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भारत में उद्योगों का वितरण प्रतिरूप समझाइये। क्या यह औद्योगिक क्षेत्रीयकरण का आधार प्रदान करता है? [उत्तर सीमा: 250 शब्द] [UKPSC 2016]
भारत में उद्योगों का वितरण प्रतिरूप मुख्य रूप से भौगोलिक, आर्थिक और सामाजिक कारकों पर निर्भर करता है। भारत के विभिन्न क्षेत्रों में उद्योगों का वितरण निम्नलिखित विशेषताओं से प्रभावित होता है: 1. **भौगोलिक विविधता**: विभिन्न प्रकार की औद्योगिक गतिविधियाँ अलग-अलग भौगोलिक स्थितियों में विकसित होती हैं।Read more
भारत में उद्योगों का वितरण प्रतिरूप मुख्य रूप से भौगोलिक, आर्थिक और सामाजिक कारकों पर निर्भर करता है। भारत के विभिन्न क्षेत्रों में उद्योगों का वितरण निम्नलिखित विशेषताओं से प्रभावित होता है:
1. **भौगोलिक विविधता**: विभिन्न प्रकार की औद्योगिक गतिविधियाँ अलग-अलग भौगोलिक स्थितियों में विकसित होती हैं। जैसे, औद्योगिक शहर जैसे मुंबई, दिल्ली और कोलकाता में भारी उद्योग और विनिर्माण उद्योग की उच्च घनत्व है, जबकि दक्षिण भारत में आईटी और सेवा क्षेत्र प्रमुख हैं।
2. **कच्चे माल की उपलब्धता**: उद्योगों का वितरण अक्सर कच्चे माल की निकटता से प्रभावित होता है। उदाहरण के लिए, झारखंड, छत्तीसगढ़ और ओडिशा में लौह अयस्क के निकटता के कारण लौह-धातु उद्योग विकसित हुए हैं।
3. **बुनियादी ढाँचा**: अच्छी परिवहन व्यवस्था, ऊर्जा स्रोतों की उपलब्धता और संचार सुविधाएँ भी औद्योगिक वितरण को प्रभावित करती हैं। जैसे, गुजरात और महाराष्ट्र में बेहतर बुनियादी ढाँचा औद्योगिक विकास को बढ़ावा देता है।
4. **सरकारी नीतियाँ**: विभिन्न राज्यों की औद्योगिक नीतियाँ और प्रोत्साहन भी उद्योगों के वितरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
इस वितरण प्रतिरूप के आधार पर, भारत में औद्योगिक क्षेत्रीयकरण को समझा जा सकता है। विभिन्न क्षेत्रों में उद्योगों की विशेषता और कच्चे माल, श्रम, और बुनियादी ढाँचे की उपलब्धता के आधार पर क्षेत्रीय औद्योगिक विकास को प्रोत्साहन मिलता है। यह न केवल आर्थिक संतुलन को बढ़ावा देता है, बल्कि रोजगार के अवसरों और सामाजिक विकास में भी सहायक होता है।
See lessरखड के बाग दक्षिण भारत मुख्यत: केरल एवं तमिलनाड तक ही क्यों सीमित हैं? [उत्तर सीमा: 250 शब्द] [UKPSC 2016]
रखड के बाग, जिन्हें "रबड़ बाग" भी कहा जाता है, दक्षिण भारत, विशेषकर केरल और तमिलनाडु तक ही सीमित हैं, इसके पीछे कई कारण हैं: 1. **जलवायु**: रखड के बागों के लिए आदर्श जलवायु उष्णकटिबंधीय होती है, जिसमें उच्च तापमान और पर्याप्त वर्षा होती है। केरल और तमिलनाडु की जलवायु इस प्रकार की है, जो रबड़ के पौधोRead more
रखड के बाग, जिन्हें “रबड़ बाग” भी कहा जाता है, दक्षिण भारत, विशेषकर केरल और तमिलनाडु तक ही सीमित हैं, इसके पीछे कई कारण हैं:
1. **जलवायु**: रखड के बागों के लिए आदर्श जलवायु उष्णकटिबंधीय होती है, जिसमें उच्च तापमान और पर्याप्त वर्षा होती है। केरल और तमिलनाडु की जलवायु इस प्रकार की है, जो रबड़ के पौधों के विकास के लिए अनुकूल है।
2. **मिट्टी की गुणवत्ता**: रबड़ के पेड़ को अच्छी जल निकासी वाली, उपजाऊ और काली मिट्टी की आवश्यकता होती है। ये क्षेत्र इस प्रकार की मिट्टी के लिए प्रसिद्ध हैं, जो रबड़ की खेती के लिए उपयुक्त है।
