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भ्रष्टाचार के प्रभाव क्या हैं ?
भ्रष्टाचार के प्रभाव 1. सामाजिक प्रभाव भ्रष्टाचार से समाज में असमानता बढ़ती है। गरीबों और अमीरों के बीच की खाई और गहरी होती है। उदाहरण के लिए, सरकारी योजनाओं का लाभ केवल प्रभावशाली लोगों तक पहुँचता है। 2. आर्थिक प्रभाव निवेश में कमी आती है, जिससे आर्थिक विकास धीमा होता है। भ्रष्टाचार से सरकारी योजनाRead more
भ्रष्टाचार के प्रभाव
1. सामाजिक प्रभाव
2. आर्थिक प्रभाव
3. राजनीतिक प्रभाव
भ्रष्टाचार का अंत समाज के लिए जरूरी है।
See lessपारदर्शिता के परिणाम क्या हैं ?
पारदर्शिता के परिणाम 1. विश्वसनीयता में वृद्धि पारदर्शिता से संस्थाओं की विश्वसनीयता बढ़ती है। जैसे, सरकारी योजनाओं और नीतियों के बारे में स्पष्ट जानकारी देना लोगों का विश्वास जीतता है। 2. बेहतर निर्णय प्रक्रिया जब जानकारी सार्वजनिक होती है, तो निर्णय बेहतर होते हैं, जैसे व्यापार में निवेशकों को सहीRead more
पारदर्शिता के परिणाम
1. विश्वसनीयता में वृद्धि
पारदर्शिता से संस्थाओं की विश्वसनीयता बढ़ती है। जैसे, सरकारी योजनाओं और नीतियों के बारे में स्पष्ट जानकारी देना लोगों का विश्वास जीतता है।
2. बेहतर निर्णय प्रक्रिया
जब जानकारी सार्वजनिक होती है, तो निर्णय बेहतर होते हैं, जैसे व्यापार में निवेशकों को सही जानकारी मिलती है।
3. भ्रष्टाचार में कमी
जब अधिकारी अपने कार्यों के लिए उत्तरदायी होते हैं, तो भ्रष्टाचार की संभावना कम होती है।
निष्कर्ष
See lessपारदर्शिता से विश्वास और सहयोग बढ़ता है।
सत्यनिष्ठा की क्या जरूरत है ?
सत्यनिष्ठा की जरूरत विश्वास और सम्मान: सत्यनिष्ठा से समाज और कार्यस्थल में विश्वास बना रहता है। सही मार्ग पर चलना: सत्यनिष्ठा से निर्णय सही होते हैं, और आत्मसम्मान बना रहता है। दूसरों को प्रेरित करना: सत्य बोलने से दूसरों में भी ईमानदारी की भावना उत्पन्न होती है। उदाहरण: एक व्यक्ति जो हमेशा सच बोलताRead more
सत्यनिष्ठा की जरूरत
उदाहरण: एक व्यक्ति जो हमेशा सच बोलता है, उसे लोग विश्वास करते हैं, जबकि जो झूठ बोलता है, वह विश्वास खो देता है।
See lessपूर्वाग्रह और विभेदीकरण में अन्तर कीजिए ।
पूर्वाग्रह और विभेदीकरण में अन्तर पूर्वाग्रह (Prejudice): यह एक मानसिक पूर्वधारणा या नकारात्मक विचार होते हैं जो किसी व्यक्ति या समूह के बारे में बिना ठोस आधार के होते हैं। उदाहरण: एक व्यक्ति जाति या धर्म के आधार पर किसी से नफरत करता है, भले ही उसे उस व्यक्ति से कोई वास्तविक अनुभव न हो। विभेदीकरण (DRead more
पूर्वाग्रह और विभेदीकरण में अन्तर
अन्तर:
बुद्ध के आष्टांगिक मार्ग की व्याख्या कीजिए।
बुद्ध के आष्टांगिक मार्ग में आठ पहलुओं का समावेश है जो जीवन को सही दिशा में चलाने के लिए जरूरी हैं: सही दृष्टिकोण - सही तरीके से संसार को देखना। सही संकल्प - सकारात्मक और दयालु विचार रखना। सही वचन - सत्य बोलना और हिंसा से बचना। सही क्रिया - नैतिक आचरण करना। सही आजीविका - ऐसे कार्य करना जो दूसरों कोRead more
बुद्ध के आष्टांगिक मार्ग में आठ पहलुओं का समावेश है जो जीवन को सही दिशा में चलाने के लिए जरूरी हैं:
यह मार्ग हमें दुखों से मुक्ति और आत्मज्ञान की ओर मार्गदर्शन करता है।
See lessअरस्तू के आकार एवं द्रव्य सिद्धान्त की विवेचना कीजिए ।
अरस्तू के आकार एवं द्रव्य सिद्धान्त आधार अरस्तू के अनुसार, किसी भी वस्तु का अस्तित्व दो तत्वों—आकार और द्रव्य—से होता है। आकार (Form) आकार वह विशेषता है जो किसी वस्तु को उसकी पहचान देती है। उदाहरण के लिए, एक घर का आकार ही उसे घर बनाता है। द्रव्य (Matter) द्रव्य वह पदार्थ है जिससे कोई वस्तु बनी होतीRead more
अरस्तू के आकार एवं द्रव्य सिद्धान्त
आधार
अरस्तू के अनुसार, किसी भी वस्तु का अस्तित्व दो तत्वों—आकार और द्रव्य—से होता है।
आकार (Form)
आकार वह विशेषता है जो किसी वस्तु को उसकी पहचान देती है। उदाहरण के लिए, एक घर का आकार ही उसे घर बनाता है।
द्रव्य (Matter)
द्रव्य वह पदार्थ है जिससे कोई वस्तु बनी होती है। बिना द्रव्य के, आकार का अस्तित्व नहीं हो सकता।
उदाहरण
See lessएक मूर्तिकार की मूर्ति के आकार और उस मूर्ति के बनाने के लिए उपयोग किए गए पदार्थ (द्रव्य) दोनों मिलकर उसे पूर्ण रूप से अस्तित्व में लाते हैं।
लोकपाल की नियुक्ति कैसे की जाती है और लोकपाल के कार्यों का दायरा क्या हैं?
