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मानव विकास सूचकांक (HDI) के प्रमुख निर्धारकों की पहचान कीजिये। भारत के विशेष संदर्भ में कौन-सा सबसे प्रमुख है और क्यों? [उत्तर सीमा: 250 शब्द] [UKPSC 2012]
मानव विकास सूचकांक (HDI) के प्रमुख निर्धारक मानव विकास सूचकांक (HDI) एक समग्र सूचकांक है जो मानव विकास को मापने के लिए तीन प्रमुख तत्वों पर आधारित है: जीवन प्रत्याशा: एक व्यक्ति के जीवनकाल का औसत अनुमान, जो स्वास्थ्य और स्वास्थ्य देखभाल की गुणवत्ता को दर्शाता है। शैक्षिक उपलब्धि: यह सूचकांक प्रारंभिRead more
मानव विकास सूचकांक (HDI) के प्रमुख निर्धारक
मानव विकास सूचकांक (HDI) एक समग्र सूचकांक है जो मानव विकास को मापने के लिए तीन प्रमुख तत्वों पर आधारित है:
भारत के संदर्भ में प्रमुख निर्धारक
भारत के संदर्भ में शिक्षा सबसे महत्वपूर्ण निर्धारक है। शिक्षा का स्तर और स्कूलों की पहुँच राष्ट्रीय विकास के लिए बुनियादी हैं। भारत में शिक्षा का विस्तार (जैसे सार्वभौमिक शिक्षा अभियान) और साक्षरता दर में वृद्धि ने विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। हालांकि, भारत में शिक्षा प्रणाली को लेकर अभी भी कई चुनौतियाँ हैं, जैसे शिक्षक-छात्र अनुपात, गुणवत्ता और आधुनिक शिक्षा सुविधाओं की कमी। 2021 में, भारत का HDI 0.645 था, जो शिक्षा के क्षेत्र में सुधार की आवश्यकता को दर्शाता है।
निष्कर्ष:
See lessभारत में शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में सुधार के साथ HDI में सुधार हो सकता है, जिससे समग्र जीवन गुणवत्ता में वृद्धि हो।
मानव विकास सूचकांक (HDI) के प्रमुख निर्धारकों की पहचान कीजिये। भारत के विशेष संदर्भ में कौन-सा सबसे प्रमुख है और क्यों? [उत्तर सीमा: 250 शब्द] [UKPSC 2012]
मानव विकास सूचकांक (HDI) के प्रमुख निर्धारक मानव विकास सूचकांक (HDI) एक समग्र सूचकांक है जो मानव विकास को मापने के लिए तीन प्रमुख तत्वों पर आधारित है: जीवन प्रत्याशा: एक व्यक्ति के जीवनकाल का औसत अनुमान, जो स्वास्थ्य और स्वास्थ्य देखभाल की गुणवत्ता को दर्शाता है। शैक्षिक उपलब्धि: यह सूचकांक प्रारंभिRead more
मानव विकास सूचकांक (HDI) के प्रमुख निर्धारक
मानव विकास सूचकांक (HDI) एक समग्र सूचकांक है जो मानव विकास को मापने के लिए तीन प्रमुख तत्वों पर आधारित है:
भारत के संदर्भ में प्रमुख निर्धारक
भारत के संदर्भ में शिक्षा सबसे महत्वपूर्ण निर्धारक है। शिक्षा का स्तर और स्कूलों की पहुँच राष्ट्रीय विकास के लिए बुनियादी हैं। भारत में शिक्षा का विस्तार (जैसे सार्वभौमिक शिक्षा अभियान) और साक्षरता दर में वृद्धि ने विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। हालांकि, भारत में शिक्षा प्रणाली को लेकर अभी भी कई चुनौतियाँ हैं, जैसे शिक्षक-छात्र अनुपात, गुणवत्ता और आधुनिक शिक्षा सुविधाओं की कमी। 2021 में, भारत का HDI 0.645 था, जो शिक्षा के क्षेत्र में सुधार की आवश्यकता को दर्शाता है।
निष्कर्ष:
See lessभारत में शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में सुधार के साथ HDI में सुधार हो सकता है, जिससे समग्र जीवन गुणवत्ता में वृद्धि हो।
राष्ट्रीय आय को मापने की प्रमुख विधियों का वर्णन कीजिये। [उत्तर सीमा: 250 शब्द] [UKPSC 2012]
राष्ट्रीय आय को मापने की प्रमुख विधियाँ राष्ट्रीय आय मापने के तीन प्रमुख तरीके हैं: उत्पादन विधि, आय विधि, और व्यय विधि। इन तीनों विधियों से हमें एक देश की कुल आर्थिक गतिविधि का अनुमान मिलता है। उत्पादन विधि इस विधि में राष्ट्रीय आय को कुल उत्पाद के रूप में मापा जाता है, जो विभिन्न आर्थिक क्षेत्रोंRead more
राष्ट्रीय आय को मापने की प्रमुख विधियाँ
राष्ट्रीय आय मापने के तीन प्रमुख तरीके हैं: उत्पादन विधि, आय विधि, और व्यय विधि। इन तीनों विधियों से हमें एक देश की कुल आर्थिक गतिविधि का अनुमान मिलता है।
इस विधि में राष्ट्रीय आय को कुल उत्पाद के रूप में मापा जाता है, जो विभिन्न आर्थिक क्षेत्रों द्वारा उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं का योग होता है। यह विधि निर्माण, कृषि, और सेवा क्षेत्र के योगदान को सम्मिलित करती है। उदाहरण के लिए, भारत में निर्माण क्षेत्र की वृद्धि को ध्यान में रखते हुए, राष्ट्रीय आय का अनुमान लगाया जाता है।
इस विधि में राष्ट्रीय आय को कुल आय के रूप में मापा जाता है, जो मजदूरी, लाभ, और भाड़ा जैसे आय स्रोतों से प्राप्त होती है। इस विधि का उद्देश्य यह देखना है कि उत्पादन से जो आय उत्पन्न हुई है, वह समाज के विभिन्न वर्गों के बीच कैसे वितरित होती है। उदाहरण के लिए, भारत में आय वितरण का अध्ययन यह बताता है कि किस वर्ग को कितना आय मिल रहा है।
इस विधि में राष्ट्रीय आय को कुल खर्च के आधार पर मापा जाता है, जो उपभोक्ता खर्च, निवेश और सरकारी खर्च से संबंधित होता है। उदाहरण के तौर पर, भारत सरकार के प्रोत्साहन पैकेज और वित्तीय योजनाओं से जो खर्च बढ़ा है, वह राष्ट्रीय आय में योगदान करता है।
निष्कर्ष:
See lessये तीनों विधियाँ एक-दूसरे के पूरक हैं और एक साथ मिलकर हमें राष्ट्रीय आय का सटीक और समग्र चित्र प्रदान करती हैं, जिससे नीति निर्धारण में मदद मिलती है।
सरकार की आर्थिक नीति के उपकरणों के रूप में राजकोषीय नीति एवं मौद्रिक नीति एक-दूसरे की पूरक होती हैं। इस कथन को समझाइये। [उत्तर सीमा: 250 शब्द] [UKPSC 2012]
राजकोषीय नीति और मौद्रिक नीति राजकोषीय नीति और मौद्रिक नीति दोनों ही सरकार के आर्थिक नीति उपकरण हैं, जो एक-दूसरे के पूरक के रूप में काम करते हैं। राजकोषीय नीति सरकार के राजस्व (कर संग्रह) और व्यय के फैसलों से संबंधित है। इसका उद्देश्य आर्थिक वृद्धि, सामाजिक कल्याण और मांग सृजन को बढ़ावा देना होता हैRead more
राजकोषीय नीति और मौद्रिक नीति
राजकोषीय नीति और मौद्रिक नीति दोनों ही सरकार के आर्थिक नीति उपकरण हैं, जो एक-दूसरे के पूरक के रूप में काम करते हैं।
संपर्क और पूरकता:
राजकोषीय नीति और मौद्रिक नीति एक-दूसरे के पूरक के रूप में काम करती हैं। राजकोषीय नीति द्वारा अगर सरकारी खर्च बढ़ाया जाता है तो मौद्रिक नीति को ब्याज दरों को नियंत्रित करके वित्तीय आपूर्ति में संतुलन बनाए रखना पड़ता है। 2020 में भारत में राजकोषीय प्रोत्साहन पैकेज और मौद्रिक नीति के माध्यम से RBI द्वारा ब्याज दरों में कटौती एक साथ मिलकर अर्थव्यवस्था को स्थिर करने का प्रयास किया गया।
निष्कर्ष:
See lessजब राजकोषीय नीति मांग बढ़ाती है, तो मौद्रिक नीति उस मांग के लिए पर्याप्त तरलता और नियंत्रित ब्याज दरें प्रदान करती है, जिससे समग्र आर्थिक संतुलन बना रहता है। दोनों नीतियाँ मिलकर देश की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए काम करती हैं।
एक बाजार संचालित अर्थव्यवस्था का क्या अर्थ है? इनकी कमियाँ क्या है? [उत्तर सीमाः 125 शब्द ] [UKPSC 2012]
एक बाजार संचालित अर्थव्यवस्था का अर्थ बाजार संचालित अर्थव्यवस्था वह है, जिसमें मांग और आपूर्ति के आधार पर कीमतों का निर्धारण होता है, और उत्पादों व सेवाओं का उत्पादन और वितरण निजी क्षेत्र द्वारा नियंत्रित होता है। इसमें सरकार का हस्तक्षेप न्यूनतम होता है। उदाहरण के तौर पर, अमेरिका और चीन की अर्थव्यवRead more
एक बाजार संचालित अर्थव्यवस्था का अर्थ
बाजार संचालित अर्थव्यवस्था वह है, जिसमें मांग और आपूर्ति के आधार पर कीमतों का निर्धारण होता है, और उत्पादों व सेवाओं का उत्पादन और वितरण निजी क्षेत्र द्वारा नियंत्रित होता है। इसमें सरकार का हस्तक्षेप न्यूनतम होता है। उदाहरण के तौर पर, अमेरिका और चीन की अर्थव्यवस्थाएं बाजार संचालित हैं।
इनकी कमियाँ
निष्कर्ष: बाजार संचालित अर्थव्यवस्था में विकास की गति तेज हो सकती है, लेकिन सामाजिक और पर्यावरणीय असंतुलन को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
See less2000-01 से 2013-14 की अवधि में भारत के चीन से व्यापार में वृद्धि की व्याख्या कीजिये। भारत में चीन को निर्यात की संभाव्यताएँ क्या हैं? [उत्तर सीमाः 125 शब्द ] [UKPSC 2012]
2000-01 से 2013-14 की अवधि में भारत के चीन से व्यापार में वृद्धि 2000-01 से 2013-14 तक भारत और चीन के बीच व्यापार में सर्वाधिक वृद्धि देखी गई। इस अवधि में चीन भारत का प्रमुख व्यापारिक भागीदार बन गया, जिसके कारण दोनों देशों के बीच व्यापार 200 बिलियन डॉलर के आंकड़े तक पहुंच गया। चीन ने भारत से खनिज, रRead more
2000-01 से 2013-14 की अवधि में भारत के चीन से व्यापार में वृद्धि
2000-01 से 2013-14 तक भारत और चीन के बीच व्यापार में सर्वाधिक वृद्धि देखी गई। इस अवधि में चीन भारत का प्रमुख व्यापारिक भागीदार बन गया, जिसके कारण दोनों देशों के बीच व्यापार 200 बिलियन डॉलर के आंकड़े तक पहुंच गया। चीन ने भारत से खनिज, रत्न और रसायन जैसे उत्पादों का आयात किया, जबकि भारत ने मशीनरी, इलेक्ट्रॉनिक सामान, और सामग्रियां चीन को निर्यात की।
भारत में चीन को निर्यात की संभाव्यताएँ
भारत को चीन को निर्यात करने की संभावनाएँ सूचना प्रौद्योगिकी, फार्मास्यूटिकल्स, और नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्रों में हैं। हाल के उदाहरण में, भारत ने चीन को आयुर्वेदिक उत्पादों और खाद्य प्रसंस्करण उद्योग से निर्यात बढ़ाने के प्रयास किए हैं।
