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सिटिजन्स चार्टर (नागरिक चार्टर) पर एक टिप्पणी लिखिये। (125 Words) [UPPSC 2019]
सिटिजन्स चार्टर (नागरिक चार्टर): एक टिप्पणी 1. परिभाषा और उद्देश्य सिटिजन्स चार्टर एक जनसामान्य के साथ संवाद का दस्तावेज है, जो सरकारी सेवाओं के मानक और नागरिकों के अधिकारों को स्पष्ट करता है। इसका उद्देश्य पारदर्शिता, जवाबदेही, और सेवा की गुणवत्ता को सुधारना है। 2. मुख्य विशेषताएँ चार्टर में सेवा मRead more
सिटिजन्स चार्टर (नागरिक चार्टर): एक टिप्पणी
1. परिभाषा और उद्देश्य
सिटिजन्स चार्टर एक जनसामान्य के साथ संवाद का दस्तावेज है, जो सरकारी सेवाओं के मानक और नागरिकों के अधिकारों को स्पष्ट करता है। इसका उद्देश्य पारदर्शिता, जवाबदेही, और सेवा की गुणवत्ता को सुधारना है।
2. मुख्य विशेषताएँ
चार्टर में सेवा मानक, शिकायत निवारण तंत्र, और प्रदर्शन मानक शामिल होते हैं। इसमें सेवा देने की समय सीमा और शिकायतों के लिए संपर्क बिंदु भी दिए जाते हैं।
3. हालिया उदाहरण
भारतीय रेलवे और इंडिया पोस्ट ने अपने सिटिजन्स चार्टर लागू किए हैं, जैसे रेलवे टिकट बुकिंग और डाक सेवाओं में सुधार के लिए। भारतीय रेलवे का चार्टर समयबद्ध सेवा और शिकायत समाधान की प्रक्रिया को स्पष्ट करता है।
4. प्रभाव
सिटिजन्स चार्टर ने सेवा की गुणवत्ता में सुधार किया है और जनता का विश्वास बढ़ाया है। यह नागरिकों को जवाबदेही और गुणवत्ता सुनिश्चित करने का एक महत्वपूर्ण तंत्र प्रदान करता है।
सारांश में, सिटिजन्स चार्टर सरकारी सेवाओं को समर्थन और पारदर्शिता प्रदान करता है, और नागरिकों के अधिकारों और अपेक्षाओं को सुनिश्चित करता है।
See lessWrite a note on Citizen's Charter. (125 Words) [UPPSC 2019]
Citizen's Charter: Overview and Importance 1. Definition and Purpose The Citizen's Charter is a public document that outlines the rights and responsibilities of citizens while interacting with government services. It aims to improve transparency, accountability, and service delivery by clearly definRead more
Citizen’s Charter: Overview and Importance
1. Definition and Purpose
The Citizen’s Charter is a public document that outlines the rights and responsibilities of citizens while interacting with government services. It aims to improve transparency, accountability, and service delivery by clearly defining the standards of service that citizens can expect.
2. Key Features
The Charter includes service standards, grievance redressal mechanisms, and performance metrics. It often specifies timeframes for service delivery and contact points for complaints.
3. Recent Examples
India Post and the Railway Ministry have implemented Citizen’s Charters to enhance customer satisfaction. For instance, the Indian Railways’ Charter sets clear expectations regarding ticket booking, train schedules, and complaint resolution.
4. Impact
Citizen’s Charters have led to improved service quality, greater public trust, and enhanced responsiveness of government agencies. They empower citizens by providing a framework for accountability and recourse.
In summary, the Citizen’s Charter is a crucial tool for enhancing public service delivery and citizen engagement with government institutions.
