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विश्वभर में पाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के मरुस्थलों के निर्माण की प्रक्रिया की व्याख्या करें और उनके प्रकारों व विशेषताओं का विवरण प्रस्तुत करें। (200 शब्दों में उत्तर दें)
विश्वभर में मरुस्थलों का निर्माण विभिन्न प्राकृतिक प्रक्रियाओं के माध्यम से होता है, जिसमें जलवायु, स्थलाकृति, और पर्यावरणीय कारक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। निर्माण प्रक्रिया: वर्षा की कमी: मरुस्थल आमतौर पर उन क्षेत्रों में होते हैं जहाँ वर्षा बहुत कम होती है, जिसके कारण जल की उपलब्धता न्यूनतम होRead more
विश्वभर में मरुस्थलों का निर्माण विभिन्न प्राकृतिक प्रक्रियाओं के माध्यम से होता है, जिसमें जलवायु, स्थलाकृति, और पर्यावरणीय कारक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
निर्माण प्रक्रिया:
मरुस्थल के प्रकार:
इन सभी प्रकार के मरुस्थलों का निर्माण जलवायु, भूगर्भीय और मौसमीय कारकों के मिश्रण के कारण हुआ है।
See lessभारत में कोयले के वितरण का विस्तार से वर्णन करें। उत्तर 200 शब्दों में दें)
भारत में कोयले का वितरण भारत में कोयला ऊर्जा उत्पादन का मुख्य स्रोत है, जो देश की कुल बिजली उत्पादन का 55% से अधिक योगदान देता है। कोयले के भंडार दो मुख्य श्रेणियों में विभाजित हैं: गोंडवाना कोयला क्षेत्र और तृतीयक कोयला क्षेत्र। गोंडवाना कोयला क्षेत्र (98% भंडार) यह क्षेत्र प्राचीन भूगर्भीय संरचनाओRead more
भारत में कोयले का वितरण
भारत में कोयला ऊर्जा उत्पादन का मुख्य स्रोत है, जो देश की कुल बिजली उत्पादन का 55% से अधिक योगदान देता है। कोयले के भंडार दो मुख्य श्रेणियों में विभाजित हैं: गोंडवाना कोयला क्षेत्र और तृतीयक कोयला क्षेत्र।
गोंडवाना कोयला क्षेत्र (98% भंडार)
तृतीयक कोयला क्षेत्र (2% भंडार)
वर्तमान परिदृश्य
2023 में भारत ने 893 मिलियन टन कोयला उत्पादन किया, और 2024 तक इसे 1 बिलियन टन तक ले जाने की योजना है। सतत विकास के लिए कोयला खनन में पर्यावरणीय संतुलन पर ध्यान दिया जा रहा है।
भारत का कोयला भंडार ऊर्जा क्षेत्र के लिए महत्वपूर्ण है, लेकिन स्वच्छ ऊर्जा पर बदलाव अनिवार्य है।
See lessज्वालामुखियों के वैश्विक वितरण का वर्णन कीजिए और यह स्पष्ट कीजिए कि वे प्रमुख रूप से प्रशांत महासागर के रिंग ऑफ फायर क्षेत्र में क्यों स्थित हैं।(उत्तर 200 शब्दों में दें)
ज्वालामुखियों का वैश्विक वितरण प्रमुख क्षेत्र प्रशांत महासागर का रिंग ऑफ फायर: यह क्षेत्र दुनिया के लगभग 75% सक्रिय ज्वालामुखियों को समेटे हुए है। इसमें जापान, इंडोनेशिया, अंडीज़ पर्वत, और अलास्का का क्षेत्र शामिल है। मध्य-अटलांटिक रिज: यह महासागरीय तल पर फैला हुआ है और विवर्तनिक प्लेटों के अलग होनेRead more
ज्वालामुखियों का वैश्विक वितरण
प्रमुख क्षेत्र
रिंग ऑफ फायर में ज्वालामुखियों की अधिकता के कारण
महत्वपूर्ण तथ्य
बिहार में चंपारण सत्याग्रह (1917) के कारणों एवं परिणामों का वर्णन कीजिये। [63वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2017]