निष्कर्ष: भारत और चीन के व्यापार में वृद्धि दोनों देशों के आर्थिक संबंधों को मजबूत करने में सहायक रही है, और भविष्य में निर्यात के और अवसर हैं।
See lessकरारोपण के समानता सिद्धान्त एवं उत्पादकता सिद्धान्त को समझाइये। [उत्तर सीमाः 125 शब्द ] [UKPSC 2012]
करारोपण के समानता सिद्धांत समानता सिद्धांत के अनुसार, कर प्रणाली को इस प्रकार बनाया जाना चाहिए कि करदाताओं पर कराधान का भार उनकी आय और आर्थिक क्षमता के आधार पर समान हो। इसका अर्थ है कि जिनके पास अधिक आय है, उन्हें अधिक कर देना चाहिए। हाल के उदाहरण में, भारत में प्रगतिशील कर प्रणाली अपनाई गई है, जिसमRead more
करारोपण के समानता सिद्धांत
समानता सिद्धांत के अनुसार, कर प्रणाली को इस प्रकार बनाया जाना चाहिए कि करदाताओं पर कराधान का भार उनकी आय और आर्थिक क्षमता के आधार पर समान हो। इसका अर्थ है कि जिनके पास अधिक आय है, उन्हें अधिक कर देना चाहिए। हाल के उदाहरण में, भारत में प्रगतिशील कर प्रणाली अपनाई गई है, जिसमें उच्च आय वालों पर अधिक दर से कर लगाया जाता है।
करारोपण का उत्पादकता सिद्धांत
उत्पादकता सिद्धांत कहता है कि कर व्यवस्था को इस तरह से डिजाइन किया जाना चाहिए कि यह अधिकतम राजस्व जुटाए, बिना अर्थव्यवस्था की उत्पादकता और विकास को प्रभावित किए। उदाहरण के लिए, GST ने भारत में अप्रत्यक्ष कराधान को सरल बनाते हुए राजस्व में वृद्धि की है, जिससे आर्थिक गतिविधियों पर नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ा।
निष्कर्ष: ये सिद्धांत कराधान की प्रभावशीलता और न्यायसंगतता सुनिश्चित करते हैं।
See lessप्राकृतिक पादप वृद्धि नियामकों की विस्तार से चर्चा कीजिए।
परिचय: प्राकृतिक पादप वृद्धि नियामक, जिन्हें पादप हार्मोन भी कहा जाता है, वे रासायनिक यौगिक हैं जो पौधों की वृद्धि, विकास और पर्यावरणीय उत्तेजनाओं के प्रति प्रतिक्रियाओं को नियंत्रित करते हैं। ये हार्मोन पादपों के विभिन्न शारीरिक और जैव रासायनिक प्रक्रियाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। प्राकृतिRead more
परिचय: प्राकृतिक पादप वृद्धि नियामक, जिन्हें पादप हार्मोन भी कहा जाता है, वे रासायनिक यौगिक हैं जो पौधों की वृद्धि, विकास और पर्यावरणीय उत्तेजनाओं के प्रति प्रतिक्रियाओं को नियंत्रित करते हैं। ये हार्मोन पादपों के विभिन्न शारीरिक और जैव रासायनिक प्रक्रियाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
प्राकृतिक पादप वृद्धि नियामकों के प्रमुख प्रकार:
अनुप्रयोग और लाभ:
निष्कर्ष: प्राकृतिक पादप वृद्धि नियामक जैसे ऑक्सिन्स, गिब्बेरेलिन्स, साइटोकिनिन्स, एब्सिसिक एसिड, और एथीलीन पादपों की वृद्धि और विकास को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण होते हैं। इनके उपयोग से कृषि, हॉटिकल्चर और पारिस्थितिकीय प्रबंधन में सुधार हुआ है, जो पर्यावरणीय स्थिरता और खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा देता है।
See lessDiscuss about the natural plant growth regulators in detail.
