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कॉविड-19 की स्थितिक के कारण उत्पन्न हुई नौकरियों पर संकट की स्थिति को निमंत्रित करने तथा राष्ट्र के विकास की गति को बनाए रखने के लिये विज्ञान और प्रौद्योगिकी क्या भूमिका निभा सकते हैं. इस पर विस्तार से चर्चा कीजिये। [65वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2019]
कोविड-19 संकट और रोजगार: विज्ञान और प्रौद्योगिकी की भूमिका कोविड-19 महामारी ने वैश्विक स्तर पर न केवल स्वास्थ्य संकट उत्पन्न किया, बल्कि आर्थिक गतिविधियों को भी बाधित किया। भारत में, महामारी के कारण करोड़ों लोग अपनी नौकरियाँ खो बैठे और राष्ट्रीय विकास की गति में काफी कमी आई। इस संकट के दौरान, विज्ञाRead more
कोविड-19 संकट और रोजगार: विज्ञान और प्रौद्योगिकी की भूमिका
कोविड-19 महामारी ने वैश्विक स्तर पर न केवल स्वास्थ्य संकट उत्पन्न किया, बल्कि आर्थिक गतिविधियों को भी बाधित किया। भारत में, महामारी के कारण करोड़ों लोग अपनी नौकरियाँ खो बैठे और राष्ट्रीय विकास की गति में काफी कमी आई। इस संकट के दौरान, विज्ञान और प्रौद्योगिकी ने न केवल महामारी से लड़ने में मदद की, बल्कि अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने, रोजगार सृजन, और विकास की गति को बनाए रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
1. स्वास्थ्य संकट का समाधान: साइंटिफिक और टेक्नोलॉजिकल इंटरवेंशन
(i) टीकाकरण अभियान
कोविड-19 के खिलाफ प्रभावी टीकों का विकास और वितरण इसके नियंत्रण में महत्वपूर्ण साबित हुआ। भारतीय विज्ञान संस्थानों ने Covaxin और Covishield जैसे टीकों को विकसित किया, जिनका वितरण त्वरित गति से किया गया। इसने न केवल महामारी को नियंत्रित किया, बल्कि आर्थिक गतिविधियों को फिर से शुरू करने के लिए सुरक्षा का माहौल प्रदान किया।
(ii) डिजिटल स्वास्थ्य सेवाएँ
विज्ञान और प्रौद्योगिकी ने टेलीमेडिसिन और डिजिटल हेल्थकेयर समाधानों के रूप में एक नया रास्ता खोला। कोविड-19 के दौरान, Telemedicine और E-health सेवाओं ने जनता को घर बैठे डॉक्टरों से परामर्श लेने की सुविधा प्रदान की।
2. ऑनलाइन शिक्षा और कौशल विकास
(i) ऑनलाइन शिक्षा प्लेटफॉर्म
कोविड-19 के कारण शैक्षिक संस्थान बंद हो गए थे, लेकिन विज्ञान और प्रौद्योगिकी ने online education platforms जैसे Byju’s, Unacademy, और Coursera के माध्यम से शिक्षा को बाधित नहीं होने दिया। इससे छात्रों का ज्ञानार्जन जारी रहा, और रोजगार के अवसरों के लिए आवश्यक कौशल विकास की प्रक्रिया भी जारी रही।
(ii) कौशल प्रशिक्षण और पुनः प्रशिक्षण
लॉकडाउन के दौरान कई कंपनियों और सरकारी संस्थाओं ने डिजिटल कौशल विकास पर ध्यान केंद्रित किया। इससे श्रमिकों को नए तकनीकी कौशल सीखने का अवसर मिला, जो उन्हें भविष्य के रोजगार के लिए तैयार करता है।
3. आर्थिक पुनर्निर्माण और रोजगार सृजन
(i) स्मार्ट और स्वचालित उत्पादन प्रणाली
विज्ञान और प्रौद्योगिकी के माध्यम से Automation, AI (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस), और IoT (इंटरनेट ऑफ थिंग्स) ने उद्योगों को कुशल और प्रतिस्पर्धी बनाया। महामारी के बाद इन तकनीकों ने उत्पादन प्रक्रिया को तेज किया और व्यवसायों को उनके संचालन को बहाल करने में मदद की।
