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19वीं सदी के उत्तरार्द्ध से भारतीय राष्ट्रवाद के विकास की आलोचनात्मक समीक्षा कीजिये। [64वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2018]
19वीं सदी के उत्तरार्द्ध से भारतीय राष्ट्रवाद के विकास की आलोचनात्मक समीक्षा 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध में भारतीय राष्ट्रवाद ने एक नए मोड़ को लिया, जिसने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और सामाजिक-राजनीतिक बदलाव की दिशा तय की। ब्रिटिश उपनिवेशी शासन के विरोध में उभरा यह राष्ट्रवाद समय के साथ सामाजिक और सांसRead more
19वीं सदी के उत्तरार्द्ध से भारतीय राष्ट्रवाद के विकास की आलोचनात्मक समीक्षा
19वीं सदी के उत्तरार्द्ध में भारतीय राष्ट्रवाद ने एक नए मोड़ को लिया, जिसने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और सामाजिक-राजनीतिक बदलाव की दिशा तय की। ब्रिटिश उपनिवेशी शासन के विरोध में उभरा यह राष्ट्रवाद समय के साथ सामाजिक और सांस्कृतिक आंदोलनों से जुड़ा और अंततः स्वतंत्रता संग्राम का आधार बना। इस विकास को समझने के लिए हमें विभिन्न पहलुओं पर गौर करना होगा।
1. 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध में राष्ट्रवाद का उदय
सामाजिक और सांस्कृतिक सुधार आंदोलन
संस्कृतिक पुनर्जागरण
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का गठन (1885)
2. 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध में राष्ट्रवाद के विभिन्न रूप
मध्यमवर्गीय राष्ट्रवाद
राजनीतिक और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद
हिंदू धर्म और राष्ट्रीयता का मेल
3. आलोचनात्मक दृष्टिकोण
मध्यमवर्गीय राष्ट्रवाद का सीमित प्रभाव
ब्रिटिश शोषण के प्रति धीमी प्रतिक्रिया
सामाजिक असमानताएँ
4. 20वीं सदी में राष्ट्रवाद का उभार
निष्कर्ष
19वीं सदी के उत्तरार्द्ध में भारतीय राष्ट्रवाद ने सामाजिक और सांस्कृतिक सुधारों के माध्यम से जन्म लिया और धीरे-धीरे एक मजबूत राजनीतिक आंदोलन का रूप लिया। हालांकि इसमें कुछ सीमाएँ थीं, जैसे कि इसे शुरू में शहरी और मध्यमवर्गीय वर्ग द्वारा नियंत्रित किया गया और इसकी पहुंच ग्रामीण क्षेत्रों तक कम थी। इसके बावजूद, यह राष्ट्रवाद भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए एक मजबूत आधार बना और अंततः भारत को स्वतंत्रता दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
See lessग्लोबल वार्मिंग क्या है? ग्लोबल वार्मिंग से होने वाले प्रभाव को कम करने के लिये किये जाने वाले प्रयासों में भारत का क्या योगदान है? "निकट भविष्य में पूरा विश्व, इस ग्रह के मानव के द्वारा की जाने वाली गलतियों के कारण, पानी में डूब जाएगा।" उक्त कथन पर अपने विचार स्पष्ट करें। [63वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2017]
ग्लोबल वार्मिंग पृथ्वी के वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों, जैसे कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन, और नाइट्रस ऑक्साइड, के बढ़ने से उत्पन्न होने वाली एक गंभीर समस्या है। इन गैसों का वायुमंडल में अधिक मात्रा में होना सूरज की गर्मी को पृथ्वी की सतह पर फंसा देता है, जिससे पृथ्वी का औसत तापमान बढ़ता है। इसे ग्लोबल वRead more
ग्लोबल वार्मिंग पृथ्वी के वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों, जैसे कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन, और नाइट्रस ऑक्साइड, के बढ़ने से उत्पन्न होने वाली एक गंभीर समस्या है। इन गैसों का वायुमंडल में अधिक मात्रा में होना सूरज की गर्मी को पृथ्वी की सतह पर फंसा देता है, जिससे पृथ्वी का औसत तापमान बढ़ता है। इसे ग्लोबल वार्मिंग कहा जाता है।
ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव
ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव पृथ्वी के पर्यावरण और पारिस्थितिकी तंत्र पर गहरे असर डालते हैं। इसके प्रमुख प्रभाव इस प्रकार हैं:
भारत का योगदान ग्लोबल वार्मिंग को कम करने में
भारत, एक विकासशील देश होने के बावजूद, ग्लोबल वार्मिंग को नियंत्रित करने के लिए कई महत्वपूर्ण प्रयास कर रहा है:
“निकट भविष्य में पूरा विश्व, इस ग्रह के मानव के द्वारा की जाने वाली गलतियों के कारण, पानी में डूब जाएगा।” उक्त कथन पर विचार
यह कथन ग्लोबल वार्मिंग के खतरों और उसके परिणामस्वरूप समुद्र स्तर में वृद्धि के बारे में एक गंभीर चेतावनी है। समुद्र स्तर का बढ़ना, विशेष रूप से ग्लेशियरों और आर्कटिक बर्फ के पिघलने के कारण, तटीय क्षेत्रों के लिए बहुत बड़ा खतरा बन सकता है। यदि इस पर नियंत्रण नहीं पाया गया, तो कई तटीय शहर और द्वीप जलमग्न हो सकते हैं।
हालांकि, यह कुछ हद तक अतिरेक हो सकता है, लेकिन इसमें सच्चाई है कि अगर तत्काल कदम नहीं उठाए गए, तो मानवता के लिए खतरनाक परिणाम हो सकते हैं। यह कथन उस खतरे को उजागर करता है जो ग्लोबल वार्मिंग के कारण उत्पन्न हो सकता है।
निष्कर्ष
ग्लोबल वार्मिंग पृथ्वी के लिए एक गंभीर चुनौती बन चुकी है, और इसका मुकाबला करने के लिए विश्वभर में सामूहिक प्रयास आवश्यक हैं। भारत का योगदान सकारात्मक रहा है, लेकिन हमें अभी भी और अधिक सक्रिय उपायों की आवश्यकता है। यदि हम इस दिशा में प्रभावी कदम नहीं उठाते, तो आने वाली पीढ़ियों के लिए खतरे बढ़ सकते हैं।
See lessसॉफ्टवेयर से आप क्या समझते हैं? देश के आर्थिक विकास में कैसे सॉफ्टवेयर उद्योग रीढ़ की हड्डी के समान है. समझाएँ। कंप्यूटर की भाषाओं के विकास पर अपना मत स्पष्ट करें तथा समझाएँ कि हमारे देश का इस क्षेत्र में क्या योगदान है? [63वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2017]
सॉफ्टवेयर उस कोड, प्रोग्राम या अनुप्रयोग का संग्रह होता है, जो कंप्यूटर या अन्य डिजिटल उपकरणों को कार्य करने में मदद करता है। यह हार्डवेयर के साथ मिलकर काम करता है, लेकिन इसका कोई भौतिक रूप नहीं होता। सॉफ्टवेयर को दो श्रेणियों में बांटा जा सकता है: सिस्टम सॉफ्टवेयर: यह कंप्यूटर के संचालन के लिए आवश्Read more
सॉफ्टवेयर उस कोड, प्रोग्राम या अनुप्रयोग का संग्रह होता है, जो कंप्यूटर या अन्य डिजिटल उपकरणों को कार्य करने में मदद करता है। यह हार्डवेयर के साथ मिलकर काम करता है, लेकिन इसका कोई भौतिक रूप नहीं होता। सॉफ्टवेयर को दो श्रेणियों में बांटा जा सकता है:
सॉफ्टवेयर उद्योग का आर्थिक विकास में योगदान
सॉफ्टवेयर उद्योग ने भारतीय अर्थव्यवस्था को कई तरीकों से सशक्त किया है। यह उद्योग न केवल रोजगार के अवसर प्रदान करता है, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान भी देता है:
कंप्यूटर भाषाओं के विकास पर विचार
कंप्यूटर भाषाएँ वह तरीके हैं जिनसे हम कंप्यूटर से संवाद करते हैं। ये भाषाएँ प्रोग्राम लिखने के लिए उपयोग की जाती हैं, जो कंप्यूटर को निर्देश देती हैं। कुछ प्रमुख कंप्यूटर भाषाएँ हैं:
भारत ने इन भाषाओं में कई योगदान किए हैं, विशेष रूप से आधुनिक प्रोग्रामिंग भाषाओं के विकास में। इसके अलावा, भारतीय सॉफ़्टवेयर कंपनियों ने इन भाषाओं का उपयोग करके वैश्विक स्तर पर कई प्रकार के सॉफ़्टवेयर उत्पाद बनाए हैं।
भारत का सॉफ्टवेयर क्षेत्र में योगदान
निष्कर्ष
भारत का सॉफ़्टवेयर उद्योग न केवल देश की अर्थव्यवस्था के लिए एक मजबूत रीढ़ बन चुका है, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी इसकी एक महत्वपूर्ण भूमिका है। सॉफ्टवेयर उद्योग ने रोजगार, नवाचार, और निर्यात में उल्लेखनीय योगदान किया है, जिससे भारत की आर्थिक ताकत में वृद्धि हुई है। कंप्यूटर भाषाओं के विकास और भारत के योगदान ने इसे दुनिया के सबसे प्रमुख तकनीकी देशों में से एक बना दिया है।
