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डिजिटल कृषि अर्थव्यवस्था की क्षमता को साकार करने में आने वाली चुनौतियों को रेखांकित कीजिए। इस संबंध में सार्वजनिक- निजी भागीदारी (PPP) की भूमिका पर चर्चा कीजिए। (250 शब्दों में उत्तर दें)
डिजिटल कृषि अर्थव्यवस्था की क्षमता को साकार करने में आने वाली चुनौतियाँ: डिजिटल बुनियादी ढाँचा: ग्रामीण और दूरदराज के इलाकों में उचित इंटरनेट कनेक्टिविटी और डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी एक बड़ी चुनौती है। इससे डिजिटल उपकरणों और सेवाओं की पहुँच और उपयोग में बाधाएँ आती हैं। तकनीकी साक्षरता: किसानों कRead more
डिजिटल कृषि अर्थव्यवस्था की क्षमता को साकार करने में आने वाली चुनौतियाँ:
डिजिटल बुनियादी ढाँचा: ग्रामीण और दूरदराज के इलाकों में उचित इंटरनेट कनेक्टिविटी और डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी एक बड़ी चुनौती है। इससे डिजिटल उपकरणों और सेवाओं की पहुँच और उपयोग में बाधाएँ आती हैं।
तकनीकी साक्षरता: किसानों की तकनीकी साक्षरता का स्तर कम है, जिससे वे डिजिटल कृषि समाधानों का सही उपयोग नहीं कर पाते। इसके लिए प्रशिक्षण और जागरूकता अभियानों की आवश्यकता है।
डिजिटल विभाजन: तकनीकी संसाधनों की असमान वितरण और डिजिटल विभाजन से छोटे और सीमांत किसानों को डिजिटल कृषि के लाभों से वंचित रहना पड़ता है।
सुरक्षा और गोपनीयता: डेटा सुरक्षा और गोपनीयता के मुद्दे डिजिटल कृषि समाधानों के लिए चिंता का विषय हैं। किसानों की व्यक्तिगत और वित्तीय जानकारी की सुरक्षा सुनिश्चित करना आवश्यक है।
वित्तीय और तकनीकी समर्थन: डिजिटल कृषि समाधानों को अपनाने के लिए वित्तीय सहायता और तकनीकी समर्थन की कमी भी एक बाधा है।
सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) की भूमिका:
संवर्धन और विस्तार: सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल के माध्यम से डिजिटल कृषि परियोजनाओं का संवर्धन और विस्तार किया जा सकता है। निजी क्षेत्र के निवेश और तकनीकी विशेषज्ञता के साथ, सरकारी प्रयासों को सहयोग और समर्थन मिलता है।
प्रशिक्षण और जागरूकता: PPP मॉडल के तहत, निजी कंपनियाँ प्रशिक्षण कार्यक्रम और जागरूकता अभियानों का संचालन कर सकती हैं, जिससे किसानों को डिजिटल उपकरणों और सेवाओं के लाभ समझ में आ सकें और उनका उपयोग बढ़ सके।
बुनियादी ढाँचा सुधार: सरकारी और निजी कंपनियों के संयुक्त प्रयासों से ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल बुनियादी ढाँचा सुधारा जा सकता है, जैसे कि उच्च गति इंटरनेट और मोबाइल कनेक्टिविटी की उपलब्धता बढ़ाई जा सकती है।
नवाचार और समाधान: PPP के माध्यम से नई तकनीकों और नवाचारों का विकास और कार्यान्वयन किया जा सकता है, जो किसानों की जरूरतों को बेहतर ढंग से पूरा कर सकते हैं।
वित्तीय सहायता: सार्वजनिक-निजी भागीदारी से वित्तीय सहायता प्राप्त की जा सकती है, जिससे डिजिटल कृषि उपकरणों और सेवाओं की लागत कम की जा सकती है और किसानों को वित्तीय रूप से समर्थन प्राप्त हो सकता है।