(ii) वर्टिकल और दूरस्थ कार्य संस्कृति
महामारी के दौरान, कामकाजी जीवन में बदलाव आया। कई कंपनियों ने घर से काम करने की संस्कृति को अपनाया। इसमें cloud computing, digital collaboration tools, और AI ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके परिणामस्वरूप, कंपनियों ने अपनी कार्यशक्ति को फिर से व्यवस्थित किया, जिससे नौकरियों के नए अवसर उत्पन्न हुए।
4. माइक्रो, स्मॉल एंड मीडियम एंटरप्राइजेज (MSMEs) का समर्थन
(i) डिजिटल प्लेटफॉर्म पर MSME को बढ़ावा
MSMEs के लिए डिजिटल बाजारों की भूमिका महामारी के दौरान बढ़ गई। विज्ञान और प्रौद्योगिकी के माध्यम से, इन छोटे उद्योगों को ऑनलाइन प्लेटफार्मों जैसे Amazon, Flipkart, और IndiaMART पर व्यापार करने का अवसर मिला, जिससे उनकी पहुंच वैश्विक स्तर तक बढ़ी और नए रोजगार सृजित हुए।
(ii) वित्तीय समर्थन और बैंकिंग प्रौद्योगिकी
कोविड-19 के दौरान, MSMEs को ऋण सहायता प्रदान करने के लिए डिजिटल बैंकिंग प्लेटफार्मों का उपयोग किया गया। इसके माध्यम से, छोटे व्यापारों को सरल प्रक्रिया से पूंजी मिल सकी, जो उनके पुनर्निर्माण में सहायक थी।
निष्कर्ष
कोविड-19 महामारी ने यह स्पष्ट कर दिया कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में निवेश, न केवल स्वास्थ्य संकट से निपटने के लिए, बल्कि राष्ट्र के आर्थिक विकास और रोजगार सृजन के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। डिजिटल शिक्षा, ऑनलाइन कार्य, स्मार्ट उत्पादन, और वित्तीय सेवाओं ने इन क्षेत्रों में सकारात्मक बदलाव लाए हैं। आने वाले समय में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के इन प्रयासों को और सुदृढ़ करना भारत को आर्थिक विकास के मार्ग पर स्थिर रखेगा और रोजगार सृजन के नए अवसर प्रदान करेगा।
See lessबिहार लगातार बाढ़ तथा सूखे की प्राकृतिक आपदाओं का सामना करता रहता है। इन आपदाओं के पूर्वानुमान तथा प्रबंधन में, विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी की क्या भूमिका हो सकती है? अपने उत्तर को प्रायोगिक उदाहरणों द्वारा समझाइए। [65वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2019]
बिहार में बाढ़ और सूखे के प्रबंधन में विज्ञान और प्रौद्योगिकी की भूमिका बिहार में बाढ़ और सूखे जैसी प्राकृतिक आपदाएँ लगातार होती रहती हैं, जिससे राज्य की कृषि, अर्थव्यवस्था, और मानव जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। इन आपदाओं के पूर्वानुमान और प्रबंधन में विज्ञान और प्रौद्योगिकी की भूमिका अत्यंत महत्वपूRead more
बिहार में बाढ़ और सूखे के प्रबंधन में विज्ञान और प्रौद्योगिकी की भूमिका
बिहार में बाढ़ और सूखे जैसी प्राकृतिक आपदाएँ लगातार होती रहती हैं, जिससे राज्य की कृषि, अर्थव्यवस्था, और मानव जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। इन आपदाओं के पूर्वानुमान और प्रबंधन में विज्ञान और प्रौद्योगिकी की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी के सही उपयोग से न केवल आपदाओं के प्रभाव को कम किया जा सकता है, बल्कि इन आपदाओं से निपटने के लिए बेहतर योजनाएँ भी बनाई जा सकती हैं।
1. बाढ़ का पूर्वानुमान और प्रबंधन
(i) उपग्रह आधारित मौसम डेटा
(ii) नदी जलस्तर की निगरानी
(iii) बाढ़ पूर्वानुमान मॉडल
