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महात्मा गांधी द्वारा राष्ट्रीय आंदोलन में जनता को लामबद्ध करने हेतु और सामाजिक बुराइयों के विरुद्ध, दोनों के लिए किए गए प्रतीकों और प्रतीकात्मक भाषा के उपयोग पर प्रकाश डालिए। (250 शब्दों में उत्तर दीजिए)
महात्मा गांधी ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन और सामाजिक सुधारों के लिए प्रतीकों और प्रतीकात्मक भाषा का कुशलता से उपयोग किया। ये प्रतीकात्मक उपाय न केवल आंदोलन की पहचान बने बल्कि जनसामान्य को लामबद्ध करने और सामाजिक बुराइयों के खिलाफ जागरूकता फैलाने में भी महत्वपूर्ण साबित हुए। राष्ट्रीय आंदोलन में प्रतRead more
महात्मा गांधी ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन और सामाजिक सुधारों के लिए प्रतीकों और प्रतीकात्मक भाषा का कुशलता से उपयोग किया। ये प्रतीकात्मक उपाय न केवल आंदोलन की पहचान बने बल्कि जनसामान्य को लामबद्ध करने और सामाजिक बुराइयों के खिलाफ जागरूकता फैलाने में भी महत्वपूर्ण साबित हुए।
राष्ट्रीय आंदोलन में प्रतीकों का उपयोग: गांधीजी ने सरल और प्रभावी प्रतीकों का चयन किया जो जनता के दिलों में गहरे उतरे। उदाहरण के लिए, खादी को उन्होंने स्वदेशी और आत्मनिर्भरता का प्रतीक बनाया। खादी की वकालत करते हुए, उन्होंने ब्रिटिश वस्त्रों के बहिष्कार के लिए ‘नमक सत्याग्रह’ जैसी आंदोलनों का नेतृत्व किया। इसके अलावा, चक (घरेलू चरखा) भी एक प्रमुख प्रतीक था, जो न केवल आर्थिक आत्मनिर्भरता का प्रतीक था बल्कि ब्रिटिश औपनिवेशिक नीति के खिलाफ एक प्रतीकात्मक विरोध भी था।
सामाजिक बुराइयों के खिलाफ प्रतीकों का उपयोग: गांधीजी ने सामाजिक सुधारों के लिए भी प्रतीकात्मक भाषा का प्रभावी उपयोग किया। हरिजन शब्द का उपयोग कर उन्होंने जातिवाद के खिलाफ मुहिम चलायी और अस्पृश्यता के खिलाफ आह्वान किया। ‘अहिंसा’ और ‘सत्याग्रह’ जैसे सिद्धांतों का उपयोग कर उन्होंने शांति और सत्य के माध्यम से परिवर्तन की आवश्यकता को रेखांकित किया।
गांधीजी ने सत्याग्रह के माध्यम से जमीनी स्तर पर संघर्ष का आह्वान किया, जिसमें सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों को प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया गया। उनका यह तरीका जनता को संगठित करने और सामाजिक बदलाव के लिए प्रेरित करने में अत्यंत प्रभावी था। इन प्रतीकों और प्रतीकात्मक भाषाओं ने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन को एक सामाजिक और राजनीतिक शक्ति प्रदान की और जनता की भावनाओं को आंदोलित किया।
See less19वीं सदी के सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश के संदर्भ में, शिक्षा और महिला अधिकारों के क्षेत्र में ईश्वर चंद्र विद्यासागर का योगदान अतुलनीय है। विवेचना कीजिए। (250 शब्दों में उत्तर दीजिए)
19वीं सदी के सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश में, ईश्वर चंद्र विद्यासागर का योगदान शिक्षा और महिला अधिकारों के क्षेत्र में अत्यंत महत्वपूर्ण और अतुलनीय रहा है। उस समय भारतीय समाज में जातिवाद, अंधविश्वास, और महिला अधिकारों की कमी ने सामाजिक संरचना को प्रभावित किया था। विद्यासागर ने इस परिदृश्य को बदलने केRead more
19वीं सदी के सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश में, ईश्वर चंद्र विद्यासागर का योगदान शिक्षा और महिला अधिकारों के क्षेत्र में अत्यंत महत्वपूर्ण और अतुलनीय रहा है। उस समय भारतीय समाज में जातिवाद, अंधविश्वास, और महिला अधिकारों की कमी ने सामाजिक संरचना को प्रभावित किया था। विद्यासागर ने इस परिदृश्य को बदलने के लिए कई क्रांतिकारी कदम उठाए।
