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कई देशों के संविधानों से लिए गए तत्वों के बावजूद, भारत का संविधान अपनी विशिष्टता में अद्वितीय है। इस पर चर्चा करें। (200 Words)
भारत के संविधान की विशिष्टता भारत का संविधान कई देशों के संविधानों से तत्व ग्रहण करने के बावजूद अपनी विशेषताओं में अद्वितीय है। 1. विस्तृत और विस्तृत ढांचा लंबा संविधान: भारत का संविधान विश्व का सबसे लंबा लिखित संविधान है, जिसमें 450 से अधिक अनुच्छेद और 12 अनुसूचियाँ हैं। यह विस्तार शासन के सभी पहलुRead more
भारत के संविधान की विशिष्टता
भारत का संविधान कई देशों के संविधानों से तत्व ग्रहण करने के बावजूद अपनी विशेषताओं में अद्वितीय है।
1. विस्तृत और विस्तृत ढांचा
2. कठोरता और लचीलापन
3. संघीय ढांचा
4. मौलिक अधिकार और कर्तव्य
निष्कर्ष
इस प्रकार, भारत का संविधान कई देशों से प्रेरित होते हुए भी अपनी विशिष्टता के कारण अद्वितीय है। यह विविधता में एकता के लिए महत्वपूर्ण है।
See lessकिताब-ए-नौरस
किताब-ए-नौरस परिचय किताब-ए-नौरस सुलतान इब्राहीम आदिल शाह II द्वारा लिखी गई एक काव्य रचना है। मुख्य विशेषताएँ संरचना: इसमें 59 गीत और 17 दोहे शामिल हैं। भाषा: यह दखनी उर्दू में लिखी गई है। संगीत: प्रत्येक गीत के लिए राग निर्धारित हैं। सांस्कृतिक महत्व इसमें सरस्वती, मुहम्मद और शिव की प्रशंसा की गई हैRead more
किताब-ए-नौरस
परिचय
किताब-ए-नौरस सुलतान इब्राहीम आदिल शाह II द्वारा लिखी गई एक काव्य रचना है।
मुख्य विशेषताएँ
सांस्कृतिक महत्व
यह किताब भारतीय साहित्य और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
See lessअभिधम्मपिटक
अभिधम्मपिटक अभिधम्मपिटक क्या है? अभिधम्मपिटक थेरवाद बौद्ध धर्म का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है। यह पाली canon का हिस्सा है और बुद्ध के गहरे शिक्षाओं पर केंद्रित है। मुख्य विशेषताएँ उच्च शिक्षाएँ: यह बौद्ध मनोविज्ञान की तरह गहरी अवधारणाएँ प्रस्तुत करता है। संरचना: इसमें सात मुख्य पुस्तकें शामिल हैं: धम्मसंRead more
अभिधम्मपिटक
अभिधम्मपिटक क्या है?
अभिधम्मपिटक थेरवाद बौद्ध धर्म का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है। यह पाली canon का हिस्सा है और बुद्ध के गहरे शिक्षाओं पर केंद्रित है।
मुख्य विशेषताएँ
महत्व
यह ग्रंथ अभ्यासियों को मन और शिक्षाओं की जटिलताओं को समझने में मदद करता है।
See lessदौवारिक
दौवारिक परिचय दौवारिक एक प्राचीन भारतीय प्रणाली है, जिसमें विशेष रूप से व्यापार, कृषि, और सामाजिक संरचना का वर्णन किया गया है। विशेषताएँ व्यापार: दौवारिक में व्यापारिक गतिविधियों का महत्व है। उदाहरण: गाँवों के बीच वस्तुओं का आदान-प्रदान। कृषि: कृषि कार्य और फसलों की पैदावार का विवरण। उदाहरण: धान औरRead more
दौवारिक
परिचय
दौवारिक एक प्राचीन भारतीय प्रणाली है, जिसमें विशेष रूप से व्यापार, कृषि, और सामाजिक संरचना का वर्णन किया गया है।
विशेषताएँ
सामाजिक संरचना
निष्कर्ष