(iv) बाढ़ नियंत्रण उपाय
2. सूखा प्रबंधन में विज्ञान और प्रौद्योगिकी का योगदान
(i) जलवायु परिवर्तन का मॉनिटरिंग और भविष्यवाणी
(ii) कृषि प्रणाली और जलवायु आधारित खेती
(iii) भूजल पुनर्भरण तकनीक
(iv) मौसम आधारित चेतावनी प्रणाली
3. समग्र प्रबंधन और आपदा प्रतिक्रिया
(i) डेटा और सूचना प्रणाली
(ii) आपदा प्रतिक्रिया और पुनर्वास
निष्कर्ष
विज्ञान और प्रौद्योगिकी का सही उपयोग बिहार में बाढ़ और सूखा जैसी प्राकृतिक आपदाओं के पूर्वानुमान और प्रबंधन में अत्यंत प्रभावी हो सकता है। उपग्रह आधारित डेटा, स्मार्ट सेंसर, जलवायु परिवर्तन मॉनिटरिंग, और कृषि में विज्ञान आधारित उपायों के माध्यम से इन आपदाओं से निपटना संभव है। इसके अतिरिक्त, डेटा आधारित निर्णय लेने और आपदा प्रतिक्रिया प्रणालियों के निर्माण से आपदाओं के प्रबंधन में सुधार किया जा सकता है।
See lessवर्तमान परिदृश्य में, देश के प्रमुख मुद्दे हैं: "बढ़ती हुई जनसंख्या, उच्च स्वास्थ्य जोखिम, घटते हुए प्राकृतिक संसाधन और घटती जा रही कृषि भूमि"। इन चारों क्षेत्रों में से प्रत्येक के लिये कम-से-कम चार वैज्ञानिक प्रयासों की चर्चा कोजिये, जिन्हें आप लागू करना चाहेंगे। [65वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2019]
वर्तमान परिदृश्य में प्रमुख मुद्दों के समाधान हेतु वैज्ञानिक प्रयास वर्तमान परिदृश्य में भारत को चार प्रमुख चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है: बढ़ती जनसंख्या, उच्च स्वास्थ्य जोखिम, घटते प्राकृतिक संसाधन, और घटती कृषि भूमि। इन समस्याओं के समाधान के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर आधारित प्रयास किए जाRead more
वर्तमान परिदृश्य में प्रमुख मुद्दों के समाधान हेतु वैज्ञानिक प्रयास
वर्तमान परिदृश्य में भारत को चार प्रमुख चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है: बढ़ती जनसंख्या, उच्च स्वास्थ्य जोखिम, घटते प्राकृतिक संसाधन, और घटती कृषि भूमि। इन समस्याओं के समाधान के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर आधारित प्रयास किए जा सकते हैं।
1. बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए वैज्ञानिक प्रयास
(i) परिवार नियोजन में तकनीकी सुधार
(ii) प्रजनन स्वास्थ्य में अनुसंधान
(iii) जनसंख्या डेटा प्रबंधन
(iv) महिला शिक्षा और सशक्तिकरण
2. उच्च स्वास्थ्य जोखिम के लिए वैज्ञानिक प्रयास
(i) वायरोलॉजी और वैक्सीन अनुसंधान
(ii) स्वास्थ्य निगरानी तकनीक
(iii) डिजिटल स्वास्थ्य उपकरण
(iv) एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध (AMR) का समाधान
3. घटते हुए प्राकृतिक संसाधनों के लिए वैज्ञानिक प्रयास
(i) नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग
(ii) जल संरक्षण तकनीक
(iii) अपशिष्ट प्रबंधन
(iv) वनीकरण
4. घटती कृषि भूमि के लिए वैज्ञानिक प्रयास
(i) उन्नत बीज और जैव प्रौद्योगिकी
(ii) सटीक कृषि (Precision Agriculture)
(iii) ऊर्ध्वाधर खेती (Vertical Farming)
(iv) स्मार्ट सिंचाई तकनीक
निष्कर्ष
इन चार क्षेत्रों में वैज्ञानिक प्रयास न केवल भारत की चुनौतियों को हल करने में मदद करेंगे, बल्कि सतत विकास के लक्ष्यों (SDGs) को प्राप्त करने में भी सहायक होंगे। विज्ञान और प्रौद्योगिकी का कुशल उपयोग इन समस्याओं को स्थायी समाधान प्रदान कर सकता है।
