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मुद्रा के विभिन्न कार्यों को बताते हुए, इसे अन्य प्रकार की परिसंपत्तियों की तुलना में अधिक लाभकारी क्यों माना जाता है, इसका वर्णन कीजिए। (200 words)
मुद्रा (Money) अर्थव्यवस्था में निम्नलिखित प्रमुख कार्य करती है: विनिमय का माध्यम (Medium of Exchange): मुद्रा वस्तुओं और सेवाओं के आदान-प्रदान को सरल बनाती है, जिससे वस्तु-विनिमय प्रणाली की जटिलताओं से बचा जा सकता है। मूल्य मापन की इकाई (Unit of Account): मुद्रा एक मानक इकाई प्रदान करती है, जिससे वRead more
मुद्रा (Money) अर्थव्यवस्था में निम्नलिखित प्रमुख कार्य करती है:
अन्य परिसंपत्तियों की तुलना में मुद्रा के निम्नलिखित लाभ हैं:
इन विशेषताओं के कारण मुद्रा अन्य परिसंपत्तियों की तुलना में अधिक लाभकारी मानी जाती है।
See lessअटलांटिक मेरिडियनल ओवरटर्निंग सर्कुलेशन (AMOC) से संबंधित नाप का क्या मतलब है? हाल के समय में AMOC के कमजोर होने के कारणों और इसके प्रभावों पर चर्चा करें। (उत्तर 150 शब्दों में दें)
अटलांटिक मेरिडियनल ओवरटर्निंग सर्कुलेशन (AMOC) अटलांटिक महासागर में गर्म, लवणीय सतही जल के उत्तर की ओर प्रवाह और ठंडे, गहरे जल के दक्षिण की ओर वापसी का प्रतिनिधित्व करता है। यह प्रणाली वैश्विक जलवायु को संतुलित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। हाल के वर्षों में, AMOC के कमजोर होने के संकेत मिलेRead more
अटलांटिक मेरिडियनल ओवरटर्निंग सर्कुलेशन (AMOC) अटलांटिक महासागर में गर्म, लवणीय सतही जल के उत्तर की ओर प्रवाह और ठंडे, गहरे जल के दक्षिण की ओर वापसी का प्रतिनिधित्व करता है। यह प्रणाली वैश्विक जलवायु को संतुलित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
हाल के वर्षों में, AMOC के कमजोर होने के संकेत मिले हैं। मुख्य कारणों में ग्रीनलैंड और आर्कटिक की बर्फ की चादरों का पिघलना शामिल है, जिससे महासागर में ताजे पानी की मात्रा बढ़ती है और जल की लवणता कम होती है। यह परिवर्तन जल के घनत्व को प्रभावित करता है, जिससे AMOC की गति धीमी हो सकती है। इसके अतिरिक्त, वायुमंडलीय तापमान में वृद्धि से सतही जल का अत्यधिक गर्म होना भी इस प्रणाली को कमजोर कर सकता है।
AMOC के कमजोर होने के प्रभाव गंभीर हो सकते हैं। यूरोप में तापमान में गिरावट, वर्षा में कमी, और उत्तरी अमेरिका के पूर्वी तट पर समुद्र स्तर में वृद्धि संभावित परिणाम हैं। इसके अलावा, यह अल नीनो जैसी जलवायु घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता को भी प्रभावित कर सकता है। इसलिए, AMOC की निगरानी और इसके संरक्षण के लिए आवश्यक कदम उठाना महत्वपूर्ण है।
See lessक्षोभमंडल और समताप मंडल में ओजोन के निर्माण की प्रक्रियाओं और उनकी भूमिकाओं में अंतर को स्पष्ट कीजिए। इसके अतिरिक्त, क्षोभमंडलीय ओजोन के प्रभावों को कम करने के लिए अपनाई जाने वाली विभिन्न रणनीतियों पर चर्चा कीजिए। (200 शब्दों में उत्तर दें)
ओजोन निर्माण प्रक्रिया और भूमिकाएं समताप मंडल में ओजोन समताप मंडल में ओजोन का निर्माण सूर्य की यूवी किरणों के प्रभाव से ऑक्सीजन अणुओं (O2) के विघटन से होता है। यह ओजोन परत पृथ्वी को हानिकारक पराबैंगनी (UV) विकिरण से बचाने का कार्य करती है। क्षोभमंडल में ओजोन क्षोभमंडल में ओजोन मानवीय गतिविधियों से उRead more
