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जनता के विरोध के संबंध में अनुनय के गुणों और अवगुणों की व्याख्या कीजिये। (125 Words) [UPPSC 2019]
जनता के विरोध के संबंध में अनुनय के गुण और अवगुण गुण: अहिंसात्मक दृष्टिकोण: अनुनय एक अहिंसात्मक तरीका है जो संवाद और समझ के माध्यम से परिवर्तन को प्रोत्साहित करता है। उदाहरण के लिए, अन्ना हज़ारे का जन लोकपाल आंदोलन ने जनसमर्थन के लिए अनुनय का उपयोग किया और महत्वपूर्ण बदलावों की ओर ध्यान आकर्षित कियाRead more
जनता के विरोध के संबंध में अनुनय के गुण और अवगुण
गुण:
अवगुण:
निष्कर्ष: अनुनय अहिंसात्मक, सहमति निर्माण करने वाला और दीर्घकालिक प्रभावी होता है, लेकिन तत्काल प्रभाव की कमी और संदेश की कमजोरी जैसे अवगुण भी हो सकते हैं।
See lessExplain the merits and demerits of persuasion in relation to public protest. (125 Words) [UPPSC 2019]
Merits and Demerits of Persuasion in Relation to Public Protest Merits: Non-Violent Approach: Persuasion is a non-violent method of influencing change, which can lead to more constructive dialogue. For example, Gandhi's Salt March effectively used persuasion to gain support and achieve political goaRead more
Merits and Demerits of Persuasion in Relation to Public Protest
Merits:
Demerits:
Conclusion: While persuasion is a constructive tool in public protest for achieving sustainable and non-violent outcomes, it may face challenges such as limited immediate impact and the risk of being overshadowed.
See lessलोक सेवको की लोकतंत्रीय अभिवृति एवं अधिकारीतंत्रीय अभिवृति में विभेद कीजिये। (125 Words) [UPPSC 2019]
लोक सेवकों की लोकतंत्रीय और अधिकारीतंत्रीय अभिवृति में विभेद लोकतंत्रीय अभिवृति: जन भागीदारी: लोकतंत्रीय अभिवृति वाले लोक सेवक जनता के साथ सक्रिय सहभागिता को प्राथमिकता देते हैं, जैसे शहरी और ग्रामीण स्थानीय निकायों में भागीदारी के माध्यम से। पारदर्शिता और उत्तरदायित्व: ये लोक सेवक पारदर्शिता और उत्Read more
लोक सेवकों की लोकतंत्रीय और अधिकारीतंत्रीय अभिवृति में विभेद
लोकतंत्रीय अभिवृति:
अधिकारीतंत्रीय अभिवृति:
हालिया उदाहरण: प्रधानमंत्री जन धन योजना और स्वच्छ भारत मिशन लोकतंत्रीय दृष्टिकोण को दर्शाते हैं, जिसमें नागरिकों की भागीदारी और पारदर्शिता को बढ़ावा दिया गया है।
निष्कर्ष: लोकतंत्रीय अभिवृति जन सहभागिता, पारदर्शिता, और लचीलेपन पर आधारित होती है, जबकि अधिकारीतंत्रीय अभिवृति औपचारिकता, प्रक्रियागत कठोरता, और ऊर्ध्वाधर निर्णय प्रक्रिया पर केंद्रित होती है।
See lessDifferentiate between democratic attitude and bureaucratic attitude of public servants. (125 Words) [UPPSC 2019]
Differentiating Between Democratic Attitude and Bureaucratic Attitude of Public Servants Democratic Attitude: Public Engagement: Public servants with a democratic attitude prioritize engaging with citizens, valuing public opinion, and ensuring transparency. For example, the Participatory Budgeting iRead more
Differentiating Between Democratic Attitude and Bureaucratic Attitude of Public Servants
Democratic Attitude:
Bureaucratic Attitude:
Recent Example: The Digital India initiative showcases a blend of democratic and bureaucratic attitudes by using technology to improve transparency and citizen engagement, yet it also involves procedural elements typical of bureaucratic systems.
Conclusion: While democratic attitudes emphasize public engagement, flexibility, and accountability, bureaucratic attitudes focus on formality, procedural adherence, and hierarchical decision-making. Both approaches have their roles in effective public administration.
