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क्या संवर्ग आधारित सिविल सेवा संगठन भारत में धीमे परिवर्तन का कारण रहा हैं? समालोचनापूर्वक परीक्षण कीजिये। (200 words) [UPSC 2014]
परिचय भारत में संवर्ग आधारित सिविल सेवा संगठन, जिसमें आई.ए.एस., आई.पी.एस. जैसी सेवाएँ शामिल हैं, स्वतंत्रता के बाद से प्रशासनिक कार्यों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। हालांकि, यह प्रणाली धीमे परिवर्तन का कारण भी मानी जाती है। केंद्रीकृत संरचना और नौकरशाही की कठोरता संवर्ग आधारित प्रणाली की केंदRead more
परिचय
भारत में संवर्ग आधारित सिविल सेवा संगठन, जिसमें आई.ए.एस., आई.पी.एस. जैसी सेवाएँ शामिल हैं, स्वतंत्रता के बाद से प्रशासनिक कार्यों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। हालांकि, यह प्रणाली धीमे परिवर्तन का कारण भी मानी जाती है।
केंद्रीकृत संरचना और नौकरशाही की कठोरता
संवर्ग आधारित प्रणाली की केंद्रीकृत संरचना और नौकरशाही की कठोरता अक्सर आलोचना का विषय रही है। उदाहरण के लिए, GST (वस्तु और सेवा कर) को लागू करने में काफी समय लगा, जिसका एक कारण नौकरशाही प्रक्रियाओं में जटिलता और पारंपरिक दृष्टिकोण की अनुपस्थिति थी। इसी तरह, पांच वर्षीय योजनाओं और नीतिगत सुधारों के कार्यान्वयन में भी इसी प्रकार की बाधाएँ देखी गई हैं।
जवाबदेही और नवाचार की कमी
संवर्ग प्रणाली की उच्च-स्तरीय संरचना में जवाबदेही और नवाचार की कमी देखी जाती है। अधिकारियों की अक्सर स्थानांतरण और विभागों में परिवर्तन से स्थानीय मुद्दों की गहरी समझ में कमी आती है। जैसे कि स्वच्छ भारत मिशन के कार्यान्वयन में स्थानीय अनुकूलन और फॉलो-अप की कमी के कारण चुनौतियाँ आईं।
हालिया सुधार और परिवर्तन
हाल के प्रयास जैसे अटल नवाचार मिशन और बिजनेस में आसानी सुधार कुछ समस्याओं को संबोधित करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन संवर्ग आधारित संरचना में अंतर्निहित जटिलताएँ अभी भी मौजूद हैं।
निष्कर्ष
संवर्ग आधारित सिविल सेवा संगठन ने प्रशासनिक स्थिरता बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, लेकिन इसकी केंद्रीकृत और कठोर संरचना धीमे परिवर्तन का कारण भी बन सकती है। लगातार सुधार और लचीलापन को बढ़ावा देकर परिवर्तन की गति को तेज किया जा सकता है।
See less"पारम्परिक अधिकारीतंत्रीय संरचना और संस्कृति ने भारत में सामाजिक-आर्थिक विकास की प्रक्रिया में बाधा डाली है।" टिप्पणी कीजिए । (200 words) [UPSC 2016]
पारम्परिक अधिकारीतंत्रीय संरचना और संस्कृति का सामाजिक-आर्थिक विकास पर प्रभाव परिचय भारत की पारम्परिक अधिकारीतंत्रीय संरचना और संस्कृति, जो औपनिवेशिक काल की विरासत है, सामाजिक-आर्थिक विकास की प्रक्रिया में कई बार बाधा डालती है। यह प्रणाली अक्सर धीमे निर्णय लेने, बदलाव के प्रति प्रतिरोध, और पारदर्शितRead more
पारम्परिक अधिकारीतंत्रीय संरचना और संस्कृति का सामाजिक-आर्थिक विकास पर प्रभाव
परिचय भारत की पारम्परिक अधिकारीतंत्रीय संरचना और संस्कृति, जो औपनिवेशिक काल की विरासत है, सामाजिक-आर्थिक विकास की प्रक्रिया में कई बार बाधा डालती है। यह प्रणाली अक्सर धीमे निर्णय लेने, बदलाव के प्रति प्रतिरोध, और पारदर्शिता की कमी से ग्रस्त रहती है।
चुनौतियाँ और प्रभाव
हाल के सुधार और उपाय
