भारत में हाल के समय में बढ़ती चिंता रही है कि प्रभावी सिविल सेवा नैतिकता, आचरण संहिताओं, पारदर्शिता उपायों, नैतिक एवं शुचिता व्यवस्थाओं तथा भ्रष्टाचार निरोधी अभिकरणों को विकसित किया जा सके। इस परिप्रेक्ष में, तीन विशिष्ट क्षेत्रों पर ध्यान ...
नीतिशास्त्र केस स्टडी: ग्रामीण से शहरी प्रवासन a. शिक्षित ग्रामीण युवा शहरी क्षेत्रों में स्थानांतरित होने की कोशिश कर रहे हैं आर्थिक अवसरों की खोज: शिक्षित ग्रामीण युवा बेहतर रोजगार के अवसरों की तलाश में शहरी क्षेत्रों में स्थानांतरित हो रहे हैं। उदाहरण के तौर पर, उत्तर प्रदेश और बिहार के ग्रामीण यRead more
नीतिशास्त्र केस स्टडी: ग्रामीण से शहरी प्रवासन
a. शिक्षित ग्रामीण युवा शहरी क्षेत्रों में स्थानांतरित होने की कोशिश कर रहे हैं
आर्थिक अवसरों की खोज: शिक्षित ग्रामीण युवा बेहतर रोजगार के अवसरों की तलाश में शहरी क्षेत्रों में स्थानांतरित हो रहे हैं। उदाहरण के तौर पर, उत्तर प्रदेश और बिहार के ग्रामीण युवा दिल्ली और बंगलुरु जैसे शहरों में IT और सेवा क्षेत्रों में काम करने के लिए जाते हैं। ये शहरी क्षेत्र उनकी शिक्षा के अनुसार उच्च वेतन और करियर की बेहतर संभावनाएँ प्रदान करते हैं।
अधोसंरचना की कमी: ग्रामीण इलाकों में आधुनिक शिक्षा और कौशल विकास की कमी के कारण युवा शहरी क्षेत्रों की ओर आकर्षित हो रहे हैं।
b. भूमिहीन निर्धन लोग नगरीय मलिन बस्तियों में प्रवसन कर रहे हैं
आर्थिक असमानता: भूमिहीन निर्धन लोग रोजगार के लिए नगरीय मलिन बस्तियों की ओर प्रवास कर रहे हैं, जहाँ वे कम वेतन वाली अनौपचारिक नौकरियों में काम करते हैं। उदाहरण के लिए, झारखंड और ओडिशा के ग्रामीण मजदूर मुंबई और दिल्ली के स्लम क्षेत्रों में काम करने के लिए पहुँच रहे हैं।
सार्वजनिक सेवाओं की कमी: ग्रामीण क्षेत्रों में पर्याप्त स्वास्थ्य और शिक्षा सुविधाओं की कमी के कारण ये लोग शहरी क्षेत्रों में बेहतर जीवन की उम्मीद में आ रहे हैं।
c. यहाँ तक कि कुछ किसान अपनी ज़मीन बेच रहे हैं और शहरी क्षेत्रों में छोटी-मोटी नौकरियाँ लेकर बसने की कोशिश कर रहे हैं
कृषि में संकट: कई किसान अपनी ज़मीन बेचकर शहरी क्षेत्रों में प्रवास कर रहे हैं क्योंकि कृषि में गिरावट और अत्यधिक ऋण के कारण उनकी आर्थिक स्थिति दयनीय हो जाती है। उदाहरण के तौर पर, महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र में किसान अपनी भूमि बेचकर पुणे और नागपुर जैसे शहरों में छोटे-मोटे रोजगार की तलाश में आ रहे हैं।
सामाजिक और आर्थिक दबाव: कृषि से जुड़े संकटों के चलते किसान शहरी जीवन की ओर रुख कर रहे हैं, जहाँ वे भिन्न-भिन्न प्रकार की श्रम-संबंधी नौकरियाँ कर सकते हैं।
d. प्रभावी कदम और समाधान
ग्रामीण विकास: ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी ढाँचे, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार करना आवश्यक है। जैसे कि प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (PMGSY) और महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGS) ने ग्रामीण जीवन की गुणवत्ता को सुधारने का प्रयास किया है, लेकिन इन्हें और प्रभावी बनाने की आवश्यकता है।
कृषि सुधार: कृषि में सुधार के लिए योजनाएँ जैसे कि प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (PM-KISAN) और फसल बीमा योजना को मजबूती प्रदान करनी चाहिए ताकि किसानों की आय में स्थिरता आए और वे अपनी ज़मीन को न बेचें।
ग्रामीण उद्यमिता को प्रोत्साहन: ग्रामीण उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए सब्सिडी और प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन करना चाहिए। उदाहरण के लिए, डेयरी विकास और ग्रामीण उद्योगों को समर्थन देकर स्थिर रोजगार के अवसर पैदा किए जा सकते हैं।