लोकपाल की नियुक्ति कैसे की जाती है? लोकपाल की नियुक्ति एक चयन समिति द्वारा की जाती है, जिसमें निम्नलिखित सदस्य होते हैं: प्रधानमंत्री विपक्ष के नेता भारत के मुख्य न्यायधीश या सर्वोच्च न्यायालय के एक न्यायधीश एक प्रसिद्ध न्यायविद् यह चयन समिति इन पदों के लिए उपयुक्त उम्मीदवार का चयन करती है, ताकि लोकRead more
लोकपाल की नियुक्ति कैसे की जाती है?
लोकपाल की नियुक्ति एक चयन समिति द्वारा की जाती है, जिसमें निम्नलिखित सदस्य होते हैं:
यह चयन समिति इन पदों के लिए उपयुक्त उम्मीदवार का चयन करती है, ताकि लोकपाल संस्था निष्पक्ष और पारदर्शी रहे।
लोकपाल के कार्यों का दायरा
लोकपाल के मुख्य कार्यों में शामिल हैं:
लोकपाल के दायरे में सार्वजनिक अधिकारियों को जवाबदेह ठहराना और भ्रष्टाचार के मामलों को सुलझाना है, जिससे प्रशासन में पारदर्शिता और ईमानदारी बनी रहती है।
See lessसुशासन की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए ।
सुशासन की प्रमुख विशेषताएँ सुशासन को लोकतंत्र की सफलता के रूप में देखा जाता है। यह सरकार की प्रशासनिक नीतियों और कार्यों का आधार है। सुशासन की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं: 1. समानता और समावेशिता सुशासन में सभी वर्गों के अधिकारों की रक्षा की जाती है। यह सुनिश्चित करता है कि समाज के हर वर्ग को समाRead more
सुशासन की प्रमुख विशेषताएँ
सुशासन को लोकतंत्र की सफलता के रूप में देखा जाता है। यह सरकार की प्रशासनिक नीतियों और कार्यों का आधार है। सुशासन की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
1. समानता और समावेशिता
2. पारदर्शिता
3. उत्तरदायित्व और जवाबदेही
4. कानून का शासन
5. सार्वजनिक सेवा का ध्यान रखना
इस प्रकार, सुशासन लोकतांत्रिक प्रगति और विकास में अहम भूमिका निभाता है।
See lessअभिवृत्तियों (मनोवृत्तियों) का निर्माण कैसे होता हैं? अभिवृत्ति (मनोवृत्ति) परिवर्तन के हाइडर और फेस्टिंगर के सिद्धान्तों को समझाइये ।
हाइडर और फेस्टिंगर के सिद्धांत 1. हाइडर का सिम्बोलिक इंटरेक्शन सिद्धांत: कृत्य: हाइडर के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति दो या दो से अधिक वस्तुओं के बीच सकारात्मक संबंध देखता है, तो उसकी अभिवृत्ति भी सकारात्मक होगी। उदाहरण के लिए, यदि एक व्यक्ति किसी अभिनेता को पसंद करता है और वही अभिनेता किसी उत्पाद को विजRead more
हाइडर और फेस्टिंगर के सिद्धांत
1. हाइडर का सिम्बोलिक इंटरेक्शन सिद्धांत:
2. फेस्टिंगर का संज्ञानात्मक विषमतासिद्धांत (Cognitive Dissonance Theory):
आचार्य शंकर के अनुसार 'जगत-प्रपंच' का विवेचन कीजिए ।
आचार्य शंकर के अनुसार 'जगत-प्रपंच' (विश्व का प्रपंच) माया (भ्रम) के अधीन है। उनका मानना था कि यह संसार वास्तविक नहीं, बल्कि एक स्वप्न के समान है, जो हमारी इन्द्रियों और मस्तिष्क की प्रक्रियाओं से उत्पन्न होता है। मुख्य बिंदु: माया का सिद्धांत: शंकर ने कहा कि ब्रह्म ही सत्य है, और जगत केवल माया के माRead more
आचार्य शंकर के अनुसार ‘जगत-प्रपंच’ (विश्व का प्रपंच) माया (भ्रम) के अधीन है। उनका मानना था कि यह संसार वास्तविक नहीं, बल्कि एक स्वप्न के समान है, जो हमारी इन्द्रियों और मस्तिष्क की प्रक्रियाओं से उत्पन्न होता है।
मुख्य बिंदु:
उदाहरण:
आचार्य शंकर के अनुसार, संसार के असल रूप को जानने के लिए माया को समझना और उसे पार करना आवश्यक है।
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