शिक्षा के क्षेत्र में: विद्यासागर ने शिक्षा के प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने बंगाली भाषा में आधुनिक शिक्षा के लिए पाठ्यक्रम तैयार किया और स्कूलों की स्थापना की। उनके प्रयासों से शिक्षा के क्षेत्र में सुधार हुआ और उन्होंने महिला शिक्षा को प्रोत्साहित किया। विद्यासागर ने “बांग्ला ग्रामर” और “बांग्ला सर्कुलर” जैसे शिक्षण सामग्री का प्रकाशन किया, जिससे शिक्षा का स्तर उन्नत हुआ।
महिला अधिकारों के क्षेत्र में: विद्यासागर ने महिला अधिकारों के प्रति गहरी संवेदनशीलता दिखाई। उन्होंने सती प्रथा और बाल विवाह के खिलाफ संघर्ष किया। 1856 में, उनके प्रयासों से विधवा पुनर्विवाह अधिनियम (Act XV) पारित हुआ, जिसने विधवाओं के लिए पुनर्विवाह की अनुमति दी और समाज में महिला स्थिति में सुधार किया। उन्होंने महिलाओं के शिक्षा और स्वतंत्रता के समर्थन में कई भाषण और लेख लिखे, जिससे समाज में जागरूकता फैली।
विद्यासागर का सामाजिक सुधार कार्य उनके समय के पारंपरिक मान्यताओं को चुनौती देते हुए एक प्रगतिशील दिशा की ओर इशारा करता है। उनकी शिक्षाओं और सुधारात्मक उपायों ने न केवल तत्कालीन समाज को प्रभावित किया बल्कि आधुनिक भारत के सामाजिक ताने-बाने पर भी गहरा प्रभाव डाला। उनकी प्रतिबद्धता और दूरदर्शिता ने भारतीय समाज में शिक्षा और महिला अधिकारों के क्षेत्र में स्थायी परिवर्तन किया।
See lessभारत में, कुछ आचरण नियम हैं, जो एक अधिकारी के व्यवहार और आचरण को नियंत्रित करते हैं। इनमें केंद्रीय सिविल सेवा (आचरण) नियमावली, 1964; अखिल भारतीय सिविल सेवा (आचरण) नियमावली, 1968 आदि शामिल हैं। क्या आपको लगता है कि भारत में सिविल सेवकों के लिए एक पृथक आचार संहिता की आवश्यकता है? ऐसी आचार संहिता में कौन-से महत्वपूर्ण मूल्य शामिल होने चाहिए? (150 शब्दों में उत्तर दीजिए)
भारत में सिविल सेवकों के लिए एक पृथक आचार संहिता की आवश्यकता है, क्योंकि यह उनके पेशेवर और नैतिक मानकों को स्पष्ट रूप से परिभाषित कर सकती है और पारदर्शिता को बढ़ावा दे सकती है। वर्तमान नियमावली में कुछ खामियां और अस्पष्टताएँ हैं जो विभिन्न परिस्थितियों में भ्रम और विवाद उत्पन्न कर सकती हैं। एक पृथकRead more
भारत में सिविल सेवकों के लिए एक पृथक आचार संहिता की आवश्यकता है, क्योंकि यह उनके पेशेवर और नैतिक मानकों को स्पष्ट रूप से परिभाषित कर सकती है और पारदर्शिता को बढ़ावा दे सकती है। वर्तमान नियमावली में कुछ खामियां और अस्पष्टताएँ हैं जो विभिन्न परिस्थितियों में भ्रम और विवाद उत्पन्न कर सकती हैं।
एक पृथक आचार संहिता में निम्नलिखित महत्वपूर्ण मूल्य शामिल होने चाहिए:
यह आचार संहिता सिविल सेवकों के पेशेवर व्यवहार को स्पष्ट दिशा-निर्देश प्रदान करेगी और सरकारी कामकाज में नैतिकता की नींव मजबूत करेगी।
See lessसरकार द्वारा विज्ञापनों पर सार्वजनिक धन व्यय करने से जुड़े नैतिक मुद्दों पर चर्चा कीजिए? इन मुद्दों के समाधान के लिए आप क्या उपाय सुझाएंगे? (150 शब्दों में उत्तर दीजिए)
सरकार द्वारा विज्ञापनों पर सार्वजनिक धन व्यय करने से जुड़े नैतिक मुद्दों में पारदर्शिता की कमी, संसाधनों का दुरुपयोग, और राजनीतिक लाभ के लिए विज्ञापन का उपयोग शामिल हैं। सरकारी विज्ञापन अक्सर जनता को सरकारी योजनाओं और नीतियों की जानकारी देने के उद्देश्य से होते हैं, लेकिन कभी-कभी इनका उपयोग राजनीतिकRead more