दौवारिक प्रणाली ने प्राचीन भारतीय समाज के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे आर्थिक और सामाजिक संबंध मजबूत हुए।
See lessऋग्वैदिक पंचवृष्णि
ऋग्वैदिक पंचवृष्णि परिचय ऋग्वेद का पंचवृष्णि एक महत्वपूर्ण विषय है, जिसमें सांस्कृतिक, धार्मिक और दार्शनिक पहलुओं का वर्णन किया गया है। पंचवृष्णि के तत्व पंचवृष्णि का अर्थ है "पांच प्रकार के वृष"। ये वृष विभिन्न कृषि और पशुपालन से संबंधित हैं, जैसे: गाय: दूध देने वाली, माता का प्रतीक। भैंस: मेहनती,Read more
ऋग्वैदिक पंचवृष्णि
परिचय
ऋग्वेद का पंचवृष्णि एक महत्वपूर्ण विषय है, जिसमें सांस्कृतिक, धार्मिक और दार्शनिक पहलुओं का वर्णन किया गया है।
पंचवृष्णि के तत्व
महत्व
निष्कर्ष
ऋग्वैदिक पंचवृष्णि न केवल कृषि और पशुपालन को दर्शाता है, बल्कि भारतीय संस्कृति और धर्म में भी गहराई से जुड़ा हुआ है।
See lessटैगोर के 'मानवतावाद' की अवधारणा बताइए ।
टैगोर के 'मानवतावाद' की अवधारणा रवींद्रनाथ टैगोर का मानवतावाद मानवता की एकता, सहिष्णुता, और सार्वभौमिक भाईचारे पर आधारित था। 1. विविधता में एकता टैगोर ने विभिन्न संस्कृतियों के सम्मान पर जोर दिया और मानव जाति की एकता की बात की। उदाहरण: शांतिनिकेतन में उनकी शिक्षा प्रणाली ने प्रेम, सह-अस्तित्व और समाRead more
टैगोर के ‘मानवतावाद’ की अवधारणा
रवींद्रनाथ टैगोर का मानवतावाद मानवता की एकता, सहिष्णुता, और सार्वभौमिक भाईचारे पर आधारित था।
1. विविधता में एकता
2. प्रकृति के साथ सामंजस्य
3. आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विकास
टैगोर का मानवतावाद प्रेम, परस्पर सम्मान और जिम्मेदारी के आधार पर एक समृद्ध समाज की कल्पना करता है।
See lessक्या 'साधन' साध्य को प्रमाणित करता है? टिप्पणी कीजिए ।
क्या 'साधन' साध्य को प्रमाणित करता है? यह प्रश्न नैतिकता का एक महत्वपूर्ण विषय है। साधनों का औचित्य सिद्ध करने के लिए दो दृष्टिकोण प्रमुख हैं। 1. उपयोगितावादी दृष्टिकोण उपयोगितावादी दृष्टिकोण के अनुसार, यदि साध्य का परिणाम समाज के लिए कल्याणकारी है, तो साधन सही हो सकते हैं। उदाहरण: किसी संकट में झूठRead more
क्या ‘साधन’ साध्य को प्रमाणित करता है?
यह प्रश्न नैतिकता का एक महत्वपूर्ण विषय है। साधनों का औचित्य सिद्ध करने के लिए दो दृष्टिकोण प्रमुख हैं।
1. उपयोगितावादी दृष्टिकोण
2. कर्तव्य आधारित दृष्टिकोण
3. समन्वय का महत्त्व
लोक प्रशासन के बारे में कौटिल्य के विचारों की चर्चा कीजिए ।
कौटिल्य के लोक प्रशासन पर विचार कौटिल्य, जिन्हें चाणक्य के नाम से भी जाना जाता है, ने "अर्थशास्त्र" में शासन और प्रशासन के सिद्धांत प्रस्तुत किए। उनके विचार प्रशासनिक कार्यों, नीति निर्धारण, और सामाजिक कल्याण पर केंद्रित थे। मुख्य विचार प्रशासन की आवश्यकता: कौटिल्य ने एक सुव्यवस्थित प्रशासन को समाजRead more
कौटिल्य के लोक प्रशासन पर विचार
कौटिल्य, जिन्हें चाणक्य के नाम से भी जाना जाता है, ने “अर्थशास्त्र” में शासन और प्रशासन के सिद्धांत प्रस्तुत किए। उनके विचार प्रशासनिक कार्यों, नीति निर्धारण, और सामाजिक कल्याण पर केंद्रित थे।