चंपारण सत्याग्रह (1917), भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण घटना थी, जो महात्मा गांधी के नेतृत्व में बिहार के चंपारण जिले में हुआ। यह सत्याग्रह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में गांधी जी की पहली बड़ी भूमिका थी और इसने देशवासियों को अहिंसक विरोध की शक्ति से परिचित कराया। चंपारण सत्याग्रह के कारण:Read more
चंपारण सत्याग्रह (1917), भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण घटना थी, जो महात्मा गांधी के नेतृत्व में बिहार के चंपारण जिले में हुआ। यह सत्याग्रह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में गांधी जी की पहली बड़ी भूमिका थी और इसने देशवासियों को अहिंसक विरोध की शक्ति से परिचित कराया।
चंपारण सत्याग्रह के कारण:
चंपारण सत्याग्रह के परिणाम:
निष्कर्ष:
चंपारण सत्याग्रह ने भारतीय किसानों को उनके अधिकारों के लिए लड़ने का साहस दिया और महात्मा गांधी को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण नेता बना दिया। यह सत्याग्रह गांधी जी के सत्याग्रह और अहिंसा के सिद्धांतों की सफलता का प्रतीक बन गया, जिसने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन की दिशा बदल दी।
See lessबिम्सटेक संगठन को स्पष्ट कीजिये। बिम्सटेक देशों के संगठन की हाल में हुए काठमांडू सम्मेलन के परिणामों पर प्रकाश डालिये। भारत के हित, आशाएँ एवं अपेक्षाओं से संबंधित विषयों की विवेचना कीजिये। [63वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2017]
बिम्सटेक संगठन: एक स्पष्टता बिम्सटेक (Bay of Bengal Initiative for Multi-Sectoral Technical and Economic Cooperation) एक क्षेत्रीय संगठन है, जिसका उद्देश्य दक्षिण एशिया और दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों के बीच तकनीकी और आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देना है। इसकी स्थापना 1997 में हुई थी और इसमें सात सदस्य देशRead more
बिम्सटेक संगठन: एक स्पष्टता
बिम्सटेक (Bay of Bengal Initiative for Multi-Sectoral Technical and Economic Cooperation) एक क्षेत्रीय संगठन है, जिसका उद्देश्य दक्षिण एशिया और दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों के बीच तकनीकी और आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देना है। इसकी स्थापना 1997 में हुई थी और इसमें सात सदस्य देश शामिल हैं:
बिम्सटेक का मुख्य उद्देश्य इन देशों के बीच व्यापार, परिवहन, ऊर्जा, पर्यावरण, आपदा प्रबंधन, संस्कृति, और तकनीकी क्षेत्र में सहयोग को बढ़ावा देना है। यह संगठन बंगाल की खाड़ी के क्षेत्र में स्थित है, जो इसकी सामरिक और आर्थिक महत्वपूर्णता को बढ़ाता है।
काठमांडू सम्मेलन 2024 के परिणाम
हाल ही में आयोजित काठमांडू सम्मेलन (2024) में बिम्सटेक देशों के बीच कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए, जिनका उद्देश्य क्षेत्रीय सहयोग को सुदृढ़ करना था:
