प्रश्न का उत्तर अधिकतम 15 से 20 शब्दों में दीजिए। यह प्रश्न 03 अंक का है। [MPPSC 2023] रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डी० आर० डी० ओ०) का उद्देश्य क्या है?
विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केन्द्र (VSSC) के मुख्य उद्देश्य परिचय विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केन्द्र (VSSC), तिरुवनंतपुरम, केरल में स्थित एक प्रमुख अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान है। इसे 1963 में स्थापित किया गया था और इसका नाम भारत के अंतरिक्ष अनुसंधान के प्रमुख पथप्रदर्शक डॉ. विक्रम साराभाई के नाम पर रखा गयाRead more
विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केन्द्र (VSSC) के मुख्य उद्देश्य
परिचय
विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केन्द्र (VSSC), तिरुवनंतपुरम, केरल में स्थित एक प्रमुख अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान है। इसे 1963 में स्थापित किया गया था और इसका नाम भारत के अंतरिक्ष अनुसंधान के प्रमुख पथप्रदर्शक डॉ. विक्रम साराभाई के नाम पर रखा गया है। यह भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के अधीन कार्य करता है और भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
VSSC के मुख्य उद्देश्य
- अंतरिक्ष प्रक्षेपण यंत्रों का विकास
- उद्देश्य: विभिन्न प्रकार के प्रक्षेपण यंत्रों का डिज़ाइन, विकास और परीक्षण करना जो उपग्रहों को कक्षा में स्थापित कर सकें।
- हाल का उदाहरण: VSSC ने GSLV Mk III का विकास किया, जो भारत का सबसे भारी रॉकेट है। इस रॉकेट ने 2019 में चंद्रयान-2 मिशन को सफलतापूर्वक प्रक्षिप्त किया, जिसका उद्देश्य चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव का अन्वेषण करना था।
- उपग्रह प्रौद्योगिकी में प्रगति
- उद्देश्य: संचार, पृथ्वी अवलोकन और वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए उपग्रह प्रौद्योगिकी को विकसित और संवर्धित करना।
- हाल का उदाहरण: VSSC ने Cartosat-3 उपग्रह का विकास किया, जिसे नवंबर 2019 में लॉन्च किया गया। यह उपग्रह उच्च-रिज़ॉल्यूशन इमेजरी प्रदान करता है, जिसका उपयोग मानचित्रण और शहरी योजना के लिए किया जाता है।
- अंतरिक्ष प्रणाली में अनुसंधान और विकास
- उद्देश्य: विभिन्न अंतरिक्ष प्रणालियों जैसे कि प्रोपल्शन, मार्गदर्शन और नियंत्रण प्रणालियों में उन्नत अनुसंधान और विकास करना।
- हाल का उदाहरण: VSSC ने क्रायोजेनिक प्रोपल्शन सिस्टम का विकास किया, जिसका उपयोग GSLV रॉकेटों में किया जाता है। यह तकनीक संचार उपग्रहों और वैज्ञानिक मिशनों के सफल प्रक्षेपण के लिए महत्वपूर्ण है।
- राष्ट्रीय अंतरिक्ष कार्यक्रमों का समर्थन
- उद्देश्य: तकनीकी विशेषज्ञता, नवाचार और आधारभूत संरचना के माध्यम से विभिन्न राष्ट्रीय अंतरिक्ष कार्यक्रमों का समर्थन करना।
- हाल का उदाहरण: VSSC का योगदान मंगलयान मिशन (2013) में महत्वपूर्ण था, जो भारत का पहला अंतरप्लैनेटरी मिशन था। VSSC ने मंगलयान के प्रक्षेपण यंत्र के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- सहयोग और क्षमता निर्माण
- उद्देश्य: अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष एजेंसियों और संस्थानों के साथ सहयोग करना, और अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी में प्रशिक्षण और शिक्षा के माध्यम से क्षमता निर्माण करना।
- हाल का उदाहरण: VSSC ने NASA और ESA (यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी) जैसे संगठनों के साथ सहयोग परियोजनाओं में भाग लिया। इन सहयोगों ने ज्ञान का आदान-प्रदान और तकनीकी उन्नति को बढ़ावा दिया है। इसके अलावा, VSSC विभिन्न देशों के इंजीनियरों और वैज्ञानिकों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करता है।
- अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देना
- उद्देश्य: अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी को प्रचारित करना, शिक्षा और जनसंपर्क गतिविधियों के माध्यम से जागरूकता बढ़ाना।
- हाल का उदाहरण: VSSC नियमित रूप से अंतरिक्ष प्रदर्शनी का आयोजन करता है, जिसमें नवीनतम तकनीकी प्रगति को प्रदर्शित किया जाता है और छात्रों और आम जनता को अंतरिक्ष अन्वेषण के बारे में प्रेरित किया जाता है।
निष्कर्ष
विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केन्द्र (VSSC) भारत के अंतरिक्ष क्षमताओं को बढ़ाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके प्रमुख उद्देश्य प्रक्षेपण यंत्रों का विकास, उपग्रह प्रौद्योगिकी में प्रगति, अनुसंधान और विकास, राष्ट्रीय कार्यक्रमों का समर्थन, सहयोग और क्षमता निर्माण, और अंतरिक्ष विज्ञान को बढ़ावा देना हैं। हाल के उदाहरण VSSC के उद्देश्यों की दिशा और इसके योगदान की पुष्टि करते हैं, जो भारत की अंतरिक्ष क्षेत्र में स्थिति को सुदृढ़ करने में सहायक हैं।
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रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डी० आर० डी० ओ०) का उद्देश्य रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) का मुख्य उद्देश्य भारत की रक्षा प्रणालियों में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना और भारतीय सशस्त्र बलों की आवश्यकता के अनुसार रक्षा प्रौद्योगिकियों का विकास करना है। DRDO की स्थापना 1958 में की गई थी और तब से यRead more
रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डी० आर० डी० ओ०) का उद्देश्य
रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) का मुख्य उद्देश्य भारत की रक्षा प्रणालियों में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना और भारतीय सशस्त्र बलों की आवश्यकता के अनुसार रक्षा प्रौद्योगिकियों का विकास करना है। DRDO की स्थापना 1958 में की गई थी और तब से यह भारत की रक्षा क्षमताओं को मज़बूत बनाने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। इसके माध्यम से, भारत उन्नत सैन्य तकनीकों के विकास और स्वदेशी रक्षा उत्पादों के निर्माण में आत्मनिर्भर बन रहा है।
मुख्य उद्देश्य:
DRDO का मुख्य लक्ष्य स्वदेशी तकनीकों का विकास कर विदेशी आयातों पर निर्भरता को कम करना है। यह भारत सरकार की “आत्मनिर्भर भारत” पहल के साथ जुड़ा हुआ है, जो घरेलू उत्पादन और अनुसंधान को प्राथमिकता देता है। उदाहरण के लिए, हल्का लड़ाकू विमान (LCA) तेजस DRDO की स्वदेशी रक्षा विकास की सफलता का प्रतीक है।
DRDO के द्वारा विकसित की गई अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियां भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा को मज़बूती प्रदान करती हैं। हाल ही में, अग्नि-V इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल (ICBM) का सफल परीक्षण, जिसकी रेंज 5,000 किलोमीटर से अधिक है, भारत की रक्षा क्षमता और रणनीतिक प्रभाव को बढ़ाने वाला एक महत्वपूर्ण कदम है।
DRDO मिसाइल, रडार, विमानों, इलेक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणालियों, और रक्षा में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी प्रौद्योगिकियों का विकास करता है। 2023 में, DRDO ने हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी डेमोंस्ट्रेटर व्हीकल (HSTDV) का सफल परीक्षण किया, जिससे भारत हाइपरसोनिक हथियार विकसित करने में सक्षम देशों की सूची में शामिल हो गया है।
DRDO भारतीय सेना, नौसेना, और वायुसेना को नवीनतम तकनीकों से लैस करता है। उदाहरण के लिए, हाल ही में DRDO द्वारा विकसित एडवांस टोव्ड आर्टिलरी गन सिस्टम (ATAGS) को भारतीय सेना में शामिल किया गया, जो पूरी तरह से स्वदेशी तोपखाने प्रणाली है और सेना की मारक क्षमता को बढ़ाता है।
DRDO उद्योगों और शैक्षणिक संस्थानों के साथ सहयोग करता है ताकि अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा दिया जा सके। 2023 में शुरू की गई डिफेंस इंडिया स्टार्टअप चैलेंज (DISC) एक महत्वपूर्ण पहल है जिसके अंतर्गत DRDO ने स्टार्टअप्स के साथ साझेदारी की और नई रक्षा तकनीकों के विकास को प्रोत्साहित किया।
DRDO अंतर्राष्ट्रीय साझेदारियों के माध्यम से तकनीकी हस्तांतरण और सह-विकास पर भी ध्यान देता है। इसका हालिया उदाहरण ब्रह्मोस मिसाइल का रूस के साथ संयुक्त विकास है, जो भारत की रक्षा निर्यात क्षमताओं को भी बढ़ाता है।
निष्कर्ष
DRDO का उद्देश्य कई आयामों में फैला हुआ है: रक्षा तकनीकों में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना, राष्ट्रीय सुरक्षा को सुदृढ़ बनाना, और सशस्त्र बलों की क्षमताओं को उन्नत करना। नवाचार, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग, और उद्योगों के साथ साझेदारी के माध्यम से, DRDO भारत की रक्षा क्षमताओं को वैश्विक स्तर पर उभारने का कार्य कर रहा है। हाल के महत्वपूर्ण तकनीकी विकास जैसे INS अरिहंत (परमाणु पनडुब्बी) और अस्त्र मिसाइल प्रणाली इसके उदाहरण हैं।
ये प्रयास भारत की व्यापक भू-राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं और आत्मनिर्भर भारत जैसी नीतियों के अनुरूप हैं।
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