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परीक्षण कीजिये कि क्षेत्रवाद राष्ट्रीय एकता को कैसे प्रभावित करता है? (125 Words) [UPPSC 2021]
क्षेत्रवाद और राष्ट्रीय एकता पर प्रभाव क्षेत्रवाद अक्सर राष्ट्रीय एकता को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है। जब क्षेत्रीय समूह अपने विशेष अधिकार और संसाधनों के लिए संघर्ष करते हैं, तो यह आंतरिक मतभेद और विभाजन को जन्म देता है। उदाहरण के लिए, असम में अलग राज्य की मांग और तेलंगाना आंदोलन ने राज्य और कRead more
क्षेत्रवाद और राष्ट्रीय एकता पर प्रभाव
क्षेत्रवाद अक्सर राष्ट्रीय एकता को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है। जब क्षेत्रीय समूह अपने विशेष अधिकार और संसाधनों के लिए संघर्ष करते हैं, तो यह आंतरिक मतभेद और विभाजन को जन्म देता है।
उदाहरण के लिए, असम में अलग राज्य की मांग और तेलंगाना आंदोलन ने राज्य और केंद्र सरकार के बीच तनाव को बढ़ाया, जिससे राष्ट्रीय एकता पर प्रभाव पड़ा।
आर्थिक असमानता और उचित संसाधन वितरण की कमी भी क्षेत्रवाद को प्रोत्साहित करती है।
हालांकि, संविधानिक प्रावधान और समान विकास योजनाएं जैसे राज्य पुनर्गठन आयोग और नैतिकता के प्रसार ने क्षेत्रीय असंतोष को कम करने में मदद की है, फिर भी क्षेत्रवाद की चुनौती बनी रहती है।
See lessप्रादेशिकता का क्या आधार है? क्या ऐसा प्रादेशिक स्तर पर विकास के लाभों के असमान वितरण से हुआ, जिसने कि अंततः प्रादेशिकता को बढ़ावा दिया? अपने उत्तर को पुष्ट कीजिए। (200 words) [UPSC 2016]
प्रादेशिकता (regionalism) का आधार विभिन्न कारकों से जुड़ा होता है, जिनमें सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, और राजनीतिक भिन्नताएँ शामिल हैं। यह उस भावना या विचारधारा को दर्शाता है, जिसमें किसी विशिष्ट क्षेत्र के लोग अपने क्षेत्र की पहचान, स्वायत्तता, और विकास के लिए संघर्ष करते हैं। प्रादेशिकता का उभरनाRead more
प्रादेशिकता (regionalism) का आधार विभिन्न कारकों से जुड़ा होता है, जिनमें सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, और राजनीतिक भिन्नताएँ शामिल हैं। यह उस भावना या विचारधारा को दर्शाता है, जिसमें किसी विशिष्ट क्षेत्र के लोग अपने क्षेत्र की पहचान, स्वायत्तता, और विकास के लिए संघर्ष करते हैं। प्रादेशिकता का उभरना अक्सर तब होता है जब किसी क्षेत्र के लोग यह महसूस करते हैं कि उनके क्षेत्र को राष्ट्रीय विकास प्रक्रिया में उचित प्रतिनिधित्व या लाभ नहीं मिला है।
प्रादेशिक स्तर पर विकास के लाभों के असमान वितरण ने प्रादेशिकता को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। जब किसी क्षेत्र के लोग देखते हैं कि उनके क्षेत्र का विकास अन्य क्षेत्रों की तुलना में कम हुआ है, तो असंतोष उत्पन्न होता है। यह असमानता आर्थिक अवसरों, बुनियादी ढांचे, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं, और संसाधनों के वितरण में हो सकती है। उदाहरण के लिए, भारत में पूर्वोत्तर राज्यों, विदर्भ, तेलंगाना, और झारखंड जैसे क्षेत्रों में प्रादेशिकता के आंदोलन इस असमान विकास का परिणाम रहे हैं।
ऐसे क्षेत्र जिनके पास प्राकृतिक संसाधन अधिक होते हैं, लेकिन वे केंद्र या अन्य क्षेत्रों से अपेक्षित लाभ नहीं प्राप्त करते, वे अक्सर प्रादेशिकता की ओर उन्मुख होते हैं। यह भावना तब और मजबूत होती है जब क्षेत्रीय भाषाओं, सांस्कृतिक पहचान, और परंपराओं को भी खतरा महसूस होता है।
इस प्रकार, प्रादेशिकता का आधार मुख्यतः आर्थिक असमानता, सांस्कृतिक पहचान, और राजनीतिक उपेक्षा में निहित होता है, और यह तब और प्रबल होती है जब क्षेत्रीय विकास के लाभ असमान रूप से वितरित होते हैं।
See lessक्षेत्रवाद भारत के विकास में किस प्रकार की बाधाएँ उत्पन्न करता हैं ? (125 Words) [UPPSC 2023]