भारत के हित, आशाएँ और अपेक्षाएँ
भारत के हित और आशाएँ:
भारत की अपेक्षाएँ और चिंताएँ:
निष्कर्ष:
काठमांडू सम्मेलन से यह स्पष्ट हुआ कि बिम्सटेक देशों के बीच सहयोग बढ़ाने के लिए इच्छाशक्ति है, लेकिन चुनौतियाँ भी मौजूद हैं, जैसे कि संगठन की संस्थागत कमजोरी और सदस्य देशों के बीच विविधताएँ। भारत का इस संगठन में प्रमुख भूमिका निभाने के लिए क्षेत्रीय स्थिरता, आर्थिक विकास और सुरक्षा के लिए अपनी प्रतिबद्धता मजबूत करना महत्वपूर्ण होगा।
See lessकिसी देश के भुगतान संतुलन का क्या अर्थ है? इसके विभिन्न घटकों का विवरण दीजिए। (200 words)
भुगतान संतुलन (Balance of Payments) किसी देश की अर्थव्यवस्था की अंतरराष्ट्रीय आर्थिक गतिविधियों का लेखा-जोखा है, जो उस देश के निवासियों और दुनिया के अन्य हिस्सों के बीच किए गए सभी वित्तीय लेन-देन को दर्शाता है। यह समय-समय पर, आमतौर पर एक वर्ष के दौरान, संकलित किया जाता है। यह देश की आर्थिक स्थिति औरRead more
भुगतान संतुलन (Balance of Payments)
किसी देश की अर्थव्यवस्था की अंतरराष्ट्रीय आर्थिक गतिविधियों का लेखा-जोखा है, जो उस देश के निवासियों और दुनिया के अन्य हिस्सों के बीच किए गए सभी वित्तीय लेन-देन को दर्शाता है। यह समय-समय पर, आमतौर पर एक वर्ष के दौरान, संकलित किया जाता है। यह देश की आर्थिक स्थिति और अंतरराष्ट्रीय व्यापार के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करता है।
भुगतान संतुलन के घटक:
भुगतान संतुलन से यह पता चलता है कि किसी देश का विदेशी लेन-देन कैसा है और यह अंतरराष्ट्रीय वित्तीय स्थिरता पर क्या प्रभाव डालता है।
See lessभारतीय संघीय ढाँचा संवैधानिक रूप से केन्द्र सरकार की ओर उन्मुख है। व्याख्या कीजिए। [67वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2022]
भारतीय संघीय ढाँचा और केन्द्र सरकार का प्रभुत्व भारत का संघीय ढाँचा (Federal Structure) संविधान में निर्धारित किया गया है, जिसमें केन्द्र सरकार का प्राथमिक और मजबूत स्थान है। यह ढाँचा भारतीय संविधान में दोनों सरकारों—केंद्र और राज्य—के बीच शक्ति का बंटवारा करता है। हालांकि, भारतीय संघीय ढाँचा कानूनीRead more
भारतीय संघीय ढाँचा और केन्द्र सरकार का प्रभुत्व
भारत का संघीय ढाँचा (Federal Structure) संविधान में निर्धारित किया गया है, जिसमें केन्द्र सरकार का प्राथमिक और मजबूत स्थान है। यह ढाँचा भारतीय संविधान में दोनों सरकारों—केंद्र और राज्य—के बीच शक्ति का बंटवारा करता है। हालांकि, भारतीय संघीय ढाँचा कानूनी रूप से संघीय है, लेकिन इसकी संरचना और कार्यप्रणाली मुख्य रूप से केंद्र सरकार के पक्ष में है। इसे “केंद्र की ओर उन्मुख संघीयता” कहा जाता है।
केन्द्र सरकार की प्रमुख भूमिका
भारत का संघीय ढाँचा केंद्र सरकार की ओर उन्मुख होने के कई कारण हैं:
उदाहरण
आलोचना
भारतीय संघीय ढाँचे में केन्द्र की ओर उन्मुखता के बावजूद, राज्य सरकारें अपनी स्थिति को चुनौती देती रही हैं। कई राज्य सरकारें यह मानती हैं कि उन्हें अधिक स्वायत्तता मिलनी चाहिए, खासकर राज्य की आंतरिक नीतियों में हस्तक्षेप को लेकर।