See lessभारत-नेपाल द्वि-पक्षीय संबंधों के मुख्यतनाव के बिंदु कौन-कौन से हैं? (125 Words) [UPPSC 2019]
भारत-नेपाल द्वि-पक्षीय संबंधों के मुख्य तनाव बिंदु **1. सीमा विवाद सीमा विवाद मुख्य तनाव बिंदु है। सुगौली संधि (1815-16) के तहत निर्धारित सीमा पर विवाद मौजूद है, विशेष रूप से लिम्पियाधुरा, कालापानी, और लिंचुंग क्षेत्रों को लेकर। नेपाल ने भारत द्वारा नक्शे में किए गए बदलावों का विरोध किया है। **2. नदRead more
भारत-नेपाल द्वि-पक्षीय संबंधों के मुख्य तनाव बिंदु
**1. सीमा विवाद
सीमा विवाद मुख्य तनाव बिंदु है। सुगौली संधि (1815-16) के तहत निर्धारित सीमा पर विवाद मौजूद है, विशेष रूप से लिम्पियाधुरा, कालापानी, और लिंचुंग क्षेत्रों को लेकर। नेपाल ने भारत द्वारा नक्शे में किए गए बदलावों का विरोध किया है।
**2. नदी विवाद
नदी विवाद भी तनाव का कारण है। गंडक और कुसहा नदियों के पानी के बंटवारे को लेकर समस्याएँ बनी रहती हैं, जो बाढ़ और जलवायु परिवर्तन के कारण और जटिल हो गई हैं।
**3. सामाजिक और राजनीतिक विवाद
सामाजिक और राजनीतिक विवाद जैसे सामाजिक सहायता और आर्थिक सहायता के मुद्दे भी तनाव उत्पन्न करते हैं। हाल ही में, नेपाल के संविधान में भारतीय नागरिकों की भूमिका और अधिकारों पर उठे सवालों ने तनाव को बढ़ाया है।
**4. चिंताएँ और नकारात्मक बयान
भारत-नेपाल के बीच नकारात्मक बयान और चिंताएँ जैसे आतंकवाद और सुरक्षा मुद्दे भी रिश्तों में तनाव उत्पन्न करते हैं।
सारांश में, सीमा विवाद, नदी विवाद, सामाजिक-पॉलिटिकल मुद्दे और नकारात्मक बयान भारत-नेपाल द्वि-पक्षीय संबंधों के मुख्य तनाव बिंदु हैं।
See lessलोकसेवा का परंपरागत गुण तटस्थता रहा है" व्याख्या करें। (125 Words) [UPPSC 2019]
लोकसेवा का परंपरागत गुण तटस्थता **1. परिभाषा और महत्व तटस्थता से तात्पर्य है निष्पक्षता और अराजनीतिकता जो लोक सेवकों को अपनानी चाहिए। यह सुनिश्चित करता है कि उनके निर्णय और क्रियाएँ केवल कानून और नीति पर आधारित हों, न कि राजनीतिक प्रभाव या व्यक्तिगत पूर्वाग्रह पर। **2. ऐतिहासिक संदर्भ भारत में ऐतिहाRead more
लोकसेवा का परंपरागत गुण तटस्थता
**1. परिभाषा और महत्व
तटस्थता से तात्पर्य है निष्पक्षता और अराजनीतिकता जो लोक सेवकों को अपनानी चाहिए। यह सुनिश्चित करता है कि उनके निर्णय और क्रियाएँ केवल कानून और नीति पर आधारित हों, न कि राजनीतिक प्रभाव या व्यक्तिगत पूर्वाग्रह पर।
**2. ऐतिहासिक संदर्भ
भारत में ऐतिहासिक रूप से, लोक सेवाओं ने तटस्थता को प्रशासनिक ईमानदारी और जन विश्वास बनाए रखने के लिए अपनाया है। आपातकाल (1975-77) के दौरान, लोक सेवकों को राजनीतिक उथल-पुथल के बावजूद निष्पक्ष रूप से अपने कर्तव्यों का पालन करना पड़ा।
**3. हालिया उदाहरण
हाल के समय में, निर्वाचन आयोग ने निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने में तटस्थता का उदाहरण प्रस्तुत किया। 2019 के आम चुनाव के दौरान, लोक सेवकों ने चुनावी सत्यता और अनियमितताओं को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
**4. चुनौतियाँ
तटस्थता बनाए रखना राजनीतिक दबाव और जन सार्वजनिक ध्यान के बावजूद चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
सारांश में, तटस्थता लोक सेवाओं के लिए एक बुनियादी गुण है जो निष्पक्षता और प्रभावी प्रशासन सुनिश्चित करता है।
See less"The traditional quality of Civil Services has been Neutrality". explain it. (125 Words) [UPPSC 2019]
Neutrality as a Traditional Quality of Civil Services 1. Definition and Importance Neutrality refers to the principle of impartiality and non-partisanship that civil servants must uphold. It ensures that their actions and decisions are based solely on law and policy, rather than political affiliatioRead more
Neutrality as a Traditional Quality of Civil Services
1. Definition and Importance
Neutrality refers to the principle of impartiality and non-partisanship that civil servants must uphold. It ensures that their actions and decisions are based solely on law and policy, rather than political affiliations or personal biases.