सरकार द्वारा विज्ञापनों पर सार्वजनिक धन व्यय करने से जुड़े नैतिक मुद्दों में पारदर्शिता की कमी, संसाधनों का दुरुपयोग, और राजनीतिक लाभ के लिए विज्ञापन का उपयोग शामिल हैं। सरकारी विज्ञापन अक्सर जनता को सरकारी योजनाओं और नीतियों की जानकारी देने के उद्देश्य से होते हैं, लेकिन कभी-कभी इनका उपयोग राजनीतिक प्रचार के लिए किया जाता है, जो संसाधनों का अनुचित प्रयोग होता है।
इन मुद्दों के समाधान के लिए, सरकार को विज्ञापन खर्चों में पारदर्शिता सुनिश्चित करनी चाहिए और इसे सार्वजनिक डोमेन में प्रस्तुत करना चाहिए। इसके अतिरिक्त, एक स्वतंत्र निगरानी निकाय की स्थापना की जा सकती है जो विज्ञापन के बजट और सामग्री की समीक्षा करे। विज्ञापन के उद्देश्य और कंटेंट की स्पष्टता और उपयोगिता सुनिश्चित करने के लिए नियम और दिशा-निर्देशों को लागू किया जाना चाहिए। इससे सरकारी विज्ञापनों की प्रभावशीलता बढ़ेगी और संसाधनों का उचित उपयोग सुनिश्चित होगा।
See lessकानून बुनियादी मूल्य संघर्षों का समाधान करके, व्यक्तिगत विवादों का निपटारा करके और ऐसे नियम, जिनका हमारे शासकों द्वारा भी पालन करना अनिवार्य है, बनाकर सामाजिक नियंत्रण को बढ़ावा देते हैं। लेकिन, कानून हमेशा अपने उद्देश्य को प्राप्त नहीं करता है बल्कि यह समाज को हानि भी पहुंचा सकता है। इस पृष्ठभूमि में, कानून की सीमाओं और शिथिलताओं पर सोदाहरण चर्चा कीजिए। (150 शब्दों में उत्तर दीजिए)
कानून समाज में अनुशासन और न्याय स्थापित करने का प्रयास करता है, लेकिन इसकी सीमाएं और शिथिलताएँ भी होती हैं। उदाहरण के लिए, कानूनी प्रक्रिया में जटिलता और देर से न्याय की प्रक्रिया से गरीब और कमजोर वर्ग के लोगों को नुकसान पहुँचता है। इसके अलावा, कानून में अस्पष्टता और बेतुके नियम समाज के वास्तविक समसRead more
कानून समाज में अनुशासन और न्याय स्थापित करने का प्रयास करता है, लेकिन इसकी सीमाएं और शिथिलताएँ भी होती हैं। उदाहरण के लिए, कानूनी प्रक्रिया में जटिलता और देर से न्याय की प्रक्रिया से गरीब और कमजोर वर्ग के लोगों को नुकसान पहुँचता है। इसके अलावा, कानून में अस्पष्टता और बेतुके नियम समाज के वास्तविक समस्याओं को सही ढंग से संबोधित नहीं कर पाते।
एक उदाहरण के रूप में, न्यायिक प्रणाली की धीमी गति से मामलों का लंबा खिंचाव, जैसे कि अदालतों में लंबित मामले, न्याय की देरी का कारण बनता है। इसी तरह, एक अद्यतन न होने वाले कानून जैसे कि पुराने भूमि कानून, आधुनिक सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियों के साथ मेल नहीं खाते, जिससे गलतफहमी और असमानता उत्पन्न होती है। इन सीमाओं और शिथिलताओं से निपटने के लिए, कानूनी सुधार और प्रक्रिया में पारदर्शिता की आवश्यकता है।
See lessतिरुक्कुरल व्यावसायिक नैतिकता के लिए शाश्वत मूल्यों और नैतिक सिद्धांतों पर आधारित एक सचेत और भाव-केंद्रित दृष्टिकोण की वकालत करता है, जिसके द्वारा व्यावसायिक नेतृत्व कर्ताओं के आचरण को नियंत्रित किया जाना चाहिए। वर्तमान समय में व्यवसायों द्वारा सामना किए जाने वाले नैतिक मुद्दे क्या हैं? तिरुक्कुरल की शिक्षाएं उनके समाधान में कैसे सहायता करेंगी? (150 शब्दों में उत्तर दीजिए)