See lessभारत में, 'मेक इन इंडिया' मोदी सरकार द्वारा शुरू किया गया एक प्रकार का स्वदेशी आंदोलन है। इस आंदोलन को गति देने के लिये विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की भूमिका की सोदाहरण विस्तार से विवेचना कीजिये। [65वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2019]
भारत में 'मेक इन इंडिया' और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की भूमिका 'मेक इन इंडिया' प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 25 सितंबर 2014 को शुरू किया गया एक महत्वाकांक्षी अभियान है। इसका उद्देश्य भारत को वैश्विक विनिर्माण केंद्र में बदलना, रोजगार के अवसर बढ़ाना, और स्वदेशी उद्योगों को सशक्त करना है। इस अभियानRead more
भारत में ‘मेक इन इंडिया’ और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की भूमिका
‘मेक इन इंडिया’ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 25 सितंबर 2014 को शुरू किया गया एक महत्वाकांक्षी अभियान है। इसका उद्देश्य भारत को वैश्विक विनिर्माण केंद्र में बदलना, रोजगार के अवसर बढ़ाना, और स्वदेशी उद्योगों को सशक्त करना है। इस अभियान को सफल बनाने में विज्ञान और प्रौद्योगिकी एक प्रमुख भूमिका निभाते हैं।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की भूमिका
1. उत्पादन में नवाचार (Innovation in Manufacturing)
2. रक्षा और अंतरिक्ष क्षेत्र में आत्मनिर्भरता
3. सूचना प्रौद्योगिकी और डिजिटलीकरण
4. स्वदेशी नवाचार और अनुसंधान
5. सतत विकास के लिए तकनीक
मेक इन इंडिया: विज्ञान और प्रौद्योगिकी से संबंधित सफलता के उदाहरण
मेक इन इंडिया को गति देने के लिए भविष्य की दिशा
1. अनुसंधान एवं विकास में निवेश
2. उद्योग और विज्ञान का समन्वय
3. डिजिटलीकरण और कौशल विकास
4. नवाचार और स्टार्टअप्स को बढ़ावा
निष्कर्ष
‘मेक इन इंडिया’ के तहत विज्ञान और प्रौद्योगिकी की भूमिका भारत को वैश्विक प्रतिस्पर्धा में खड़ा करने के लिए महत्वपूर्ण है। स्वदेशी उत्पादन, नवाचार, और सतत विकास के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी के उचित उपयोग से यह अभियान सफल हो सकता है।
See lessबिहार के तीव्र आर्थिक विकास में मुख्य बाधाएँ क्या है? इन बाधाओं को किस प्रकार दूर किया जा सकता है? [65वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2019]
बिहार के तीव्र आर्थिक विकास में मुख्य बाधाएँ बिहार देश के तेजी से उभरते राज्यों में से एक है, लेकिन इसके तीव्र आर्थिक विकास में अनेक बाधाएँ हैं। ये बाधाएँ संरचनात्मक, सामाजिक और आर्थिक प्रकृति की हैं। 1. अविकसित बुनियादी ढाँचा सड़क और परिवहन: बिहार में ग्रामीण सड़कों और परिवहन व्यवस्था की कमी है। विRead more
बिहार के तीव्र आर्थिक विकास में मुख्य बाधाएँ
बिहार देश के तेजी से उभरते राज्यों में से एक है, लेकिन इसके तीव्र आर्थिक विकास में अनेक बाधाएँ हैं। ये बाधाएँ संरचनात्मक, सामाजिक और आर्थिक प्रकृति की हैं।
1. अविकसित बुनियादी ढाँचा
2. कृषि क्षेत्र की चुनौतियाँ
3. औद्योगिकीकरण की कमी
4. श्रमिक प्रवास
5. शिक्षा और स्वास्थ्य की कमी
इन बाधाओं को दूर करने के उपाय
1. बुनियादी ढाँचे का विकास
2. कृषि क्षेत्र का आधुनिकीकरण
3. औद्योगिकीकरण और निवेश
