वर्तमान स्थिति
- शिपिंग उद्योग का मूल्य: 2024 में भारतीय जहाज़ निर्माण उद्योग का मूल्य 1.12 बिलियन डॉलर था, जो 2022 के 90 मिलियन डॉलर से काफी बढ़ा है।
- बंदरगाह: भारत में 13 प्रमुख बंदरगाह और 200 से अधिक अन्य बंदरगाह हैं।
सरकारी पहल
- सागरमाला कार्यक्रम: ₹5.8 लाख करोड़ का निवेश, जिसका उद्देश्य बंदरगाहों का आधुनिकीकरण और रसद दक्षता में सुधार करना है।
- समुद्री विकास कोष: बजट 2025 में ₹25,000 करोड़ की घोषणा।
आर्थिक विकास के लाभ
- वैश्विक व्यापार: एक मजबूत घरेलू जहाज़ निर्माण क्षेत्र विदेशी निर्भरता को कम कर सकता है और निर्यात बढ़ा सकता है।
- भविष्य की संभावनाएँ: 2033 तक उद्योग का मूल्य 8 बिलियन डॉलर होने की उम्मीद है।
प्रमुख मुद्दे
- प्रतिस्पर्धी पारिस्थितिकी तंत्र की कमी: लंबी निर्माण समयसीमा और असंगत गुणवत्ता मानकों के कारण भारतीय जहाज़ वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धी नहीं हैं।
- वित्तपोषण की कमी: भारतीय शिपयार्ड महंगे वाणिज्यिक ऋणों पर निर्भर हैं, जबकि वैश्विक प्रतिस्पर्धियों को सरकारी सहायता मिलती है।
- आयातित कच्चे माल पर निर्भरता: समुद्री ग्रेड स्टील और अन्य घटकों के लिए विदेशी आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भरता।
सुधार की आवश्यकता
- घरेलू उत्पादन को बढ़ावा: उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना का विस्तार।
- समर्पित वित्तीय संस्थान: जहाज़ निर्माण के लिए कम ब्याज दर पर ऋण प्रदान करने वाला संस्थान।
- मौजूदा शिपयार्ड का आधुनिकीकरण: सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल के तहत सुधार।
नवीकरणीय ऊर्जा और हरित शिपिंग
- नेट जीरो लक्ष्य: भारत को हरित हाइड्रोजन और इलेक्ट्रिक जहाज़ों में निवेश करना होगा।
- हरित शिपयार्ड: ग्रीन शिपयार्ड विकसित करने से वैश्विक प्रतिस्पर्धा में सुधार होगा।
आगे की राह
- भारत के जहाज़ निर्माण क्षेत्र में आर्थिक विकास और समुद्री सुरक्षा के लिए अपार संभावनाएँ हैं, लेकिन संरचनात्मक चुनौतियों के समाधान के लिए ठोस नीतिगत हस्तक्षेप आवश्यक हैं।