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“बाहरी अंतरिक्ष के बढ़ते सैन्यीकरण के साथ, सीमा तेजी से युद्ध का नया रंगमंच बन रही है।” भारत को अपनी अंतरिक्ष संपत्तियों की सुरक्षा में आने वाली चुनौतियों की आलोचनात्मक जांच करें और अपनी अंतरिक्ष क्षमताओं को बढ़ाने के उपाय सुझाएँ। (200 शब्दों में उत्तर दीजिए)
बाहरी अंतरिक्ष का सैन्यीकरण बाहरी अंतरिक्ष का सैन्यीकरण एक गंभीर चिंता का विषय बन चुका है। 21वीं सदी में अंतरिक्ष को युद्ध का नया रंगमंच माना जा रहा है। अमेरिका, रूस, चीन जैसे देशों ने अंतरिक्ष में सैन्य अभियानों और क्षमताओं को बढ़ावा दिया है। हाल ही में, चीन ने अपनी "आंतरिक्ष सैन्य रणनीति" को बढ़ावRead more
बाहरी अंतरिक्ष का सैन्यीकरण
बाहरी अंतरिक्ष का सैन्यीकरण एक गंभीर चिंता का विषय बन चुका है। 21वीं सदी में अंतरिक्ष को युद्ध का नया रंगमंच माना जा रहा है। अमेरिका, रूस, चीन जैसे देशों ने अंतरिक्ष में सैन्य अभियानों और क्षमताओं को बढ़ावा दिया है। हाल ही में, चीन ने अपनी “आंतरिक्ष सैन्य रणनीति” को बढ़ावा दिया, जो भारत के लिए चिंता का कारण बन सकती है।
भारत के लिए सुरक्षा चुनौतियाँ
स्पेस जंक: अंतरिक्ष में बढ़ते मलबे के कारण भारत के उपग्रहों और अंतरिक्ष मिशनों की सुरक्षा को खतरा है।
विदेशी सैन्य हस्तक्षेप: चीन और पाकिस्तान जैसे देशों की बढ़ती अंतरिक्ष क्षमताएँ भारत की रक्षा के लिए चुनौती पैदा कर सकती हैं।
साइबर हमले: अंतरिक्ष आधारित संचार और निगरानी सिस्टम को साइबर हमलों का सामना करना पड़ सकता है।
भारत के लिए उपाय
स्पेस डिफेंस टेक्नोलॉजी में निवेश: भारत को उन्नत रक्षा प्रणालियाँ विकसित करनी चाहिए, जैसे एंटी-सैटेलाइट मिसाइल्स (ASAT) और डिफेंस सैटेलाइट नेटवर्क।
अंतरिक्ष संधि में सक्रिय भूमिका: भारत को अंतरिक्ष संधियों को लागू करने में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए, जिससे सैन्य गतिविधियाँ नियंत्रित हो सकें।
नागरिक और सैन्य सहयोग: नागरिक और सैन्य अंतरिक्ष कार्यक्रमों का संयोजन करके सुरक्षा बढ़ाई जा सकती है।
भारत को अंतरिक्ष में अपनी स्थिरता और सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए ये कदम उठाने होंगे।
See lessहालांकि यह प्रतिबंधात्मक लग सकता है, फिर भी अनामिकता लोक सेवाओं की सबसे बड़ी शक्ति है। हाल के समय में सोशल मीडिया के विकास के परिप्रेक्ष्य में इस पर टिप्पणी कीजिए। (150 शब्दों में उत्तर दीजिए)
अनामिकता और लोक सेवाएं: सोशल मीडिया के दौर में एक पुनरावलोकन 1. अनामिकता की शक्ति जनता की अभिव्यक्ति की आज़ादी: अनामिकता लोगों को बिना डर के अपनी राय रखने की शक्ति देती है, खासकर जब वे सरकार या किसी प्रभावशाली संस्था की आलोचना करते हैं। लोक सेवाओं में पारदर्शिता: जब लोग बिना पहचान उजागर किए भ्रष्टाचRead more
अनामिकता और लोक सेवाएं: सोशल मीडिया के दौर में एक पुनरावलोकन
1. अनामिकता की शक्ति