4. श्रमिक प्रवास को रोकना
5. शिक्षा और स्वास्थ्य का सुधार
निष्कर्ष
बिहार की आर्थिक प्रगति के लिए संरचनात्मक बाधाओं को दूर करना अत्यंत आवश्यक है। कृषि, उद्योग, शिक्षा, और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में सुधार से राज्य के आर्थिक विकास को गति दी जा सकती है। “सबका साथ, सबका विकास” के सिद्धांत पर आधारित नीतियाँ बिहार को विकास के पथ पर अग्रसर कर सकती हैं।
See lessसूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उपक्रमों की नई परिभाषा बताइये। भारत में औद्योगिक वृद्धि की गति को तीव्र करने व आत्मनिर्भर भारत अभियान की सफलता को सुनिश्चित करने में इन उपक्रमों की भूमिका का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये। [65वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2019]
सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उपक्रम (MSME): भारत सरकार ने आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत सूक्ष्म, लघु और मध्यम उपक्रमों (MSMEs) की परिभाषा को संशोधित किया। यह संशोधन उद्योगों को प्रोत्साहन देने और उनकी बाधाओं को कम करने के लिए किया गया। नई परिभाषा (1 जुलाई 2020 से लागू) श्रेणी निवेश (Investment) वार्षिक टरRead more
सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उपक्रम (MSME):
भारत सरकार ने आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत सूक्ष्म, लघु और मध्यम उपक्रमों (MSMEs) की परिभाषा को संशोधित किया। यह संशोधन उद्योगों को प्रोत्साहन देने और उनकी बाधाओं को कम करने के लिए किया गया।
नई परिभाषा (1 जुलाई 2020 से लागू)
MSME की भारत में औद्योगिक वृद्धि और आत्मनिर्भर भारत अभियान में भूमिका
1. औद्योगिक वृद्धि को प्रोत्साहन
MSMEs देश के कुल उत्पादन का 30% और कुल निर्यात का लगभग 48% योगदान करती हैं। ये 11 करोड़ से अधिक लोगों को रोजगार देती हैं।
MSMEs क्षेत्र में स्टार्टअप्स और नवाचार को बढ़ावा देकर औद्योगिक विकास में योगदान करते हैं।
2. आत्मनिर्भर भारत अभियान में योगदान
MSMEs स्थानीय उत्पादों के विकास और आयात पर निर्भरता कम करने में मदद करती हैं।
आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत MSMEs को वैश्विक बाजार से जोड़ने के लिए कई नीतियाँ बनाई गईं।
3. MSME क्षेत्र की चुनौतियाँ
MSMEs में आधुनिक तकनीक और मशीनीकरण की कमी के कारण उनकी प्रतिस्पर्धा घटती है।
ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में MSMEs की नीतियों का प्रभाव असमान है।
आत्मनिर्भर भारत अभियान में MSMEs को सशक्त करने के उपाय
आलोचनात्मक मूल्यांकन
MSMEs आत्मनिर्भर भारत अभियान की रीढ़ हैं। यह क्षेत्र रोजगार और नवाचार के माध्यम से समग्र आर्थिक विकास को गति देता है।
MSMEs को संरचनात्मक और वित्तीय बाधाओं का सामना करना पड़ता है। नीतियों के क्रियान्वयन में धीमापन उनके विकास को बाधित करता है।
निष्कर्ष
MSMEs भारत के औद्योगिक और आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। आत्मनिर्भर भारत अभियान में उनकी सफलता सुनिश्चित करने के लिए, वित्तीय सहायता, तकनीकी उन्नयन, और बाजार पहुँच में सुधार पर ध्यान देना आवश्यक है। यह क्षेत्र भारत को एक मजबूत और आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