See lessगांधी के असहयोग आंदोलन पर दार्शनिक दृष्टि से विचार कीजिये। (125 Words) [UPPSC 2019]
गांधी के असहयोग आंदोलन पर दार्शनिक दृष्टि सत्याग्रह का सिद्धांत: गांधी का असहयोग आंदोलन (1920-22) सत्याग्रह के सिद्धांत पर आधारित था, जो अहिंसात्मक प्रतिरोध को राजनीतिक और सामाजिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के तरीके के रूप में मानता है। गांधी का मानना था कि सच्चाई और अहिंसा पर आधारित शक्ति असली शक्तRead more
गांधी के असहयोग आंदोलन पर दार्शनिक दृष्टि
सत्याग्रह का सिद्धांत: गांधी का असहयोग आंदोलन (1920-22) सत्याग्रह के सिद्धांत पर आधारित था, जो अहिंसात्मक प्रतिरोध को राजनीतिक और सामाजिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के तरीके के रूप में मानता है। गांधी का मानना था कि सच्चाई और अहिंसा पर आधारित शक्ति असली शक्ति है, और बलात्कारी या बलात्कारी तरीकों को नकारता है।
आचारिक और नैतिक ढांचा: आंदोलन नैतिक और आचारिक प्रतिबद्धता का प्रतिक था। गांधी ने तर्क किया कि ब्रिटिश उपनिवेशी शासन के खिलाफ निष्क्रिय प्रतिरोध एक नैतिक कर्तव्य है, जो अहिंसा और सत्य की खोज के सिद्धांतों के अनुरूप है।
आत्मनिर्भरता और सशक्तिकरण: आंदोलन ने सामान्य लोगों को सशक्त और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने का प्रयास किया। ब्रिटिश वस्त्रों और संस्थाओं के बहिष्कार को प्रोत्साहित करके, गांधी ने भारतीयों को अपनी खुद की संसाधनों पर निर्भर रहने के लिए प्रेरित किया।
हालिया उदाहरण: महत्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) गांधी के आत्मनिर्भरता और सशक्तिकरण के सिद्धांतों का आधुनिक उदाहरण है, जो ग्रामीण श्रमिकों को रोजगार की गारंटी प्रदान करता है।
निष्कर्ष: गांधी का असहयोग आंदोलन दार्शनिक दृष्टि से अहिंसा और नैतिक प्रतिरोध का गहन अनुप्रयोग था, जिसका उद्देश्य लोगों को सशक्त और आत्मनिर्भर बनाना था।
See lessConsider the non-cooperation movement of Gandhi from the philosophical point of view. (125 Words) [UPPSC 2019]
Philosophical Perspective of Gandhi's Non-Cooperation Movement Principle of Satyagraha: Gandhi's Non-Cooperation Movement (1920-22) was rooted in the philosophy of Satyagraha, which emphasizes non-violent resistance as a means to achieve political and social goals. Gandhi believed that true strengthRead more
Philosophical Perspective of Gandhi’s Non-Cooperation Movement
Principle of Satyagraha: Gandhi’s Non-Cooperation Movement (1920-22) was rooted in the philosophy of Satyagraha, which emphasizes non-violent resistance as a means to achieve political and social goals. Gandhi believed that true strength lay in adhering to truth and non-violence, rejecting violent or coercive methods.
Ethical and Moral Framework: The movement was a manifestation of moral and ethical commitment to justice. Gandhi argued that passive resistance against British colonial rule was a moral duty, aligning with the principle of non-violence and the pursuit of truth.
Empowerment and Self-Reliance: Philosophically, the movement sought to empower the common people and foster self-reliance. By promoting boycotts of British goods and institutions, Gandhi aimed to cultivate national self-respect and economic independence, encouraging Indians to rely on their own resources.
Recent Example: Gandhi’s principles continue to influence modern movements. For example, the Mahatma Gandhi National Rural Employment Guarantee Act (MGNREGA) reflects his ethos of self-reliance and empowerment by providing guaranteed employment to rural workers.
Conclusion: Gandhi’s Non-Cooperation Movement, viewed philosophically, was a profound application of non-violence and moral resistance, aimed at empowering the masses and promoting self-reliance.
