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सतीश चन्द्र बसु
सतीश चन्द्र बसु: Anushilan Samiti के संस्थापक परिचय: सतीश चन्द्र बसु भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख क्रांतिकारी नेता थे। इन्होंने 1902 में अनुशीलन समिति की स्थापना की, जो बंगाल में ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक महत्वपूर्ण क्रांतिकारी संगठन था। महत्व: इस समिति का उद्देश्य युवाओं को शारीरिक और मानसिकRead more
सतीश चन्द्र बसु: Anushilan Samiti के संस्थापक
परिचय:
महत्व:
उधारण:
विरासत:
पुनः प्रतिष्ठा विद्रोह
पुनः प्रतिष्ठा विद्रोह (Restorative Rebellions) परिभाषा: पुनः प्रतिष्ठा विद्रोह वे आंदोलन होते हैं जो समाज के पुराने और पारंपरिक मान्यताओं या ढांचों को फिर से स्थापित करने के उद्देश्य से होते हैं, खासकर जब बाहरी शक्ति (जैसे ब्रिटिश शासन) ने इनकी धारा को बाधित किया हो। उदाहरण: 1857 का विद्रोह: भारतीयRead more
पुनः प्रतिष्ठा विद्रोह (Restorative Rebellions)
परिभाषा:
पुनः प्रतिष्ठा विद्रोह वे आंदोलन होते हैं जो समाज के पुराने और पारंपरिक मान्यताओं या ढांचों को फिर से स्थापित करने के उद्देश्य से होते हैं, खासकर जब बाहरी शक्ति (जैसे ब्रिटिश शासन) ने इनकी धारा को बाधित किया हो।
उदाहरण:
इन विद्रोहों का उद्देश्य समाज को अपने पारंपरिक और धार्मिक सिद्धांतों के अनुसार पुनः स्थापित करना था।
See lessप्राच्यवाद
प्राच्यवाद (Orientalism) परिभाषा: प्राच्यवाद एक विचारधारा है, जिसमें पश्चिमी दुनिया ने पूर्वी देशों (जैसे भारत, चीन, अरब) की संस्कृतियों को नकारात्मक दृष्टिकोण से देखा। यह अवधारणा, जिसे एडवर्ड सईद ने प्रमुख रूप से विकसित किया, यह बताती है कि पश्चिम ने पूर्वी सभ्यताओं को पिछड़ा, असंगत और अविकसित दिखाRead more
प्राच्यवाद (Orientalism)
परिभाषा:
प्राच्यवाद एक विचारधारा है, जिसमें पश्चिमी दुनिया ने पूर्वी देशों (जैसे भारत, चीन, अरब) की संस्कृतियों को नकारात्मक दृष्टिकोण से देखा। यह अवधारणा, जिसे एडवर्ड सईद ने प्रमुख रूप से विकसित किया, यह बताती है कि पश्चिम ने पूर्वी सभ्यताओं को पिछड़ा, असंगत और अविकसित दिखाया।
मुख्य बिंदु:
उदाहरण:
पश्चिमी साहित्य में अक्सर एशियाई देशों को रहस्यमयी और अविकसित दिखाया जाता था, जैसे कि “1001 रातों की कहानी” में अरबी और भारतीय समाजों का चित्रण।
यह विचारधारा आज भी आलोचना का विषय है, क्योंकि यह उपनिवेशवाद और नस्लवाद के आधार पर विकसित हुई थी
See lessअबवाब
अबवाब (Abwab) मुघल प्रशासन में वह अधिकारी थे जो विभिन्न प्रदेशों में विभिन्न कार्यों का संचालन करते थे। उनके पास कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ थीं। अबवाब का कार्य सार्वजनिक व्यवस्था: अबवाब का प्रमुख कार्य प्रशासनिक कार्यों में मदद करना था। वे राज्य के कर्मचारियों और अन्य अधिकारियों के साथ समन्वय करतेRead more
अबवाब (Abwab) मुघल प्रशासन में वह अधिकारी थे जो विभिन्न प्रदेशों में विभिन्न कार्यों का संचालन करते थे। उनके पास कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ थीं।
