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सहिष्णुता एवं प्रेम की भावना न केवल अति प्राचीन समय से ही भारतीय समाज का एक रोचक अभिलक्षण रही है, अपितु वर्तमान में भी यह एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। सविस्तार स्पष्ट कीजिए । (250 words) [UPSC 2017]
सहिष्णुता और प्रेम की भावना: भारतीय समाज की प्राचीन परंपरा और वर्तमान महत्व परिचय: भारतीय समाज का एक प्रमुख अभिलक्षण सहिष्णुता और प्रेम की भावना रही है, जो प्राचीन काल से लेकर वर्तमान समय तक एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह भावना भारतीय सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन का अभिन्न हिस्सा रही है। प्राचीन कRead more
सहिष्णुता और प्रेम की भावना: भारतीय समाज की प्राचीन परंपरा और वर्तमान महत्व
परिचय: भारतीय समाज का एक प्रमुख अभिलक्षण सहिष्णुता और प्रेम की भावना रही है, जो प्राचीन काल से लेकर वर्तमान समय तक एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह भावना भारतीय सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन का अभिन्न हिस्सा रही है।
प्राचीन काल में सहिष्णुता और प्रेम:
वर्तमान समय में सहिष्णुता और प्रेम:
निष्कर्ष: सहिष्णुता और प्रेम की भावना भारतीय समाज की प्राचीन परंपरा का महत्वपूर्ण हिस्सा रही है और वर्तमान में भी यह विभिन्न धार्मिक, सांस्कृतिक, और सामाजिक विविधताओं के बीच सामंजस्य बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह भावना समाज में एकता, शांति, और सहयोग को प्रोत्साहित करती है, जो भारतीय संस्कृति की अमूल्य धरोहर है।
See lessस्वतंत्रता के बाद अनुसूचित जनजातियों (एस.टी.) के प्रति भेदभाव को दूर करने के लिए, राज्य द्वारा की गई दो मुख्य विधिक पहलें क्या हैं? (150 words) [UPSC 2017]
स्वतंत्रता के बाद अनुसूचित जनजातियों (एस.टी.) के प्रति भेदभाव को दूर करने के लिए विधिक पहलें 1. अनुसूचित जनजाति (अनुसूचित क्षेत्रों) अधिनियम, 1952: यह अधिनियम अनुसूचित जनजातियों के अधिकारों और सुरक्षा की रक्षा के लिए विशेष प्रावधान करता है। "अनुसूचित क्षेत्रों" में स्वशासन को प्रोत्साहित किया जाता हRead more
स्वतंत्रता के बाद अनुसूचित जनजातियों (एस.टी.) के प्रति भेदभाव को दूर करने के लिए विधिक पहलें
1. अनुसूचित जनजाति (अनुसूचित क्षेत्रों) अधिनियम, 1952:
2. अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989:
निष्कर्ष: इन विधिक पहलों के माध्यम से राज्य ने अनुसूचित जनजातियों के अधिकारों की रक्षा और उनके प्रति भेदभाव को कम करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं।
See lessहिमांक-मंडल (क्रायोस्फ़ेयर) वैश्विक जलवायु को किस प्रकार प्रभावित करता है ? (150 words) [UPSC 2017]
हिमांक-मंडल (क्रायोस्फ़ेयर) और वैश्विक जलवायु परिचय: हिमांक-मंडल, या क्रायोस्फ़ेयर, पृथ्वी की सतह पर बर्फ, ग्लेशियर, और जमी हुई पानी की परतों को शामिल करता है। इसका वैश्विक जलवायु पर महत्वपूर्ण प्रभाव होता है। हिमांक-मंडल का जलवायु पर प्रभाव: अल्बीडो प्रभाव: क्रायोस्फ़ेयर की बर्फ और बर्फ की सतहें सूRead more
हिमांक-मंडल (क्रायोस्फ़ेयर) और वैश्विक जलवायु
परिचय: हिमांक-मंडल, या क्रायोस्फ़ेयर, पृथ्वी की सतह पर बर्फ, ग्लेशियर, और जमी हुई पानी की परतों को शामिल करता है। इसका वैश्विक जलवायु पर महत्वपूर्ण प्रभाव होता है।