Introduction: Natural plant growth regulators, also known as plant hormones, are chemical substances produced by plants that regulate various physiological processes including growth, development, and responses to environmental stimuli. They play crucial roles in plant adaptation and productivity. KRead more
Introduction: Natural plant growth regulators, also known as plant hormones, are chemical substances produced by plants that regulate various physiological processes including growth, development, and responses to environmental stimuli. They play crucial roles in plant adaptation and productivity.
Key Types of Natural Plant Growth Regulators:
Applications and Benefits:
Conclusion: Natural plant growth regulators, including auxins, gibberellins, cytokinins, abscisic acid, and ethylene, are essential for regulating plant growth and development. Their applications in agriculture and horticulture enhance productivity, manage stress, and improve crop quality. Recent advancements in understanding and utilizing these regulators continue to contribute to sustainable agricultural practices and innovative plant management strategies.
See lessहाइड्रोजन परमाणु के लिए बोहर मॉडल के अभिधारणाओं की व्याख्या कीजिए।
परिचय: 1913 में नील्स बॉहर द्वारा प्रस्तुत किया गया हाइड्रोजन परमाणु का मॉडल, परमाणु सिद्धांत में एक महत्वपूर्ण कदम था। यह मॉडल परमाणुओं की स्थिरता और हाइड्रोजन के विशेष वर्णक्रम को समझाने में सहायक था। बॉहर मॉडल के अभिधारणाएँ: क्वांटाइज्ड ऑर्बिट्स: विवरण: इलेक्ट्रॉन केवल कुछ विशिष्ट स्थिर पथों (ऑर्Read more
परिचय: 1913 में नील्स बॉहर द्वारा प्रस्तुत किया गया हाइड्रोजन परमाणु का मॉडल, परमाणु सिद्धांत में एक महत्वपूर्ण कदम था। यह मॉडल परमाणुओं की स्थिरता और हाइड्रोजन के विशेष वर्णक्रम को समझाने में सहायक था।
बॉहर मॉडल के अभिधारणाएँ:
L=nℏ द्वारा व्यक्त किया जाता है, जहाँ
n एक सकारात्मक पूर्णांक (क्वांटम संख्या) है और
ℏ प्लांक स्थिरांक है।
n की अवधारणा को भी पेश करती है, जो ऑर्बिट के आकार और ऊर्जा को निर्धारित करती है।
निष्कर्ष: बॉहर का मॉडल, जिसमें क्वांटाइज्ड ऑर्बिट्स, ऊर्जा स्तरों, कोणीय संवेग का क्वांटाइजेशन और राइडबर्ग सूत्र शामिल हैं, परमाणु सिद्धांत में एक महत्वपूर्ण उन्नति थी। यह अभिधारण हाइड्रोजन परमाणु की स्थिरता और उसके वर्णक्रमीय रेखाओं को समझने में सहायक हैं। बॉहर मॉडल की अवधारणाएँ आज भी आधुनिक वैज्ञानिक प्रौद्योगिकियों में महत्वपूर्ण हैं, जैसे क्वांटम डॉट्स, MRI, और लेजर स्पेक्ट्रोस्कोपी।
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