जनता की अभिव्यक्ति की आज़ादी: अनामिकता लोगों को बिना डर के अपनी राय रखने की शक्ति देती है, खासकर जब वे सरकार या किसी प्रभावशाली संस्था की आलोचना करते हैं।
लोक सेवाओं में पारदर्शिता: जब लोग बिना पहचान उजागर किए भ्रष्टाचार या प्रशासनिक खामियों की सूचना देते हैं, तो यह शासन को अधिक उत्तरदायी बनाता है।
2. सोशल मीडिया और अनामिकता
फेक न्यूज़ और ट्रोलिंग का खतरा: हाल के वर्षों में, विशेषकर 2024 के आम चुनावों के दौरान, अनाम खातों द्वारा गलत जानकारी फैलाने और नफरत फैलाने की घटनाएं बढ़ी हैं।
सरकारी नियंत्रण और निगरानी: X (पूर्व में ट्विटर) और Facebook जैसे प्लेटफॉर्म अब कई देशों में सरकार के दबाव में अनाम पोस्ट्स को हटाने लगे हैं।
3. संतुलन की आवश्यकता
गोपनीयता बनाम जवाबदेही: यह जरूरी है कि अनामिकता का दुरुपयोग न हो, लेकिन साथ ही इसका पूरी तरह से निषेध भी न किया जाए।
समय की मांग: वर्तमान में, तकनीकी और नीति दोनों स्तरों पर एक ऐसा तंत्र आवश्यक है, जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सूचना की शुद्धता के बीच संतुलन बनाए।
हाल के वैश्विक व्यापार बदलावों के मद्देनजर, निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता बनाए रखने में भारत के कृषि क्षेत्र के सामने आने वाली चुनौतियों का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें। कृषि विपणन को बढ़ाने और छोटे किसानों को मजबूत करने के उपाय सुझाएँ। (200 शब्द)
भारत के कृषि क्षेत्र की निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता: मौजूदा चुनौतियाँ 1. वैश्विक व्यापार में बदलाव कोरोना महामारी के बाद से वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में भारी बदलाव आया है, जिससे भारत के कृषि निर्यात पर दबाव बढ़ा है। कई देशों ने कृषि उत्पादों के आयात नियमों को कड़ा किया है, जिससे भारत की निर्यात प्रतिRead more
भारत के कृषि क्षेत्र की निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता: मौजूदा चुनौतियाँ
1. वैश्विक व्यापार में बदलाव
कोरोना महामारी के बाद से वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में भारी बदलाव आया है, जिससे भारत के कृषि निर्यात पर दबाव बढ़ा है।
कई देशों ने कृषि उत्पादों के आयात नियमों को कड़ा किया है, जिससे भारत की निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता में कमी आई है।
2. उत्पादन लागत में वृद्धि
उर्वरक और ईंधन की कीमतों में वृद्धि, जैसे कि रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण, भारत के किसानों की उत्पादन लागत बढ़ गई है।
इससे भारतीय कृषि उत्पादों की लागत वैश्विक बाजार में अन्य देशों के मुकाबले उच्च हो रही है।
3. तकनीकी और बुनियादी ढांचे की कमी
सही तकनीक और आधुनिक कृषि उपकरणों की कमी के कारण भारतीय किसानों का उत्पादन स्तर कम है।
निर्यात के लिए गुणवत्ता मानकों को पूरा करने में भी कठिनाई हो रही है।
4. छोटे किसानों को सशक्त बनाना
सशक्त किसान संगठन: छोटे किसानों के लिए सहकारी समितियाँ और किसान समूहों को मजबूत करना चाहिए।