अबवाब का कार्य
इस प्रणाली में अबवाब ने प्रशासनिक व्यवस्था को मजबूत किया और सुनिश्चित किया कि मुघल साम्राज्य में हर स्तर पर कार्य अच्छे से चलें।
See lessभारत में 19वीं शताब्दी में प्रचलित सामाजिक कुरीतियों के उन्मूलन में समाज सुधारकों के योगदान का संक्षिप्त वर्णन करें। (200 words)
19वीं शताब्दी में भारत में समाज सुधारकों का योगदान भारत में 19वीं शताब्दी के समाज सुधारकों ने समाज में फैली कुरीतियों के उन्मूलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। राजा राम मोहन राय: उन्होंने सती प्रथा के खिलाफ संघर्ष किया और इसके उन्मूलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ईश्वरचंद्र विद्यासागर: विधवा पुनर्विवाRead more
19वीं शताब्दी में भारत में समाज सुधारकों का योगदान
भारत में 19वीं शताब्दी के समाज सुधारकों ने समाज में फैली कुरीतियों के उन्मूलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
प्रभाव
इन सुधारकों ने समाज में शिक्षा, समानता और मानवाधिकारों को बढ़ावा दिया, जिससे आधुनिक भारत की नींव मजबूत हुई।
See lessभारत में 19वीं शताब्दी में प्रचलित सामाजिक कुरीतियों के उन्मूलन में समाज सुधारकों के योगदान का संक्षिप्त वर्णन करें। (200 words)
भारत में 19वीं शताब्दी में समाज सुधारकों का योगदान 19वीं शताब्दी में भारतीय समाज में सामाजिक कुरीतियों जैसे जातिवाद, सती प्रथा, बाल विवाह और स्त्री शिक्षा की कमी के खिलाफ समाज सुधारकों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। मुख्य सुधारक और उनके प्रयास राजा राम मोहन राय: सती प्रथा के विरोध में संघर्ष किया और इसकRead more
भारत में 19वीं शताब्दी में समाज सुधारकों का योगदान
19वीं शताब्दी में भारतीय समाज में सामाजिक कुरीतियों जैसे जातिवाद, सती प्रथा, बाल विवाह और स्त्री शिक्षा की कमी के खिलाफ समाज सुधारकों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया।
मुख्य सुधारक और उनके प्रयास
समाज पर प्रभाव
इन समाज सुधारकों ने समानता, शिक्षा और महिला अधिकारों का प्रचार किया, जिससे आधुनिक भारत के लिए समतामूलक समाज का आधार तैयार हुआ।
See lessछठी शताब्दी ईसा पूर्व के आस-पास भारत में बौद्ध धर्म और जैन धर्म के उद्भव और प्रसार के लिए जिम्मेदार कारकों की सूची बनाइए।(200 words)
छठी शताब्दी ईसा पूर्व में बौद्ध धर्म और जैन धर्म के उद्भव के कारण भारत में छठी शताब्दी ईसा पूर्व में बौद्ध और जैन धर्म के उद्भव के कई महत्वपूर्ण कारण थे: सामाजिक असंतोष: जाति व्यवस्था और ब्राह्मणवादी अनुष्ठानों के कारण समाज में असमानता फैली हुई थी, जिससे लोग नए धर्मों की ओर आकर्षित हुए। आर्थिक बदलावRead more
छठी शताब्दी ईसा पूर्व में बौद्ध धर्म और जैन धर्म के उद्भव के कारण
भारत में छठी शताब्दी ईसा पूर्व में बौद्ध और जैन धर्म के उद्भव के कई महत्वपूर्ण कारण थे:
बौद्ध और जैन धर्म की लोकप्रियता इनकी साधारण और सार्वभौमिक शिक्षाओं से बढ़ी।
