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राष्ट्रीय आय लेखांकन का क्या महत्व है? किसी देश की जी. डी. पी. को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारकों की विवेचना कीजिए। रने वाले ।(उत्तर 200 शब्दों में दें)
राष्ट्रीय आय लेखांकन (National Income Accounting) अर्थव्यवस्था की संपूर्ण आर्थिक गतिविधियों का मापन और विश्लेषण करने का एक महत्वपूर्ण तरीका है। यह देश की आर्थिक स्वास्थ्य, विकास की दर, और जीवनस्तर का आकलन करने में सहायक होता है। इसके माध्यम से, जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) और अन्य प्रमुख आर्थिक संकेतकोRead more
राष्ट्रीय आय लेखांकन (National Income Accounting) अर्थव्यवस्था की संपूर्ण आर्थिक गतिविधियों का मापन और विश्लेषण करने का एक महत्वपूर्ण तरीका है। यह देश की आर्थिक स्वास्थ्य, विकास की दर, और जीवनस्तर का आकलन करने में सहायक होता है। इसके माध्यम से, जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) और अन्य प्रमुख आर्थिक संकेतकों की गणना की जाती है, जो नीति निर्माताओं, व्यवसायों, और निवेशकों के लिए आर्थिक निर्णय लेने में मदद करते हैं।
जीडीपी को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारकों में निम्नलिखित शामिल हैं:
इन कारकों का संगठित तरीके से विश्लेषण करने से अर्थव्यवस्था की स्थिति और विकास की संभावनाओं का बेहतर समझ प्राप्त होता है।
See lessसार्वजनिक ऋण से आप क्या समझते हैं? उच्च सार्वजनिक ऋण को चिंता का विषय क्यों माना जाता है? भारत के संदर्भ में विवेचना कीजिए।(उत्तर 200 शब्दों में दें)
सार्वजनिक ऋण वह कर्ज है जिसे सरकार अपने विभिन्न खर्चों को पूरा करने के लिए लेती है। इसमें घरेलू और विदेशी उधारी शामिल होती है, जो बांड्स, सरकारी सिक्योरिटीज और अन्य वित्तीय उपकरणों के रूप में होती है। उच्च सार्वजनिक ऋण को चिंता का विषय इसलिए माना जाता है क्योंकि यह कई नकारात्मक आर्थिक प्रभाव डाल सकतRead more
सार्वजनिक ऋण वह कर्ज है जिसे सरकार अपने विभिन्न खर्चों को पूरा करने के लिए लेती है। इसमें घरेलू और विदेशी उधारी शामिल होती है, जो बांड्स, सरकारी सिक्योरिटीज और अन्य वित्तीय उपकरणों के रूप में होती है।
उच्च सार्वजनिक ऋण को चिंता का विषय इसलिए माना जाता है क्योंकि यह कई नकारात्मक आर्थिक प्रभाव डाल सकता है। पहले, अत्यधिक ऋण चुकाने के लिए सरकार को उच्च ब्याज दरों का भुगतान करना पड़ता है, जिससे बजट पर दबाव बढ़ता है और विकासात्मक खर्चों की कमी हो सकती है। दूसरे, ऋण का बोझ देश की मौद्रिक नीति और वित्तीय स्थिरता को प्रभावित कर सकता है, जिससे महंगाई और ब्याज दरों में अस्थिरता आ सकती है। तीसरे, उच्च सार्वजनिक ऋण विदेशी निवेशकों की विश्वास को प्रभावित कर सकता है, जिससे विनिमय दर और विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव बढ़ सकता है।
भारत के संदर्भ में, उच्च सार्वजनिक ऋण एक गंभीर मुद्दा है क्योंकि यह सामाजिक कल्याण योजनाओं और विकासात्मक परियोजनाओं के लिए संसाधनों की उपलब्धता को प्रभावित करता है। इसके अलावा, भारत को अंतर्राष्ट्रीय ऋण एजेंसियों से निगरानी और निर्देश मिलते हैं, जो ऋण प्रबंधन को और चुनौतीपूर्ण बना सकते हैं। इसलिए, सार्वजनिक ऋण को नियंत्रित करना और उसके प्रभावी प्रबंधन की दिशा में कदम उठाना महत्वपूर्ण है।
See lessभारत में विभिन्न विकास पहलों की लेखापरीक्षा रिपोर्टों में बार-बार सार्वजनिक व्यय संबधी अक्षमताओं को उजागर किया गया है। इन अक्षमताओं की पहचान करते हुए, इनके समाधान हेतु अपनाए जाने वाले उपायों का सुझाव दीजिए। (150 शब्दों में उत्तर दें)
भारत में सार्वजनिक व्यय संबंधी अक्षमताओं का समाधान करने के लिए कई उपाय हैं। पहले, सरकार को व्यय को नियंत्रित करने और प्रभावी बनाने के लिए नीतियों को सुधारना चाहिए। दूसरे, सार्वजनिक वित्त व्यवस्था में पारदर्शिता और ज़िम्मेदारी को बढ़ावा देना चाहिए। तीसरे, विभिन्न स्तरों पर व्यय को मापने और मॉनिटर करनRead more