2. Historical Context
Historically, civil services in India have adhered to neutrality to maintain administrative integrity and public trust. For instance, during the Emergency period (1975-77), civil servants were expected to carry out their duties impartially despite the political turmoil.
3. Recent Examples
In recent times, neutrality has been exemplified in the Election Commission’s role in conducting free and fair elections, and in the Civil Services Code of Conduct which mandates impartiality. For example, during the 2019 General Elections, civil servants played a crucial role in ensuring election integrity and preventing electoral malpractices.
4. Challenges
Despite its importance, maintaining neutrality is challenging due to political pressures and public scrutiny. Nonetheless, it remains a cornerstone of effective and trustworthy civil service.
In summary, neutrality is essential for ensuring that civil servants perform their duties fairly, without bias or undue influence.
See lessसंक्षेप में भारत में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की भूमिका बताइये। (125 Words) [UPPSC 2019]
भारत में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की भूमिका **1. मानवाधिकारों की सुरक्षा और संवर्धन राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC), 1993 में स्थापित, मानवाधिकारों की सुरक्षा और संवर्धन के लिए जिम्मेदार है। यह शिकायतों और आरोपों की जांच करता है, जैसे पुलिस अत्याचार और कैदियों की मौत। **2. सलाहकारी भूमिका NHRC सरकRead more
भारत में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की भूमिका
**1. मानवाधिकारों की सुरक्षा और संवर्धन
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC), 1993 में स्थापित, मानवाधिकारों की सुरक्षा और संवर्धन के लिए जिम्मेदार है। यह शिकायतों और आरोपों की जांच करता है, जैसे पुलिस अत्याचार और कैदियों की मौत।
**2. सलाहकारी भूमिका
NHRC सरकार को नीति बदलाव और कानूनी सुधारों पर सिफारिशें प्रदान करता है। हाल ही में, इसने सजायाफ्ता कैदियों की स्थिति में सुधार के लिए सिफारिश की है।
**3. जन जागरूकता और शिक्षा
NHRC जन जागरूकता बढ़ाने और शिक्षा प्रदान करने के लिए प्रचार अभियान, सेमिनार और प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करता है। बाल श्रम और मानव तस्करी के खिलाफ अभियान इसका उदाहरण हैं।
**4. निगरानी और जवाबदेही
NHRC मानवाधिकार मानदंडों की निगरानी करता है और राज्य एजेंसियों की जवाबदेही सुनिश्चित करता है।
सारांश में, NHRC मानवाधिकार सुरक्षा, सलाहकारी भूमिका, जन जागरूकता, और निगरानी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
See lessBriefly state the role of National Human Rights Commission in India. (125 Words) [UPPSC 2019]
Role of National Human Rights Commission (NHRC) in India **1. Protection and Promotion of Human Rights The National Human Rights Commission (NHRC), established in 1993, is mandated to protect and promote human rights in India. It investigates complaints and allegations of human rights violations, suRead more
Role of National Human Rights Commission (NHRC) in India
**1. Protection and Promotion of Human Rights
The National Human Rights Commission (NHRC), established in 1993, is mandated to protect and promote human rights in India. It investigates complaints and allegations of human rights violations, such as police brutality and custodial deaths.
**2. Advisory Role
The NHRC provides recommendations and advice to the government on policy changes and legislative measures to improve human rights protection. For example, it has advocated for reforms in the criminal justice system and better conditions in prisons.
**3. Awareness and Education
The NHRC works to raise awareness about human rights issues through publications, seminars, and training programs. Recent initiatives include campaigns against child labor and trafficking.
