प्रश्न का उत्तर अधिकतम 200 शब्दों में दीजिए। यह प्रश्न 11 अंक का है। [MPPSC 2023] आत्मनिर्भरता’ सरदार पटेल के आर्थिक दर्शन के प्रमुख सिद्धातों में से एक थी। व्याख्या करें।
परिचय रवीन्द्रनाथ टैगोर, जो एक महान कवि, दार्शनिक और चिंतक थे, ने मनुष्य और प्रकृति के बीच गहरे और सामंजस्यपूर्ण संबंध को समझा। उनके अनुसार, यह संबंध आध्यात्मिक और अंतरनिर्भर है, जिसमें मनुष्य और प्रकृति एक-दूसरे के पूरक हैं। टैगोर का मानना था कि मनुष्य प्रकृति का अभिन्न अंग है और दोनों को परस्पर समRead more
परिचय
रवीन्द्रनाथ टैगोर, जो एक महान कवि, दार्शनिक और चिंतक थे, ने मनुष्य और प्रकृति के बीच गहरे और सामंजस्यपूर्ण संबंध को समझा। उनके अनुसार, यह संबंध आध्यात्मिक और अंतरनिर्भर है, जिसमें मनुष्य और प्रकृति एक-दूसरे के पूरक हैं। टैगोर का मानना था कि मनुष्य प्रकृति का अभिन्न अंग है और दोनों को परस्पर सम्मान और संतुलन में रहना चाहिए ताकि सच्चे सुख और प्रगति की प्राप्ति हो सके।
1. प्रकृति के साथ आध्यात्मिक और भावनात्मक संबंध
टैगोर के अनुसार, मनुष्य और प्रकृति के बीच एक आध्यात्मिक और भावनात्मक संबंध है।
- उन्होंने प्रकृति को एक जीवंत इकाई के रूप में देखा, जो अपनी सुंदरता, लय और जीवनचक्र के माध्यम से मनुष्य से संवाद करती है। उनकी रचनाओं, जैसे कि “गीतांजलि”, में प्रकृति को आंतरिक शांति, प्रेरणा और आनंद के स्रोत के रूप में दर्शाया गया है।
- आधुनिक समय में यह विचार इको-स्पिरिचुअल मूवमेंट्स के उदय में देखा जा सकता है, जहाँ लोग मानसिक स्वास्थ्य और आध्यात्मिक विकास के लिए प्रकृति से जुड़ने का प्रयास करते हैं।
2. प्रकृति एक शिक्षक और मार्गदर्शक के रूप में
टैगोर ने प्रकृति को एक शिक्षक के रूप में देखा, जो मनुष्य को महत्वपूर्ण जीवन पाठ सिखाती है।
- उनका मानना था कि प्रकृति के लय और चक्र — जैसे मौसम का बदलना, पेड़ों का बढ़ना, नदियों का बहना — यह निरंतरता, धैर्य और संतुलन का प्रतीक हैं। इन प्राकृतिक प्रक्रियाओं से मनुष्य को सामंजस्यपूर्ण और संतुलित जीवन जीने की शिक्षा मिलती है।
- इसका आधुनिक उदाहरण सतत विकास (Sustainable Development) प्रथाओं में देखा जा सकता है, जहाँ प्राकृतिक प्रक्रियाओं का अध्ययन करके पर्यावरण-मित्र तकनीकों और समाधान विकसित किए जाते हैं।
3. औद्योगिकीकरण और प्रकृति के शोषण की आलोचना
टैगोर ने औद्योगिकीकरण और प्रकृति के शोषण की कड़ी आलोचना की। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भौतिक प्रगति के अंधाधुंध पीछा करते हुए पर्यावरण के विनाश से बचना चाहिए।
- उन्होंने कहा कि मनुष्य अपने लाभ के लिए प्रकृति को केवल एक संसाधन के रूप में न देखें, बल्कि उसे एक साथी के रूप में स्वीकार करें। यह दृष्टिकोण आज के जलवायु परिवर्तन आंदोलनों और पेरिस समझौते जैसे वैश्विक प्रयासों से मेल खाता है, जो भविष्य की पीढ़ियों के लिए प्रकृति के संरक्षण पर बल देते हैं।
4. प्रकृति के साथ सामंजस्य से समृद्ध जीवन
टैगोर का मानना था कि जब मनुष्य प्रकृति के साथ सामंजस्य में रहता है, तो उसका जीवन समृद्ध होता है।