See lessभारत में आर्थिक सुधारों के बाद के काल में आर्थिक नियोजन की प्रासंगिकता की विवेचना कीजिये। इस संदर्भ में समझाइए कि किस प्रकार राज्य और बाजार देश के आर्थिक विकास में एक सकारात्मक भूमिका निबाह सकते हैं। [65वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2019]
आर्थिक सुधारों के बाद आर्थिक नियोजन की प्रासंगिकता भारत में 1991 के आर्थिक सुधारों के बाद नियोजन के स्वरूप में व्यापक बदलाव आया। उदारीकरण, निजीकरण, और वैश्वीकरण की नीतियों ने राज्य-केंद्रित नियोजन की पारंपरिक अवधारणा को चुनौती दी। इसके बावजूद, आर्थिक नियोजन ने विकास के मार्गदर्शन और संतुलन बनाए रखनेRead more
आर्थिक सुधारों के बाद आर्थिक नियोजन की प्रासंगिकता
भारत में 1991 के आर्थिक सुधारों के बाद नियोजन के स्वरूप में व्यापक बदलाव आया। उदारीकरण, निजीकरण, और वैश्वीकरण की नीतियों ने राज्य-केंद्रित नियोजन की पारंपरिक अवधारणा को चुनौती दी। इसके बावजूद, आर्थिक नियोजन ने विकास के मार्गदर्शन और संतुलन बनाए रखने में अपनी प्रासंगिकता बनाए रखी है।
आर्थिक सुधारों के बाद नियोजन की प्रासंगिकता
राज्य और बाजार की सकारात्मक भूमिका
1. राज्य की भूमिका
2. बाजार की भूमिका
राज्य और बाजार का सहयोग: एक सकारात्मक दृष्टिकोण
1. पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP):
2. नीति निर्माण और कार्यान्वयन:
3. सामाजिक न्याय और समावेशन:
निष्कर्ष
आर्थिक सुधारों के बाद, आर्थिक नियोजन की प्रकृति भले ही बदल गई हो, लेकिन इसकी प्रासंगिकता बनी रही। राज्य और बाजार के बीच संतुलन बनाए रखने से आर्थिक विकास और समावेशी वृद्धि को बढ़ावा दिया जा सकता है। राज्य का मार्गदर्शन और बाजार की दक्षता साथ मिलकर भारत को आत्मनिर्भर और सतत विकासशील बना सकते हैं।
See lessभारतीय कृषि में 1991 से संवृद्धि एवं उत्पादकता की प्रवृत्तियों की व्याख्या कीजिये। बिहार में कृषि उत्पादन और उसकी उत्पादकता को बढ़ाने के लिये क्या व्यावहारिक उपाय किये जाने चाहिये। [65वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2019]
भारतीय कृषि में 1991 से संवृद्धि एवं उत्पादकता की प्रवृत्तियाँ भारत में 1991 में आर्थिक उदारीकरण के बाद कृषि क्षेत्र ने कई बदलाव देखे। यह परिवर्तन वैश्विक व्यापार, तकनीकी उन्नति, और नीतिगत सुधारों का परिणाम था। 1. संवृद्धि की प्रवृत्तियाँ हरित क्रांति के प्रभाव का विस्तार: हरित क्रांति के बाद से कृषRead more
भारतीय कृषि में 1991 से संवृद्धि एवं उत्पादकता की प्रवृत्तियाँ
भारत में 1991 में आर्थिक उदारीकरण के बाद कृषि क्षेत्र ने कई बदलाव देखे। यह परिवर्तन वैश्विक व्यापार, तकनीकी उन्नति, और नीतिगत सुधारों का परिणाम था।
1. संवृद्धि की प्रवृत्तियाँ
2. उत्पादकता की प्रवृत्तियाँ
बिहार में कृषि उत्पादन और उत्पादकता की स्थिति
1. वर्तमान स्थिति
2. चुनौतियाँ
बिहार में कृषि सुधार के व्यावहारिक उपाय
1. सिंचाई का विकास
2. मशीनीकरण और तकनीकी उन्नति
3. भंडारण और विपणन सुधार
4. फसल विविधीकरण
5. सहकारिता और क्रेडिट सुधार
निष्कर्ष
1991 के बाद भारतीय कृषि ने संवृद्धि और उत्पादकता में सुधार देखा, लेकिन क्षेत्रीय असमानताएँ बनी रहीं। बिहार में कृषि क्षेत्र की प्रगति के लिए तकनीकी उन्नति, सिंचाई, और विपणन सुधारों पर ध्यान केंद्रित करना आवश्यक है। इन सुधारों से कृषि को अधिक उत्पादक और लाभदायक बनाया जा सकता है, जिससे राज्य की आर्थिक स्थिति में सुधार होगा।
