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"गाँवों में सहकारी समिति को छोड़कर, ऋण संगठन का कोई भी अन्य ढाँचा उपयुक्त नहीं होगा।"- अखिल भारतीय ग्रामीण ऋण सर्वेक्षण। भारत में कृषि वित्त की पृष्ठभूमि में, इस कथन पर चर्चा कीजिए। कृषि वित्त प्रदान करने वाली वित्तीय संस्थाओं को किन बाध्यताओं और कसौटियों का सामना करना पड़ता है? ग्रामीण सेवार्थियों तक बेहतर पहुँच और सेवा के लिए प्रौद्योगिकी का किस प्रकार इस्तेमाल किया जा सकता है? (200 words) [UPSC 2014]
गाँवों में सहकारी समितियों की उपयुक्तता और कृषि वित्त में बाधाएँ: 1. सहकारी समितियों की उपयुक्तता: सहकारी समितियाँ और ग्रामीण वित्त: अखिल भारतीय ग्रामीण ऋण सर्वेक्षण ने यह बताया कि सहकारी समितियाँ गाँवों में ऋण संगठनों के रूप में सबसे उपयुक्त हैं। इनका स्थानीय प्रबंधन और समुदाय पर आधारित ढाँचा ग्रामRead more
गाँवों में सहकारी समितियों की उपयुक्तता और कृषि वित्त में बाधाएँ:
1. सहकारी समितियों की उपयुक्तता:
2. कृषि वित्त में बाधाएँ:
3. प्रौद्योगिकी का उपयोग:
निष्कर्ष: सहकारी समितियाँ गाँवों में ऋण संगठनों के रूप में अत्यंत उपयुक्त हैं क्योंकि वे स्थानीय जरूरतों और प्रबंधन को बेहतर ढंग से समझती हैं। कृषि वित्त की प्रभावशीलता को सुधारने के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग महत्वपूर्ण है, जिसमें डिजिटल बैंकिंग, फिनटेक समाधान, और स्मार्ट एग्रीकल्चर तकनीकों के माध्यम से बेहतर पहुँच और सेवा सुनिश्चित की जा सकती है।
See less"In the villages itself no form of credit organization will be suitable except the cooperative society. All India Rural Credit Survey. (200 words) [UPSC 2014]
Suitability of Cooperative Societies as Credit Organizations in Villages: 1. Cooperative Societies as Ideal Credit Organizations: Historical Context: The All India Rural Credit Survey highlighted that cooperative societies are the most suitable form of credit organization for villages. This is due tRead more
Suitability of Cooperative Societies as Credit Organizations in Villages:
1. Cooperative Societies as Ideal Credit Organizations:
2. Advantages of Cooperative Societies:
3. Recent Examples and Effectiveness:
4. Challenges and Considerations:
Conclusion: Cooperative societies are well-suited as credit organizations in villages due to their community-based structure, accessibility, and affordability. Despite facing challenges, their role in providing credit and supporting rural development is significant. Strengthening cooperative societies through better management and oversight can further enhance their effectiveness in serving rural areas.
