लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के तहत निरर्हता के आधारों को वर्णित कीजिए। साथ ही, निरर्ह प्रतिनिधियों के लिए उपलब्ध उपचारात्मक उपार्यो पर भी चर्चा कीजिए।(उत्तर 200 शब्दों में दें)
शक्तियों के पृथक्करण की अवधारणा एक ऐसी सिद्धांत है जिसमें सरकार की विभिन्न संगठनाओं या अधिकारियों को विशिष्ट क्षेत्रों में शक्तियों का पृथक्करण किया जाता है, ताकि वे अपने क्षेत्र में स्वतंत्रता से निर्णय ले सकें और अपने कार्यों के लिए जिम्मेदार हों। यह विभिन्न संगठनों और अधिकारियों को स्वतंत्रता औरRead more
शक्तियों के पृथक्करण की अवधारणा एक ऐसी सिद्धांत है जिसमें सरकार की विभिन्न संगठनाओं या अधिकारियों को विशिष्ट क्षेत्रों में शक्तियों का पृथक्करण किया जाता है, ताकि वे अपने क्षेत्र में स्वतंत्रता से निर्णय ले सकें और अपने कार्यों के लिए जिम्मेदार हों। यह विभिन्न संगठनों और अधिकारियों को स्वतंत्रता और सामर्थ्य प्रदान करता है ताकि सरकारी कार्य प्रभावी रूप से संचालित हो सके।
भारतीय संविधान में शक्तियों के पृथक्करण को प्रतिबिंबित करने के कई प्रावधान हैं। कुछ मुख्य प्रावधान निम्नलिखित हैं:
- संघीय प्रदेशों और केंद्र सरकार के द्वारा साझेदारी: संविधान द्वारा संघीय प्रदेशों और केंद्र सरकार के बीच शक्तियों का साझेदारी तंत्र स्थापित करता है।
- संविधानीय निकायों की स्थापना: भारतीय संविधान ने विभिन्न संविधानीय निकायों को स्थापित किया है जो अपनी शक्तियों का पृथक्करण कर सकते हैं।
- न्यायपालिका की स्वतंत्रता: संविधान ने न्यायपालिका को स्वतंत्रता और निष्पक्षता की गारंटी दी है जिससे वह अपनी शक्तियों का प्रयोग स्वतंत्रता से कर सके।
इन प्रावधानों के माध्यम से भारतीय संविधान ने शक्तियों के पृथक्करण की अवधारणा को प्रतिबिंबित किया है और सरकारी संगठनों को स्वतंत्रता और सामर्थ्य प्रदान किया है ।
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लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में निरर्हता के आधार: नागरिकता: एक व्यक्ति को भारतीय नागरिकता होनी चाहिए। आयु: न्यूनतम आयु सीमा का पालन करना चाहिए। मानव स्वास्थ्य: उर्वरित रोग, मानसिक अस्वस्थता, या अपातकालीन तथा अस्वीकृत उपचार स्थिति में नहीं होना चाहिए। अपराधिक अभियोग: किसी भी अधिकारित अदालत द्वाराRead more
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में निरर्हता के आधार:
निरर्ह प्रतिनिधियों के लिए उपचारात्मक उपार्यों पर चर्चा:
निरर्ह प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत निरर्ह प्रतिनिधियों के लिए उपचारात्मक उपार्य उन्हें समर्थ और जागरूक बनाने के लिए महत्वपूर्ण हैं।
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