इन प्रयासों से डिजिटल कृषि की क्षमता को साकार किया जा सकता है, जिससे कृषि क्षेत्र को आधुनिक तकनीक से लाभ मिलेगा और किसानों की उत्पादकता और आय में सुधार होगा।
See lessफसल कटाई के बाद की मूल्य श्रृंखला में अक्षमता के कारण लघु और सीमांत किसानों की आजीविका पर अत्यधिक प्रतिकूल प्रभाव पड़ने के साथ-साथ फसल की हानि हो रही है। भारत के संदर्भ में चर्चा कीजिए। इन चिंताओं को दूर करने के लिए सरकार ने क्या कदम उठाए हैं? (250 शब्दों में उत्तर दें)
फसल कटाई के बाद की मूल्य श्रृंखला में अक्षमता और इसके प्रभाव: फसल कटाई के बाद की मूल्य श्रृंखला में अक्षमता, जैसे कि अपारदर्शी आपूर्ति श्रृंखलाएँ, भंडारण की कमी, और परिवहन की समस्याएँ, भारतीय लघु और सीमांत किसानों की आजीविका पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं। इस स्थिति के कारण फसलों की गुणवत्ता में गिरावRead more
फसल कटाई के बाद की मूल्य श्रृंखला में अक्षमता और इसके प्रभाव:
फसल कटाई के बाद की मूल्य श्रृंखला में अक्षमता, जैसे कि अपारदर्शी आपूर्ति श्रृंखलाएँ, भंडारण की कमी, और परिवहन की समस्याएँ, भारतीय लघु और सीमांत किसानों की आजीविका पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं। इस स्थिति के कारण फसलों की गुणवत्ता में गिरावट आती है, नुकसान बढ़ता है, और मूल्य में कमी होती है, जिससे किसानों को आर्थिक नुकसान होता है और फसल की हानि होती है। इन समस्याओं के कारण किसानों को उचित मूल्य नहीं मिल पाता, जिससे उनकी आजीविका प्रभावित होती है।
सरकारी कदम:
प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY): यह योजना फसल कटाई के बाद के नुकसान को कम करने के लिए एकीकृत सिंचाई प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करती है, जिससे फसलों की सिंचाई और भंडारण के लिए आवश्यक संसाधन उपलब्ध हो सकें।
कृषि उत्पाद बाजार समिति (APMC) सुधार: सरकार ने APMC एक्ट में सुधार की दिशा में कदम बढ़ाया है ताकि किसानों को अधिक प्रतिस्पर्धी और पारदर्शी बाजार मूल्य प्राप्त हो सके और बिचौलियों की भूमिका कम हो सके।
फसल कटाई के बाद प्रबंधन की योजना: ‘फसल कटाई के बाद प्रबंधन’ पर ध्यान केंद्रित करने के लिए विभिन्न योजनाएँ चलायी जा रही हैं, जैसे कि कोल्ड स्टोरेज और प्रसेसिंग यूनिट्स की स्थापना, जिससे फसल की गुणवत्ता बनाए रखी जा सके और भंडारण की समस्याओं को सुलझाया जा सके।
कृषि-प्रोसेसिंग इंफ्रास्ट्रक्चर: सरकार ने कृषि-प्रोसेसिंग और इनक्लूसिव फार्मिंग पर ध्यान देने के लिए कई योजनाएँ शुरू की हैं, जैसे कि ‘प्रसंस्करण और संरक्षण’ परियोजनाएँ। इन परियोजनाओं का उद्देश्य किसानों को बेहतर मूल्य श्रृंखला और मूल्य वर्धन के अवसर प्रदान करना है।
ई-नम (E-NAM): ई-नम एक ऑनलाइन मार्केटिंग प्लेटफॉर्म है जो किसानों को राष्ट्रीय स्तर पर अपनी फसलें बेचने की सुविधा प्रदान करता है, जिससे उन्हें बेहतर कीमत मिल सके और बाजार की विसंगतियों को दूर किया जा सके।
