- यह लेख भारत-श्रीलंका के बीच पाक खाड़ी में मत्स्य विवाद पर केंद्रित है, जिसमें स्थायी समाधान, सरकारी कार्रवाई और बातचीत की आवश्यकता को उजागर किया गया है।
प्रमुख मुद्दे
- निरंतर गिरफ्तारियाँ:
- भारतीय मछुआरे अक्सर इंजन खराब होने या मौसम के परिवर्तन के कारण श्रीलंकाई जलक्षेत्र में भटक जाते हैं।
- श्रीलंकाई अधिकारियों द्वारा मछुआरों की नावों को नष्ट करना और गिरफ्तारी के बाद नावों को ज़ब्त करना एक बार-बार की समस्या है।
- समुद्री सीमा रेखा का उल्लंघन:
- भारतीय मछुआरे IMBL (अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा) के निकट पारंपरिक अधिकार का दावा करते हैं।
- पाक खाड़ी के मत्स्य अधिकार पर विवाद बना हुआ है, जबकि IMBL UNCLOS के अनुसार आधिकारिक सीमा है।
- मत्स्य प्रभव में कमी:
- अत्यधिक मत्स्यन के कारण भारतीय मछुआरे श्रीलंकाई जलक्षेत्र में जाते हैं, जिसे श्रीलंका अवैध शिकार मानता है।
- बॉटम-ट्रॉलिंग:
- श्रीलंका भारतीय मछुआरों द्वारा अपनाई जाने वाली बॉटम-ट्रॉलिंग का विरोध करता है, जो समुद्री पारिस्थितिकी को नुकसान पहुंचाती है।
- राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताएँ:
- श्रीलंका का आरोप है कि भारतीय ट्रॉलर समन्वित तरीके से घुसपैठ करते हैं, जिससे सुरक्षा चिंताएँ बढ़ती हैं।
- कच्चातिवु द्वीप विवाद:
- कच्चातिवु द्वीप का स्वामित्व और उपयोग अधिकार विवादित है। 1974 के समझौते के अनुसार, इसे श्रीलंका के क्षेत्र के रूप में मान्यता दी गई थी, लेकिन मत्स्य अधिकार का मुद्दा अभी भी अनसुलझा है।
सहयोग के प्रमुख क्षेत्र
- विकास सहयोग:
- भारत श्रीलंका को विकास सहायता प्रदान करता है, जिसमें 50,000 आवासों का निर्माण शामिल है।
- भारत ने उत्तरी श्रीलंका में हाइब्रिड पावर परियोजनाओं की स्थापना पर सहमति दी है।
- आर्थिक सहयोग:
- भारत-श्रीलंका मुक्त व्यापार समझौता (ISFTA) के माध्यम से आर्थिक संबंध मजबूत हुए हैं।
- श्रीलंका के द्वारा भारत के UPI का अपनाना फिनटेक कनेक्शन में सुधार लाता है।
- सांस्कृतिक संबंध:
- 1977 के सांस्कृतिक सहयोग समझौते के तहत सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा मिला है।
- रक्षा और सुरक्षा सहयोग:
- भारत-श्रीलंका रक्षा वार्ता और संयुक्त सैन्य अभ्यास सुरक्षा को मजबूत करते हैं।
- बहुपक्षीय सहयोग:
- दोनों देश BIMSTEC और SAARC जैसे संगठनों में सक्रिय हैं।
निहितार्थ
- आजीविका संबंधी समस्याएँ:
- भारतीय मछुआरों की गिरफ्तारी से उनके परिवारों पर संकट बढ़ता है।
- प्रवर्तन संबंधी चुनौतियाँ:
- IMBL की गश्त करने की लागत बढ़ रही है, जिससे संसाधनों पर दबाव है।
- तस्करी की चिंताएँ:
- वास्तविक मछुआरों और तस्करों के बीच अंतर करना मुश्किल हो रहा है।
- राजनीतिक प्रभाव:
- श्रीलंकाई नौसेना की कार्रवाई के आरोपों ने राजनयिक तनाव को बढ़ाया है।
- पर्यावरणीय प्रभाव:
- बॉटम ट्रॉलिंग समुद्री पारिस्थितिकी को नुकसान पहुँचाती है।
- आर्थिक परिणाम:
- भारतीय अवैध मत्स्यन के कारण श्रीलंका को प्रति वर्ष लगभग 730 मिलियन अमेरिकी डॉलर की हानि हो रही है।
अंतर्राष्ट्रीय कानून
- UNFSA (1995):
- राज्यों को संरक्षण और प्रबंधन उपायों का पालन करना अनिवार्य है।
- UNCLOS (1982):
- उच्च समुद्रों में मत्स्यन की स्वतंत्रता सीमित है और अन्य राज्यों के हितों का सम्मान करना आवश्यक है।
भविष्य की दिशा
- संयुक्त समुद्री संसाधन प्रबंधन:
- एक क्षेत्रीय मत्स्य प्रबंधन प्राधिकरण की स्थापना की जानी चाहिए।
- गहन समुद्री मत्स्यन और वैकल्पिक आजीविका:
- भारतीय सरकार को पारंपरिक मछुआरों को गहन समुद्री मत्स्यन की ओर प्रेरित करना चाहिए।
- विनियमनों का प्रवर्तन:
- बॉटम ट्रॉलिंग पर अंकुश लगाने के लिए सख्त प्रवर्तन आवश्यक है।
- क्षेत्रीय सहयोग और प्रौद्योगिकी साझाकरण:
- दोनों देशों को समुद्री संरक्षण और तकनीकी प्रगति पर सहयोग करना चाहिए।
- मानवीय विचार और कानूनी ढाँचा:
- मछुआरों के लिए मानवीय व्यवहार की रूपरेखा स्थापित करनी चाहिए।
निष्कर्ष
- भारत-श्रीलंका मत्स्य विवाद का समाधान एक कूटनीतिक अनिवार्यता है। साझा समुद्री हितों का लाभ उठाकर, दोनों देश द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत कर सकते हैं और क्षेत्रीय स्थिरता में योगदान कर सकते हैं।