, और ग्रामीण समुदायों से अर्जित की जाती है। इन परियोजनाओं के कारण इन लोगोRead more
खनन, बाँध और बड़े पैमाने की परियोजनाओं में भूमि अधिग्रहण और विस्थापन: एक समालोचनात्मक विश्लेषण
भूमि अधिग्रहण और विस्थापन
भारत में खनन, बाँध और अन्य बड़े पैमाने की परियोजनाओं के लिए आवश्यक भूमि अक्सर आदिवासियों, पहाड़ी निवासियों, और ग्रामीण समुदायों से अर्जित की जाती है। इन परियोजनाओं के कारण इन लोगों को विस्थापित किया जाता है, और कानूनी प्रावधानों के अनुसार उन्हें मौद्रिक मुआवज़ा दिया जाता है।
मुआवज़े की धीमी प्रक्रिया
विस्थापित व्यक्तियों को मौद्रिक मुआवज़ा मिलने की प्रक्रिया अक्सर धीमी और जटिल होती है। उदाहरण के लिए, सरदार सरोवर बाँध परियोजना में विस्थापित परिवारों को मुआवज़े के वितरण में लंबी देरी हुई, जिससे उनके पुनर्वास की स्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।
आजीविका और कौशल की कमी
विस्थापित परिवारों को अक्सर नई आजीविका के लिए कौशल की कमी होती है। इन लोगों को बाज़ार की आवश्यकताओं के अनुसार उपयुक्त कौशल प्रशिक्षण नहीं मिलता, जिससे वे कम मज़दूरी वाले प्रवासी श्रमिक बन जाते हैं। उदाहरण के लिए, झारखंड और छत्तीसगढ़ के आदिवासी क्षेत्रों में खनन परियोजनाओं के कारण विस्थापन के बाद कई परिवारों को आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।
सामुदायिक जीवन का विनाश
विस्थापन से इन समुदायों के सामुदायिक जीवन के परंपरागत तरीके अक्सर समाप्त हो जाते हैं। परियोजनाओं के कारण सांस्कृतिक और सामाजिक ताना-बाना बिखर जाता है, और इन लोगों की पारंपरिक जीवनशैली को नुकसान पहुँचता है।
विकास के लाभ और लागत का असमान वितरण
विकास की परियोजनाओं से उद्योगपतियों और नगरीय समुदायों को लाभ होता है, जबकि विस्थापित और गरीब समुदायों पर इसके लागत का भार डाल दिया जाता है। यह अनैतिक है क्योंकि विकास की लागत और लाभ का वितरण असमान होता है, और गरीबों को उनके अधिकार और संसाधनों से वंचित किया जाता है।
निष्कर्ष
See lessखनन, बाँध और अन्य बड़े पैमाने की परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण और विस्थापन की प्रक्रिया में सुधार की आवश्यकता है। सामाजिक न्याय और विस्थापित समुदायों की समुचित देखभाल सुनिश्चित करने के लिए प्रभावी नीतियों और पुनर्वास योजनाओं को लागू करना अनिवार्य है। यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि विकास के लाभ सभी हिस्सेदारों में समान रूप से वितरित हों और विस्थापित व्यक्तियों के जीवन में सुधार हो।