इन प्रयासों से सरकार का उद्देश्य फसल कटाई के बाद के नुकसान को कम करना, किसानों को उचित मूल्य प्राप्त करना, और समग्र कृषि उत्पादन को स्थिर और सशक्त बनाना है। यह रणनीतियाँ किसानों की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ करने और फसल की हानि को कम करने में सहायक हो रही हैं।
See lessदुनिया के सबसे बड़े रेलवे नेटवकों में से एक होने के बावजूद, भारतीय ट्रेनों की गति विकसित देशों की तुलना में कम है। इसके लिए उत्तरदायी कारणों को स्पष्ट कीजिए तथा इस संबंध में सरकार द्वारा उठाए जा रहे कदमों का उल्लेख कीजिए। (250 शब्दों में उत्तर दें)
भारतीय ट्रेनों की धीमी गति के कारण: पुराना इंफ्रास्ट्रक्चर: भारतीय रेलवे का इन्फ्रास्ट्रक्चर, जिसमें पटरियाँ, सिग्नलिंग सिस्टम और ट्रेनों के कोच शामिल हैं, कई दशकों पुराना है। इसे आधुनिक मानकों के अनुरूप अपडेट करने में समय और धन की आवश्यकता होती है। सिग्नलिंग और ट्रैक की स्थिति: सिग्नलिंग सिस्टम पुरRead more
भारतीय ट्रेनों की धीमी गति के कारण:
पुराना इंफ्रास्ट्रक्चर: भारतीय रेलवे का इन्फ्रास्ट्रक्चर, जिसमें पटरियाँ, सिग्नलिंग सिस्टम और ट्रेनों के कोच शामिल हैं, कई दशकों पुराना है। इसे आधुनिक मानकों के अनुरूप अपडेट करने में समय और धन की आवश्यकता होती है।
सिग्नलिंग और ट्रैक की स्थिति: सिग्नलिंग सिस्टम पुराना और ट्रैक की स्थिति कई स्थानों पर असमर्थनीय है, जिससे ट्रेनों की गति को नियंत्रित करना पड़ता है। पुराने सिग्नलिंग सिस्टम और ट्रैक की मरम्मत की कमी ट्रेनों की गति को प्रभावित करती है।
रेलवे क्रॉसिंग: रेलवे क्रॉसिंग और अतिक्रमणों की समस्या ट्रेनों की गति में बाधक बनती है। ये समस्याएं सुरक्षा के लिहाज से भी चुनौतीपूर्ण होती हैं।
सुरक्षा और यातायात प्रबंधन: उच्च गति ट्रेनों के लिए सख्त सुरक्षा मानकों और सुव्यवस्थित यातायात प्रबंधन की आवश्यकता होती है, जिसे वर्तमान प्रणाली पूरी तरह से संभाल नहीं पाती।
सरकारी कदम:
डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर: भारत सरकार ने पूर्वी और पश्चिमी डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर का निर्माण शुरू किया है। ये कॉरिडोर विशेष रूप से माल ढुलाई के लिए डिज़ाइन किए गए हैं, जिससे यात्री ट्रेनों की गति बढ़ सके।
उच्च गति रेल परियोजनाएँ: ‘बुलेट ट्रेन’ परियोजना, जैसे कि मुंबई-अहमदाबाद हाई-स्पीड रेल कॉरिडोर, भारत में उच्च गति रेल नेटवर्क का निर्माण कर रही है। यह परियोजना भारतीय रेलवे को नई गति मानकों के साथ जोड़ने का प्रयास है।
सिग्नलिंग और ट्रैक उन्नयन: भारतीय रेलवे ने सिग्नलिंग सिस्टम को आधुनिक बनाने और ट्रैक को अपग्रेड करने के लिए कई योजनाएँ शुरू की हैं। इसमें इलेक्ट्रॉनिक सिग्नलिंग और उच्च गुणवत्ता वाले ट्रैक निर्माण शामिल है।
फास्ट ट्रैक मरम्मत और मेंटेनेंस: ट्रैक और इंफ्रास्ट्रक्चर की नियमित मरम्मत और रखरखाव के लिए फास्ट ट्रैक प्रक्रियाओं को लागू किया जा रहा है, जिससे दुर्घटनाओं और रुकावटों की संभावना कम हो सके।
ये उपाय भारतीय रेलवे की गति और दक्षता को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं, और विकसित देशों के मानकों के साथ सामंजस्य स्थापित करने में सहायक हो सकते हैं।
