प्राचीन भारत के विकास की दिशा में भौगोलिक कारकों की भूमिका को स्पष्ट कीजिए। (150 words)[UPSC 2023]
भारत को उपमहाद्वीप क्यों माना जाता है? भौगोलिक विशेषताएँ: भौगोलिक अलगाव: भारत एशिया के महाद्वीप से हिमालय पर्वत श्रृंखला और वेस्टर्न घाटों के माध्यम से भौगोलिक रूप से अलग है। ये पर्वत श्रृंखलाएँ इसे अन्य एशियाई क्षेत्रों से पृथक करती हैं, जिससे यह एक स्पष्ट उपमहाद्वीप बनता है। भूमि क्षेत्र और आकार:Read more
भारत को उपमहाद्वीप क्यों माना जाता है?
भौगोलिक विशेषताएँ:
- भौगोलिक अलगाव: भारत एशिया के महाद्वीप से हिमालय पर्वत श्रृंखला और वेस्टर्न घाटों के माध्यम से भौगोलिक रूप से अलग है। ये पर्वत श्रृंखलाएँ इसे अन्य एशियाई क्षेत्रों से पृथक करती हैं, जिससे यह एक स्पष्ट उपमहाद्वीप बनता है।
- भूमि क्षेत्र और आकार: भारत का विशाल भूमि क्षेत्र (लगभग 3.29 मिलियन वर्ग किलोमीटर) और इसके भौगोलिक विविधता इसे एक स्वतंत्र उपमहाद्वीप की तरह प्रस्तुत करता है, जो अन्य महाद्वीपों की तुलना में विशेष आकार और स्वरूप प्रदान करता है।
जलवायु और पारिस्थितिकी:
- विविध जलवायु और पारिस्थितिकी तंत्र: भारत में विविध जलवायु क्षेत्र (उपोष्णकटिबंधीय, उष्णकटिबंधीय, और शीतोष्ण) और पारिस्थितिक तंत्र हैं, जो इसे एक उपमहाद्वीप की तरह विशिष्ट बनाते हैं। उदाहरण के लिए, गंगा-यमुना डेल्टा और डेक्कन पठार की विभिन्न पारिस्थितिकीय विशेषताएँ इसे विशिष्ट बनाती हैं।
संस्कृतिक और ऐतिहासिक विशेषताएँ:
- संस्कृतिक और ऐतिहासिक विविधता: भारत की समृद्ध सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत इसके उपमहाद्वीप की पहचान को बढ़ाती है। यहाँ की विविध भाषाएँ, धर्म, और सांस्कृतिक परंपराएँ इसे एक समृद्ध उपमहाद्वीप बनाती हैं।
इन विशेषताओं के कारण भारत एक उपमहाद्वीप के रूप में मान्यता प्राप्त करता है, जो उसे अन्य महाद्वीपों से भिन्न और विशिष्ट बनाता है।
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प्राचीन भारत के विकास की दिशा में भौगोलिक कारकों की भूमिका भौगोलिक कारकों ने प्राचीन भारत के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हिमालय ने उत्तरी सीमाओं की रक्षा की और एक प्राकृतिक अवरोध के रूप में कार्य किया। इसके कारण भारत में विदेशी आक्रमणों की आवृत्ति सीमित रही, जबकि इसे उतRead more
प्राचीन भारत के विकास की दिशा में भौगोलिक कारकों की भूमिका
भौगोलिक कारकों ने प्राचीन भारत के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हिमालय ने उत्तरी सीमाओं की रक्षा की और एक प्राकृतिक अवरोध के रूप में कार्य किया। इसके कारण भारत में विदेशी आक्रमणों की आवृत्ति सीमित रही, जबकि इसे उत्तर-पश्चिमी दर्रों (जैसे खैबर और बोलन दर्रा) के माध्यम से बाहरी संस्कृतियों के संपर्क में भी रखा।
नदियाँ, विशेष रूप से सिंधु, गंगा, और यमुना ने कृषि और सभ्यता के विकास को बढ़ावा दिया। सिंधु घाटी सभ्यता (2500-1700 BCE) सिंधु नदी के किनारे विकसित हुई, जहाँ समृद्ध कृषि ने शहरीकरण को प्रोत्साहित किया। इसी प्रकार, गंगा-यमुना का मैदान महाजनपद काल (600-300 BCE) में राजनीतिक और सांस्कृतिक केंद्र बना, जिससे मौर्य और गुप्त साम्राज्यों का उदय हुआ।
इसके अलावा, दक्षिण भारत के तटीय क्षेत्र व्यापार और सांस्कृतिक संपर्क के प्रमुख केंद्र बने, जहाँ से प्राचीन भारत का व्यापार रोम और दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ हुआ। उदाहरणस्वरूप, चोल साम्राज्य (9वीं-13वीं शताब्दी) ने समुद्री व्यापार और सांस्कृतिक प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
भौगोलिक विविधता ने भारत के क्षेत्रीय और सांस्कृतिक विविधता को जन्म दिया, जिससे भारत में कई संस्कृतियों और परंपराओं का समन्वय हुआ।
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