वर्तमान में व्यवसायों द्वारा सामना किए जा रहे नैतिक मुद्दों में भ्रष्टाचार, पारदर्शिता की कमी, पर्यावरणीय संकट, और कर्मचारी शोषण शामिल हैं। तिरुक्कुरल की शिक्षाएं इन समस्याओं के समाधान में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। तिरुक्कुरल व्यावसायिक नैतिकता को सत्य, ईमानदारी, और दयालुता पर आधारित मानता हैRead more
वर्तमान में व्यवसायों द्वारा सामना किए जा रहे नैतिक मुद्दों में भ्रष्टाचार, पारदर्शिता की कमी, पर्यावरणीय संकट, और कर्मचारी शोषण शामिल हैं। तिरुक्कुरल की शिक्षाएं इन समस्याओं के समाधान में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। तिरुक्कुरल व्यावसायिक नैतिकता को सत्य, ईमानदारी, और दयालुता पर आधारित मानता है, जो व्यवसायिक नेताओं को भ्रष्टाचार और धोखाधड़ी से बचने के लिए प्रेरित करता है। इसके साथ ही, तिरुक्कुरल की शिक्षा यह भी बताती है कि समाज और पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारी का निर्वहन करना आवश्यक है। यह दृष्टिकोण व्यवसायों को पारदर्शिता और सस्टेनेबिलिटी की ओर अग्रसर कर सकता है, जिससे नैतिक मुद्दों का समाधान किया जा सकता है और एक सकारात्मक व्यापारिक माहौल का निर्माण किया जा सकता है।
See lessकार्य किसी व्यक्ति की अभिवृत्ति में गहन बदलाव के लिए उत्प्रेरक होता है।" आप इस कथन से कहां तक सहमत हैं? अपने उत्तर की पुष्टि के लिए उपयुक्त उदाहरण दीजिए। (150 शब्दों में उत्तर दीजिए)
"कार्य किसी व्यक्ति की अभिवृत्ति में गहन बदलाव के लिए उत्प्रेरक होता है" इस कथन से सहमत हुआ जा सकता है। कार्य और अनुभव व्यक्ति की सोच और व्यवहार को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उदाहरण के रूप में, एक व्यक्ति जो शुरू में समाजसेवा में संलग्न नहीं था, यदि वह किसी सामाजिक परियोजना पर काम करताRead more
“कार्य किसी व्यक्ति की अभिवृत्ति में गहन बदलाव के लिए उत्प्रेरक होता है” इस कथन से सहमत हुआ जा सकता है। कार्य और अनुभव व्यक्ति की सोच और व्यवहार को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
उदाहरण के रूप में, एक व्यक्ति जो शुरू में समाजसेवा में संलग्न नहीं था, यदि वह किसी सामाजिक परियोजना पर काम करता है, तो उसकी दृष्टि में बदलाव आ सकता है। समाजसेवा के दौरान उसे समाज की समस्याओं और जरूरतों का गहरा अनुभव होता है, जिससे उसकी सोच में बदलाव आ सकता है और वह समाज के प्रति अधिक संवेदनशील हो सकता है।
इसके अतिरिक्त, एक नया पेशेवर चुनौतीपूर्ण परियोजना को अपनाते समय अपनी क्षमता और दक्षताओं को समझता है, जिससे आत्म-संवाद और आत्मविश्वास में सुधार होता है। इन कार्यों के अनुभव से उसकी अभिवृत्ति और सोच में परिवर्तन आता है।
इस प्रकार, कार्य व्यक्तिगत विकास और अभिवृत्ति में महत्वपूर्ण परिवर्तन लाने में सक्षम हो सकता है।
See lessयह बहस चल रही है कि सहानुभूति को परिभाषित करने के लिए आवश्यक मुख्य घटक कौन-से हैं। हालांकि, मनोवैज्ञानिकों की परिभाषाओं में सर्वाधिक सामान्य रूप से शामिल तीन घटक प्रभावशाली समझ, भावनात्मक लगाव और संज्ञानात्मक दृष्टिकोण रखना हैं। उपयुक्त उदाहरण प्रस्तुत करते हुए समझाइए। (150 शब्दों में उत्तर दीजिए)
सहानुभूति को समझने के लिए मुख्य घटक हैं प्रभावशाली समझ, भावनात्मक लगाव, और संज्ञानात्मक दृष्टिकोण। उदाहरण के माध्यम से इसे स्पष्ट किया जा सकता है: प्रभावशाली समझ: यह घटक किसी के भावनात्मक अनुभव को समझने की क्षमता है। उदाहरण के लिए, यदि आपका मित्र निराश है, तो आप उसकी स्थिति को समझते हैं कि वह क्योंRead more