निष्कर्ष
भारतीय संघीय ढाँचा संविधान में केंद्र के प्रभुत्व को दर्शाता है, जो राजनीतिक, आर्थिक और संवैधानिक दृष्टिकोण से भी स्पष्ट है। केंद्र सरकार के पास राज्यों पर प्रभाव डालने के लिए कई शक्तियाँ हैं, जो इसे केंद्रीयकृत संघीय ढाँचा बनाती हैं। हालांकि, राज्यों को अपनी स्वायत्तता की आवश्यकता महसूस होती है, और समय-समय पर केंद्र-राज्य संबंधों में सुधार की आवश्यकता होती है।
See less"भारत के राष्ट्रपति की भूमिका परिवार के उस बुजुर्ग के समान है जो सभी प्राधिकार रखता है किन्तु यदि घर के शैतान-युवा सदस्य उसकी न सुनें तो वह कुछ भी प्रभावी नहीं कर सकता है।" मूल्यांकन कीजिए। [67वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2022]
भारत के राष्ट्रपति की भूमिका: एक मूल्यांकन भारत के राष्ट्रपति की भूमिका को एक पारिवारिक बुजुर्ग के समान कहा जाता है, जो सभी अधिकारों का स्वामी होता है, परंतु यदि परिवार के शरारती सदस्य उसकी नहीं सुनते, तो वह कुछ भी प्रभावी नहीं कर पाता। यह कथन भारतीय संविधान में राष्ट्रपति के शक्तियों और उनके कार्योRead more
भारत के राष्ट्रपति की भूमिका: एक मूल्यांकन
भारत के राष्ट्रपति की भूमिका को एक पारिवारिक बुजुर्ग के समान कहा जाता है, जो सभी अधिकारों का स्वामी होता है, परंतु यदि परिवार के शरारती सदस्य उसकी नहीं सुनते, तो वह कुछ भी प्रभावी नहीं कर पाता। यह कथन भारतीय संविधान में राष्ट्रपति के शक्तियों और उनके कार्यों के विश्लेषण पर आधारित है।
राष्ट्रपति की भूमिका का स्वरूप
भारतीय संविधान में राष्ट्रपति का पद राज्य का प्रमुख होता है, और उन्हें व्यापक शक्तियाँ दी गई हैं। हालांकि, उनका कार्य प्रायः प्रतीकात्मक होता है, और वास्तविक शक्ति प्रधानमंत्री और कैबिनेट के हाथों में होती है। राष्ट्रपति के पास संविधान में उल्लिखित शक्तियाँ हैं, जैसे कि:
राष्ट्रपति की सीमाएँ
राष्ट्रपति के पास सभी अधिकार होने के बावजूद, उनकी भूमिका अत्यधिक सीमित होती है। उनके निर्णय प्रायः सरकार के सिफारिशों और सलाह पर आधारित होते हैं। उन्हें वास्तविक सत्ता का प्रयोग नहीं करने दिया जाता।
उदाहरण के लिए:
‘शैतान-युवा सदस्य’ की तुलना
राष्ट्रपति की स्थिति को परिवार के बुजुर्ग से तुलना करना इस प्रकार समझा जा सकता है कि भले ही उनके पास अधिकार हैं, लेकिन वे उनका प्रयोग केवल उसी स्थिति में कर सकते हैं, जब उनके पास सहमति और सहयोग हो। जैसा कि घर के बुजुर्ग यदि शरारती बच्चों से किसी निर्णय पर सहमति नहीं पा सकते, तो वे प्रभावी रूप से कुछ नहीं कर सकते।
इसी प्रकार, राष्ट्रपति को अपनी शक्तियाँ तभी प्रभावी रूप से प्रयोग में लानी होती हैं, जब सरकार या प्रधानमंत्री उन्हें निर्देश देते हैं। यदि प्रधानमंत्री और कैबिनेट उनसे असहमत होते हैं, तो राष्ट्रपति के पास वह शक्ति नहीं होती कि वे अपनी इच्छा से निर्णय ले सकें।
राष्ट्रपति के कार्यों का उदाहरण
निष्कर्ष