मुख्य विचार
प्रशासनिक सिद्धांत
कौटिल्य के सिद्धांत वर्तमान प्रशासनिक व्यवस्थाओं के लिए भी उपयोगी हैं।
See lessविवेकानंद के 'सार्वभौमिक धर्म' की प्रमुख विशेषताएँ बताइए ।
विवेकानंद के 'सार्वभौमिक धर्म' की प्रमुख विशेषताएँ विवेकानंद का सार्वभौमिक धर्म सभी धर्मों की अच्छाइयों को अपनाकर, मानवता के कल्याण के लिए मार्गदर्शन प्रदान करता है। 1. विविधता में एकता विवेकानंद ने सभी धर्मों को एक ही सत्य के विभिन्न रूप कहा। वे मानते थे कि हर धर्म एक ही सत्य तक पहुँचने के अलग-अलगRead more
विवेकानंद के ‘सार्वभौमिक धर्म’ की प्रमुख विशेषताएँ
विवेकानंद का सार्वभौमिक धर्म सभी धर्मों की अच्छाइयों को अपनाकर, मानवता के कल्याण के लिए मार्गदर्शन प्रदान करता है।
1. विविधता में एकता
विवेकानंद ने सभी धर्मों को एक ही सत्य के विभिन्न रूप कहा। वे मानते थे कि हर धर्म एक ही सत्य तक पहुँचने के अलग-अलग रास्ते हैं।
2. सहिष्णुता और समावेशिता
उनके सार्वभौमिक धर्म का मूल मंत्र सहिष्णुता और समावेशिता है। वे धर्म परिवर्तन की जगह सम्मान और संवाद पर जोर देते थे।
3. व्यवहारिक अध्यात्म
उनका मानना था कि धर्म केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं होना चाहिए; उसे समाज की भलाई में भी उपयोग करना चाहिए। उदाहरण: गरीबों और जरूरतमंदों की सेवा।
4. व्यक्तिगत सशक्तिकरण
विवेकानंद ने हर व्यक्ति में आत्म-विश्वास और आत्म-ज्ञान का महत्व बताया।
उनका यह दृष्टिकोण सभी धर्मों के बीच एकता और सहअस्तित्व को प्रोत्साहित करता है।
See lessक्या बुद्ध के 'अष्टांगिक मार्ग' लोक सेवकों के लिए नैतिक मार्गदर्शक हो सकते हैं ? टिप्पणी कीजिए ।
क्या बुद्ध का 'अष्टांगिक मार्ग' लोक सेवकों के लिए नैतिक मार्गदर्शक हो सकता है? बुद्ध का अष्टांगिक मार्ग लोक सेवकों के लिए नैतिकता और दायित्वपूर्ण कार्यों का एक सशक्त मार्गदर्शन प्रदान करता है। यह मार्ग लोक सेवा में शांति, ईमानदारी और सेवा भावना को बढ़ावा देता है। 1. सम्यक दृष्टि लोक सेवक नीतियों मेंRead more
क्या बुद्ध का ‘अष्टांगिक मार्ग’ लोक सेवकों के लिए नैतिक मार्गदर्शक हो सकता है?
बुद्ध का अष्टांगिक मार्ग लोक सेवकों के लिए नैतिकता और दायित्वपूर्ण कार्यों का एक सशक्त मार्गदर्शन प्रदान करता है। यह मार्ग लोक सेवा में शांति, ईमानदारी और सेवा भावना को बढ़ावा देता है।
1. सम्यक दृष्टि
लोक सेवक नीतियों में निष्पक्षता रखें और लाभ-हानि से ऊपर उठकर कार्य करें।
2. सम्यक संकल्प
लोक सेवकों को सेवा भावना और सामाजिक न्याय का संकल्प लेना चाहिए। उदाहरण: निर्णयों में जनता का हित सर्वोपरि रखना।
3. सम्यक वाणी
संचार में ईमानदारी और पारदर्शिता बनाए रखें। इससे जनता का विश्वास बढ़ता है।
4. सम्यक कर्म
कार्यों में अनुशासन और निष्पक्षता होनी चाहिए, जिससे किसी का अहित न हो।
इस प्रकार, अष्टांगिक मार्ग लोक सेवकों को नैतिकता के उच्चतम आदर्शों पर आधारित सेवा प्रदान करने के लिए प्रेरित करता है।
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