प्रौद्योगिकी का उपयोग: कृषि तकनीकों को सस्ती और सुलभ बनाना ताकि किसान बेहतर उपज प्राप्त कर सकें।
निर्यात चैनल में सुधार: कृषि विपणन को बेहतर बनाने के लिए उच्च गुणवत्ता वाले उत्पादों के लिए अंतर्राष्ट्रीय मानकों के साथ विपणन नेटवर्क बनाना।
निष्कर्ष
See lessभारत को कृषि निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता बनाए रखने के लिए वैश्विक बाजार की बदलती स्थितियों के साथ समायोजन करना होगा और छोटे किसानों को समर्थन देने के लिए संरचनात्मक सुधारों की आवश्यकता है।
स्वतंत्रता के बाद भारत में निर्धनता आकलन कैसे विकसित हुआ है, इस पर विभिन्न समितियों द्वारा उपयोग की गई पद्धति पर ध्यान केंद्रित करते हुए व्याख्या कीजिए। (250 शब्दों में उत्तर दीजिए)
स्वतंत्रता के बाद निर्धनता आकलन का विकास स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत में निर्धनता आकलन का कार्य कई समितियों द्वारा किया गया। समय के साथ इन समितियों ने विभिन्न पद्धतियों का उपयोग किया, जो समाज और अर्थव्यवस्था के बदलते पहलुओं को ध्यान में रखते थे। 1. कुंदनलाल समिति (1944) इस समिति ने निर्धनता का आRead more
स्वतंत्रता के बाद निर्धनता आकलन का विकास
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत में निर्धनता आकलन का कार्य कई समितियों द्वारा किया गया। समय के साथ इन समितियों ने विभिन्न पद्धतियों का उपयोग किया, जो समाज और अर्थव्यवस्था के बदलते पहलुओं को ध्यान में रखते थे।
1. कुंदनलाल समिति (1944)
इस समिति ने निर्धनता का आकलन परिवारों की आवश्यकताओं और उनकी आय के आधार पर किया।
उन्होंने यह सुझाव दिया कि निर्धनता के लिए आय के स्तर को मुख्य मानदंड माना जाए।
2. गंगूलि समिति (1962)
इस समिति ने परिवार की भोजन, वस्त्र और आवास की स्थिति को निर्धनता का प्रमुख मानदंड माना।
समिति ने सामाजिक सुरक्षा और जीवन स्तर के आंकड़ों पर अधिक ध्यान दिया।
3. सरकार की समिति और राष्ट्रीय सर्वेक्षण (1990-2000)
एनएसएसओ (राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन) ने नए पैमानों के तहत गरीबी का आकलन शुरू किया।
1993-94 में “खपत आधारित निर्धनता” के आकलन पर जोर दिया गया, जिसमें उपभोक्ता खर्च को प्राथमिक मानक माना गया।
4. हाल की पहल (2020 और बाद)
2020 में नेशनल पोवर्टी इंडेक्स (NPI) और वैश्विक गरीबी रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 10-15% लोग अब भी निर्धनता रेखा से नीचे हैं।
महामारी और लॉकडाउन ने निर्धनता के आकलन को और भी जटिल बना दिया, जिससे नए पैमानों की आवश्यकता महसूस हुई।
निष्कर्ष इन समितियों और पहलियों ने समय के साथ निर्धनता आकलन की पद्धतियों को विकसित किया है, जो अब ज्यादा वास्तविक और बहुआयामी हैं।
See lessभारत के प्लास्टिक अपशिष्ट संकट को दूर करने में नवीन प्लास्टिक रीसाइक्लिंग तकनीकों के महत्व पर चर्चा करें। भारत में प्लास्टिक प्रबंधन को बढ़ाने के लिए प्रमुख प्रगति, उनके बड़े पैमाने पर अपनाने में चुनौतियों और संभावित नीतिगत उपायों पर प्रकाश डालें। (200 शब्द)