निष्कर्ष पारम्परिक अधिकारीतंत्रीय संरचना और संस्कृति ने भारत में सामाजिक-आर्थिक विकास की प्रक्रिया में कई बार बाधा डाली है। हालांकि, हाल के सुधारों और डिजिटल पहलों से इस ढांचे को आधुनिक बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं। ये सुधार भारत की विकास प्रक्रिया को तेज करने में सहायक हो सकते हैं।
See lessप्रारंभिक तौर पर भारत में लोक सेवाएँ तटस्थता और प्रभावशीलता के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अभिकल्पित की गई थीं, जिनका वर्तमान संदर्भ में अभाव दिखाई देता है। क्या आप इस मत से सहमत हैं कि लोक सेवाओं में कड़े सुधारों की आवश्यकता है? टिप्पणी कीजिए। (250 words) [UPSC 2017]
भारत में लोक सेवाएँ तटस्थता, निष्पक्षता और प्रभावशीलता के सिद्धांतों पर आधारित थीं, जिनका उद्देश्य नीतियों को लागू करना और सुशासन सुनिश्चित करना था। लेकिन वर्तमान समय में लोक सेवाओं की तटस्थता और प्रभावशीलता में कमी दिखाई देती है, जो इस बात को बल देती है कि कड़े सुधारों की आवश्यकता है। वर्तमान लोक सRead more
भारत में लोक सेवाएँ तटस्थता, निष्पक्षता और प्रभावशीलता के सिद्धांतों पर आधारित थीं, जिनका उद्देश्य नीतियों को लागू करना और सुशासन सुनिश्चित करना था। लेकिन वर्तमान समय में लोक सेवाओं की तटस्थता और प्रभावशीलता में कमी दिखाई देती है, जो इस बात को बल देती है कि कड़े सुधारों की आवश्यकता है।
वर्तमान लोक सेवाओं की चुनौतियाँ:
राजनीतिकरण: राजनीतिक हस्तक्षेप में वृद्धि ने लोक सेवाओं की तटस्थता को कमजोर कर दिया है। लोक सेवकों पर राजनीतिक दबाव बढ़ रहा है, जिससे वे निष्पक्ष और वस्तुनिष्ठ निर्णय लेने में असमर्थ होते हैं।
जवाबदेही की कमी: लोक सेवाओं में कठोर पदानुक्रम और प्रदर्शन-आधारित मूल्यांकन की कमी ने एक ऐसे तंत्र को जन्म दिया है जहाँ अकुशलता अक्सर अनियंत्रित रहती है। जवाबदेही तंत्र की अनुपस्थिति ने लोक सेवकों में शिथिलता और सेवा वितरण की गुणवत्ता में गिरावट को बढ़ावा दिया है।
लालफीताशाही और प्रक्रियात्मक देरी: लोक सेवाओं में अति-ब्यूरोक्रेसी, लालफीताशाही और प्रक्रियात्मक विलंब की समस्या आम है। इससे निर्णय लेने में देरी होती है और नीतियों के कार्यान्वयन में बाधा उत्पन्न होती है, जिससे जनता में असंतोष बढ़ता है।
परिवर्तन के प्रति प्रतिरोध: लोक सेवाएँ सुधार और आधुनिकीकरण के प्रति प्रतिरोधी रही हैं। पारंपरिक प्रथाओं और नई प्रौद्योगिकियों या नवाचारी शासन मॉडल को अपनाने में अनिच्छा ने उन्हें बदलते समय के साथ कम प्रभावी बना दिया है।
कौशल की कमी: लोक सेवकों में विशेषज्ञता का अभाव देखने को मिलता है, जिससे उन्हें प्रौद्योगिकी, अर्थशास्त्र और पर्यावरण प्रबंधन जैसे जटिल और विशेष कार्यों को संभालने में कठिनाई होती है।
कड़े सुधारों की आवश्यकता:
प्रदर्शन-आधारित मूल्यांकन: एक मजबूत प्रदर्शन मूल्यांकन प्रणाली को लागू करना आवश्यक है, जो पदोन्नति और प्रोत्साहनों को कार्यक्षमता और परिणामों से जोड़े। इससे लोक सेवकों में जवाबदेही और प्रेरणा को बढ़ावा मिलेगा।
राजनीतिकरण से मुक्ति: लोक सेवाओं की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करना अत्यंत आवश्यक है। इसके लिए उन नियमों का सख्ती से पालन किया जाना चाहिए जो लोक सेवकों को राजनीतिक हस्तक्षेप से बचाते हैं।