इस प्रकार, यह कथन सही है कि राष्ट्रपति के पास सभी अधिकार होते हुए भी उनकी वास्तविक शक्ति सीमित है। उनकी भूमिका प्रायः सरकार और प्रधानमंत्री के निर्देशों पर निर्भर करती है। संविधान में दिए गए शक्तियों के बावजूद, राष्ट्रपति को अपनी भूमिका निभाने में राजनीतिक निर्णयों का पालन करना होता है, जिससे उनकी स्वतंत्रता सीमित हो जाती है।
See lessविगत कई वर्षों से बाढ़ एवं सूखे की स्थिति ने बिहार राज्य के उन्नयन एवं समृद्धि को लगातार प्रभावित किया है। इस प्रकार के दुर्घटना प्रबंधन में विज्ञान एवं अभियांत्रिकी की भूमिका की विशिष्ट उदाहरण के साथ विवेचना कीजिए। [66वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2020]
बिहार में बाढ़ और सूखा: विज्ञान और अभियांत्रिकी की भूमिका बिहार राज्य, जो गंगा नदी की घाटी में स्थित है, सालों से बाढ़ और सूखे जैसी प्राकृतिक आपदाओं से जूझ रहा है। इन आपदाओं ने राज्य के विकास को कई मायनों में प्रभावित किया है। इन प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए विज्ञान और अभियांत्रिकी ने महत्वपूर्Read more
बिहार में बाढ़ और सूखा: विज्ञान और अभियांत्रिकी की भूमिका
बिहार राज्य, जो गंगा नदी की घाटी में स्थित है, सालों से बाढ़ और सूखे जैसी प्राकृतिक आपदाओं से जूझ रहा है। इन आपदाओं ने राज्य के विकास को कई मायनों में प्रभावित किया है। इन प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए विज्ञान और अभियांत्रिकी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
बाढ़ और सूखे के कारण
विज्ञान और अभियांत्रिकी की भूमिका
1. बाढ़ प्रबंधन में अभियांत्रिकी उपाय
2. सूखा प्रबंधन के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी
3. जलवायु परिवर्तन और कृषि तकनीकी
उदाहरण
निष्कर्ष
बिहार में बाढ़ और सूखा जैसी आपदाओं से निपटने के लिए विज्ञान और अभियांत्रिकी की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही है। जलवायु परिवर्तन, सटीक मौसम पूर्वानुमान, सिंचाई तकनीकों और जल निकासी प्रणालियों के माध्यम से इन आपदाओं के प्रभाव को कम करने की दिशा में कई कदम उठाए गए हैं। हालांकि, अभी भी इन समस्याओं से निपटने के लिए निरंतर सुधार की आवश्यकता है।
See less"मेक इन इंडिया कार्यक्रम के अंतर्गत भारत ने अपने सुरक्षा निकाय में सुरक्षा आयुर्थों एवं उपकरणों को राष्ट्र की सुरक्षा के लिए समाहित कर उसमें वृद्धि की है।" इस कथन की पुष्टि सुरक्षा अभियांत्रिकी में वैज्ञानिक विकास के आधार पर कीजिए। [66वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2020]
मेक इन इंडिया और सुरक्षा अभियांत्रिकी में वैज्ञानिक विकास मेक इन इंडिया कार्यक्रम का उद्देश्य भारत को एक प्रमुख विनिर्माण केंद्र के रूप में स्थापित करना था। इसके तहत न केवल औद्योगिक उत्पादन को बढ़ावा देना था, बल्कि भारतीय सुरक्षा बलों के लिए आवश्यक उपकरणों और आयुर्थों के स्वदेशी निर्माण को भी प्रोत्Read more
मेक इन इंडिया और सुरक्षा अभियांत्रिकी में वैज्ञानिक विकास
