उत्तर लेखन के लिए रोडमैप परिचय: भारत में औद्योगिक उत्सर्जन का संक्षिप्त विवरण। प्रमुख स्रोतों का उल्लेख। प्राथमिक स्रोत: थर्मल पावर सेक्टर इस्पात उद्योग सीमेंट उद्योग तेल और गैस उद्योग उर्वरक उद्योग एल्युमीनियम उद्योग परिवहन क्षेत्र चुनौतियाँ: कोयले पर निर्भरता स्वच्छ प्रौद्योगिकियों की उच्च लागत विनियामक प्रवर्तन की कमजोरी वित्तीय प्रोत्साहनों की कमी औद्योगिक प्रक्रियाओं में अकुशलता चक्रीय ...
मॉडल उत्तर 1. बैकवर्ड लिंकेज बैकवर्ड लिंकेज खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को कच्चे माल की आपूर्ति के स्रोतों से जोड़ता है। जैसे, केचप निर्माता को टमाटर की आवश्यकता होती है। यह किसानों को उचित गुणवत्ता के उत्पाद उगाने के लिए प्रोत्साहित करता है और उन्हें सक्षम बनाता है। 2. फॉरवर्ड लिंकेज फॉरवर्ड लिंकेज बाजRead more
मॉडल उत्तर
1. बैकवर्ड लिंकेज
बैकवर्ड लिंकेज खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को कच्चे माल की आपूर्ति के स्रोतों से जोड़ता है। जैसे, केचप निर्माता को टमाटर की आवश्यकता होती है। यह किसानों को उचित गुणवत्ता के उत्पाद उगाने के लिए प्रोत्साहित करता है और उन्हें सक्षम बनाता है।
2. फॉरवर्ड लिंकेज
फॉरवर्ड लिंकेज बाजारों से जुड़ने में मदद करता है, जिसमें भंडारण, सड़क और रेल नेटवर्क जैसी भौतिक अवसंरचना शामिल होती है।
महत्व:
- बिचौलियों को हटाने से किसानों, विशेषकर सीमांत और मध्यम किसानों, को बेहतर मूल्य प्राप्त होता है।
- कोल्ड स्टोरेज सुविधाओं की स्थापना से खाद्य अपव्यय में कमी आती है, विशेष रूप से फल और डेयरी उत्पादों के लिए।
- बैकवर्ड लिंकेज कृषि उत्पादों के लिए समय पर कच्चे माल और भंडारण सुविधाएं सुनिश्चित करता है।
- वितरण नेटवर्क उपभोक्ताओं तक समय पर खाद्य उत्पादों की आपूर्ति सुनिश्चित करता है, जिससे उत्पाद की गुणवत्ता में सुधार होता है।
- यह सभी हितधारकों के लिए समान अवसर प्रदान करता है और प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ावा देता है।
भारत में मजबूत लिंकेज स्थापित करने में चुनौतियाँ
1. खंडित भूमि जोतें
खंडित भूमि जोतों के कारण विपणन योग्य अधिशेष कम और बिखरा हुआ होता है, जो गुणवत्ता युक्त कच्चे माल की समय पर खरीद को कठिन बनाता है (स्रोत: कृषि मंत्रालय)।
2. उच्च मौसमीयता
कच्चे माल के उत्पादन की उच्च मौसमीयता लिंकेज के प्रभावी उपयोग को सीमित करती है।
3. अवसंरचनात्मक सुविधाओं की कमी
कोल्ड स्टोरेज, परिवहन सुविधाओं, और विद्युत की कमी बैकवर्ड और फॉरवर्ड समेकन में बाधा उत्पन्न करती है (स्रोत: खाद्य प्रसंस्करण उद्योग रिपोर्ट)।
4. असंगठित उद्योग
खाद्य प्रसंस्करण उद्योग की अत्यधिक खंडित और असंगठित प्रकृति कुशल आपूर्ति श्रृंखला सुनिश्चित करने की क्षमता को सीमित करती है।
5. जानकारी की कमी
किसानों और लघु प्रसंस्करणकर्ताओं के पास जानकारी की कमी और निम्न स्तर के प्रसंस्करण के कारण उत्पादों की गुणवत्ता में समझौता होता है।
6. विधायन की जटिलता
खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र को शासित करने वाले विधायनों की बहुलता और विरोधाभास भी एक बड़ी बाधा है (स्रोत: सरकारी रिपोर्ट)।
निष्कर्ष
इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए, सरकार ने ‘स्कीम फॉर क्रिएशन ऑफ बैकवर्ड एंड फॉरवर्ड लिंकेज’ शुरू की है, जो वित्तीय सहायता प्रदान करती है। इसके साथ ही, मेगा इंटरनेशनल फूड समिट और वर्ल्ड फूड इंडिया हैकथॉन जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से टेक्नोलॉजी का उपयोग कर समाधान खोजने का प्रयास किया जा रहा है। यह सब खाद्य प्रसंस्करण उद्योग की प्रतिस्पर्धात्मकता और प्रभावशीलता को बढ़ाने में मदद करेगा।
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मॉडल उत्तर भारत में औद्योगिक उत्सर्जन का मुद्दा तेजी से बढ़ता जा रहा है, जो न केवल पर्यावरणीय स्थिरता के लिए बल्कि सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए भी गंभीर चिंता का विषय है। औद्योगिक गतिविधियों से उत्पन्न होने वाले ग्रीनहाउस गैसों का एक बड़ा हिस्सा थर्मल पावर, इस्पात, सीमेंट, तेल और गैस, उर्वरक, एल्युमीनRead more
मॉडल उत्तर
भारत में औद्योगिक उत्सर्जन का मुद्दा तेजी से बढ़ता जा रहा है, जो न केवल पर्यावरणीय स्थिरता के लिए बल्कि सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए भी गंभीर चिंता का विषय है। औद्योगिक गतिविधियों से उत्पन्न होने वाले ग्रीनहाउस गैसों का एक बड़ा हिस्सा थर्मल पावर, इस्पात, सीमेंट, तेल और गैस, उर्वरक, एल्युमीनियम और परिवहन क्षेत्रों से आता है।
प्राथमिक स्रोत
चुनौतियाँ
भारत के औद्योगिक क्षेत्र को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जैसे कोयले पर अत्यधिक निर्भरता, स्वच्छ प्रौद्योगिकियों की उच्च लागत, विनियामक प्रवर्तन की कमजोरी, वित्तीय प्रोत्साहनों की कमी, औद्योगिक प्रक्रियाओं में अकुशलता और चक्रीय अर्थव्यवस्था में धीमी प्रगति। इसके अलावा, आर्थिक विकास और रोजगार सृजन के लिए संतुलन बनाना भी एक महत्वपूर्ण चुनौती है।
संतुलन के उपाय
भारत को आर्थिक विकास और पर्यावरणीय स्थिरता के बीच संतुलन प्राप्त करने के लिए कई उपाय करने होंगे:
आगे की राह
भारत को औद्योगिक विकास और उत्सर्जन में कमी के बीच संतुलन बनाना अत्यंत आवश्यक है। क्योटो प्रोटोकॉल के सिद्धांतों के अनुसार, भारत को अपनी विकासात्मक आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए उपायों को लागू करना चाहिए। इन प्रयासों से न केवल औद्योगिक क्षेत्र की स्थिरता बढ़ेगी, बल्कि यह SDG 7, 9 और 13 की दिशा में भी सकारात्मक कदम होगा।
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