भारत के प्लास्टिक अपशिष्ट संकट पर चर्चा भारत में प्लास्टिक अपशिष्ट संकट एक गंभीर समस्या बन चुकी है, जिसका प्रभाव पर्यावरण, स्वास्थ्य और समाज पर पड़ रहा है। इसके समाधान के लिए नई रीसाइक्लिंग तकनीकों की आवश्यकता है। नवीन रीसाइक्लिंग तकनीकों का महत्व तेजी से पुनर्नवीनीकरण: नई रीसाइक्लिंग तकनीकें, जैसे कRead more
भारत के प्लास्टिक अपशिष्ट संकट पर चर्चा
भारत में प्लास्टिक अपशिष्ट संकट एक गंभीर समस्या बन चुकी है, जिसका प्रभाव पर्यावरण, स्वास्थ्य और समाज पर पड़ रहा है। इसके समाधान के लिए नई रीसाइक्लिंग तकनीकों की आवश्यकता है।
नवीन रीसाइक्लिंग तकनीकों का महत्व
तेजी से पुनर्नवीनीकरण: नई रीसाइक्लिंग तकनीकें, जैसे कि पायरोलिसिस और क्रायोजेनिक रीसाइक्लिंग, प्लास्टिक को उच्च तापमान पर पुनः उपयोग योग्य उत्पादों में बदलने में सक्षम हैं।
सस्टेनेबल विकल्प: बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक और जैविक रीसाइक्लिंग प्रक्रियाएं पर्यावरण पर कम प्रभाव डालती हैं।
प्रमुख प्रगति
प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट नियम 2022: केंद्र सरकार ने कड़े दिशा-निर्देश जारी किए हैं, जिनमें प्लास्टिक की थैलियों पर प्रतिबंध और रीसाइक्लिंग की नई तकनीकों को बढ़ावा दिया गया है।
बड़ी कंपनियों का योगदान: जैसे आईटीसी और वोडाफोन जैसी कंपनियां प्लास्टिक रीसाइक्लिंग में नवाचार कर रही हैं।
चुनौतियाँ
अवसंरचना की कमी: प्लास्टिक रीसाइक्लिंग संयंत्रों का अभाव और संग्रहण की समस्याएं बड़े पैमाने पर अपनाने में बाधक हैं।
सार्वजनिक जागरूकता की कमी: लोगों में प्लास्टिक की सही तरीके से निपटान की जानकारी का अभाव है।
संभावित नीतिगत उपाय
जागरूकता अभियान: स्कूलों और समुदायों में प्लास्टिक रीसाइक्लिंग के लाभों पर शिक्षा दी जाए।
प्रोत्साहन योजनाएं: सरकार द्वारा रीसाइक्लिंग कंपनियों को सब्सिडी और टैक्स छूट दिए जाएं।
इन कदमों से भारत में प्लास्टिक अपशिष्ट संकट को नियंत्रित किया जा सकता है।
See lessस्वतंत्रता के बाद भारत में सहकारी समितियों के विकास और कृषि क्षेत्र में उनके योगदान पर विचार करें। (उत्तर 150 शब्दों में दें)
भारत में सहकारी समितियों का विकास और कृषि क्षेत्र में योगदान स्वतंत्रता के बाद सहकारी समितियों का विकास आरंभिक प्रयास: स्वतंत्रता के बाद, भारत में सहकारी समितियाँ किसानों को एकजुट करने और उन्हें आर्थिक समर्थन देने के उद्देश्य से स्थापित की गईं। नीतिगत समर्थन: भारतीय सरकार ने 1950 के दशक में सहकारी सRead more
भारत में सहकारी समितियों का विकास और कृषि क्षेत्र में योगदान
स्वतंत्रता के बाद सहकारी समितियों का विकास
आरंभिक प्रयास: स्वतंत्रता के बाद, भारत में सहकारी समितियाँ किसानों को एकजुट करने और उन्हें आर्थिक समर्थन देने के उद्देश्य से स्थापित की गईं।
नीतिगत समर्थन: भारतीय सरकार ने 1950 के दशक में सहकारी समितियों को प्रोत्साहित करने के लिए नीतियां बनाई, जिससे उनकी स्थापना में तेजी आई।