**4. Monitoring and Accountability
The NHRC monitors implementation of human rights norms and ensures accountability of state agencies. It conducts inquiries into systemic issues and ensures compliance with human rights standards.
In summary, the NHRC plays a crucial role in safeguarding human rights, advising the government, and promoting awareness and education.
See lessमहासागरीय जल धाराएं जलवायु को नियंत्रित करने और पृथ्वी पर समुद्री जीवन को समर्थन प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। चर्चा कीजिए। (उत्तर 150 शब्दों में दें)
महासागरीय जल धाराएं पृथ्वी के जलवायु और समुद्री जीवन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। ये धाराएं गर्म और ठंडे पानी को भूमध्य रेखा से ध्रुवों तक और ध्रुवों से भूमध्य रेखा की ओर ले जाती हैं, जिससे वैश्विक तापमान का संतुलन बना रहता है। उदाहरण के लिए, गल्फ स्ट्रीम उत्तर-पश्चिमी यूरोप को अपेक्षाकृत गर्म रखतीRead more
महासागरीय जल धाराएं पृथ्वी के जलवायु और समुद्री जीवन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। ये धाराएं गर्म और ठंडे पानी को भूमध्य रेखा से ध्रुवों तक और ध्रुवों से भूमध्य रेखा की ओर ले जाती हैं, जिससे वैश्विक तापमान का संतुलन बना रहता है। उदाहरण के लिए, गल्फ स्ट्रीम उत्तर-पश्चिमी यूरोप को अपेक्षाकृत गर्म रखती है, जबकि कैलिफोर्निया धारा पश्चिमी अमेरिका को ठंडा करती है।
जल धाराएं महासागरीय पोषक तत्वों का वितरण भी सुनिश्चित करती हैं, जिससे समुद्री जीवन को आवश्यक पोषण मिलता है। ये धाराएं प्लवक, मछलियों और अन्य समुद्री जीवों के आवास क्षेत्रों में पोषक तत्वों की आपूर्ति करती हैं, जिससे मछली पालन और जैव विविधता को बढ़ावा मिलता है। इसके अलावा, महासागरीय धाराएं कार्बन डाइऑक्साइड के अवशोषण में भी सहायक होती हैं, जो वैश्विक जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने में मदद करती हैं। इस प्रकार, महासागरीय जल धाराएं पृथ्वी के पर्यावरण और समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
See lessस्वतंत्रोत्तर भारत में जिन विभिन्न चुनौतियों का सामना करना पड़ा, उनमें भारत के विभाजन के दौरान सीमा समझौता और संसाधनों का विभाजन अधिक महत्वपूर्ण थे। चर्चा कीजिए। (उत्तर 250 शब्दों में दें)
स्वतंत्रता के बाद भारत को जिन चुनौतियों का सामना करना पड़ा, उनमें विभाजन के दौरान सीमा समझौता और संसाधनों का विभाजन प्रमुख थे। 1947 में भारत का विभाजन सांप्रदायिक आधार पर हुआ, जिसके परिणामस्वरूप भारत और पाकिस्तान दो अलग-अलग देश बने। इस विभाजन ने न केवल एक राजनीतिक सीमा खींची, बल्कि सामाजिक और आर्थिकRead more
स्वतंत्रता के बाद भारत को जिन चुनौतियों का सामना करना पड़ा, उनमें विभाजन के दौरान सीमा समझौता और संसाधनों का विभाजन प्रमुख थे। 1947 में भारत का विभाजन सांप्रदायिक आधार पर हुआ, जिसके परिणामस्वरूप भारत और पाकिस्तान दो अलग-अलग देश बने। इस विभाजन ने न केवल एक राजनीतिक सीमा खींची, बल्कि सामाजिक और आर्थिक विभाजन भी किया।
सीमा समझौते के तहत, भारत और पाकिस्तान के बीच सीमाओं का निर्धारण किया गया। इस विभाजन में पंजाब और बंगाल जैसे बड़े प्रांतों को बांटा गया, जिससे बड़े पैमाने पर जनसंख्या का विस्थापन हुआ। लाखों लोग अपनी जान बचाने के लिए नए बने देशों में पलायन करने लगे, जिससे सांप्रदायिक हिंसा, नरसंहार और अराजकता फैल गई। इस अवधि में लगभग 10-15 लाख लोग मारे गए, और लाखों लोग बेघर हो गए।