See lessचीन और पाकिस्तान ने एक आर्थिक गलियारे के विकास के लिए समझौता किया है। यह भारत की सुरक्षा के लिए क्या खतरा प्रस्तुत करता है? समालोचनात्मक परीक्षण कीजिए। (200 words) [UPSC 2014]
चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) और भारत की सुरक्षा पर इसके खतरे: 1. सामरिक और भौगोलिक प्रभाव: CPEC का अवलोकन: चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) एक महत्वपूर्ण आधारभूत परियोजना है जो पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह को चीन के शिंजियांग क्षेत्र से सड़क, पाइपलाइन, और रेलमार्गों के माध्यम से जोड़ती है।Read more
चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) और भारत की सुरक्षा पर इसके खतरे:
1. सामरिक और भौगोलिक प्रभाव:
2. भारत के लिए सुरक्षा चिंताएँ:
3. क्षेत्रीय प्रभाव और चुनौतियाँ:
हाल के उदाहरण:
निष्कर्ष: चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) भारत की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण खतरे प्रस्तुत करता है, जैसे कि चीन की सामरिक उपस्थिति में वृद्धि, पाकिस्तान की सैन्य और आर्थिक क्षमताओं में सुधार, और आतंकवाद और क्षेत्रीय अस्थिरता का बढ़ता जोखिम। भारत को इन चुनौतियों का सामना करने के लिए व्यापक रणनीतियाँ अपनानी चाहिए, जिसमें बुनियादी ढाँचे को मजबूत करना, क्षेत्रीय गठबंधनों को सुदृढ़ करना और सीमा सुरक्षा में वृद्धि शामिल है।
See lessChina and Pakistan have entered into an agreement for development of an economic corridor. What threat does this pose for India’s security? Critically examine. (200 words) [UPSC 2014]
China-Pakistan Economic Corridor (CPEC) and Its Threats to India's Security: 1. Strategic and Geopolitical Implications: CPEC Overview: The China-Pakistan Economic Corridor (CPEC) is a significant infrastructure project that aims to connect Gwadar Port in Pakistan to China’s Xinjiang region throughRead more
China-Pakistan Economic Corridor (CPEC) and Its Threats to India’s Security:
1. Strategic and Geopolitical Implications:
2. Security Concerns for India:
3. Regional Impact and Challenges:
Recent Examples:
Conclusion: The China-Pakistan Economic Corridor (CPEC) poses significant threats to India’s security by strengthening China’s strategic presence in the region, potentially enhancing Pakistan’s military and economic capabilities, and increasing the risk of militancy and regional instability. India must adopt comprehensive strategies to address these challenges, including enhancing its own infrastructure, strengthening regional alliances, and increasing vigilance in border security.
See lessभारत-प्रशांत महासागर क्षेत्र में चीन की महत्त्वाकांक्षाओं का मुकाबला करना नई त्रि-राष्ट्र साझेदारी AUKUS का उद्देश्य है। क्या यह इस क्षेत्र में मौजूदा साझेदारी का स्थान लेने जा रहा है? वर्तमान परिदृश्य में, AUKUS की शक्ति और प्रभाव की विवेचना कीजिए। (250 words) [UPSC 2021]
AUKUS (Australia, United Kingdom, United States) त्रि-राष्ट्र साझेदारी का उद्देश्य इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन की बढ़ती सैन्य और आर्थिक महत्त्वाकांक्षाओं का मुकाबला करना है। यह समझौता विशेष रूप से ऑस्ट्रेलिया को परमाणु-संचालित पनडुब्बियों से लैस करने पर केंद्रित है, जो इस क्षेत्र में शक्ति संतुलन कRead more