राष्ट्रीय सहकारी नीति: 2002 में राष्ट्रीय सहकारी नीति लागू की गई, जो सहकारी समितियों को सशक्त करने का काम कर रही है।
कृषि क्षेत्र में योगदान
संचार और संसाधन उपलब्धता: सहकारी समितियाँ किसानों को उर्वरक, बीज और तकनीकी मदद उपलब्ध कराती हैं। उदाहरण के लिए, ‘आईसीडीएस’ (Integrated Cooperative Development Scheme) के तहत किसानों को बेहतर संसाधन मिलते हैं।
कृषि उत्पादों की विपणन क्षमता: सहकारी समितियाँ किसानों को उनके उत्पादों का उचित मूल्य दिलवाती हैं। महाराष्ट्र में ‘राइफल सहकारी’ द्वारा इस प्रणाली को बेहतर रूप से लागू किया गया है।
समस्याएँ और सुधार की आवश्यकता
प्रभावी संचालन में कमी: कई सहकारी समितियाँ भ्रष्टाचार और खराब प्रबंधन का शिकार हैं, जो उनकी प्रभावशीलता को प्रभावित करते हैं।
तकनीकी सुधार: आधुनिक तकनीकों का अभाव सहकारी समितियों की कार्यक्षमता को सीमित करता है।
भारत में “एक राष्ट्र, एक चुनाव” (ओएनओई) योजना को लागू करने के संभावित लाभों और चुनौतियों पर चर्चा करें। भारत इस चुनाव सुधार के संबंध में अन्य देशों के अनुभवों से कैसे सीख सकता है? (उत्तर 200 शब्दों में दें)
"एक राष्ट्र, एक चुनाव" (ओएनओई) योजना के लाभ और चुनौतियाँ लाभ: राजनीतिक स्थिरता: चुनावों की बार-बार होने वाली प्रक्रिया को एक साथ लाकर, राजनीतिक स्थिरता को बढ़ावा मिल सकता है। यह सरकारों को लंबी अवधि के लिए अपनी नीतियों को लागू करने का अवसर दे सकता है। संसाधनों की बचत: चुनावों में होने वाले खर्चे औरRead more
“एक राष्ट्र, एक चुनाव” (ओएनओई) योजना के लाभ और चुनौतियाँ
लाभ:
राजनीतिक स्थिरता:
चुनावों की बार-बार होने वाली प्रक्रिया को एक साथ लाकर, राजनीतिक स्थिरता को बढ़ावा मिल सकता है।
यह सरकारों को लंबी अवधि के लिए अपनी नीतियों को लागू करने का अवसर दे सकता है।
संसाधनों की बचत:
चुनावों में होने वाले खर्चे और संसाधनों की बचत संभव है। उदाहरण के लिए, भारत में 2024 लोकसभा और विधानसभा चुनावों की कुल लागत करीब ₹60,000 करोड़ हो सकती है।
बेहतर प्रशासनिक समन्वय:
विभिन्न चुनावों के एक साथ होने से, प्रशासन का समन्वय बेहतर हो सकता है।
चुनौतियाँ:
राजनीतिक विविधता:
भारत की विविधता को देखते हुए, विभिन्न राज्यों के चुनाव एक साथ करना राजनीतिक असहमति पैदा कर सकता है।
संविधान में संशोधन की आवश्यकता:
इस योजना को लागू करने के लिए संविधान में बदलाव की आवश्यकता होगी, जिससे कानूनी और संवैधानिक अड़चनों का सामना करना पड़ेगा।
अन्य देशों के अनुभव से सीख:
ब्रिटेन:
ब्रिटेन में एक ही दिन में लोकल, यूरोपीय और जनमत संग्रह चुनाव होते हैं। इससे चुनावी प्रक्रिया की समग्रता और सुरक्षा बढ़ी है।
इंडोनेशिया:
यहां 2019 में राष्ट्रपति और संसदीय चुनाव एक साथ हुए, जिससे चुनावी खर्चों में कमी आई।
भारतीय कृषि पर जलवायु परिवर्तन के संभावित प्रभावों का विश्लेषण कीजिए। इस दिशा में सरकार द्वारा उठाए गए कदमों पर चर्चा कीजिए। (उत्तर 200 शब्दों में दें)