See lessWhat do you mean by "Technology Transfer'? How far this can be useful in disseminating complex technology? Explain. (200 Words) [UPPSC 2019]
What is Technology Transfer? Definition: Technology transfer refers to the process of sharing or disseminating technological knowledge, innovations, and expertise from one organization or country to another. This transfer can occur between academia, industry, governments, or across borders, facilitaRead more
What is Technology Transfer?
Definition: Technology transfer refers to the process of sharing or disseminating technological knowledge, innovations, and expertise from one organization or country to another. This transfer can occur between academia, industry, governments, or across borders, facilitating the application and commercialization of new technologies.
Usefulness in Disseminating Complex Technology:
Conclusion:
Technology transfer is a powerful mechanism for disseminating complex technologies, enhancing innovation, building local capacity, accelerating development, and addressing global challenges. By facilitating the exchange of technological knowledge and expertise, it supports the growth and modernization of industries and economies worldwide.
See lessक्या आपके विचार में भारत का संविधान शक्तियों के कठोर पृथक्करण के सिद्धान्त को स्वीकार नहीं करता है, बल्कि यह 'नियंत्रण एवं संतुलन' के सिद्धान्त पर आधारित है ? व्याख्या कीजिए । (150 words) [UPSC 2019]
भारत का संविधान शक्तियों के कठोर पृथक्करण के सिद्धान्त को पूर्णतः स्वीकार नहीं करता है, बल्कि यह 'नियंत्रण एवं संतुलन' के सिद्धान्त पर आधारित है। व्याख्या: 1. शक्ति का पृथक्करण: भारतीय संविधान में केंद्र और राज्य सरकारों के बीच शक्तियों का वितरण किया गया है, लेकिन इसे कठोर पृथक्करण के बजाय लचीले तरीRead more
भारत का संविधान शक्तियों के कठोर पृथक्करण के सिद्धान्त को पूर्णतः स्वीकार नहीं करता है, बल्कि यह ‘नियंत्रण एवं संतुलन’ के सिद्धान्त पर आधारित है।
व्याख्या:
1. शक्ति का पृथक्करण: भारतीय संविधान में केंद्र और राज्य सरकारों के बीच शक्तियों का वितरण किया गया है, लेकिन इसे कठोर पृथक्करण के बजाय लचीले तरीके से लागू किया गया है। संघीय ढांचा शक्तियों के विभाजन को मान्यता देता है, परंतु कुछ क्षेत्रों में केंद्र को अधिक प्रभावी प्राधिकरण प्रदान किया गया है।
2. नियंत्रण और संतुलन: संविधान में ‘नियंत्रण और संतुलन’ का सिद्धान्त लागू होता है, जहाँ विभिन्न अंग (विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका) एक-दूसरे की शक्तियों की निगरानी और संतुलन बनाए रखते हैं। उदाहरण के लिए, राष्ट्रपति का वीटो अधिकार, उच्चतम न्यायालय की समीक्षा शक्ति, और संसद द्वारा विधायकों की नियुक्ति यह सुनिश्चित करते हैं कि कोई भी अंग अत्यधिक शक्ति का प्रयोग न करे और सभी अंग आपस में संतुलित रहें।
इस प्रकार, भारतीय संविधान शक्तियों के कठोर पृथक्करण के बजाय एक समन्वित और संतुलित दृष्टिकोण को अपनाता है, जिससे प्रशासनिक और न्यायिक प्रणाली की कार्यप्रणाली को सुचारु रूप से संचालित किया जा सके।