AUKUS (Australia, United Kingdom, United States) त्रि-राष्ट्र साझेदारी का उद्देश्य इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन की बढ़ती सैन्य और आर्थिक महत्त्वाकांक्षाओं का मुकाबला करना है। यह समझौता विशेष रूप से ऑस्ट्रेलिया को परमाणु-संचालित पनडुब्बियों से लैस करने पर केंद्रित है, जो इस क्षेत्र में शक्ति संतुलन को बदलने का प्रयास है।
AUKUS का गठन क्वाड (Quadrilateral Security Dialogue) जैसी मौजूदा साझेदारियों का स्थान लेने के लिए नहीं, बल्कि इन्हें सुदृढ़ करने के लिए किया गया है। AUKUS और क्वाड दोनों ही चीन के बढ़ते प्रभाव को नियंत्रित करने के उद्देश्य से बनाए गए हैं, लेकिन उनके कार्यक्षेत्र और उद्देश्य अलग-अलग हैं। जहां AUKUS मुख्य रूप से रक्षा और सैन्य क्षमताओं को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करता है, वहीं क्वाड का ध्यान व्यापक क्षेत्रीय सुरक्षा, आर्थिक सहयोग और समुद्री सुरक्षा पर है।
वर्तमान परिदृश्य में, AUKUS ने इंडो-पैसिफिक में सैन्य शक्ति के संतुलन को प्रभावित किया है। ऑस्ट्रेलिया के लिए परमाणु-संचालित पनडुब्बियों की आपूर्ति क्षेत्र में चीन के नौसैनिक प्रभाव का मुकाबला करने में महत्वपूर्ण हो सकती है। इसके अलावा, AUKUS ने क्षेत्र में अन्य देशों को भी अपनी रक्षा रणनीतियों पर पुनर्विचार करने के लिए प्रेरित किया है। हालांकि, यह साझेदारी क्षेत्र में केवल तीन देशों तक सीमित है, जिससे इसकी प्रभावशीलता पर सवाल उठ सकते हैं, विशेष रूप से चीन के प्रभाव को सीमित करने के लिए एक व्यापक क्षेत्रीय गठबंधन की आवश्यकता हो सकती है।
AUKUS की शक्ति और प्रभाव को उसकी सफलताओं, जैसे परमाणु पनडुब्बियों की तैनाती, और क्षेत्रीय देशों के साथ सामरिक सहयोग में बढ़ोतरी के माध्यम से मापा जाएगा।
See lessएस० सी० ओ० के लक्ष्यों और उद्देश्यों का विश्लेषणात्मक परीक्षण कीजिए। भारत के लिए इसका क्या महत्त्व है? (250 words) [UPSC 2021]
शांगहाई सहयोग संगठन (SCO) एक अंतरराष्ट्रीय मंच है जिसे 2001 में स्थापित किया गया था। इसके सदस्य देशों में चीन, भारत, रूस, पाकिस्तान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और उज़्बेकिस्तान शामिल हैं। SCO का उद्देश्य और लक्ष्य क्षेत्रीय सुरक्षा, आर्थिक सहयोग, और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देना हैRead more
शांगहाई सहयोग संगठन (SCO) एक अंतरराष्ट्रीय मंच है जिसे 2001 में स्थापित किया गया था। इसके सदस्य देशों में चीन, भारत, रूस, पाकिस्तान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और उज़्बेकिस्तान शामिल हैं। SCO का उद्देश्य और लक्ष्य क्षेत्रीय सुरक्षा, आर्थिक सहयोग, और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देना है।
SCO के लक्ष्यों और उद्देश्यों का विश्लेषणात्मक परीक्षण:
सुरक्षा और स्थिरता:
उद्देश्य: SCO का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य क्षेत्रीय सुरक्षा और स्थिरता को बनाए रखना है, विशेषकर आतंकवाद, उग्रवाद और अलगाववाद के खिलाफ संघर्ष करना।
विश्लेषण: SCO ने आतंकवाद और कट्टरपंथ के खिलाफ समन्वित प्रयास किए हैं, और इसके सदस्य देशों ने साझा सुरक्षा प्राथमिकताओं पर काम किया है।
आर्थिक सहयोग और विकास:
उद्देश्य: SCO सदस्य देशों के बीच आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देना, व्यापार और निवेश को प्रोत्साहित करना।
विश्लेषण: SCO ने आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देने के लिए कई मंच और पहल की हैं, जैसे कि व्यापार और निवेश में सुविधा और सुधार लाने के लिए समझौतों पर हस्ताक्षर करना।
संस्कृतिक और सामाजिक आदान-प्रदान:
उद्देश्य: सदस्य देशों के बीच सांस्कृतिक, शैक्षिक, और सामाजिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देना।
विश्लेषण: SCO सांस्कृतिक कार्यक्रमों और शैक्षिक आदान-प्रदान की पहल करता है, जो सदस्य देशों के बीच बेहतर समझ और सहयोग को बढ़ावा देता है।
बहुपक्षीय समन्वय:
उद्देश्य: एक बहुपरकारी ढाँचे के तहत विभिन्न वैश्विक और क्षेत्रीय मुद्दों पर समन्वित दृष्टिकोण अपनाना।
विश्लेषण: SCO एक मंच प्रदान करता है जहाँ सदस्य देश वैश्विक और क्षेत्रीय मुद्दों पर आपसी समझ और समन्वय बढ़ा सकते हैं।
भारत के लिए SCO का महत्त्व:
क्षेत्रीय सुरक्षा:
महत्त्व: भारत के लिए SCO क्षेत्रीय सुरक्षा का एक महत्वपूर्ण प्लेटफ़ॉर्म है, खासकर पाकिस्तान और अफगानिस्तान से उत्पन्न होने वाली सुरक्षा चुनौतियों को संबोधित करने में।
आर्थिक और व्यापारिक अवसर:
महत्त्व: SCO भारत को मध्य एशिया के संसाधनों और बाजारों तक पहुँचने का अवसर प्रदान करता है, जिससे भारत के लिए व्यापार और निवेश के नए रास्ते खुलते हैं।
डिप्लोमैटिक एंगेजमेंट:
महत्त्व: SCO भारत को चीन और रूस जैसे महत्वपूर्ण वैश्विक शक्तियों के साथ बेहतर द्विपक्षीय और त्रैतीयक संबंध विकसित करने का अवसर प्रदान करता है।
संस्कृतिक आदान-प्रदान:
महत्त्व: SCO के माध्यम से भारत सांस्कृतिक और सामाजिक आदान-प्रदान बढ़ा सकता है, जिससे भारतीय सांस्कृतिक धरोहर की पहचान और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिलती है।
See lessनिष्कर्ष:
SCO के लक्ष्यों और उद्देश्यों का क्षेत्रीय सुरक्षा, आर्थिक विकास, और सांस्कृतिक आदान-प्रदान पर महत्वपूर्ण प्रभाव है। भारत के लिए, SCO एक महत्वपूर्ण मंच है जो सुरक्षा, आर्थिक अवसर, और डिप्लोमैटिक एंगेजमेंट को मजबूत करने में सहायक है। इसके द्वारा, भारत न केवल क्षेत्रीय मुद्दों पर प्रभावी ढंग से काम कर सकता है, बल्कि वैश्विक मंच पर अपनी स्थिति को भी मजबूत कर सकता है।
क्या नागरिक समाज और गैर-सरकारी संगठन, आम नागरिक को लाभ प्रदान करने के लिए लोक सेवा प्रदायगी का वैकल्पिक प्रतिमान प्रस्तुत कर सकते हैं? इस वैकल्पिक प्रतिमान की चुनौतियों की विवेचना कीजिए। (250 words) [UPSC 2021]
नागरिक समाज और गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) लोक सेवा प्रदायगी का वैकल्पिक प्रतिमान प्रस्तुत कर सकते हैं। इन संगठनों की भूमिका और क्षमताएँ पारंपरिक सरकारी सेवाओं के पूरक के रूप में उभर सकती हैं, विशेषकर जब सरकारी संस्थाएँ कुछ क्षेत्रों में अक्षम या अनुपस्थित होती हैं। वैकल्पिक प्रतिमान के लाभ: स्थानीय जRead more
नागरिक समाज और गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) लोक सेवा प्रदायगी का वैकल्पिक प्रतिमान प्रस्तुत कर सकते हैं। इन संगठनों की भूमिका और क्षमताएँ पारंपरिक सरकारी सेवाओं के पूरक के रूप में उभर सकती हैं, विशेषकर जब सरकारी संस्थाएँ कुछ क्षेत्रों में अक्षम या अनुपस्थित होती हैं।
वैकल्पिक प्रतिमान के लाभ:
स्थानीय जरूरतों के प्रति संवेदनशीलता:
उदाहरण: NGOs जैसे डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स और सेवा इंटरनेशनल स्थानीय समुदायों की विशिष्ट स्वास्थ्य और सामाजिक जरूरतों को समझते हैं और उनका समाधान करते हैं।
लचीलापन और नवाचार:
उदाहरण: गूगल.org और बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन जैसे संगठन नई प्रौद्योगिकी और नवाचारों का उपयोग करके शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार कर रहे हैं।
जवाबदेही और पारदर्शिता:
NGOs अक्सर स्थानीय स्तर पर काम करते हैं और उनकी पारदर्शिता और जवाबदेही की उम्मीदें अधिक होती हैं। यह उन्हें नागरिकों के प्रति अधिक उत्तरदायी बनाता है।
चुनौतियाँ:
संसाधनों की कमी और स्थिरता:
NGOs को अक्सर वित्तीय और मानव संसाधनों की कमी का सामना करना पड़ता है, जिससे उनकी स्थिरता और दीर्घकालिक प्रभाव पर प्रश्न उठते हैं।
उदाहरण: कई NGOs को नियमित फंडिंग की समस्या का सामना करना पड़ता है, जिससे उनके प्रोजेक्ट्स प्रभावित होते हैं।
समानता और पहुंच:
NGOs द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाएँ कभी-कभी सीमित भौगोलिक क्षेत्रों या विशेष जनसंख्या समूहों तक ही सीमित होती हैं, जिससे समाज के सभी वर्गों तक पहुँच सुनिश्चित करना कठिन होता है।
उदाहरण: ग्रामीण क्षेत्रों में काम करने वाले NGO प्रोजेक्ट्स को शहरी क्षेत्रों की तुलना में अधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
नियामक चुनौतियाँ और संघर्ष:
NGOs को अक्सर नियामक और कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, विशेषकर जब उनकी गतिविधियाँ सरकार की नीतियों से मेल नहीं खाती हैं।
उदाहरण: कई देशों में NGOs को विदेशी फंडिंग को लेकर सख्त नियामक नियमों का सामना करना पड़ता है, जिससे उनकी कार्यक्षमता पर असर पड़ता है।
प्रशासनिक बाधाएँ और समन्वय:
सरकारी और NGO प्रयासों के बीच समन्वय की कमी से प्रभावशीलता में कमी आ सकती है। विभिन्न संगठनों के प्रयासों का समन्वय और एकीकरण अक्सर चुनौतीपूर्ण होता है।
उदाहरण: आपातकालीन स्थितियों में, कई NGOs और सरकारी एजेंसियों के बीच समन्वय की कमी से सहायता की पहुँच में देरी हो सकती है।
निष्कर्ष:
See lessनागरिक समाज और NGOs लोक सेवा प्रदायगी का वैकल्पिक प्रतिमान प्रस्तुत कर सकते हैं, जो पारंपरिक सरकारी सेवाओं के पूरक के रूप में कार्य कर सकते हैं। हालांकि, इन प्रतिमानों की सफलता के लिए उन्हें संसाधनों, समानता, और समन्वय जैसी चुनौतियों का समाधान करना आवश्यक है। सही तरीके से कार्यान्वित किए जाने पर, ये संगठन समाज में महत्वपूर्ण सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं और लोक सेवा के क्षेत्र में नवाचार और संवेदनशीलता को बढ़ावा दे सकते हैं।
"यद्यपि स्वातंत्र्योत्तर भारत में महिलाओं ने विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्टता हासिल की है, इसके बावजूद महिलाओं और नारीवादी आन्दोलन के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण पितृसत्तात्मक रहा है।" महिला शिक्षा और महिला सशक्तीकरण की योजनाओं के अतिरिक्त कौन-से हस्तक्षेप इस परिवेश के परिवर्तन में सहायक हो सकते हैं? (250 words) [UPSC 2021]
स्वतंत्रता के बाद भारत में महिलाओं ने कई क्षेत्रों में उत्कृष्टता प्राप्त की है, लेकिन पितृसत्तात्मक दृष्टिकोण और सामाजिक असमानताएँ बनी हुई हैं। महिला शिक्षा और सशक्तीकरण की योजनाओं के अतिरिक्त, निम्नलिखित हस्तक्षेप इस परिवेश के परिवर्तन में सहायक हो सकते हैं: 1. सामाजिक जागरूकता और शिक्षा: सार्वजनिRead more