भारतीय कृषि पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव जलवायु परिवर्तन का भारतीय कृषि पर गहरा असर पड़ा है। इसमें तापमान में वृद्धि, वर्षा के पैटर्न में बदलाव और सूखा जैसी घटनाओं का शामिल होना मुख्य प्रभाव हैं। प्रभाव: तापमान में वृद्धि: भारतीय कृषि में अधिक तापमान से फसलें प्रभावित हो रही हैं, खासकर गेहूं और धानRead more
भारतीय कृषि पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव
जलवायु परिवर्तन का भारतीय कृषि पर गहरा असर पड़ा है। इसमें तापमान में वृद्धि, वर्षा के पैटर्न में बदलाव और सूखा जैसी घटनाओं का शामिल होना मुख्य प्रभाव हैं।
प्रभाव:
तापमान में वृद्धि: भारतीय कृषि में अधिक तापमान से फसलें प्रभावित हो रही हैं, खासकर गेहूं और धान जैसी फसलें।
वर्षा का असमान वितरण: असमान वर्षा से सूखा और बाढ़ जैसी समस्याएं बढ़ गई हैं, जिससे फसलों की पैदावार घट रही है।
पानी की कमी: जलवायु परिवर्तन के कारण जल स्रोतों में कमी आ रही है, जिससे सिंचाई पर निर्भर कृषि प्रभावित हो रही है।
सरकारी कदम:
कृषि विविधीकरण: सरकार ने किसानों को विविध प्रकार की फसलें उगाने के लिए प्रोत्साहित किया है, ताकि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से बचा जा सके।
प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना: इस योजना के तहत अधिक से अधिक कृषि भूमि की सिंचाई को बेहतर बनाने की कोशिश की जा रही है।
कृषि विज्ञान में नवाचार: मौसम आधारित कृषि योजना और नई बीजों की खोज के जरिए किसानों को जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से निपटने में मदद मिल रही है।
इन कदमों से कृषि क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने में मदद मिल रही है।
See lessभारत के इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) क्षेत्र में हाल की प्रगति और चुनौतियों का विश्लेषण करें। नीतिगत हस्तक्षेप, घरेलू विनिर्माण में वृद्धि और बुनियादी ढांचे के विकास से दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित करते हुए ईवी अपनाने में कैसे तेजी लाई जा सकती है? (200 शब्द)
भारत के इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) क्षेत्र की हालिया प्रगति भारत में इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) क्षेत्र ने पिछले कुछ वर्षों में तेजी से प्रगति की है। 2024 में, भारत ने लगभग 10 लाख से अधिक ईवी की बिक्री की, जो पिछले साल की तुलना में 50% अधिक है। इस वृद्धि के पीछे कुछ मुख्य कारण हैं: नीतिगत समर्थन: सरकार ने FAMRead more
भारत के इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) क्षेत्र की हालिया प्रगति
भारत में इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) क्षेत्र ने पिछले कुछ वर्षों में तेजी से प्रगति की है। 2024 में, भारत ने लगभग 10 लाख से अधिक ईवी की बिक्री की, जो पिछले साल की तुलना में 50% अधिक है। इस वृद्धि के पीछे कुछ मुख्य कारण हैं:
नीतिगत समर्थन: सरकार ने FAME (Faster Adoption and Manufacturing of Hybrid and Electric Vehicles) योजना जैसी पहलें शुरू की हैं।
स्वच्छ ऊर्जा के प्रति बढ़ता रुझान: लोग अब पर्यावरण की चिंता को लेकर ईवी को अपनाने में रुचि दिखा रहे हैं।
चुनौतियाँ
हालांकि, कई चुनौतियाँ भी हैं जो इस क्षेत्र को प्रभावित करती हैं:
बुनियादी ढांचा: ईवी चार्जिंग स्टेशन की कमी एक प्रमुख बाधा है।
बैटरी लागत: बैटरी की उच्च लागत से वाहन की कीमतें अधिक होती हैं, जिससे उपभोक्ताओं की स्वीकार्यता में रुकावट आती है।
भविष्य में ईवी अपनाने की दिशा
नीतिक हस्तक्षेप: सरकार को और अधिक टैक्स इंसेंटिव्स और सब्सिडी देने की आवश्यकता है ताकि ईवी का उत्पादन बढ़ सके।
घरेलू विनिर्माण: घरेलू बैटरी उत्पादन को बढ़ावा देने से लागत कम हो सकती है, जिससे ईवी की कीमतें प्रतिस्पर्धी बन सकती हैं।
बुनियादी ढांचा विस्तार: चार्जिंग स्टेशन और सर्विस सेंटर नेटवर्क का विस्तार करने से उपभोक्ताओं का भरोसा बढ़ेगा।
इन उपायों से भारत में ईवी अपनाने में तेजी लाई जा सकती है।
See lessफसल पैटर्न और फसल प्रणाली के बीच अंतर स्पष्ट कीजिए। साथ ही, भारत में प्रचलित विभिन्न फसल प्रणालियों पर चर्चा कीजिए। (उत्तर 200 शब्दों में दें)
फसल पैटर्न और फसल प्रणाली का अंतर फसल पैटर्न: फसल पैटर्न का मतलब है किसी विशेष क्षेत्र में समय के साथ उगाई जाने वाली फसलों की किस्में और उनका वितरण। यह वर्ष के दौरान उगाई जाने वाली फसलों की संख्या और प्रकार पर आधारित होता है। उदाहरण: गेहूं-चावल पैटर्न। फसल प्रणाली: फसल प्रणाली एक अधिक व्यापक दृष्टिकRead more
फसल पैटर्न और फसल प्रणाली का अंतर
फसल पैटर्न:
फसल पैटर्न का मतलब है किसी विशेष क्षेत्र में समय के साथ उगाई जाने वाली फसलों की किस्में और उनका वितरण।
यह वर्ष के दौरान उगाई जाने वाली फसलों की संख्या और प्रकार पर आधारित होता है।
उदाहरण: गेहूं-चावल पैटर्न।
फसल प्रणाली:
फसल प्रणाली एक अधिक व्यापक दृष्टिकोण है जिसमें एक साथ या बारी-बारी से विभिन्न फसलों का संयोजन किया जाता है।
इसमें अधिकतम उत्पादन और भूमि के सर्वोत्तम उपयोग पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।
उदाहरण: धान-गन्ना, मक्का-चना प्रणाली।
भारत में प्रचलित विभिन्न फसल प्रणालियाँ
धान-गन्ना प्रणाली:
उत्तर भारत में प्रमुख।
धान की कटाई के बाद गन्ना उगाया जाता है।
गेहूं-चना प्रणाली:
मध्य और उत्तर भारत में प्रचलित।
गेहूं की कटाई के बाद चने की फसल बोई जाती है।
मक्का-सोयाबीन प्रणाली:
मध्य भारत में यह प्रणाली लोकप्रिय है।
मक्का और सोयाबीन के संयोजन से दोनों फसलों का उत्पादन बढ़ता है।
पशु-आधारित प्रणाली:
भारत के कुछ हिस्सों में पशुधन को कृषि में जोड़ा जाता है।
फसलों के साथ पशुपालन से स्थिरता बढ़ती है।
इन प्रणालियों में बदलाव जलवायु परिवर्तन और बाजार की मांग को ध्यान में रखते हुए हो रहा है।
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