See lessई-शासन से आप क्य समझते हैं? ई-शासन को लागू करने में बिहार की स्थिति का वर्णन कीजिये। [65वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2019]
ई-शासन: ई-शासन (E-Governance) का तात्पर्य है, सरकार की प्रक्रियाओं और सेवाओं को सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT) के माध्यम से नागरिकों, व्यवसायों, और अन्य सरकारी एजेंसियों तक पहुँचाना। इसका उद्देश्य प्रशासन को अधिक पारदर्शी, प्रभावी, और जवाबदेह बनाना है। ई-शासन के मुख्य उद्देश्य: सरकारी सेवाओं की तRead more
ई-शासन:
ई-शासन (E-Governance) का तात्पर्य है, सरकार की प्रक्रियाओं और सेवाओं को सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT) के माध्यम से नागरिकों, व्यवसायों, और अन्य सरकारी एजेंसियों तक पहुँचाना। इसका उद्देश्य प्रशासन को अधिक पारदर्शी, प्रभावी, और जवाबदेह बनाना है।
ई-शासन के मुख्य उद्देश्य:
बिहार में ई-शासन: एक विश्लेषण
बिहार जैसे विकासशील राज्य में ई-शासन की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। हाल के वर्षों में, बिहार सरकार ने ई-शासन को बढ़ावा देने के लिए कई पहलों को लागू किया है, लेकिन इस दिशा में कई चुनौतियाँ भी हैं।
1. ई-शासन की प्रमुख पहलें:
2. ई-शासन में बिहार की स्थिति:
ई-शासन की चुनौतियों से निपटने के सुझाव
निष्कर्ष
बिहार में ई-शासन ने प्रशासन को नागरिकों के करीब लाने में मदद की है, लेकिन इसकी प्रभावशीलता को बढ़ाने के लिए संरचनात्मक सुधार और डिजिटल बुनियादी ढाँचे पर ध्यान देने की आवश्यकता है। यदि चुनौतियों का समाधान किया जाए, तो ई-शासन बिहार की प्रशासनिक दक्षता को नई ऊँचाईयों तक ले जा सकता है।
See less"भारतीय राजनीतिक दलीय व्यवस्था राष्ट्रोन्मुखी न होकर व्यक्ति उन्मुखी है।" इस तथ्य को बिहार राज्य के परिप्रेक्ष्य में स्पष्ट कीजिये। [65वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2019]
भारतीय राजनीतिक दलों की कार्यप्रणाली पर व्यक्ति-उन्मुखता का आरोप लंबे समय से लगाया जाता रहा है। बिहार की राजनीति इस समस्या का विशिष्ट उदाहरण प्रस्तुत करती है, जहाँ व्यक्ति-उन्मुखी नेतृत्व और परिवारवाद व्यापक रूप से प्रभावी हैं। बिहार में राजनीतिक दलीय व्यवस्था की व्यक्ति-उन्मुखी प्रवृत्ति वंशवाद औरRead more
भारतीय राजनीतिक दलों की कार्यप्रणाली पर व्यक्ति-उन्मुखता का आरोप लंबे समय से लगाया जाता रहा है। बिहार की राजनीति इस समस्या का विशिष्ट उदाहरण प्रस्तुत करती है, जहाँ व्यक्ति-उन्मुखी नेतृत्व और परिवारवाद व्यापक रूप से प्रभावी हैं।
बिहार में राजनीतिक दलीय व्यवस्था की व्यक्ति-उन्मुखी प्रवृत्ति
इसके परिणाम
समाधान और संभावनाएँ
निष्कर्ष
बिहार में राजनीतिक दलीय व्यवस्था का व्यक्ति-उन्मुखी होना लोकतांत्रिक सिद्धांतों के लिए चुनौती है। हालांकि, इसके समाधान के लिए संस्थागत सुधार, जनता की जागरूकता, और दलीय संरचना का लोकतंत्रीकरण आवश्यक है। यह न केवल बिहार बल्कि समग्र भारतीय राजनीति को भी राष्ट्रोन्मुखी बनाने में सहायक होगा
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