स्वतंत्रता के बाद भारत में महिलाओं ने कई क्षेत्रों में उत्कृष्टता प्राप्त की है, लेकिन पितृसत्तात्मक दृष्टिकोण और सामाजिक असमानताएँ बनी हुई हैं। महिला शिक्षा और सशक्तीकरण की योजनाओं के अतिरिक्त, निम्नलिखित हस्तक्षेप इस परिवेश के परिवर्तन में सहायक हो सकते हैं:
1. सामाजिक जागरूकता और शिक्षा:
सार्वजनिक अभियान और शिक्षा: सामाजिक दृष्टिकोण में बदलाव के लिए व्यापक जन जागरूकता अभियान चलाए जाने चाहिए। मीडिया, स्कूलों और समुदायों में पितृसत्तात्मक सोच के खिलाफ शिक्षित किया जाना आवश्यक है।
उदाहरण: बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान ने महिलाओं की शिक्षा और सुरक्षा के प्रति समाज में जागरूकता बढ़ाई है। इसी तरह के अभियान पितृसत्तात्मक दृष्टिकोण को चुनौती दे सकते हैं।
2. कानूनी सुधार और कार्यान्वयन:
सख्त कानून और उनका अनुपालन: महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए कठोर कानूनी प्रावधान और उनके प्रभावी कार्यान्वयन की आवश्यकता है। यौन उत्पीड़न, घरेलू हिंसा और समान वेतन जैसे मामलों में कानूनों को सख्ती से लागू किया जाना चाहिए।
उदाहरण: राष्ट्रीय महिला आयोग और महिला अत्याचार निवारण अधिनियम जैसे कानूनी ढाँचे ने महिलाओं के अधिकारों की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, लेकिन उनके प्रभावी कार्यान्वयन पर ध्यान देना आवश्यक है।
3. आर्थिक सशक्तिकरण और रोजगार के अवसर:
स्वरोजगार और उद्यमिता: महिलाओं के लिए स्वरोजगार और उद्यमिता के अवसर प्रदान किए जाने चाहिए। सरकारी योजनाओं और वित्तीय सहायता से महिलाएँ खुद को आर्थिक रूप से स्वतंत्र बना सकती हैं।
उदाहरण: महिला उद्यमिता प्रोत्साहन योजना और प्रधानमंत्री मुद्रा योजना ने महिलाओं को व्यवसाय स्थापित करने के अवसर प्रदान किए हैं, जिससे उनका आर्थिक सशक्तिकरण बढ़ा है।
4. सामुदायिक और पारिवारिक समर्थन:
पारिवारिक दृष्टिकोण में बदलाव: परिवार और समाज में महिलाओं के प्रति दृष्टिकोण बदलने के लिए सामुदायिक कार्यक्रमों और कार्यशालाओं का आयोजन किया जाना चाहिए। पारिवारिक भूमिकाओं में समानता की ओर प्रोत्साहन देना आवश्यक है।
उदाहरण: सामाजिक समरसता अभियान और समानता पर कार्यशालाएँ ने पारिवारिक और सामाजिक दृष्टिकोण में सकारात्मक बदलाव लाने में मदद की है।
5. नारीवादी आंदोलनों और प्रतिनिधित्व:
वृद्धि और समर्थन: नारीवादी आंदोलनों और संगठनों का समर्थन बढ़ाया जाना चाहिए, जो महिलाओं की सामाजिक स्थिति सुधारने के लिए लगातार काम कर रहे हैं। समाज में महिलाओं की बेहतर प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करना भी महत्वपूर्ण है।
उदाहरण: नारीवादी संगठनों और महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने महिलाओं के अधिकारों के लिए आवाज उठाई है और कई सामाजिक बदलावों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
इन हस्तक्षेपों के माध्यम से पितृसत्तात्मक दृष्टिकोण में बदलाव किया जा सकता है और महिलाओं की सामाजिक स्थिति में सुधार किया जा सकता है। इन पहलों के साथ समन्वय और सक्रिय कार्यान्वयन से ही एक सशक्त और समान समाज की दिशा में प्रगति की जा सकती है।
See lessक्या विभागों से संबंधित संसदीय स्थायी समितियाँ प्रशासन को अपने पैर की उँगलियों पर रखती हैं और संसदीय नियंत्रण के लिए सम्मान-प्रदर्शन हेतु प्रेरित करती हैं? उपयुक्त उदाहरणों के साथ ऐसी समितियों के कार्यों का मूल्यांकन कीजिए। (250 words) [UPSC 2021]