See lessभारत में समावेशी विकास और निर्धनता उन्मूलन के लिए भूमि तक पहुंच और उस पर प्रभावी नियंत्रण महत्वपूर्ण हैं। सविस्तार वर्णन कीजिए। साथ ही, समावेशी विकास सुनिश्चित करने के लिए हाल के दिनों में भारत में अपनाए गए भूमि सुधार उपायों पर भी चर्चा कीजिए। (250 शब्दों में उत्तर दें)
भूमि तक पहुंच और प्रभावी नियंत्रण का महत्व: भारत में समावेशी विकास और निर्धनता उन्मूलन के लिए भूमि तक पहुंच और प्रभावी नियंत्रण अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। भूमि संसाधन न केवल कृषि के लिए आवश्यक हैं बल्कि आवास, उद्योग और अन्य विकासात्मक गतिविधियों के लिए भी जरूरी हैं। निर्धन परिवारों और वंचित समुदायों केRead more
भूमि तक पहुंच और प्रभावी नियंत्रण का महत्व:
भारत में समावेशी विकास और निर्धनता उन्मूलन के लिए भूमि तक पहुंच और प्रभावी नियंत्रण अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। भूमि संसाधन न केवल कृषि के लिए आवश्यक हैं बल्कि आवास, उद्योग और अन्य विकासात्मक गतिविधियों के लिए भी जरूरी हैं। निर्धन परिवारों और वंचित समुदायों के लिए भूमि की उपलब्धता और नियंत्रण न केवल उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार करता है बल्कि सामाजिक न्याय भी सुनिश्चित करता है। भूमि पर अधिकार से गरीबों को आत्मनिर्भरता मिलती है और वे अपनी आजीविका सुधार सकते हैं।
हाल के भूमि सुधार उपाय:
प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY): यह योजना गरीबों को किफायती आवास उपलब्ध कराने पर केंद्रित है। इसके तहत, भूमि और आवास दोनों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के प्रयास किए जा रहे हैं।
भूमि रिकॉर्ड डिजिटलाइजेशन: भूमि रिकॉर्ड को डिजिटल रूप में संजोने के लिए ‘स्वामित्व योजना’ और ‘भूमि अभिलेखों का डिजिटलीकरण’ जैसे उपाय अपनाए गए हैं। इससे भूमि स्वामित्व की पारदर्शिता बढ़ी है और भ्रष्टाचार की संभावना कम हुई है।
कृषि भूमि सुधार: कृषि भूमि की बंटवारा और भूमिहीन किसानों को भूमि का वितरण बढ़ाने के लिए कई राज्य सरकारों ने भूमि सुधार कानून लागू किए हैं। इन सुधारों के तहत, भूमि के बंटवारे और पुनर्वितरण की प्रक्रिया को सरल और पारदर्शी बनाया गया है।
न्यायसंगत भूमि वितरण: भूमिहीन किसान और आदिवासी समुदायों को भूमि का अधिकार देने के लिए विशेष कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं, जैसे कि ‘भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन कानून’, जो न्यायसंगत और पारदर्शी तरीके से भूमि का पुनर्वितरण सुनिश्चित करता है।
ये उपाय समावेशी विकास के लिए आवश्यक हैं क्योंकि ये वंचित वर्गों को सशक्त बनाते हैं और उनकी जीवनस्तर में सुधार करते हैं। प्रभावी भूमि प्रबंधन और वितरण न केवल सामाजिक और आर्थिक सुधारों की दिशा में कदम बढ़ाते हैं बल्कि विकास की समावेशिता को भी बढ़ावा देते हैं।
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