क्षेत्रवाद और भारत के विकास में बाधाएँ 1. विकास असमानता: क्षेत्रवाद विकास योजनाओं और संसाधनों की असमान वितरण को बढ़ावा देता है। विशेष क्षेत्रों में संसाधनों और सुविधाओं की अनावश्यक प्राथमिकता अन्य क्षेत्रों के विकास को प्रभावित करती है। 2. राजनीतिक तनाव: क्षेत्रीय असंतोष और क्षेत्रीय दल कभी-कभी राजनRead more
क्षेत्रवाद और भारत के विकास में बाधाएँ
1. विकास असमानता: क्षेत्रवाद विकास योजनाओं और संसाधनों की असमान वितरण को बढ़ावा देता है। विशेष क्षेत्रों में संसाधनों और सुविधाओं की अनावश्यक प्राथमिकता अन्य क्षेत्रों के विकास को प्रभावित करती है।
2. राजनीतिक तनाव: क्षेत्रीय असंतोष और क्षेत्रीय दल कभी-कभी राजनीतिक स्थिरता को बाधित करते हैं। यह संघीयता और सामाजिक तानाबाना को कमजोर करता है, जैसे कि नकली राज्यों और राजनीतिक आंदोलन।
3. सामाजिक एकता: क्षेत्रवाद सामाजिक विभाजन को बढ़ावा देता है, जिससे भिन्नताएँ और विरोधाभास उत्पन्न होते हैं। यह राष्ट्रीय सामाजिक एकता और समन्वय को प्रभावित करता है।
4. शासन में समस्या: स्थानीय स्तर पर भ्रष्टाचार और अनियमितता की समस्या बढ़ती है, जो शासन और प्रशासन की गुणवत्ता को प्रभावित करती है।
निष्कर्ष: क्षेत्रवाद भारत के विकास में विकास असमानता, राजनीतिक तनाव, सामाजिक एकता में कमी और शासन संबंधी समस्याएँ उत्पन्न करता है, जिससे एकीकरण और समग्र विकास में बाधाएँ आती हैं।
See lessक्षेत्रीयकरण वैश्वीकृत विश्व में संधारणीय भविष्य की कुंजी है। चर्चा कीजिए। (150 शब्दों में उत्तर दें)
क्षेत्रीयकरण वैश्वीकरण के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह विभिन्न देशों के बीच संबंधों को मजबूत करता है। यह विश्व में सहयोग और समझौते को बढ़ावा देता है, जो आंतरिक सुरक्षा, विकास और विश्वास को बढ़ावा देता है। क्षेत्रीयकरण वैश्वीकरण की विभिन्न पहलुओं का समर्थन करता है, जैसे कि व्यापार, विदेशी नीति, और साRead more
क्षेत्रीयकरण वैश्वीकरण के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह विभिन्न देशों के बीच संबंधों को मजबूत करता है। यह विश्व में सहयोग और समझौते को बढ़ावा देता है, जो आंतरिक सुरक्षा, विकास और विश्वास को बढ़ावा देता है। क्षेत्रीयकरण वैश्वीकरण की विभिन्न पहलुओं का समर्थन करता है, जैसे कि व्यापार, विदेशी नीति, और सांस्कृतिक विनिमय। इसके माध्यम से, देश अपने समस्याओं का समाधान करने में सहायक हो सकते हैं और ग्लोबल मंच पर अपनी आवाज को सुनाने का अवसर प्राप्त कर सकते हैं। इस प्रक्रिया में, संधारणीय भविष्य की कुंजी छिपी होती है, जो देशों को साझा स्थिति में साथ चलने की क्षमता प्रदान कर सकती है।
See lessक्या आप सहमत हैं कि भारत में क्षेत्रीयता बढ़ती हुई सांस्कृतिक मुखरता का परिणाम प्रतीत होती है ? तर्क कीजिए । (150 words)[UPSC 2020]
भारत में क्षेत्रीयता और सांस्कृतिक मुखरता: एक विश्लेषण सहमत होने के तर्क: सांस्कृतिक विविधता का सम्मान: भारत में क्षेत्रीयता के बढ़ते प्रभाव ने विभिन्न सांस्कृतिक पहचान और परंपराओं को प्रोत्साहित किया है। उदाहरण के लिए, तेलुगू फिल्म उद्योग और मराठी थिएटर ने अपनी सांस्कृतिक पहचान को बल दिया है और स्थRead more
भारत में क्षेत्रीयता और सांस्कृतिक मुखरता: एक विश्लेषण
सहमत होने के तर्क:
निष्कर्ष:
भारतीय समाज में क्षेत्रीयता की बढ़ती हुई सांस्कृतिक मुखरता का परिणाम है कि क्षेत्रीय पहचान, परंपराएँ और स्थानीय मुद्दे अब अधिक प्रमुखता से सामने आ रहे हैं। यह प्रक्रिया सांस्कृतिक विविधता और सामाजिक साक्षात्कार को प्रोत्साहित करती है, लेकिन साथ ही इसमें सामाजिक एकता और राष्ट्रीय एकता को भी चुनौती मिलती है।
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