भारत में संवैधानिक शासन को संरक्षित करने के लिए राज्यपाल के पद को रूपांतरित करने की आवश्यकता है। राज्यपाल के पद से जुड़े हालिया विवादों के आलोक में विवेचना कीजिए। (150 शब्दों में उत्तर दीजिए)
पृथक्करणीयता (Separation of Powers) का सिद्धांत एक संविधानिक सिद्धांत है जो सरकारी शक्तियों के विभाजन को सुनिश्चित करता है। इसका उद्देश्य सरकार के तीन मुख्य अंगों—विधायिका, कार्यपालिका, और न्यायपालिका—के बीच शक्ति का संतुलन बनाए रखना है, ताकि कोई एक अंग अधिक शक्तिशाली न हो जाए और सरकार की गतिविधियोंRead more
पृथक्करणीयता (Separation of Powers) का सिद्धांत एक संविधानिक सिद्धांत है जो सरकारी शक्तियों के विभाजन को सुनिश्चित करता है। इसका उद्देश्य सरकार के तीन मुख्य अंगों—विधायिका, कार्यपालिका, और न्यायपालिका—के बीच शक्ति का संतुलन बनाए रखना है, ताकि कोई एक अंग अधिक शक्तिशाली न हो जाए और सरकार की गतिविधियों पर प्रभावी निगरानी रखी जा सके।
प्रासंगिक न्यायिक निर्णयों:
- “Indira Nehru Gandhi v. Raj Narain (1975)” में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने पृथक्करणीयता के सिद्धांत को स्वीकार किया और यह माना कि लोकतांत्रिक संस्थाओं के बीच शक्ति का संतुलन बनाए रखना अनिवार्य है।
- “Kesavananda Bharati v. State of Kerala (1973)” में, अदालत ने यह स्पष्ट किया कि संविधान के मूल ढांचे का एक हिस्सा पृथक्करणीयता है, जिसे संशोधित नहीं किया जा सकता।
ये निर्णय सिद्धांत को समर्थन देते हैं और सुनिश्चित करते हैं कि भारतीय लोकतंत्र में विभिन्न सरकारी अंग स्वतंत्र और प्रभावी रूप से कार्य करें।
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भारत में राज्यपाल के पद से जुड़े हालिया विवादों के आलोक में, संवैधानिक शासन को संरक्षित करने के लिए इस पद के रूपांतर की आवश्यकता पर चर्चा की जा रही है। राज्यपाल का पद संघ और राज्यों के बीच संवैधानिक संतुलन बनाए रखने के लिए स्थापित किया गया था, लेकिन हाल के वर्षों में यह पद राजनीति में विवाद का केंद्Read more
भारत में राज्यपाल के पद से जुड़े हालिया विवादों के आलोक में, संवैधानिक शासन को संरक्षित करने के लिए इस पद के रूपांतर की आवश्यकता पर चर्चा की जा रही है।
राज्यपाल का पद संघ और राज्यों के बीच संवैधानिक संतुलन बनाए रखने के लिए स्थापित किया गया था, लेकिन हाल के वर्षों में यह पद राजनीति में विवाद का केंद्र बन गया है। राज्यपाल अक्सर राज्य सरकारों के साथ संघर्षों में शामिल होते हैं, जैसे कि सरकार बनाने के आदेश, पदस्थापनाओं में हस्तक्षेप, और नीति संबंधी विवाद।
उदाहरण: हाल के विवादों में, राज्यपालों के द्वारा राज्य सरकारों को विधायी कार्यों में हस्तक्षेप, जैसे कि विधानसभा सत्रों को स्थगित करना या सदन को बुलाने में देरी, ने आलोचनाएँ उत्पन्न की हैं।
इस स्थिति को सुधारने के लिए, राज्यपाल के चयन प्रक्रिया में सुधार, उनके कार्यों पर निगरानी तंत्र की स्थापना, और उनकी शक्तियों को सीमित करने के लिए संवैधानिक संशोधनों की आवश्यकता है। इससे यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि राज्यपाल का पद संवैधानिक रूप से और निष्पक्षता से कार्य करे, और राज्यों की स्वायत्तता की रक्षा हो सके।
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