क्षमता निर्माण: लोक सेवकों को समकालीन चुनौतियों से निपटने के लिए नियमित प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण कार्यक्रमों की आवश्यकता है। यह उन्हें डिजिटल शासन, वित्तीय प्रबंधन और नीतिगत विश्लेषण जैसे क्षेत्रों में सशक्त बनाएगा।
प्रक्रियाओं का सरलीकरण: लालफीताशाही को कम करने और सेवा वितरण की दक्षता में सुधार के लिए ई-गवर्नेंस पहल को अपनाना और प्रक्रियाओं को सरल बनाना आवश्यक है। इससे भ्रष्टाचार के अवसर भी कम होंगे।
विशेषज्ञता का प्रोत्साहन: लोक सेवाओं में विशेषज्ञता को बढ़ावा देना आवश्यक है। विशिष्ट करियर पथों का निर्माण और विशेष क्षेत्रों में विशेषज्ञता को बढ़ावा देना शासन और नीति कार्यान्वयन की गुणवत्ता को सुधार सकता है।
निष्कर्ष:
See lessजहाँ तटस्थता और प्रभावशीलता के मूल सिद्धांत आज भी प्रासंगिक हैं, वहीं भारत की लोक सेवाओं को वर्तमान आवश्यकताओं के साथ तालमेल बिठाने के लिए कड़े सुधारों की आवश्यकता है। राजनीतिकरण से मुक्ति, जवाबदेही, क्षमता निर्माण और विशेषज्ञता पर केंद्रित सुधार लोक सेवाओं की प्रभावशीलता और विश्वसनीयता को बहाल कर सकते हैं। ऐसे सुधार सुनिश्चित करेंगे कि लोक सेवक जनता के हित में प्रभावी रूप से सेवा कर सकें और आधुनिक शासन की चुनौतियों का सामना कर सकें।
"आर्थिक प्रदर्शन के लिए संस्थागत गुणवत्ता एक निर्णायक चालक है"। इस संदर्भ में लोकतंत्र को सुदृढ़ करने के लिए सिविल सेवा में सुधारों के सुझाव दीजिए। (150 words) [UPSC 2020]
संस्थागत गुणवत्ता आर्थिक प्रदर्शन को प्रभावित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, और सिविल सेवाओं की दक्षता और प्रभावशीलता लोकतंत्र की मजबूती में योगदान करती है। लोकतंत्र को सुदृढ़ करने के लिए सिविल सेवा में निम्नलिखित सुधारों पर ध्यान देना आवश्यक है: पारदर्शिता और जवाबदेही: सिविल सेवकों की नियुक्Read more
संस्थागत गुणवत्ता आर्थिक प्रदर्शन को प्रभावित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, और सिविल सेवाओं की दक्षता और प्रभावशीलता लोकतंत्र की मजबूती में योगदान करती है। लोकतंत्र को सुदृढ़ करने के लिए सिविल सेवा में निम्नलिखित सुधारों पर ध्यान देना आवश्यक है:
पारदर्शिता और जवाबदेही: सिविल सेवकों की नियुक्तियों, पदोन्नतियों, और कार्यों में पारदर्शिता सुनिश्चित की जानी चाहिए। इसके लिए स्वतंत्र निगरानी तंत्र और उत्तरदायित्व की स्पष्ट प्रक्रियाएँ लागू करनी चाहिए।
प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण: सिविल सेवकों के लिए निरंतर प्रशिक्षण और कौशल विकास कार्यक्रमों की व्यवस्था करनी चाहिए, ताकि वे बदलती परिस्थितियों और तकनीकी परिवर्तनों से निपट सकें।
आवश्यक सुधार और पेशेवरता: सिविल सेवा की कार्यशैली में सुधार के लिए नियमों और प्रक्रियाओं की नियमित समीक्षा और आवश्यक बदलाव करना चाहिए। पेशेवरता को बढ़ावा देने के लिए उच्च मानक और आचार संहिता को लागू करना चाहिए।
डिजिटलीकरण और तकनीकी सुधार: कार्यप्रणालियों को डिजिटलीकरण के माध्यम से सुव्यवस्थित करना और आधुनिक तकनीकी उपकरणों का उपयोग करना चाहिए, जिससे कार्य दक्षता और जवाबदेही में सुधार हो सके।
इन सुधारों से सिविल सेवाओं की गुणवत्ता और प्रभावशीलता बढ़ेगी, जिससे लोकतंत्र की मजबूत नींव तैयार होगी और आर्थिक प्रदर्शन में सुधार होगा।
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