मुख्य विषय: भारत के थर्मल पावर क्षेत्र द्वारा SO₂ उत्सर्जन मानदंडों के अनुपालन में विलंब और इसके प्रभाव।
औद्योगिक उत्सर्जन के स्रोत
- थर्मल पावर सेक्टर:
- भारत का सबसे बड़ा ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जक।
- कोयला आधारित संयंत्र लगभग 50% CO₂ उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार।
- SO₂ मानदंडों की समय सीमा बढ़ाकर 2027 कर दी गई है।
- इस्पात उद्योग:
- ऊर्जा-गहन, CO₂ उत्सर्जन में महत्वपूर्ण योगदान।
- मुख्यतः कोयला आधारित भट्टियों पर निर्भरता।
- 2022 में 242 मीट्रिक टन CO₂ उत्सर्जन।
- सीमेंट उद्योग:
- चूना पत्थर कैल्सीनेशन से CO₂ उत्सर्जन।
- वर्तमान में 5.8% CO₂ उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार।
- तेल और गैस उद्योग:
- मीथेन लीक और CO₂ का मुख्य स्रोत।
- 2045 तक तेल की मांग दोगुनी होने की संभावना।
- उर्वरक उद्योग:
- नाइट्रस ऑक्साइड (N₂O) का प्रमुख उत्सर्जक।
- 2022-23 में 25 मिलियन टन CO₂ उत्सर्जन।
- एल्युमीनियम उद्योग:
- प्रति टन 20.88 टन CO₂ उत्सर्जन।
- कोयला आधारित प्राथमिकताओं से उच्च उत्सर्जन।
- परिवहन क्षेत्र:
- सड़क परिवहन 12% CO₂ उत्सर्जन में योगदान।
- वाहन स्वामित्व और माल ढुलाई में वृद्धि।
चुनौतियाँ
- कोयले पर निर्भरता: ऊर्जा की बढ़ती मांग के साथ कोयले की नई परियोजनाएँ।
- स्वच्छ प्रौद्योगिकियों की लागत: उच्च प्रारंभिक लागत के कारण धीमी अपनाने की गति।
- कमज़ोर नियामक प्रवर्तन: उत्सर्जन मानदंडों का अनुचित कार्यान्वयन।
- वित्तीय प्रोत्साहनों का अभाव: हरित वित्तपोषण की कमी और कार्बन क्रेडिट की कम कीमत।
- औद्योगिक प्रक्रियाओं में अकुशलता: पुराने मशीनरी का उपयोग।
वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाएँ
- नवीकरणीय ऊर्जा संक्रमण: डेनमार्क और जर्मनी में सौर और पवन ऊर्जा का व्यापक उपयोग।
- कार्बन मूल्य निर्धारण: स्विट्ज़रलैंड और कनाडा में प्रभावी प्रणाली।
- संवहनीय परिवहन: नॉर्वे और चीन में इलेक्ट्रिक वाहनों की उच्च पैठ।
उपाय
- कार्बन मूल्य निर्धारण को मजबूत करना: अनिवार्य तंत्र लागू करना।
- हरित हाइड्रोजन और जैव ईंधन का विस्तार: नीतिगत प्रोत्साहन के माध्यम से।
- चक्रीय अर्थव्यवस्था को अपनाना: विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व लागू करना।
- फ्लू गैस डिसल्फराइजेशन (FGD) और CCS का तेजी से कार्यान्वयन: ताप विद्युत संयंत्रों में।
- ऊर्जा दक्षता मानकों को मजबूत करना: PAT योजना का विस्तार।
- नवीकरणीय ऊर्जा को अपनाने में तेजी लाना: औद्योगिक क्षेत्रों में।
आगे की राह
- भारत को औद्योगिक विकास और उत्सर्जन में कमी के बीच संतुलन बनाना होगा।
- क्योटो प्रोटोकॉल के सिद्धांतों के अनुसार, विकासात्मक आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए उपायों को लागू करना चाहिए।
मुख्य परीक्षा उत्तर लेखन हेतु अभ्यास प्रश्न
भारत में वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन में औद्योगिक उत्सर्जन का महत्वपूर्ण योगदान है। जैसे-जैसे देश आर्थिक विकास के लिए प्रयास कर रहा है, उसे औद्योगिक उत्पादन बढ़ाने और पर्यावरण क्षरण को कम करने की दोहरी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। विश्लेषण करें. (200 शब्द)