दोहरे प्रभाव का सिद्धांत इस विचार पर आधारित है कि यदि किसी व्यक्ति का व्यवहार या आचरण किसी ऐसे लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए है जो नैतिक रूप से सही है, लेकिन उसके परिणामस्वरूप एक नैतिक दुष्प्रभाव भी पड़ता ...
करुणा और सहिष्णुता लोक सेवक के दैनिक काम-काज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, क्योंकि ये मूल्य उनके कार्यों को अधिक प्रभावी और संवेदनशील बनाते हैं। 1. करुणा: करुणा लोक सेवकों को समाज के कमजोर वर्गों की समस्याओं को समझने और उनका समाधान करने में मदद करती है। उदाहरण के तौर पर, एक सामाजिक कार्यकर्ता जोRead more
करुणा और सहिष्णुता लोक सेवक के दैनिक काम-काज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, क्योंकि ये मूल्य उनके कार्यों को अधिक प्रभावी और संवेदनशील बनाते हैं।
1. करुणा: करुणा लोक सेवकों को समाज के कमजोर वर्गों की समस्याओं को समझने और उनका समाधान करने में मदद करती है। उदाहरण के तौर पर, एक सामाजिक कार्यकर्ता जो गरीबों की सहायता करता है, करुणा के माध्यम से उनकी वास्तविक ज़रूरतों को पहचानता है और उपयुक्त सहायता प्रदान करता है, जिससे उनके जीवन में सुधार होता है।
2. सहिष्णुता: सहिष्णुता लोक सेवकों को विभिन्न दृष्टिकोणों और समस्याओं को समझने और स्वीकारने की क्षमता देती है। एक सरकारी अधिकारी जो विभिन्न सांस्कृतिक और धार्मिक समूहों के साथ काम करता है, सहिष्णुता से भरे दृष्टिकोण को अपनाकर समन्वय और संवाद को आसान बनाता है, जिससे सामाजिक सामंजस्य बनाए रखा जा सकता है।
इन मूल्यों के माध्यम से लोक सेवक अधिक प्रभावी ढंग से सेवा प्रदान कर सकते हैं, समाज में समरसता और सहानुभूति को बढ़ावा दे सकते हैं।
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दोहरे प्रभाव का सिद्धांत नैतिक निर्णय लेने में तब सहायक हो सकता है जब किसी क्रिया का एक सकारात्मक और एक नकारात्मक परिणाम हो। यह सिद्धांत यह मानता है कि यदि कोई व्यक्ति किसी नैतिक रूप से उचित लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कार्य करता है, और उस कार्य का एक अनचाहा दुष्प्रभाव होता है, तो वह क्रिया स्वीकाRead more
दोहरे प्रभाव का सिद्धांत नैतिक निर्णय लेने में तब सहायक हो सकता है जब किसी क्रिया का एक सकारात्मक और एक नकारात्मक परिणाम हो। यह सिद्धांत यह मानता है कि यदि कोई व्यक्ति किसी नैतिक रूप से उचित लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कार्य करता है, और उस कार्य का एक अनचाहा दुष्प्रभाव होता है, तो वह क्रिया स्वीकार्य हो सकती है, बशर्ते दुष्प्रभाव अनिवार्य या प्राथमिक उद्देश्य न हो।
उदाहरण के लिए, एक चिकित्सक यदि एक गंभीर बीमार मरीज को दर्द से राहत देने के लिए उच्च मात्रा में दर्दनिवारक दवा देता है, जो अनजाने में उसकी मृत्यु का कारण बन सकता है, तो यह कार्रवाई दोहरे प्रभाव के सिद्धांत के तहत नैतिक मानी जा सकती है। इसका उद्देश्य दर्द से राहत देना है, न कि जान लेना।
यह सिद्धांत युद्ध स्थितियों में भी लागू हो सकता है, जैसे कि एक सैन्य हमला जिसका उद्देश्य आतंकवादियों को खत्म करना है, लेकिन उसमें नागरिकों की हानि भी होती है। यह सिद्धांत सुनिश्चित करता है कि केवल सकारात्मक उद्देश्य ही प्राथमिक हो, और दुष्प्रभाव अनिच्छित हों।
इस प्रकार, यह सिद्धांत नैतिक दुविधाओं को हल करने में एक संतुलित दृष्टिकोण प्रदान करता है।
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