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19वीं सदी के ब्रिटिशकालीन भारत में समुद्र पारयिता पारंगत के क्या कारण थे? बिहार के विशेष संदर्भ में इंडेंचर पद्धति के आलोक में विवेचना कीजिये। [64वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2018]
समुद्र पारयिता पारंगत का अर्थ है उन लोगों का विदेश यात्रा करना जो एक समय में गुलामी की स्थिति में होते थे। ब्रिटिशकालीन भारत में, विशेष रूप से 19वीं सदी में, समुद्र पारयिता पारंगत की प्रथा ने विभिन्न कारणों से प्रमुखता प्राप्त की, विशेष रूप से बिहार जैसे क्षेत्रों में इंडेंचर पद्धति (Indenture SysteRead more
समुद्र पारयिता पारंगत का अर्थ है उन लोगों का विदेश यात्रा करना जो एक समय में गुलामी की स्थिति में होते थे। ब्रिटिशकालीन भारत में, विशेष रूप से 19वीं सदी में, समुद्र पारयिता पारंगत की प्रथा ने विभिन्न कारणों से प्रमुखता प्राप्त की, विशेष रूप से बिहार जैसे क्षेत्रों में इंडेंचर पद्धति (Indenture System) के माध्यम से।
इंडेंचर पद्धति: बिहार के संदर्भ में
समुद्र पारयिता पारंगत के अन्य कारण
समुद्र पारयिता के प्रभाव
निष्कर्ष
19वीं सदी के ब्रिटिशकालीन भारत में समुद्र पारयिता पारंगत की प्रथा ने न केवल आर्थिक बल्कि सामाजिक और राजनीतिक कारणों से भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बिहार जैसे क्षेत्रों में यह प्रथा विशेष रूप से स्पष्ट थी, जहां से अधिक संख्या में मजदूरों का विदेशों में भेजा जाना हुआ। इस प्रक्रिया ने लोगों को बेहतर अवसरों की तलाश में प्रेरित किया, लेकिन साथ ही यह कई मानवाधिकारों के हनन की भी वजह बनी। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में यह एक निर्णायक मोड़ के रूप में सामने आया, जिससे देशवासियों को अपने अधिकारों और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा मिली।
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चंपारण सत्याग्रह: स्वाधीनता संघर्ष का एक निर्णायक मोड़ चंपारण सत्याग्रह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण और निर्णायक मोड़ था, जिसे महात्मा गांधी ने 1917 में बिहार के चंपारण जिले में अंजाम दिया। यह सत्याग्रह ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीय किसानों की पहली बड़ी सफलता थी और गांधीजी की नेतृत्व क्Read more
चंपारण सत्याग्रह: स्वाधीनता संघर्ष का एक निर्णायक मोड़
चंपारण सत्याग्रह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण और निर्णायक मोड़ था, जिसे महात्मा गांधी ने 1917 में बिहार के चंपारण जिले में अंजाम दिया। यह सत्याग्रह ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीय किसानों की पहली बड़ी सफलता थी और गांधीजी की नेतृत्व क्षमता को स्थापित करने वाला एक प्रमुख कदम था। इस आंदोलन ने भारत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक नए तरीके के संघर्ष की शुरुआत की, जो आगे चलकर स्वतंत्रता संग्राम के लिए प्रेरणा का स्रोत बना।
चंपारण सत्याग्रह का इतिहास और कारण
चंपारण जिले में किसानों को ब्रिटिश योजना के तहत निलहे (Indigo) की खेती करने के लिए मजबूर किया गया था। किसानों को न सिर्फ यह कि कम कीमत पर नील का उत्पादन करना था, बल्कि उस पर भारी टैक्स भी लगता था। इसके कारण किसान आर्थिक रूप से बर्बाद हो रहे थे। जब किसान इसके खिलाफ आवाज उठाते, तो ब्रिटिश अधिकारी उन्हें दमन और शोषण का शिकार बनाते थे।
गांधीजी ने चंपारण में किसानों के हालात की जानकारी ली और यह देखा कि वे बेहद कठिनाई में थे। गांधीजी का मानना था कि अहिंसात्मक प्रतिरोध से ही इस समस्या का समाधान संभव है।
सत्याग्रह का आयोजन
1917 में महात्मा गांधी ने चंपारण में सत्याग्रह का आह्वान किया। उन्होंने किसानों की समस्याओं को उठाया और आंदोलन को संगठित किया। गांधीजी के नेतृत्व में किसानों ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ अपने अधिकारों की मांग की। गांधीजी ने यह सुनिश्चित किया कि आंदोलन पूरी तरह से अहिंसक तरीके से हो, और किसानों को कानून की नजर में सही ठहराया जाए।
सत्याग्रह का परिणाम और प्रभाव
चंपारण सत्याग्रह ने ब्रिटिश शासन को हिला दिया और किसानों के पक्ष में एक बड़ा बदलाव आया:
चंपारण सत्याग्रह का स्वाधीनता संग्राम पर प्रभाव
चंपारण सत्याग्रह ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक नया अध्याय जोड़ा। यह गांधीजी के नेतृत्व में भारत में हुए पहले बड़े अहिंसक आंदोलन के रूप में सामने आया। इसके बाद गांधीजी ने अन्य स्थानों पर भी सत्याग्रह और असहमति के अहिंसक रूपों का नेतृत्व किया।
निष्कर्ष
चंपारण सत्याग्रह न केवल किसानों के अधिकारों की रक्षा करने के लिए महत्वपूर्ण था, बल्कि यह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक निर्णायक मोड़ साबित हुआ। गांधीजी का यह सत्याग्रह शांति और अहिंसा के रास्ते पर चलने की दिशा दिखाता है, जिससे पूरे भारतीय समाज में एक नई जागरूकता आई और ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष को और मजबूत किया।
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