ओजोन निर्माण प्रक्रिया और भूमिकाएं
समताप मंडल में ओजोन का निर्माण सूर्य की यूवी किरणों के प्रभाव से ऑक्सीजन अणुओं (O2) के विघटन से होता है। यह ओजोन परत पृथ्वी को हानिकारक पराबैंगनी (UV) विकिरण से बचाने का कार्य करती है।
क्षोभमंडल में ओजोन मानवीय गतिविधियों से उत्पन्न नाइट्रोजन ऑक्साइड्स (NOx), मीथेन (CH4) और वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों (VOCs) की प्रतिक्रिया से बनता है। यह ओजोन प्रदूषण का कारण बनता है और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।
ओजोन के प्रभाव
यह पृथ्वी को सूर्य की हानिकारक UV किरणों से बचाता है, जो त्वचा कैंसर और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकती हैं।
यह श्वसन समस्याएं, अस्थमा और अन्य फेफड़ों की बीमारियों का कारण बनता है और पर्यावरण को भी नुकसान पहुँचाता है, जैसे फसलों और वनस्पतियों का खराब होना।
रणनीतियाँ
भारत में चीनी उद्योग की स्थिति का विवरण करें और साथ ही उत्तर भारत से दक्षिण भारत में इसके स्थानांतरण के कारणों पर चर्चा करें। (उत्तर 200 शब्दों में दें)
भारत में चीनी उद्योग की स्थिति भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा चीनी उत्पादक देश है। चीनी उद्योग भारत की कृषि-आधारित अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह उद्योग मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में केंद्रित है। उत्तर भारत (विशेषकर गंगा के मैदान) गनRead more
भारत में चीनी उद्योग की स्थिति
भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा चीनी उत्पादक देश है। चीनी उद्योग भारत की कृषि-आधारित अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह उद्योग मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में केंद्रित है। उत्तर भारत (विशेषकर गंगा के मैदान) गन्ना उत्पादन का प्रमुख क्षेत्र है। लेकिन हाल के वर्षों में चीनी उद्योग उत्तर भारत से दक्षिण भारत की ओर स्थानांतरित हो रहा है।
उत्तर भारत से दक्षिण भारत में स्थानांतरण के कारण
इन कारकों के कारण चीनी उद्योग का झुकाव धीरे-धीरे दक्षिण भारत की ओर बढ़ रहा है, जिससे क्षेत्रीय आर्थिक विकास में संतुलन आया है।
See lessभारतीय संविधान की मूल संरचना (बेसिक स्ट्रक्चर) का सिद्धांत न्यायिक नवाचार के रूप में किस प्रकार उभरकर सामने आया है? विवेचना कीजिए।(उत्तर 200 शब्दों में दें)
भारतीय संविधान की मूल संरचना का सिद्धांत: न्यायिक नवाचार भारतीय संविधान की मूल संरचना (बेसिक स्ट्रक्चर) का सिद्धांत न्यायपालिका द्वारा विकसित एक अद्वितीय नवाचार है, जो संविधान की स्थिरता और मूल्यों की रक्षा करता है। यह सिद्धांत 1973 के केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य मामले में उभरा। इस ऐतिहासिक निर्णRead more
भारतीय संविधान की मूल संरचना का सिद्धांत: न्यायिक नवाचार
भारतीय संविधान की मूल संरचना (बेसिक स्ट्रक्चर) का सिद्धांत न्यायपालिका द्वारा विकसित एक अद्वितीय नवाचार है, जो संविधान की स्थिरता और मूल्यों की रक्षा करता है। यह सिद्धांत 1973 के केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य मामले में उभरा। इस ऐतिहासिक निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संविधान के कुछ हिस्से इतने मूलभूत हैं कि उन्हें संशोधित नहीं किया जा सकता।