सहानुभूति को समझने के लिए मुख्य घटक हैं प्रभावशाली समझ, भावनात्मक लगाव, और संज्ञानात्मक दृष्टिकोण। उदाहरण के माध्यम से इसे स्पष्ट किया जा सकता है:
इन तीन घटकों के संयोजन से सहानुभूति उत्पन्न होती है, जो व्यक्तिगत और सामाजिक संबंधों को सुदृढ़ करती है।
See lessबूंद-बूंद से घड़ा भरता है। इसी प्रकार, बुद्धिमान व्यक्ति अच्छाई को थोड़ा-थोड़ा आत्मसात करके, स्वयं को इससे परिपूर्ण कर लेता है।" विवेचना कीजिए।(150 शब्दों में उत्तर दीजिए)
वाक्य "बूंद-बूंद से घड़ा भरता है। इसी प्रकार, बुद्धिमान व्यक्ति अच्छाई को थोड़ा-थोड़ा आत्मसात करके, स्वयं को इससे परिपूर्ण कर लेता है।" एक महत्वपूर्ण जीवन-दर्शन को व्यक्त करता है। यह कहता है कि जैसे घड़ा धीरे-धीरे बूंद-बूंद पानी से भरता है, वैसे ही व्यक्ति की अच्छाई भी धीरे-धीरे समेटी जाती है। इस विRead more
वाक्य “बूंद-बूंद से घड़ा भरता है। इसी प्रकार, बुद्धिमान व्यक्ति अच्छाई को थोड़ा-थोड़ा आत्मसात करके, स्वयं को इससे परिपूर्ण कर लेता है।” एक महत्वपूर्ण जीवन-दर्शन को व्यक्त करता है। यह कहता है कि जैसे घड़ा धीरे-धीरे बूंद-बूंद पानी से भरता है, वैसे ही व्यक्ति की अच्छाई भी धीरे-धीरे समेटी जाती है। इस विचार में एक गहरी सिख है कि बदलाव और सुधार एक बार में बड़े कदमों से नहीं, बल्कि निरंतर छोटे-छोटे प्रयासों से आता है। बुद्धिमान व्यक्ति निरंतर अच्छाई के छोटे-छोटे हिस्से को अपनाता है और उसे अपने जीवन में लागू करता है। यह एक सतत प्रक्रिया है, जिसमें समय और धैर्य की आवश्यकता होती है। छोटे-छोटे प्रयास और आदतें मिलकर व्यक्ति को एक परिपूर्ण और नैतिक जीवन की ओर ले जाती हैं। इस प्रकार, आत्म-विकास और नैतिकता की प्राप्ति में स्थिरता और नियमितता महत्वपूर्ण हैं।
See lessकृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) में होने वाली प्रगति से राष्ट्रीय सुरक्षा के दृष्टिकोण से अवसरों के साथ-साथ चुनौतियों में भी वृद्धि होगी। भारत के संदर्भ में चर्चा कीजिए। (250 शब्दों में उत्तर दीजिए)
कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और राष्ट्रीय सुरक्षा: भारत के संदर्भ में अवसर और चुनौतियाँ कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) के क्षेत्र में हो रही प्रगति राष्ट्रीय सुरक्षा के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण अवसर और चुनौतियाँ दोनों प्रस्तुत करती है। भारत में, AI का उपयोग सुरक्षा प्रबंधन और रक्षा प्रणाली को समृद्ध करने के साRead more
कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और राष्ट्रीय सुरक्षा: भारत के संदर्भ में अवसर और चुनौतियाँ
कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) के क्षेत्र में हो रही प्रगति राष्ट्रीय सुरक्षा के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण अवसर और चुनौतियाँ दोनों प्रस्तुत करती है। भारत में, AI का उपयोग सुरक्षा प्रबंधन और रक्षा प्रणाली को समृद्ध करने के साथ-साथ कई नए खतरों को भी जन्म दे रहा है।
अवसर:
चुनौतियाँ:
निष्कर्ष:
AI में प्रगति भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा पर एक महत्वपूर्ण प्रभाव डालती है। इसके अवसरों का सही उपयोग और चुनौतियों का प्रभावी समाधान करने के लिए एक संतुलित और सुविचारित रणनीति की आवश्यकता है। AI को सुरक्षा के दृष्टिकोण से मजबूत और सुसंगठित ढंग से लागू करके भारत एक सुरक्षित और तकनीकी रूप से सक्षम भविष्य की ओर अग्रसर हो सकता है।
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