संसदीय स्थायी समितियाँ प्रशासन के कार्यों पर निगरानी और नियंत्रण रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। ये समितियाँ विभागों के कार्यों और नीतियों की समीक्षा करती हैं और संसदीय नियंत्रण सुनिश्चित करने के लिए प्रशासन को जवाबदेह बनाती हैं। संसदीय स्थायी समितियों के कार्य और उनका मूल्यांकन: 1. निगरानी औRead more
संसदीय स्थायी समितियाँ प्रशासन के कार्यों पर निगरानी और नियंत्रण रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। ये समितियाँ विभागों के कार्यों और नीतियों की समीक्षा करती हैं और संसदीय नियंत्रण सुनिश्चित करने के लिए प्रशासन को जवाबदेह बनाती हैं।
संसदीय स्थायी समितियों के कार्य और उनका मूल्यांकन:
1. निगरानी और समीक्षा:
उदाहरण: लोक लेखा समिति (Public Accounts Committee – PAC) और वित्त समिति (Estimates Committee) संसदीय स्थायी समितियाँ हैं जो बजट और खर्चों की समीक्षा करती हैं। PAC का मुख्य कार्य सरकारी खातों का ऑडिट करना और वित्तीय गड़बड़ियों की पहचान करना है। इस प्रकार, यह विभागों की वित्तीय अनुशासन पर नजर रखती है।
मूल्यांकन: ये समितियाँ विभागों को पारदर्शिता और उत्तरदायित्व बनाए रखने के लिए प्रेरित करती हैं। PAC के उदाहरण के रूप में, इसने विभिन्न समय पर महत्वपूर्ण घोटालों को उजागर किया है, जैसे कि 2G स्पेक्ट्रम घोटाला और कोल घोटाला।
2. नीतिगत सलाह और सुधार:
उदाहरण: गृह मामलों की स्थायी समिति (Standing Committee on Home Affairs) और स्वास्थ्य और परिवार कल्याण की स्थायी समिति (Standing Committee on Health and Family Welfare) विभागों की नीतियों की समीक्षा करती हैं और सुधार के सुझाव देती हैं।
मूल्यांकन: ये समितियाँ विभागों को नीतिगत सुधारों के लिए प्रेरित करती हैं। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण की स्थायी समिति ने स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में सुधार के लिए कई सुझाव दिए हैं, जिससे विभागों को नीतियों में बदलाव और सुधार लाने की दिशा में मार्गदर्शन मिला है।
3. सरकारी प्रदर्शन की निगरानी:
उदाहरण: संविधान समीक्षा समिति (Committee on the Constitution) और संसदीय समितियाँ (Parliamentary Committees) विभिन्न सरकारी विभागों के कार्यों की निगरानी करती हैं और प्रशासन को उसकी जिम्मेदारियों के प्रति जवाबदेह बनाती हैं।
मूल्यांकन: ये समितियाँ विभागों को उनकी कार्यप्रणाली और प्रदर्शन में सुधार के लिए प्रेरित करती हैं। संविधान समीक्षा समिति ने कई बार संविधान में सुधारों की सिफारिश की है, जिससे प्रशासन को अपनी कार्यप्रणाली को अपडेट करने में सहायता मिली है।
निष्कर्ष:
See lessसंसदीय स्थायी समितियाँ विभागों से संबंधित प्रशासनिक कार्यों की निगरानी करती हैं, पारदर्शिता बनाए रखने में मदद करती हैं, और संसदीय नियंत्रण को मजबूत करती हैं। इनके कार्यों से प्रशासन को अपनी जिम्मेदारियों का एहसास होता है और संसदीय सिस्टम के प्रति सम्मान बनाए रहता है। ये समितियाँ न केवल नीतिगत सुधारों की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं, बल्कि प्रशासनिक सुधारों के लिए भी प्रेरित करती हैं।
उन संवैधानिक प्रावधानों को समझाइए जिनके अंतर्गत विधान परिषदें स्थापित होती हैं। उपयुक्त उदाहरणों के साथ विधान परिषदों के कार्य और वर्तमान स्थिति का मूल्यांकन कीजिए।