मेक इन इंडिया कार्यक्रम का उद्देश्य भारत को एक प्रमुख विनिर्माण केंद्र के रूप में स्थापित करना था। इसके तहत न केवल औद्योगिक उत्पादन को बढ़ावा देना था, बल्कि भारतीय सुरक्षा बलों के लिए आवश्यक उपकरणों और आयुर्थों के स्वदेशी निर्माण को भी प्रोत्साहन दिया गया। इस पहल ने सुरक्षा अभियांत्रिकी में वैज्ञानिक विकास को बढ़ावा दिया, जिससे देश की सुरक्षा को और अधिक सुदृढ़ किया गया।
सुरक्षा अभियांत्रिकी में वैज्ञानिक विकास
सुरक्षा अभियांत्रिकी का उद्देश्य सैन्य बलों के लिए अत्याधुनिक तकनीकी उपकरणों और आयुर्थों का निर्माण करना है। मेक इन इंडिया के तहत इस क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण पहल की गई हैं:
1. उन्नत रक्षा उपकरणों का स्वदेशी निर्माण
भारत ने रक्षा उद्योग में कई उपकरणों का स्वदेशी उत्पादन बढ़ाया है। इससे न केवल रक्षा क्षेत्र की आत्मनिर्भरता बढ़ी, बल्कि सुरक्षा आयुर्थों की गुणवत्ता में भी सुधार हुआ है। उदाहरण के तौर पर:
2. उन्नत ड्रोन और निगरानी प्रणाली
भारत ने ड्रोन और निगरानी प्रणाली के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण प्रगति की है। इन उपकरणों का इस्तेमाल सीमा की निगरानी, आतंकवाद विरोधी अभियानों, और प्राकृतिक आपदाओं में राहत कार्यों के लिए किया जाता है। स्वदेशी ड्रोन प्रौद्योगिकी ने भारतीय सुरक्षा बलों को अधिक सक्षम और तेज़ निगरानी प्रणाली प्रदान की है।
3. स्वदेशी टैंक और अन्य सैन्य आयुर्थ
भारत ने अपने स्वदेशी युद्धक टैंक जैसे अरjun टैंक का निर्माण किया है, जो पूरी तरह से भारतीय तकनीकी ज्ञान पर आधारित है। इसके अलावा, भारतीय सेना के लिए कई अन्य आयुर्थों जैसे हल्के आर्मर्ड व्हीकल्स, बुलेटप्रूफ जैकेट्स और अन्य हथियारों का स्वदेशी निर्माण भी बढ़ा है।
4. साइबर सुरक्षा और सूचना प्रौद्योगिकी
भारत ने साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में भी कई कदम उठाए हैं। भारतीय सुरक्षा एजेंसियां आधुनिक तकनीकी उपकरणों का उपयोग कर साइबर अपराधों और आतंकवाद की जड़ तक पहुंचने की कोशिश कर रही हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद और इंटरनेट सुरक्षा और अपराध निवारण के लिए पहल की गई हैं।
मेक इन इंडिया का महत्व
मेक इन इंडिया कार्यक्रम के माध्यम से रक्षा क्षेत्र में स्वदेशी तकनीकों का विकास करने से भारत को अपनी सुरक्षा में आत्मनिर्भरता प्राप्त हुई है। यह न केवल भारत की रक्षा क्षमता को बढ़ाता है, बल्कि विदेशी हथियारों पर निर्भरता कम करने में भी मदद करता है। इससे भारत के रक्षा बजट में भी बचत होती है, जो अन्य विकास कार्यों में निवेश किया जा सकता है।
निष्कर्ष
मेक इन इंडिया के तहत किए गए इन प्रयासों से भारत ने अपने सुरक्षा बलों के लिए अत्याधुनिक रक्षा उपकरणों और तकनीकी आयुर्थों का निर्माण किया है। यह कार्यक्रम भारतीय रक्षा क्षेत्र को आत्मनिर्भर बनाने के साथ-साथ भारत को वैश्विक रक्षा बाजार में एक मजबूत खिलाड़ी के रूप में स्थापित करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ है।
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