3. **सांस्कृतिक और आर्थिक कारक**: केरल में रबड़ की खेती का एक लंबा इतिहास है, और यह राज्य की अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है। स्थानीय किसानों ने इस फसल को अपनाया और इसके लिए आवश्यक तकनीकी ज्ञान विकसित किया।
4. **अवसर और समर्थन**: केरल सरकार ने रबड़ उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएँ और समर्थन कार्यक्रम लागू किए हैं, जिससे यह फसल तेजी से लोकप्रिय हुई है।
5. **भौगोलिक स्थिति**: दक्षिण भारत का यह क्षेत्र रबड़ के प्राकृतिक निवास स्थानों के निकट है, जिससे इसे यहाँ उगाने में मदद मिलती है।
इन सभी कारणों के चलते रखड के बाग मुख्यतः केरल और तमिलनाडु तक सीमित हैं।
See less"किसी स्थान की वनस्पति वहाँ के जलवायु की सूचक होती है।" विवेचना कीजिये | [उत्तर सीमा: 250 शब्द] [UKPSC 2016]
किसी स्थान की वनस्पति उसके जलवायु की एक महत्वपूर्ण सूचक होती है, क्योंकि वनस्पति का विकास जलवायु की विशेषताओं, जैसे तापमान, वर्षा, आर्द्रता और मौसमी बदलावों से प्रभावित होता है। प्रत्येक क्षेत्र की वनस्पति उन पर्यावरणीय परिस्थितियों के अनुकूल होती है, जिनमें वह विकसित होती है। उदाहरण के लिए, उष्णकटिRead more
किसी स्थान की वनस्पति उसके जलवायु की एक महत्वपूर्ण सूचक होती है, क्योंकि वनस्पति का विकास जलवायु की विशेषताओं, जैसे तापमान, वर्षा, आर्द्रता और मौसमी बदलावों से प्रभावित होता है। प्रत्येक क्षेत्र की वनस्पति उन पर्यावरणीय परिस्थितियों के अनुकूल होती है, जिनमें वह विकसित होती है।
उदाहरण के लिए, उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में, जहाँ वर्षा अधिक होती है और तापमान उच्च रहता है, घने वर्षा वन (जंगल) पाए जाते हैं। यहाँ की वनस्पति जैसे कि बांस, महोगनी और अन्य विविध वृक्ष, इस जलवायु के अनुकूल होती हैं। वहीं, शीतोष्ण क्षेत्रों में, जहाँ ठंड और बर्फबारी होती है, वहाँ उष्णकटिबंधीय वनस्पति की अपेक्षा विभिन्न प्रकार के पत्तेदार वृक्ष और झाड़ियाँ पाई जाती हैं।
इसके अतिरिक्त, शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में, जैसे कि रेगिस्तान, वहाँ की वनस्पति जैसे कैक्टस और कंटीले पौधे जल की कमी के प्रति अनुकूलित होते हैं। ये पौधे जल को संचित करने और तापमान के प्रतिकूल प्रभावों से बचने की विशेषताओं से लैस होते हैं।
इस प्रकार, किसी स्थान की वनस्पति न केवल उस क्षेत्र के जलवायु की पहचान करती है, बल्कि यह पारिस्थितिकी तंत्र की स्वास्थ्य, जीव-जंतु की विविधता और मानव गतिविधियों के प्रभाव को भी दर्शाती है। वनस्पति और जलवायु का यह संबंध पारिस्थितिकी और पर्यावरण संरक्षण में महत्वपूर्ण है।
See lessसमुद्री पारिस्थितिकी पर 'मृतक्षेत्रों' (डैड ज़ोन्स) के विस्तार के क्या-क्या परिणाम होते हैं ? (150 words) [UPSC 2018]
समुद्री पारिस्थितिकी में 'मृतक्षेत्रों' के विस्तार के परिणाम निम्नलिखित हैं: जीवविविधता का नाश: मृतक्षेत्रों में जीवों की संख्या में कमी होती है, जिससे कई प्रजातियों के नाश की संभावना रहती है। मछली पालन का침: मृतक्षेत्रों से मछली की संख्या में कमी आती है, जिससे व्यापारिक और遊ग्रामिक मछली पालन के लिए आRead more
समुद्री पारिस्थितिकी में ‘मृतक्षेत्रों’ के विस्तार के परिणाम निम्नलिखित हैं:
इन परिणामों से पता चलता है कि मृतक्षेत्रों के लिए Pollution और जलवायु परिवर्तन जैसे根本 कारणों को हल करना महत्वपूर्ण है, ताकि समुद्र तटीय पारिस्थितिकी और इन पर निर्भर समुदायों की रक्षा की जा सके।
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