See lessभारत-रूस रक्षा समझौतों की तुलना में भारत-अमेरिका रक्षा समझौतों की क्या महत्ता है ? हिन्द-प्रशान्त महासागरीय क्षेत्र में स्थायित्व के संदर्भ में विवेचना कीजिए । (250 words) [UPSC 2020]
भारत-रूस और भारत-अमेरिका के रक्षा समझौतों की तुलना करते समय, यह स्पष्ट होता है कि दोनों देशों के साथ भारत के समझौतों की रणनीतिक महत्वता विभिन्न दृष्टिकोण से भिन्न है। खासकर, हिन्द-प्रशान्त महासागरीय क्षेत्र में स्थायित्व के संदर्भ में इन समझौतों की प्रभावशीलता को निम्नलिखित बिंदुओं से समझा जा सकता हRead more
भारत-रूस और भारत-अमेरिका के रक्षा समझौतों की तुलना करते समय, यह स्पष्ट होता है कि दोनों देशों के साथ भारत के समझौतों की रणनीतिक महत्वता विभिन्न दृष्टिकोण से भिन्न है। खासकर, हिन्द-प्रशान्त महासागरीय क्षेत्र में स्थायित्व के संदर्भ में इन समझौतों की प्रभावशीलता को निम्नलिखित बिंदुओं से समझा जा सकता है:
1. भारत-रूस रक्षा समझौतों की विशेषताएँ:
दीर्घकालिक सहयोग: भारत और रूस के बीच रक्षा संबंध लंबे समय से मजबूत हैं। दोनों देशों के बीच कई ऐतिहासिक रक्षा समझौते और सहयोग कार्यक्रम रहे हैं, जैसे कि सस्ते सैन्य उपकरण, तकनीकी हस्तांतरण, और सैन्य प्रशिक्षण।
तकनीकी और सामरिक समर्थन: रूस ने भारत को कई प्रमुख सैन्य उपकरण प्रदान किए हैं, जैसे कि सुखोई-30 विमान और ब्रह्मोस मिसाइल। रूस के साथ रक्षा संबंध भारतीय सेना के लिए प्रौद्योगिकी और सामरिक उपकरणों का एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं।
2. भारत-अमेरिका रक्षा समझौतों की विशेषताएँ:
स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप: भारत और अमेरिका के रक्षा समझौतों में हाल के वर्षों में महत्वपूर्ण वृद्धि देखी गई है। “लौजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट (LEMOA)”, “Communications Compatibility and Security Agreement (COMCASA)”, और “Basic Exchange and Cooperation Agreement (BECA)” जैसे समझौते भारतीय सेना को अमेरिकी सैन्य प्रौद्योगिकी और खुफिया जानकारियों तक पहुँच प्रदान करते हैं।
हिन्द-प्रशान्त क्षेत्र में स्थायित्व: अमेरिका के साथ भारत का रक्षा सहयोग हिन्द-प्रशान्त महासागरीय क्षेत्र में रणनीतिक स्थिरता को बढ़ावा देने में सहायक है। अमेरिका और भारत दोनों ही क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने के लिए मिलकर काम कर रहे हैं। अमेरिका की सशस्त्र बलों की आधुनिक तकनीक और सामरिक सहयोग भारत को क्षेत्रीय सुरक्षा में महत्वपूर्ण समर्थन प्रदान करता है।
3. तुलना और निष्कर्ष:
रक्षा और सामरिक सहयोग: जबकि भारत-रूस समझौते ऐतिहासिक और तकनीकी सहयोग पर आधारित हैं, भारत-अमेरिका समझौतों ने हाल ही में आधुनिक सैन्य प्रौद्योगिकी, खुफिया सहयोग, और सामरिक गहरी साझेदारी को मजबूत किया है। अमेरिका के साथ समझौतों की रणनीतिक महत्वता इस बात में है कि ये भारत को हिन्द-प्रशान्त क्षेत्र में अपनी स्थिति को सशक्त करने में मदद करते हैं, विशेषकर चीन के बढ़ते प्रभाव के संदर्भ में।
विस्तारित साझेदारी: भारत-अमेरिका रक्षा साझेदारी ने क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जबकि भारत-रूस समझौतों ने दीर्घकालिक सैन्य सहयोग और उपकरणों की आपूर्ति में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
संक्षेप में, भारत-रूस और भारत-अमेरिका के रक्षा समझौतों की अपनी-अपनी महत्वपूर्ण भूमिकाएँ हैं, लेकिन हिन्द-प्रशान्त महासागरीय क्षेत्र में स्थायित्व के संदर्भ में भारत-अमेरिका की साझेदारी का अधिक सामरिक महत्व है।