पृष्ठभूमि:
संसद द्वारा मौलिक अधिकारों को संशोधित करने के प्रयासों, विशेष रूप से 24वें और 25वें संविधान संशोधनों ने न्यायिक हस्तक्षेप को आवश्यक बनाया। अदालत ने स्पष्ट किया कि संसद संशोधन कर सकती है, लेकिन संविधान की “मूल संरचना” को नुकसान नहीं पहुंचा सकती।
मुख्य तत्व:
मूल संरचना में लोकतंत्र, न्यायपालिका की स्वतंत्रता, विधि का शासन, मौलिक अधिकार और धर्मनिरपेक्षता जैसे तत्व शामिल हैं। इस सिद्धांत को बाद के मामलों, जैसे मीनर्वा मिल्स (1980) और लक्ष्मीकांत पांडे (1994) में और मजबूत किया गया।
महत्व:
See lessयह सिद्धांत न्यायपालिका का नवाचार है, क्योंकि “मूल संरचना” का उल्लेख संविधान में सीधे नहीं है। न्यायालय ने इसे संवैधानिक मूल्यों और लोकतंत्र की रक्षा के लिए व्याख्या के माध्यम से विकसित किया। इससे न्यायपालिका संविधान की सर्वोच्चता और नागरिक अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करती है।
उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों की उत्पत्ति के लिए अनुकूल परिस्थितियों की सूची प्रस्तुत कीजिए और साथ ही उष्णकटिबंधीय तथा शीतोष्ण चक्रवातों के बीच अंतर को स्पष्ट कीजिए।(उत्तर 200 शब्दों में दें)
उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों की उत्पत्ति के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ उष्ण कटिबंधीय चक्रवात समुद्र के ऊपर निम्नलिखित परिस्थितियों में उत्पन्न होते हैं: गर्म समुद्री सतह: समुद्र का तापमान 26.5°C या उससे अधिक होना चाहिए। निम्न वायुमंडलीय दबाव: सतह पर कम दबाव का क्षेत्र बनना अनिवार्य है। नमी की प्रचुरता: वायुRead more
उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों की उत्पत्ति के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ
उष्ण कटिबंधीय चक्रवात समुद्र के ऊपर निम्नलिखित परिस्थितियों में उत्पन्न होते हैं:
उष्णकटिबंधीय और शीतोष्ण चक्रवातों में अंतर
ये चक्रवात प्राकृतिक आपदा के रूप में भारी विनाशकारी प्रभाव डालते हैं।
See less“महाद्वीपीय प्रवाह सिद्धांत क्या होता है? इस सिद्धांत का समर्थन करने वाले साक्ष्यों की चर्चा कीजिए।” (200 शब्द)
महाद्वीपीय प्रवाह सिद्धांत महाद्वीपीय प्रवाह सिद्धांत का प्रस्ताव अल्फ्रेड वेगनर ने 1912 में किया था। इसके अनुसार, सभी महाद्वीप पहले एक बड़े महाद्वीप 'पैंजिया' के रूप में जुड़े हुए थे, जो समय के साथ टूट गए और अलग-अलग महाद्वीपों में बदल गए। साक्ष्य फॉसिल्स: समान फॉसिल्स, जैसे ग्लोसोप्टेरिस, जो अफ्रीकRead more
महाद्वीपीय प्रवाह सिद्धांत
महाद्वीपीय प्रवाह सिद्धांत का प्रस्ताव अल्फ्रेड वेगनर ने 1912 में किया था। इसके अनुसार, सभी महाद्वीप पहले एक बड़े महाद्वीप ‘पैंजिया’ के रूप में जुड़े हुए थे, जो समय के साथ टूट गए और अलग-अलग महाद्वीपों में बदल गए।
साक्ष्य
इस सिद्धांत ने बाद में प्लेट टेक्टोनिक्स के रूप में वैज्ञानिक समर्थन प्राप्त किया, जो महाद्वीपों की गति को समझाता है।
See lessअत्यधिक और अविवेकपूर्ण रेत खनन की पारिस्थितिकीय लागत इसके आर्थिक लाभों से कहीं अधिक होती है। इस संदर्भ में, संधारणीय रेत खनन के महत्व पर चर्चा कीजिए। (150 शब्दों में उत्तर दीजिए)