शहरी योजना में सुधार: शहरी क्षेत्रों में किफायती आवास और बेहतर बुनियादी ढाँचे के विकास से मलिन बस्तियों की समस्या को कम किया जा सकता है। स्लम सुधार योजनाओं और उचित शहरी नियोजन के माध्यम से शहरी जीवन की गुणवत्ता में सुधार किया जा सकता है।
इन उपायों को अपनाकर ग्रामीण से शहरी प्रवासन की समस्या को नियंत्रित किया जा सकता है और सामाजिक और आर्थिक संतुलन को बनाए रखा जा सकता है।
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सिविल सेवाओं में शुचिता और नैतिकता को बढ़ाने के लिए संस्थागत उपाय सिविल सेवाओं में नैतिकता और ईमानदारी को सशक्त बनाने के लिए निम्नलिखित तीन विशिष्ट क्षेत्रों में संस्थागत उपाय किए जा सकते हैं: 1. नैतिक मानकों और ईमानदारी के विशिष्ट खतरों का पूर्वानुमान करना नैतिकता निगरानी प्रकोष्ठ की स्थापना: प्रत्Read more
सिविल सेवाओं में शुचिता और नैतिकता को बढ़ाने के लिए संस्थागत उपाय
सिविल सेवाओं में नैतिकता और ईमानदारी को सशक्त बनाने के लिए निम्नलिखित तीन विशिष्ट क्षेत्रों में संस्थागत उपाय किए जा सकते हैं:
1. नैतिक मानकों और ईमानदारी के विशिष्ट खतरों का पूर्वानुमान करना
नैतिकता निगरानी प्रकोष्ठ की स्थापना: प्रत्येक सरकारी विभाग में एक नैतिकता निगरानी प्रकोष्ठ स्थापित करें, जो नैतिक खतरों की पहचान और उनके पूर्वानुमान के लिए जिम्मेदार हो। यह प्रकोष्ठ सतत निगरानी और डाटा विश्लेषण के माध्यम से संभावित समस्याओं की पहचान कर सकेगा। उदाहरण के लिए, सेंट्रल विजिलेंस कमीशन (CVC) इस दिशा में काम कर रहा है, लेकिन इसे और मजबूत किया जा सकता है।
नैतिक जोखिम आकलन: नैतिक जोखिम आकलन को नियमित रूप से लागू करें, जिससे विभिन्न विभागों में संभावित खतरों की पहचान की जा सके। यह आकलन स्वतंत्र आडिटर्स द्वारा किए जाने चाहिए ताकि निष्पक्षता बनी रहे।
2. सिविल सेवकों की नैतिक सक्षमता को सशक्त करना
अनिवार्य नैतिकता प्रशिक्षण: अनिवार्य नैतिकता प्रशिक्षण कार्यक्रम विकसित करें जो सिविल सेवकों को वास्तविक परिदृश्यों और केस स्टडीज़ के माध्यम से नैतिक निर्णय लेने की क्षमता प्रदान करें। यह प्रशिक्षण लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी (LBSNAA) जैसे संस्थानों में नियमित रूप से होना चाहिए।
मेंटोरशिप और काउंसलिंग सेवाएँ: मेंटोरशिप और काउंसलिंग सेवाएँ प्रदान करें ताकि सिविल सेवकों को नैतिक निर्णय लेने में मार्गदर्शन मिल सके और व्यक्तिगत समस्याओं के समाधान की सहायता प्राप्त हो सके।
3. प्रशासनिक प्रक्रियाओं और प्रथाओं का विकास
पारदर्शी प्रशासनिक प्रक्रियाएँ: पारदर्शी प्रशासनिक प्रक्रियाएँ अपनाएँ, जिसमें सभी निर्णय और क्रियावली सार्वजनिक रूप से उपलब्ध हो। इसमें संपत्तियों की सार्वजनिक घोषणा और प्रशासनिक कार्यों का विस्तृत रिपोर्टिंग शामिल होनी चाहिए। RTI (Right to Information) अधिनियम को इस दिशा में और प्रभावी रूप से लागू किया जा सकता है।
विस्थापन सुरक्षा तंत्र: विस्थापन सुरक्षा तंत्र लागू करें ताकि भ्रष्टाचार की रिपोर्टिंग में कोई डर न हो। इसमें गुमनाम रिपोर्टिंग और कानूनी सुरक्षा प्रदान की जानी चाहिए।
नैतिकता संस्कृति का प्रोत्साहन: नेतृत्व को नैतिकता का उदाहरण प्रस्तुत करने और जनता की जवाबदेही को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहित करें। आचरण समिति जैसी पहल इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
हालिया उदाहरण: “स्वच्छता अभियान” और “ई-गवर्नेंस” पहल ने सार्वजनिक प्रशासन में पारदर्शिता और प्रभावशीलता को बढ़ाने में मदद की है। इनसे प्राप्त अनुभव और दृष्टिकोण अन्य क्षेत्रों में भी लागू किए जा सकते हैं।
निष्कर्ष: इन उपायों को लागू करके सिविल सेवाओं में नैतिकता और ईमानदारी को बढ़ावा दिया जा सकता है, जिससे प्रशासन की प्रभावशीलता और जनता का विश्वास बढ़ेगा।
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