भारत में सार्वजनिक व्यय संबंधी अक्षमताओं का समाधान करने के लिए कई उपाय हैं। पहले, सरकार को व्यय को नियंत्रित करने और प्रभावी बनाने के लिए नीतियों को सुधारना चाहिए। दूसरे, सार्वजनिक वित्त व्यवस्था में पारदर्शिता और ज़िम्मेदारी को बढ़ावा देना चाहिए। तीसरे, विभिन्न स्तरों पर व्यय को मापने और मॉनिटर करने के लिए तकनीकी उपाय अपनाने चाहिए। चौथे, व्यय के स्तर को नियंत्रित करने के लिए अधिक वित्तीय संविदाएं और लेखांकन प्रक्रियाएं लागू करने चाहिए। इनके अलावा, सार्वजनिक व्यय को लेकर जनता को जागरूक करने और सक्रिय भागीदारी को बढ़ाने के लिए संज्ञान बढ़ाना जरूरी है। इन उपायों के साथ, सार्वजनिक व्यय संबंधी अक्षमताओं को सुधारने में मदद मिल सकती है।
See lessएक समावेशी, निम्न-उत्सर्जन वाली और जलवायु अनुकूल विकास एजेंडा को अपनाने से भारत के घरेलू सार्वजनिक व्यय की प्रभावशीलता में काफी वृद्धि होगी। भारत में जलवायु परिवर्तन अनुकूल बजटिंग के संदर्भ में चर्चा कीजिए। (250 शब्दों में उत्तर दीजिए)
भारत में जलवायु परिवर्तन अनुकूल बजटिंग (Climate-Responsive Budgeting) के माध्यम से घरेलू सार्वजनिक व्यय की प्रभावशीलता में महत्वपूर्ण सुधार संभव है। जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणामों को देखते हुए, एक समावेशी और निम्न-उत्सर्जन वाली विकास रणनीति अपनाना आवश्यक है। इस संदर्भ में, जलवायु परिवर्तन अनुकूल बजRead more
भारत में जलवायु परिवर्तन अनुकूल बजटिंग (Climate-Responsive Budgeting) के माध्यम से घरेलू सार्वजनिक व्यय की प्रभावशीलता में महत्वपूर्ण सुधार संभव है। जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणामों को देखते हुए, एक समावेशी और निम्न-उत्सर्जन वाली विकास रणनीति अपनाना आवश्यक है। इस संदर्भ में, जलवायु परिवर्तन अनुकूल बजटिंग के लाभ निम्नलिखित हैं:
**1. प्रभावी संसाधन आवंटन:** जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में बजट तैयार करते समय, संसाधनों का आवंटन ऐसे क्षेत्रों में किया जा सकता है जो जलवायु लचीलापन और स्थिरता को बढ़ावा दें। इससे बुनियादी ढांचे, कृषि, और ऊर्जा क्षेत्र में टिकाऊ प्रथाओं को बढ़ावा मिल सकता है, जैसे कि नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में निवेश और जलवायु अनुकूल कृषि तकनीकों का समर्थन।
**2. जोखिम प्रबंधन:** जलवायु परिवर्तन के जोखिमों, जैसे कि बाढ़ और सूखा, को ध्यान में रखते हुए बजट तैयार करना, सार्वजनिक निवेश को उन क्षेत्रों में केंद्रित करता है जो इन जोखिमों को कम कर सकते हैं। इससे आपदा प्रबंधन और पुनर्निर्माण कार्यों की लागत में कमी आ सकती है।
**3. समावेशिता:** जलवायु अनुकूल बजटिंग नीति को सभी सामाजिक और आर्थिक समूहों को ध्यान में रखते हुए तैयार किया जा सकता है, जिससे समाज के कमजोर वर्गों को विशेष लाभ मिलेगा और उनकी जलवायु संबंधी चुनौतियों का सामना करने में सहायता होगी।
**4. दीर्घकालिक लाभ:** जलवायु अनुकूल बजटिंग दीर्घकालिक विकास लक्ष्यों को साधने में मदद करती है, जैसे कि सतत विकास लक्ष्य (SDGs) को प्राप्त करने में योगदान देना। इससे न केवल जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम किया जा सकता है, बल्कि आर्थिक और सामाजिक स्थिरता भी प्राप्त की जा सकती है।
**5. पारदर्शिता और उत्तरदायित्व:** जलवायु बजटिंग से संबंधित डेटा और रिपोर्टिंग के माध्यम से पारदर्शिता बढ़ती है, जो नीति निर्माताओं और नागरिकों को बजट की प्रभावशीलता की निगरानी करने में सक्षम बनाती है।
**चुनौतियाँ और समाधान:**
हालांकि, जलवायु परिवर्तन अनुकूल बजटिंग के लाभ स्पष्ट हैं, इसके कार्यान्वयन में चुनौतियाँ भी हैं, जैसे कि डेटा की कमी, तकनीकी और संस्थागत क्षमताओं की कमी, और राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी। इन समस्याओं का समाधान करने के लिए, भारत को मजबूत नीतिगत ढाँचा, बेहतर डेटा संग्रहण और विश्लेषण क्षमताएँ, और सभी स्तरों पर समन्वय की आवश्यकता है।
इस प्रकार, जलवायु परिवर्तन अनुकूल बजटिंग भारत के घरेलू सार्वजनिक व्यय की प्रभावशीलता को बढ़ाने और दीर्घकालिक विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
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