See lessगुटनिरपेक्ष आंदोलन का संक्षिप्त परिचय देते हुए, आज के संदर्भ में इसकी प्रासंगिकता का मूल्यांकन कीजिए। (200 words)
गुटनिरपेक्ष आंदोलन का संक्षिप्त परिचय गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) का गठन शीत युद्ध के समय हुआ था। इसका उद्देश्य उन देशों को एक मंच प्रदान करना था जो किसी भी महाशक्ति (अमेरिका या सोवियत संघ) के गुट में शामिल नहीं होना चाहते थे। भारत, यूगोस्लाविया और मिस्र जैसे देशों के नेताओं ने इसे नेतृत्व दिया, ताकि सRead more
गुटनिरपेक्ष आंदोलन का संक्षिप्त परिचय
गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) का गठन शीत युद्ध के समय हुआ था। इसका उद्देश्य उन देशों को एक मंच प्रदान करना था जो किसी भी महाशक्ति (अमेरिका या सोवियत संघ) के गुट में शामिल नहीं होना चाहते थे। भारत, यूगोस्लाविया और मिस्र जैसे देशों के नेताओं ने इसे नेतृत्व दिया, ताकि स्वतंत्रता, शांति, और संप्रभुता का समर्थन किया जा सके।
मुख्य सिद्धांत
आज के संदर्भ में प्रासंगिकता
आज NAM 120 देशों का समूह है, और यह निम्नलिखित क्षेत्रों में महत्वपूर्ण है:
निष्कर्ष
NAM आज भी विकासशील देशों के लिए एक महत्वपूर्ण मंच है, जो वैश्विक शांति और समानता के लिए कार्य करता है।
See lessभारत में उपलब्ध विभिन्न गैर-पारंपरिक ऊर्जा स्रोत क्या हैं? इनकी पर्यावरण-अनुकूल ऊर्जा प्रदान करने में महत्ता को उजागर करें। (200 words)
भारत में गैर-पारंपरिक ऊर्जा स्रोत प्रमुख ऊर्जा स्रोत सौर ऊर्जा सूर्य की रोशनी से प्राप्त होती है। सौर पैनल के माध्यम से बिजली उत्पादन में उपयोग होती है। उदाहरण: राजस्थान में सौर ऊर्जा परियोजनाएँ। वायु ऊर्जा पवन टरबाइनों के माध्यम से उत्पन्न होती है। प्रमुख क्षेत्र: गुजरात और तमिलनाडु। यह प्रदूषण कोRead more
भारत में गैर-पारंपरिक ऊर्जा स्रोत
प्रमुख ऊर्जा स्रोत
पर्यावरण-अनुकूल महत्ता
गैर-पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों का उपयोग जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता को कम करता है। ये स्रोत:
इन ऊर्जा स्रोतों का विकास भारत को पर्यावरण-अनुकूल ऊर्जा समाधान की दिशा में आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
See lessभारत में प्रमुख प्रकार की मृदाओं और उनकी विशेषताओं का उल्लेख करें। इसके साथ ही, भारत में मृदाओं के स्थानिक वितरण का विवरण भी प्रस्तुत करें। (200 words)
भारत में प्रमुख प्रकार की मृदाएं मुख्य मृदाओं और उनकी विशेषताएँ आलुवीय मृदा नदी के किनारे पाई जाती है। अत्यंत उपजाऊ, धान और गेहूं जैसे फसलों के लिए अनुकूल। काली मृदा चट्टानी और चिकनी होती है। कपास की खेती के लिए प्रसिद्ध, महाराष्ट्र और गुजरात में पाई जाती है। लाल मृदा लोहे के कारण लाल रंग की होती हैRead more
भारत में प्रमुख प्रकार की मृदाएं
मुख्य मृदाओं और उनकी विशेषताएँ
स्थानिक वितरण
भारत में विभिन्न प्रकार की मृदाएं कृषि की विविधता को बढ़ावा देती हैं और देश की आर्थिक स्थिति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
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