See lessउपग्रहों को अंतरिक्ष में स्थापित करने के क्षेत्र में भारत ने क्या प्रगति की है? एक से अधिक उपग्रहों को एकसाथ अंतरिक्ष में भेजे जाने के सकारात्मक एवं ऋणात्मक पक्ष को स्पष्ट करें। भारत के इस क्षेत्र में प्रवेश करने से देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में किस प्रकार सहायता मिली है? [63वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2017]
भारत द्वारा उपग्रहों को अंतरिक्ष में स्थापित करने में प्रगति भारत ने अंतरिक्ष क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति की है, और विशेष रूप से उपग्रहों को अंतरिक्ष में स्थापित करने के क्षेत्र में देश ने उत्कृष्ट उपलब्धियां हासिल की हैं। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने समय-समय पर कई महत्वपूर्ण उपग्रहोंRead more
भारत द्वारा उपग्रहों को अंतरिक्ष में स्थापित करने में प्रगति
भारत ने अंतरिक्ष क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति की है, और विशेष रूप से उपग्रहों को अंतरिक्ष में स्थापित करने के क्षेत्र में देश ने उत्कृष्ट उपलब्धियां हासिल की हैं। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने समय-समय पर कई महत्वपूर्ण उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजा है, जो न केवल भारत बल्कि विश्वभर में भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान की छवि को मजबूत करने में सहायक रहे हैं।
भारत की प्रमुख उपलब्धियां
एक साथ कई उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजने के सकारात्मक और ऋणात्मक पहलू
सकारात्मक पहलू
ऋणात्मक पहलू
भारत के लिए आर्थिक फायदे और अंतरिक्ष में प्रवेश से मिलने वाली सहायता
आर्थिक विकास में योगदान
निष्कर्ष
भारत ने अंतरिक्ष क्षेत्र में महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की हैं और उपग्रहों को अंतरिक्ष में स्थापित करने के क्षेत्र में अपनी स्थिति मजबूत की है। एक साथ कई उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजने से लागत में कमी आई है और भारत को वैश्विक प्रतिस्पर्धा में बढ़त मिली है। हालांकि, इसके कुछ जोखिम भी हैं, जैसे एक ही मिशन में कई उपग्रहों का नुकसान होने का खतरा।
See lessनियोजित विकास स्वतंत्रता के बाद भारत में किए गए महत्वपूर्ण आर्थिक सुधारों में से एक था। इस संदर्भ में, चर्चा कीजिए कि द्वितीय पंचवर्षीय योजना को मील का पत्थर क्यों माना जाता है। (200 words)
द्वितीय पंचवर्षीय योजना का महत्त्व द्वितीय पंचवर्षीय योजना (1956-1961) भारत के औद्योगिकीकरण और आर्थिक आत्मनिर्भरता के लिए एक मील का पत्थर साबित हुई। औद्योगिकीकरण की दिशा में कदम इस योजना ने भारी उद्योगों की स्थापना पर जोर दिया, जैसे BHEL और SAIL, जो आज भारत के प्रमुख उद्योगों में शामिल हैं। इसके अलाRead more
द्वितीय पंचवर्षीय योजना का महत्त्व
द्वितीय पंचवर्षीय योजना (1956-1961) भारत के औद्योगिकीकरण और आर्थिक आत्मनिर्भरता के लिए एक मील का पत्थर साबित हुई।
औद्योगिकीकरण की दिशा में कदम
इस योजना ने भारी उद्योगों की स्थापना पर जोर दिया, जैसे BHEL और SAIL, जो आज भारत के प्रमुख उद्योगों में शामिल हैं। इसके अलावा, आयात प्रतिस्थापन नीति के जरिए भारत को विदेशी वस्तुओं पर निर्भरता कम करने की दिशा में सहायता मिली।
बुनियादी ढांचे का निर्माण
द्वितीय पंचवर्षीय योजना में पावर प्लांट्स, रेलवे नेटवर्क और सड़कें जैसे बुनियादी ढांचे पर भी ध्यान दिया गया, जो भारतीय अर्थव्यवस्था की नींव बने। आज भी भारत की विकसित सड़कें और ऊर्जा क्षेत्र इस योजना का परिणाम हैं।
निष्कर्ष
इस प्रकार, द्वितीय पंचवर्षीय योजना ने औद्योगिकीकरण, आत्मनिर्भरता और बुनियादी ढांचे के विकास के क्षेत्र में भारत को मजबूत किया, जो आज भी आर्थिक विकास में सहायक हैं।
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