संसाधनों का विभाजन भी एक महत्वपूर्ण चुनौती थी। विभाजन के दौरान रेलवे, उद्योग, सिंचाई परियोजनाएं, सैन्य संपत्तियां, और अन्य संसाधनों का बंटवारा हुआ। इस बंटवारे ने भारत की अर्थव्यवस्था को गहरा धक्का पहुंचाया। विभाजन के कारण पूर्वी पंजाब और बंगाल में कृषि और उद्योग प्रभावित हुए, जिससे भारत की खाद्यान्न आपूर्ति और औद्योगिक उत्पादन में गिरावट आई।
इसके अलावा, भारत को शरणार्थियों के पुनर्वास की भी बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा। लाखों शरणार्थियों को रोजगार, आश्रय और खाद्य सुरक्षा प्रदान करने के लिए सरकार को बड़े पैमाने पर प्रयास करने पड़े। इस संकट ने भारत के नवगठित प्रशासन पर भारी दबाव डाला और विकास की गति को धीमा कर दिया।
इन चुनौतियों के बावजूद, भारत ने धीरे-धीरे इन समस्याओं से उबरते हुए अपने सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक ढांचे को मजबूत किया। विभाजन के बाद की इन चुनौतियों ने भारत को एकजुट रहने और विकास की दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया।
See lessभारत में 1970 के दशक में प्रारंभ हुए नवीन किसान आंदोलनों का विवरण दीजिए। (उत्तर 250 शब्दों में दें)
1970 के दशक में भारत में नवीन किसान आंदोलनों की शुरुआत हुई, जो किसानों की बदलती आवश्यकताओं और अधिकारों के प्रति जागरूकता का प्रतीक थे। ये आंदोलन पुराने किसान आंदोलनों से इस मायने में अलग थे कि इनमें नए प्रकार की संगठनात्मक ढांचा और मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया गया। 1970 के दशक के किसान आंदोलनों कीRead more
1970 के दशक में भारत में नवीन किसान आंदोलनों की शुरुआत हुई, जो किसानों की बदलती आवश्यकताओं और अधिकारों के प्रति जागरूकता का प्रतीक थे। ये आंदोलन पुराने किसान आंदोलनों से इस मायने में अलग थे कि इनमें नए प्रकार की संगठनात्मक ढांचा और मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया गया।
1970 के दशक के किसान आंदोलनों की शुरुआत हरित क्रांति के प्रभाव से हुई। हरित क्रांति ने जहां एक ओर कृषि उत्पादन में वृद्धि की, वहीं दूसरी ओर असमानता भी बढ़ाई। छोटे और मध्यम किसान इस क्रांति से वंचित रह गए, क्योंकि उनकी पहुंच उन्नत तकनीक और संसाधनों तक नहीं थी। इससे असंतोष फैलने लगा और किसानों ने संगठित होकर अपने अधिकारों के लिए आवाज़ उठाई।
इस काल के प्रमुख किसान आंदोलनों में महाराष्ट्र का शेतकारी संगठन (शेतकरी संघटना) प्रमुख था, जिसे शरद जोशी ने 1979 में स्थापित किया। यह आंदोलन किसानों के लिए उचित मूल्य, भूमि सुधार, और सरकारी हस्तक्षेप के खिलाफ था। इसी तरह, पंजाब में भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) का गठन हुआ, जिसने किसानों के आर्थिक हितों के लिए संघर्ष किया।
इन आंदोलनों में किसानों ने सरकारी नीतियों के खिलाफ आवाज़ उठाई, जैसे न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) में वृद्धि, कर्ज माफी, और बिजली तथा सिंचाई के साधनों पर सब्सिडी की मांग। इन आंदोलनों ने किसानों को एकजुट किया और उन्हें राजनीतिक रूप से भी संगठित किया।
1970 के दशक के किसान आंदोलन न केवल आर्थिक बल्कि सामाजिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण थे। इन्होंने भारतीय कृषि नीति में बदलाव लाने के लिए सरकार पर दबाव डाला और किसानों की समस्याओं को राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बनाया।
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