हिमांक-मंडल का जलवायु पर प्रभाव:
निष्कर्ष: हिमांक-मंडल वैश्विक जलवायु को ठंडा करने, समुद्री स्तर को प्रभावित करने, और ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके प्रभावों को समझना जलवायु परिवर्तन के प्रबंधन में सहायक है।
See less"प्रतिकूल पर्यावरणीय प्रभाव के बावजूद, कोयला खनन विकास के लिए अभी भी अपरिहार्य है ।" विवेचना कीजिए । (150 words) [UPSC 2017]
कोयला खनन: विकास और पर्यावरणीय प्रभाव परिचय: कोयला खनन भारत की ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, लेकिन इसके प्रतिकूल पर्यावरणीय प्रभाव भी हैं। इसके बावजूद, यह विकास के लिए अपरिहार्य बना हुआ है। कोयला खनन की अपरिहार्यता: ऊर्जा उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका: "भारत की ऊर्जाRead more
कोयला खनन: विकास और पर्यावरणीय प्रभाव
परिचय: कोयला खनन भारत की ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, लेकिन इसके प्रतिकूल पर्यावरणीय प्रभाव भी हैं। इसके बावजूद, यह विकास के लिए अपरिहार्य बना हुआ है।
कोयला खनन की अपरिहार्यता:
पर्यावरणीय प्रतिकूल प्रभाव:
निष्कर्ष: कोयला खनन विकास के लिए अपरिहार्य है क्योंकि यह ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक वृद्धि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हालांकि, इसके पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के लिए “सतत खनन प्रथाएँ” और “वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों” पर जोर देना आवश्यक है।
See lessसुस्पष्ट कीजिए कि मध्य-अठारहवीं शताब्दी का भारत विखंडित राज्यतंत्र की छाया से किस प्रकार ग्रसित था । (150 words) [UPSC 2017]
मध्य-अठारहवीं शताब्दी का भारत: विखंडित राज्यतंत्र परिचय: मध्य-अठारहवीं शताब्दी के भारत में राजनीतिक परिदृश्य विखंडित और अस्थिर था। इस समय भारत में विभिन्न छोटे-छोटे राज्यों और क्षेत्रीय शक्तियों का उदय हुआ, जिससे एक केंद्रीकृत शासन की कमी महसूस की गई। विखंडित राज्यतंत्र: क्षेत्रीय शक्तियों का उदय: "Read more
मध्य-अठारहवीं शताब्दी का भारत: विखंडित राज्यतंत्र
परिचय: मध्य-अठारहवीं शताब्दी के भारत में राजनीतिक परिदृश्य विखंडित और अस्थिर था। इस समय भारत में विभिन्न छोटे-छोटे राज्यों और क्षेत्रीय शक्तियों का उदय हुआ, जिससे एक केंद्रीकृत शासन की कमी महसूस की गई।
विखंडित राज्यतंत्र:
निष्कर्ष: मध्य-अठारहवीं शताब्दी का भारत विखंडित राज्यतंत्र की छाया से ग्रसित था, जिसमें क्षेत्रीय शक्तियाँ और छोटे-छोटे राज्य एक केंद्रीकृत शासन के अभाव में अपनी स्वायत्तता और शक्ति को बनाए रखने के लिए संघर्षरत थे। यह अस्थिरता और विभाजन बाद में एक एकीकृत भारतीय राष्ट्र के निर्माण में महत्वपूर्ण बाधाओं में से एक बनी।
See less'सांप्रदायिकता या तो शक्ति संघर्ष के कारण उभर कर आती है या आपेक्षिक बंचन के कारण उभरती है।' उपयुक्त उदाहरणों को प्रस्तुत करते हुए तर्क दीजिए । (250 words) [UPSC 2018]
सांप्रदायिकता और उसके उद्भव के कारण परिचय: सांप्रदायिकता समाज में धार्मिक, जातीय, या सांस्कृतिक समूहों के बीच संघर्ष और विभाजन को दर्शाती है। यह अक्सर शक्ति संघर्ष या आपेक्षिक बंचन (relative deprivation) के कारण उभरती है। ये दो कारण सांप्रदायिकता के उभार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। शक्ति संघर्Read more
सांप्रदायिकता और उसके उद्भव के कारण