See less'चतुर्भुजीय सुरक्षा संवाद (क्वाड) वर्तमान समय में स्वयं को सैनिक गठबंधन से एक व्यापारिक गुट में रूपान्तरित कर रहा है विवेचना कीजिये ।(250 words) [UPSC 2020]
चतुर्भुजीय सुरक्षा संवाद (क्वाड), जिसमें अमेरिका, भारत, जापान, और ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं, प्रारंभ में एक सैन्य गठबंधन के रूप में विचारित किया गया था। लेकिन हाल के वर्षों में, यह समूह स्वयं को एक अधिक व्यापारिक और सामरिक गुट में रूपांतरित करता प्रतीत हो रहा है। इस रूपांतरण की विवेचना निम्नलिखित बिंदुओRead more
चतुर्भुजीय सुरक्षा संवाद (क्वाड), जिसमें अमेरिका, भारत, जापान, और ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं, प्रारंभ में एक सैन्य गठबंधन के रूप में विचारित किया गया था। लेकिन हाल के वर्षों में, यह समूह स्वयं को एक अधिक व्यापारिक और सामरिक गुट में रूपांतरित करता प्रतीत हो रहा है। इस रूपांतरण की विवेचना निम्नलिखित बिंदुओं पर की जा सकती है:
1. सामरिक सहयोग से व्यापारिक पहल की ओर:
सामरिक सहयोग: प्रारंभ में, क्वाड का गठन मुख्य रूप से चीन के बढ़ते प्रभाव के खिलाफ एक सामरिक गठबंधन के रूप में हुआ था। इसका उद्देश्य क्षेत्रीय सुरक्षा और स्थिरता को सुनिश्चित करना था, जिसमें संयुक्त सैन्य अभ्यास और सुरक्षा मुद्दों पर सहयोग शामिल था।
व्यापारिक पहल: हाल के वर्षों में, क्वाड ने व्यापारिक और आर्थिक सहयोग पर अधिक ध्यान केंद्रित किया है। 2021 में, समूह ने “क्वाड वैक्सीन डिप्लोमेसी” की शुरुआत की, जिसका उद्देश्य COVID-19 वैक्सीनेशन की आपूर्ति और वितरण में मदद करना था। इसके अलावा, क्वाड ने “सस्टेनेबल इन्फ्रास्ट्रक्चर” और “टेक्नोलॉजी पार्टनरशिप” पर भी जोर दिया है।
2. सामरिक और आर्थिक लाभ:
सामरिक लाभ: क्वाड का सामरिक पहलू अब भी महत्वपूर्ण है, लेकिन इसका प्राथमिक ध्यान क्षेत्रीय सुरक्षा और रणनीतिक स्थिरता के साथ-साथ व्यापारिक हितों पर भी केंद्रित है। यह अमेरिका और उसके सहयोगियों के लिए एक अवसर प्रदान करता है कि वे एशिया-प्रशांत क्षेत्र में अपने आर्थिक और सामरिक प्रभाव को बढ़ा सकें।
आर्थिक लाभ: व्यापारिक गुट के रूप में क्वाड ने “इकोनॉमिक रिसिलिएंस” और “विपणन और आपूर्ति श्रृंखला” को मजबूत करने के लिए कई पहल की हैं। इसने चीन पर निर्भरता को कम करने के प्रयास किए हैं और क्षेत्रीय व्यापारिक नेटवर्क को सशक्त किया है।
3. सदस्य देशों के दृष्टिकोण:
भारत: भारत ने क्वाड को एक व्यापक रणनीतिक और आर्थिक मंच के रूप में देखा है। यह भारत के लिए व्यापारिक अवसरों को बढ़ाने और क्षेत्रीय सुरक्षा को सुदृढ़ करने का एक माध्यम है।
जापान और ऑस्ट्रेलिया: जापान और ऑस्ट्रेलिया भी व्यापारिक और आर्थिक पहल पर ध्यान दे रहे हैं, जिससे वे अपने आर्थिक हितों को सुरक्षित रख सकें और एशिया-प्रशांत क्षेत्र में अपने प्रभाव को बढ़ा सकें।
निष्कर्ष:
See lessक्वाड का रूपांतरण एक सैन्य गठबंधन से एक व्यापारिक गुट में हो रहा है, जो क्षेत्रीय सुरक्षा के साथ-साथ आर्थिक और व्यापारिक सहयोग को भी बढ़ावा देता है। इस बदलाव से समूह के सदस्य देशों को सामरिक स्थिरता के साथ-साथ आर्थिक लाभ प्राप्त हो रहे हैं, जिससे वे एशिया-प्रशांत क्षेत्र में अपने प्रभाव को व्यापक रूप से सशक्त कर रहे हैं।