- उन्होंने एक ऐसी जीवनशैली की वकालत की जहाँ संस्कृति, सृजनात्मकता और प्रकृति साथ आएं। उनके स्कूल शांतिनिकेतन में शिक्षा को प्राकृतिक वातावरण में प्रदान किया जाता था, जिससे छात्रों के रचनात्मक और भावनात्मक विकास में सहायता मिली।
- आज, यह विचार प्रकृति आधारित शिक्षा और हरित परिसर (Green Campuses) की बढ़ती लोकप्रियता में देखा जा सकता है, जो प्राकृतिक परिवेश के माध्यम से समग्र विकास को बढ़ावा देते हैं।
निष्कर्ष
रवीन्द्रनाथ टैगोर के अनुसार, मनुष्य और प्रकृति का संबंध एक गहरे सामंजस्य, परस्पर सम्मान और आध्यात्मिक जुड़ाव का है। उन्होंने मानवता से आग्रह किया कि वे प्रकृति के मूल्य को केवल एक वस्तु के रूप में न देखें, बल्कि उसे जीवन के साथी के रूप में समझें। उनके विचार आज भी अत्यंत प्रासंगिक हैं, जब दुनिया पर्यावरणीय चुनौतियों का सामना कर रही है और प्रकृति के साथ टिकाऊ संबंध स्थापित करने के प्रयास कर रही है, जो सह-अस्तित्व के महत्व को रेखांकित करता है।
सरदार पटेल के आर्थिक दर्शन में आत्मनिर्भरता 1. आत्मनिर्भरता का महत्व: सरदार वल्लभभाई पटेल के आर्थिक दर्शन में आत्मनिर्भरता को केंद्रीय स्थान प्राप्त था। उनका मानना था कि आर्थिक स्वतंत्रता और स्वदेशी उत्पादन से ही देश की सच्ची स्वतंत्रता सुनिश्चित हो सकती है। उन्होंने भारत के आर्थिक विकास के लिए आत्मRead more
सरदार पटेल के आर्थिक दर्शन में आत्मनिर्भरता
1. आत्मनिर्भरता का महत्व: सरदार वल्लभभाई पटेल के आर्थिक दर्शन में आत्मनिर्भरता को केंद्रीय स्थान प्राप्त था। उनका मानना था कि आर्थिक स्वतंत्रता और स्वदेशी उत्पादन से ही देश की सच्ची स्वतंत्रता सुनिश्चित हो सकती है। उन्होंने भारत के आर्थिक विकास के लिए आत्मनिर्भरता को महत्वपूर्ण बताया।
2. औद्योगिकीकरण और ग्रामीण विकास: पटेल ने औद्योगिकीकरण को बढ़ावा देने के लिए स्थानीय संसाधनों का उपयोग करने पर जोर दिया। उन्होंने खुद की उद्योग नीति अपनाने की वकालत की और स्थानीय कारीगरों और उद्यमियों को प्रोत्साहित किया। इसके साथ ही, उन्होंने ग्रामीण विकास पर ध्यान केंद्रित किया, जिससे गांवों को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में काम किया।
3. हाल के उदाहरण: हाल ही में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान सरदार पटेल की इस नीति की विरासत को आगे बढ़ाता है। 2020 में कोविड-19 के समय में ‘आत्मनिर्भर भारत’ की पहल ने स्वदेशी उत्पादों और स्थानीय उद्योगों को बढ़ावा देने पर जोर दिया, जिससे भारत को वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं पर निर्भरता कम करने में मदद मिली।
4. नीतिगत दिशा: पटेल की आत्मनिर्भरता की दृष्टि ने स्वदेशी उद्योगों को बढ़ावा देने के साथ-साथ विपणन और निर्यात में स्वायत्तता के महत्व को भी स्पष्ट किया। इसने भविष्य में आर्थिक नीति के निर्माण के लिए एक प्रेरणादायक आधार प्रदान किया।
सरदार पटेल के आत्मनिर्भरता के सिद्धांत ने भारत की आर्थिक नीति और विकास दृष्टिकोण को एक दिशा प्रदान की, जो आज भी भारतीय नीति निर्माताओं के लिए प्रेरणास्पद है।
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