परिचय: सांप्रदायिकता समाज में धार्मिक, जातीय, या सांस्कृतिक समूहों के बीच संघर्ष और विभाजन को दर्शाती है। यह अक्सर शक्ति संघर्ष या आपेक्षिक बंचन (relative deprivation) के कारण उभरती है। ये दो कारण सांप्रदायिकता के उभार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
शक्ति संघर्ष:
आपेक्षिक बंचन (Relative Deprivation):
निष्कर्ष: सांप्रदायिकता का उभार अक्सर शक्ति संघर्ष और आपेक्षिक बंचन के कारण होता है। राजनीतिक और सामाजिक असमानताएँ, आर्थिक असमानताएँ, और धार्मिक पहचान के लिए संघर्ष सांप्रदायिक तनाव को बढ़ावा देते हैं। इन तत्वों को समझने से सांप्रदायिकता के उभार के कारणों को स्पष्ट किया जा सकता है और समाज में सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखने के उपाय किए जा सकते हैं।
See less'आम तौर पर कहा जाता है कि वैश्वीकरण सांस्कृतिक समांगीकरण को बढ़ावा देता है, परन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि भारतीय समाज में उसके कारण सांस्कृतिक विशिष्टताएं सुदृढ़ हो गई हैं। सुस्पष्ट कीजिये । (250 words) [UPSC 2018]
वैश्वीकरण और भारतीय सांस्कृतिक विशिष्टताएँ: एक विश्लेषण परिचय: वैश्वीकरण को सामान्यतः सांस्कृतिक समांगीकरण (cultural homogenization) के रूप में देखा जाता है, जहां विभिन्न संस्कृतियों के बीच समानता और एकरूपता को बढ़ावा मिलता है। लेकिन भारत में वैश्वीकरण के प्रभाव ने सांस्कृतिक विशिष्टताओं को सुदृढ़ कRead more
वैश्वीकरण और भारतीय सांस्कृतिक विशिष्टताएँ: एक विश्लेषण
परिचय: वैश्वीकरण को सामान्यतः सांस्कृतिक समांगीकरण (cultural homogenization) के रूप में देखा जाता है, जहां विभिन्न संस्कृतियों के बीच समानता और एकरूपता को बढ़ावा मिलता है। लेकिन भारत में वैश्वीकरण के प्रभाव ने सांस्कृतिक विशिष्टताओं को सुदृढ़ किया है। यह स्थिति विभिन्न कारणों से उत्पन्न हुई है।
वैश्वीकरण का प्रभाव:
भारतीय सांस्कृतिक विशिष्टताओं की सुदृढ़ता:
निष्कर्ष: वैश्वीकरण ने भारत में सांस्कृतिक समांगीकरण को बढ़ावा देने के बजाय सांस्कृतिक विशिष्टताओं को सुदृढ़ किया है। संस्कृतिक पुनरुत्थान, स्थानीयता का उभार, और सांस्कृतिक संरक्षण जैसे पहलुओं के माध्यम से भारतीय समाज ने वैश्वीकरण के प्रभावों के बावजूद अपनी सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखा है और उसे बढ़ावा दिया है।
See less"भारत में महिलाओं के आंदोलन ने, निम्नतर सामाजिक स्तर की महिलाओं के मुद्दों को संबोधित नहीं किया है। अपने विचार को प्रमाणित सिद्ध कीजिए। (250 words) [UPSC 2018]
भारत में महिलाओं के आंदोलन और निम्नतर सामाजिक स्तर की महिलाओं के मुद्दे परिचय: भारत में महिलाओं के आंदोलनों ने समाज में महिलाओं के अधिकारों और समानता के लिए महत्वपूर्ण योगदान किया है, लेकिन निम्नतर सामाजिक स्तर की महिलाओं के मुद्दों को पूरी तरह से संबोधित नहीं किया गया है। यह असंतोष और असमानता की विRead more
भारत में महिलाओं के आंदोलन और निम्नतर सामाजिक स्तर की महिलाओं के मुद्दे
परिचय: भारत में महिलाओं के आंदोलनों ने समाज में महिलाओं के अधिकारों और समानता के लिए महत्वपूर्ण योगदान किया है, लेकिन निम्नतर सामाजिक स्तर की महिलाओं के मुद्दों को पूरी तरह से संबोधित नहीं किया गया है। यह असंतोष और असमानता की विभिन्न वजहों से उत्पन्न हुआ है।
सामाजिक और आर्थिक असमानताएँ:
अवसर की असमानता:
हालिया प्रयास और सुधार:
निष्कर्ष: भारत में महिलाओं के आंदोलनों ने मुख्यतः शहरी और मध्यवर्गीय महिलाओं के मुद्दों को संबोधित किया है, जबकि निम्नतर सामाजिक स्तर की महिलाओं के मुद्दे अक्सर अछूते रह जाते हैं। सामाजिक, आर्थिक और अवसर की असमानताएँ इस स्थिति को जन्म देती हैं। प्रभावी समाधान के लिए सभी स्तरों की महिलाओं के मुद्दों को शामिल करने वाली व्यापक रणनीतियों की आवश्यकता है।
See lessभारत में औद्योगिक गलियारों का क्या महत्व है? औद्योगिक गलियारों को चिन्हित करते हुए उनके प्रमुख अभिलक्षणों को समझाइये। (250 words) [UPSC 2018]
भारत में औद्योगिक गलियारों का महत्व और प्रमुख अभिलक्षण परिचय: औद्योगिक गलियारें (Industrial Corridors) भारत के आर्थिक विकास और औद्योगिकीकरण की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये गलियारें क्षेत्रीय विकास को प्रोत्साहित करते हैं, रोजगार सृजन करते हैं और देश की वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाRead more
भारत में औद्योगिक गलियारों का महत्व और प्रमुख अभिलक्षण
परिचय: औद्योगिक गलियारें (Industrial Corridors) भारत के आर्थिक विकास और औद्योगिकीकरण की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये गलियारें क्षेत्रीय विकास को प्रोत्साहित करते हैं, रोजगार सृजन करते हैं और देश की वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाते हैं।
औद्योगिक गलियारों का महत्व:
प्रमुख औद्योगिक गलियारों के अभिलक्षण:
निष्कर्ष: औद्योगिक गलियारों भारत के औद्योगिकीकरण, आर्थिक विकास, और रोजगार सृजन में केंद्रीय भूमिका निभाते हैं। DMIC, नम्मा गंगा, और EDFC जैसे प्रमुख गलियारों के माध्यम से भारत की क्षेत्रीय विकास की क्षमता और वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाया जा रहा है। इन परियोजनाओं के प्रभावी कार्यान्वयन से देश की समग्र आर्थिक स्थिति में सुधार हो सकता है।
See less"भारत में अवक्षयी (डिप्लीटिंग) भौम जल संसाधनों का आदर्श समाधान जल संरक्षण प्रणाली है।" शहरी क्षेत्रों में इसको किस प्रकार प्रभावी बनाया जा सकता है ?(250 words) [UPSC 2018]
भारत में शहरी क्षेत्रों में अवक्षयी भौम जल संसाधनों के संरक्षण के उपाय परिचय: भारत में अवक्षयी (डिप्लीटिंग) भौम जल संसाधनों की समस्या गंभीर होती जा रही है। शहरीकरण और जल की अधिक खपत के कारण इन संसाधनों का स्तर लगातार घट रहा है। शहरी क्षेत्रों में जल संरक्षण प्रणाली को प्रभावी बनाने के लिए कुछ महत्वपRead more
भारत में शहरी क्षेत्रों में अवक्षयी भौम जल संसाधनों के संरक्षण के उपाय
परिचय: भारत में अवक्षयी (डिप्लीटिंग) भौम जल संसाधनों की समस्या गंभीर होती जा रही है। शहरीकरण और जल की अधिक खपत के कारण इन संसाधनों का स्तर लगातार घट रहा है। शहरी क्षेत्रों में जल संरक्षण प्रणाली को प्रभावी बनाने के लिए कुछ महत्वपूर्ण उपाय किए जा सकते हैं।
जल पुनर्चक्रण और पुन: उपयोग:
सतत जल उपयोग:
सार्वजनिक जागरूकता और नीति समर्थन:
निष्कर्ष: शहरी क्षेत्रों में अवक्षयी भौम जल संसाधनों का आदर्श समाधान जल संरक्षण प्रणाली है। इसके लिए वृष्टि जल संचयन, वेस्ट वॉटर रीसाइक्लिंग, पानी की बचत करने वाले उपकरण, और सार्वजनिक जागरूकता जैसे उपाय प्रभावी हो सकते हैं। इन उपायों के माध्यम से जल संसाधनों के संरक्षण में महत्वपूर्ण सुधार लाया जा सकता है।
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