संविधानिक प्रावधान: अनुच्छेद 169: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 169 के तहत, किसी भी राज्य में विधान परिषद (Legislative Council) की स्थापना की जा सकती है। इसके अनुसार: स्थापना की प्रक्रिया: विधान परिषद की स्थापना के लिए, राज्य की विधानसभा द्वारा एक प्रस्ताव पारित किया जाना चाहिए। इस प्रस्ताव को संसद मेंRead more
संविधानिक प्रावधान:
अनुच्छेद 169:
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 169 के तहत, किसी भी राज्य में विधान परिषद (Legislative Council) की स्थापना की जा सकती है। इसके अनुसार:
स्थापना की प्रक्रिया: विधान परिषद की स्थापना के लिए, राज्य की विधानसभा द्वारा एक प्रस्ताव पारित किया जाना चाहिए। इस प्रस्ताव को संसद में भी मंजूरी प्राप्त करनी होती है।
संगठन और संरचना: विधान परिषद की संरचना और सदस्य संख्या राज्य के संविधान द्वारा निर्धारित की जाती है, और इसमें विभिन्न श्रेणियों के सदस्य होते हैं जैसे कि शिक्षाविद, विधायकों, और पेशेवर।
विधान परिषदों के कार्य:
विधायिका का समर्थन:
विधान परिषद का मुख्य कार्य राज्य विधान सभा की सहायता करना होता है। यह विधायिका के सदस्य बनते हैं और विधायी कार्यों में अनुभव और विशेषज्ञता प्रदान करते हैं।
विधायी प्रक्रिया में सुधार:
विधान परिषद विधेयकों पर विचार करने, संशोधन करने और समीक्षा करने का काम करती है। यह विधान सभा के निर्णयों को अधिक सुसंगत और संतुलित बनाती है।
विशेषज्ञता और सलाह:
इसमें विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ सदस्य होते हैं जो विधायिका को सलाह और सुझाव प्रदान करते हैं, जिससे कानूनों की गुणवत्ता में सुधार होता है।
उदाहरण:
बिहार विधान परिषद:
बिहार में विधान परिषद 1952 में स्थापित की गई थी और यह राज्य की विधायिका का एक महत्वपूर्ण अंग है। इसमें विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ सदस्य होते हैं जो विधायिका को समर्थन और सलाह प्रदान करते हैं।
कर्नाटक विधान परिषद:
कर्नाटक में विधान परिषद 1986 में पुनः स्थापित की गई थी। इसका काम राज्य की विधायिका के लिए महत्वपूर्ण सुझाव और निरीक्षण प्रदान करना है।
वर्तमान स्थिति और मूल्यांकन:
लाभ:
संतुलन और नियंत्रण:
विधान परिषद विधान सभा के कार्यों की समीक्षा करती है और इसमें शामिल विशेषज्ञता विधायिका को बेहतर निर्णय लेने में मदद करती है।
विधायिका की गुणवत्ता:
परिषद में अनुभवी और पेशेवर सदस्य होते हैं, जो विधायी प्रक्रिया में सुधार और अधिक पारदर्शिता लाने में सहायक होते हैं।
सीमाएँ:
अर्थशास्त्र:
कई लोगों का मानना है कि विधान परिषदें अनावश्यक और खर्चीली हैं, और इनकी उपस्थिति राज्य सरकार के संसाधनों पर बोझ डालती है।
राजनीतिक नियुक्तियाँ:
विधान परिषद में कई बार राजनीतिक नियुक्तियाँ होती हैं, जिससे इसकी निष्पक्षता और प्रभावशीलता पर सवाल उठते हैं।
वर्तमान स्थिति:
कुछ राज्यों में विधान परिषदें प्रभावी ढंग से कार्य कर रही हैं, जबकि अन्य में इसे समाप्त करने की माँग उठ रही है। विधान परिषद की उपयोगिता और संरचना पर विचार राज्य की प्रशासनिक प्राथमिकताओं और राजनीतिक परिदृश्य पर निर्भर करती है।
See lessइस प्रकार, संविधानिक प्रावधानों के अंतर्गत स्थापित विधान परिषदें विधायिका को सहारा प्रदान करती हैं और विधायी प्रक्रिया को अधिक संतुलित और गुणवत्ता युक्त बनाने में सहायक होती हैं।