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उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों की उत्पत्ति के लिए अनुकूल परिस्थितियों की सूची प्रस्तुत कीजिए और साथ ही उष्णकटिबंधीय तथा शीतोष्ण चक्रवातों के बीच अंतर को स्पष्ट कीजिए।(उत्तर 200 शब्दों में दें)
उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की उत्पत्ति के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ उष्णकटिबंधीय चक्रवातों का निर्माण मुख्यतः निम्नलिखित परिस्थितियों में होता है: गर्म समुद्री सतह: समुद्र का तापमान 26.5°C से अधिक होना चाहिए। कम वायुमंडलीय दबाव: वायुमंडल में कम दबाव क्षेत्र उत्पन्न होना। नमी की प्रचुरता: मध्य और निम्न वायRead more
उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की उत्पत्ति के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ
उष्णकटिबंधीय चक्रवातों का निर्माण मुख्यतः निम्नलिखित परिस्थितियों में होता है:
उष्णकटिबंधीय और शीतोष्ण चक्रवातों में अंतर
वर्तमान संदर्भ
हाल ही में, चक्रवात हम्बला ने हिंद महासागर में भारी तबाही मचाई, जिससे उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की तीव्रता और इनके प्रभाव को समझने की आवश्यकता बढ़ी। वहीं, शीतोष्ण चक्रवात अक्सर यूरोप और उत्तरी अमेरिका में सर्दियों में बर्फबारी का कारण बनते हैं।
निष्कर्ष
See lessदोनों प्रकार के चक्रवात पर्यावरणीय और मानवीय जीवन पर गंभीर प्रभाव डाल सकते हैं। जलवायु परिवर्तन इनकी तीव्रता बढ़ा रहा है।
“महाद्वीपीय प्रवाह सिद्धांत क्या होता है? इस सिद्धांत का समर्थन करने वाले साक्ष्यों की चर्चा कीजिए।” (200 शब्द)
महाद्वीपीय प्रवाह सिद्धांत महाद्वीपीय प्रवाह सिद्धांत, जिसे अल्फ्रेड वेगनर ने 1912 में प्रस्तुत किया था, यह बताता है कि वर्तमान में पृथ्वी के महाद्वीप कभी एक बड़े महाद्वीप (पैंजिया) के रूप में जुड़े हुए थे और समय के साथ वे अलग हो गए। वेगनर के अनुसार, यह महाद्वीप धीरे-धीरे एक-दूसरे से दूर हो गए और अबRead more
महाद्वीपीय प्रवाह सिद्धांत
महाद्वीपीय प्रवाह सिद्धांत, जिसे अल्फ्रेड वेगनर ने 1912 में प्रस्तुत किया था, यह बताता है कि वर्तमान में पृथ्वी के महाद्वीप कभी एक बड़े महाद्वीप (पैंजिया) के रूप में जुड़े हुए थे और समय के साथ वे अलग हो गए। वेगनर के अनुसार, यह महाद्वीप धीरे-धीरे एक-दूसरे से दूर हो गए और अब जो महाद्वीप हमें दिखाई देते हैं, वे इस पहले के महाद्वीप के बचे हुए टुकड़े हैं।
इस सिद्धांत का समर्थन करने वाले साक्ष्य
महाद्वीपीय प्रवाह सिद्धांत ने बाद में प्लेट टेक्टोनिक्स के सिद्धांत के रूप में और अधिक व्यापक रूप से समर्थन प्राप्त किया, जो महाद्वीपों की गति को समझाने में मदद करता है।
See lessअत्यधिक और अविवेकपूर्ण रेत खनन की पारिस्थितिकीय लागत इसके आर्थिक लाभों से कहीं अधिक होती है। इस संदर्भ में, संधारणीय रेत खनन के महत्व पर चर्चा कीजिए। (150 शब्दों में उत्तर दीजिए)
अत्यधिक रेत खनन की पारिस्थितिकीय लागत 1. पर्यावरणीय प्रभाव नदी और तटीय क्षरण: भारत में केरल और महाराष्ट्र के तटीय इलाकों में रेत खनन से समुद्री कटाव बढ़ा है, जिससे गांव और खेती की जमीन खतरे में पड़ गई है। जैव विविधता का नुकसान: अविवेकपूर्ण खनन से मछलियों और जलीय जीवों का निवास स्थान नष्ट हो रहा है।Read more
अत्यधिक रेत खनन की पारिस्थितिकीय लागत
1. पर्यावरणीय प्रभाव
2. आर्थिक और सामाजिक प्रभाव
संधारणीय रेत खनन के समाधान
निष्कर्ष
अत्यधिक रेत खनन अल्पकालिक लाभ देता है, लेकिन इसकी पर्यावरणीय और सामाजिक लागत दीर्घकालिक नुकसान पहुंचाती है। संधारणीय खनन ही टिकाऊ विकास का मार्ग है।
See lessपंचायती राज संस्थानों (PRIs) को आपदाओं से निपटने में आने वाली चुनौतियों पर चर्चा करते हुए, यह बताइए कि पंचायती राज मंत्रालय की आपदा प्रबंधन योजना इन चुनौतियों को दूर करने में किस प्रकार सहायक हो सकती है। (250 शब्दों में उत्तर दीजिए)
पंचायती राज संस्थानों (PRIs) को आपदाओं से निपटने में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है: सीमित संसाधन: आपदा राहत कार्यों के लिए बजट और सामग्री की कमी। प्रशिक्षण की कमी: PRIs के पास आपदा प्रबंधन का पर्याप्त प्रशिक्षण नहीं होता। समन्वय का अभाव: राज्य और केंद्र के साथ समन्वय की कमी के कारण राहत कार्योRead more
पंचायती राज संस्थानों (PRIs) को आपदाओं से निपटने में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है:
पंचायती राज मंत्रालय की आपदा प्रबंधन योजना
पंचायती राज मंत्रालय की आपदा प्रबंधन योजना इन समस्याओं को हल करने में मदद करती है:
निष्कर्ष
इस योजना से PRIs को अधिक सक्षम बनाया जाता है, जिससे आपदाओं के प्रभाव को कम किया जा सकता है।
See lessनियोजित विकास स्वतंत्रता के बाद भारत में किए गए महत्वपूर्ण आर्थिक सुधारों में से एक था। इस संदर्भ में, चर्चा कीजिए कि द्वितीय पंचवर्षीय योजना को मील का पत्थर क्यों माना जाता है। (200 words)
द्वितीय पंचवर्षीय योजना का महत्त्व द्वितीय पंचवर्षीय योजना (1956-1961) भारत के नियोजित विकास का एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर मानी जाती है, जो भारत की औद्योगिक नीति और आर्थिक दिशा को आकार देने में सहायक साबित हुई। औद्योगिकीकरण की दिशा में कदम द्वितीय पंचवर्षीय योजना ने भारी उद्योगों, जैसे BHEL और SAILRead more
द्वितीय पंचवर्षीय योजना का महत्त्व
द्वितीय पंचवर्षीय योजना (1956-1961) भारत के नियोजित विकास का एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर मानी जाती है, जो भारत की औद्योगिक नीति और आर्थिक दिशा को आकार देने में सहायक साबित हुई।
औद्योगिकीकरण की दिशा में कदम
बुनियादी ढांचे का निर्माण
निष्कर्ष
द्वितीय पंचवर्षीय योजना ने भारत के औद्योगिकीकरण, आत्मनिर्भरता और बुनियादी ढांचे के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जो आज भी भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में आधार बने हुए हैं।
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