अत्यधिक रेत खनन की पारिस्थितिकीय लागत 1. पर्यावरणीय प्रभाव अत्यधिक रेत खनन से नदियों, समुद्र तटों और पारिस्थितिक तंत्र को गंभीर नुकसान होता है। उदाहरणस्वरूप, भारत की यमुना और केरल की नदियों में अवैध खनन ने नदी तटों को कमजोर कर दिया है, जिससे बाढ़ और मिट्टी कटाव बढ़ा है। पानी की कमी: खनन से भूजल स्तरRead more
अत्यधिक रेत खनन की पारिस्थितिकीय लागत
1. पर्यावरणीय प्रभाव
अत्यधिक रेत खनन से नदियों, समुद्र तटों और पारिस्थितिक तंत्र को गंभीर नुकसान होता है। उदाहरणस्वरूप, भारत की यमुना और केरल की नदियों में अवैध खनन ने नदी तटों को कमजोर कर दिया है, जिससे बाढ़ और मिट्टी कटाव बढ़ा है।
2. सामाजिक और आर्थिक प्रभाव
संधारणीय रेत खनन का महत्व
संधारणीय उपाय, जैसे कि रीसाइकल सामग्री का उपयोग और कड़े नियमन, पारिस्थितिकी को बचा सकते हैं। उदाहरण के लिए, दुबई में कंस्ट्रक्शन वेस्ट का पुनः उपयोग करके रेत की मांग कम की जा रही है।
निष्कर्ष
अल्पकालिक आर्थिक लाभ पारिस्थितिकीय और सामाजिक हानि के सामने तुच्छ हैं। संतुलित खनन से ही विकास और पर्यावरण संरक्षण संभव है।
See lessनियोजित विकास स्वतंत्रता के बाद भारत में किए गए महत्वपूर्ण आर्थिक सुधारों में से एक था। इस संदर्भ में, चर्चा कीजिए कि द्वितीय पंचवर्षीय योजना को मील का पत्थर क्यों माना जाता है। (200 words)
द्वितीय पंचवर्षीय योजना का महत्त्व द्वितीय पंचवर्षीय योजना (1956-1961) भारत के नियोजित विकास का एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर मानी जाती है। यह योजना औद्योगिकीकरण पर विशेष ध्यान केंद्रित करती थी और भारत के आर्थिक ढांचे को मजबूत करने के लिए कई अहम कदम उठाए गए थे। औद्योगिकीकरण पर जोर द्वितीय पंचवर्षीय योजRead more
द्वितीय पंचवर्षीय योजना का महत्त्व
द्वितीय पंचवर्षीय योजना (1956-1961) भारत के नियोजित विकास का एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर मानी जाती है। यह योजना औद्योगिकीकरण पर विशेष ध्यान केंद्रित करती थी और भारत के आर्थिक ढांचे को मजबूत करने के लिए कई अहम कदम उठाए गए थे।
औद्योगिकीकरण पर जोर
द्वितीय पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत भारत ने भारी उद्योगों की स्थापना पर जोर दिया, जैसे कि BHEL (भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड) और SAIL (स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड)। इन उद्योगों की स्थापना से न केवल औद्योगिक उत्पादन बढ़ा, बल्कि भारत को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक कदम और बढ़ा।
आवश्यक बुनियादी ढांचा
इस योजना में पावर प्लांट्स, रेलवे और सड़कें जैसी बुनियादी ढांचे के निर्माण पर ध्यान दिया गया। इससे औद्योगिक गतिविधियों को बढ़ावा मिला और विकास की प्रक्रिया को गति मिली।
आत्मनिर्भरता की दिशा में कदम
द्वितीय पंचवर्षीय योजना ने आयात प्रतिस्थापन नीति को बढ़ावा दिया, जिससे देश को विदेशी वस्तुओं पर निर्भरता कम करने की दिशा में मदद मिली। इसका प्रभाव आज भी आत्मनिर्भर भारत के रूप में देखा जा सकता है।
निष्कर्ष
इस प्रकार, द्वितीय पंचवर्षीय योजना ने भारत को औद्योगिकीकरण और बुनियादी ढांचे के मामले में एक मजबूत नींव प्रदान की, जो आगे चलकर भारत के आर्थिक विकास में सहायक सिद्ध हुई।
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