- भारत वर्ष 2023 में विश्व के चौथे सबसे बड़े रक्षा व्ययकर्त्ता के रूप में अपनी स्थिति बनाए रखता है।
- कोविड-19 महामारी के बाद, देश की रक्षा नीतियों में आत्मनिर्भरता की ओर एक महत्वपूर्ण बदलाव आया है, जिसमें घरेलू निर्यात में वृद्धि और विदेशी आयात पर निर्भरता में कमी देखी जा रही है।
प्रमुख प्रगति
स्वदेशी रक्षा विनिर्माण
- भारत स्वदेशी उत्पादन को बढ़ावा दे रहा है और आयात पर निर्भरता को कम करने की दिशा में कदम बढ़ा रहा है।
- रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (DAP)-2020 ने घरेलू खरीद को प्राथमिकता दी है।
- 2023-24 में घरेलू रक्षा उत्पादन ₹1.27 लाख करोड़ तक पहुंच गया, जो पिछले वर्ष की तुलना में 16.7% की वृद्धि है।
रक्षा निर्यात में वृद्धि
- भारत तेजी से एक रक्षा निर्यातक के रूप में उभर रहा है।
- वित्त वर्ष 2023-24 में रक्षा निर्यात ₹21,083 करोड़ तक पहुंच गया, एक दशक में 31 गुना वृद्धि।
- सरकार का लक्ष्य 2025 तक निर्यात को बढ़ाकर ₹35,000 करोड़ करना है।
सामरिक रक्षा साझेदारी
- भारत वैश्विक रक्षा नेताओं के साथ साझेदारी कर रहा है ताकि तकनीकी अंतराल को पाटा जा सके।
- मझगाँव डॉक शिपबिल्डर्स और थिसेनक्रुप के बीच सहयोग और यूएस-इंडिया INDUS-X पहल इसके उदाहरण हैं।
मिसाइल प्रौद्योगिकी में प्रगति
- ‘प्रलय’ सामरिक मिसाइल की शामिल होने से युद्धक्षेत्र में लचीलापन मिलता है।
- अग्नि प्राइम मिसाइल के सफल परीक्षण ने लंबी दूरी की मारक क्षमता को मजबूती प्रदान की है।
रक्षा औद्योगिक गलियारे
- तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश में रक्षा औद्योगिक गलियारों की स्थापना क्षेत्रीय विकास को बढ़ावा देती है।
- इन गलियारों से ₹20,000 करोड़ का निवेश आकर्षित करने की योजना है।
साइबर सुरक्षा और अंतरिक्ष रक्षा
- भारत साइबर सुरक्षा और अंतरिक्ष रक्षा को अपनी रणनीतियों में एकीकृत कर रहा है।
- रक्षा अंतरिक्ष एजेंसी की स्थापना और निगरानी के लिए उपग्रहों की तैनाती इसकी प्राथमिकताओं में शामिल हैं।
सकारात्मक स्वदेशीकरण सूचियाँ
- सरकार ने स्वदेशीकरण को बढ़ावा देने के लिए पांच सकारात्मक स्वदेशीकरण सूचियाँ लागू की हैं।
- इस पहल से आयात में कमी और घरेलू उत्पादों की गुणवत्ता में सुधार हुआ है।
समुद्री डकैती रोधी क्षमताएँ
- भारत समुद्री डकैती से निपटने और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में समुद्री हितों की रक्षा के लिए अपनी नौसैनिक शक्ति को बढ़ा रहा है।
- INS विक्रांत, भारत का पहला स्वदेशी विमानवाहक पोत, की तैनाती बढ़ती समुद्री शक्ति को दर्शाती है।
प्रमुख मुद्दे
आयात पर निर्भरता
- भारत विश्व का सबसे बड़ा आयुध आयातक बना हुआ है, जो उसकी रणनीतिक स्वायत्तता को कमजोर करता है।
खरीद में विलंब
- रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया में प्रशासनिक अक्षमता के कारण विलंब हो रहा है।
पुराना रक्षा माल
- भारत के अधिकांश रक्षा उपकरण पुराने हो चुके हैं, जो परिचालन क्षमता को प्रभावित करते हैं।
स्वदेशी विनिर्माण क्षमता की कमी
- आत्मनिर्भरता के प्रयासों के बावजूद, भारत की रक्षा विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र अविकसित है।
बजट की कमी
- रक्षा बजट का एक बड़ा हिस्सा वेतन और पेंशन पर खर्च होता है, जिससे आधुनिकीकरण के लिए सीमित धनराशि बचती है।
साइबर सुरक्षा कमजोरियाँ
- डिजिटल प्रणालियों पर निर्भरता महत्वपूर्ण रक्षा बुनियादी ढाँचे को साइबर खतरों के प्रति संवेदनशील बनाती है।
संयुक्त कमान संरचना का अभाव
- सेना, नौसेना और वायु सेना के बीच अंतर-संचालन में कमी है।
अनुसंधान एवं विकास की कमी
- भारत अपने रक्षा बजट का एक प्रतिशत से भी कम अनुसंधान एवं विकास पर खर्च करता है।
कुशल कार्यबल की कमी
- रक्षा उत्पादन में कुशल कर्मियों की कमी एक महत्वपूर्ण बाधा है।
भू-राजनीतिक चुनौतियाँ
- रूस पर निर्भरता और चीन की बढ़ती नौसैनिक उपस्थिति जैसे मुद्दे भारत की रक्षा कूटनीति को प्रभावित करते हैं।
सुधार के उपाय
खरीद प्रक्रियाओं का सुधार
- रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया को सरल बनाना और निर्णय लेने की गति बढ़ाना आवश्यक है।
बजट आवंटन में वृद्धि
- आधुनिकीकरण के लिए अधिक बजट आवंटित करना चाहिए।
स्वदेशी विनिर्माण को बढ़ावा
- मेक इन इंडिया और PLI योजनाओं को एकीकृत करना चाहिए।
वैश्विक साझेदारी को बढ़ाना
- तकनीकी रूप से उन्नत देशों के साथ सहयोग बढ़ाना चाहिए।
साइबर और अंतरिक्ष रक्षा की क्षमताओं को मजबूत करना
- साइबर रक्षा और अंतरिक्ष कमांड इकाइयों का विकास प्राथमिकता होनी चाहिए।
संयुक्त कमान संरचनाओं का कार्यान्वयन
- सेना, नौसेना और वायु सेना के बीच बेहतर समन्वय के लिए संयुक्त कमान का गठन करना चाहिए।
स्टार्टअप्स और MSMEs का लाभ उठाना
- iDEX योजना के माध्यम से नवोन्मेषी स्टार्टअप्स को रक्षा पारिस्थितिकी तंत्र में शामिल करना चाहिए।
नौसेना का आधुनिकीकरण
- समुद्री सुरक्षा के लिए नौसेना के बेड़े का आधुनिकीकरण प्राथमिकता होनी चाहिए।
निर्यात क्षमताओं को बढ़ाना
- रक्षा निर्यात को बढ़ावा देने के लिए नीतियों में सुधार करना चाहिए।
कौशल पारिस्थितिकी तंत्र का विकास
- कुशल कार्यबल के निर्माण के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रमों में निवेश करना चाहिए।
अनुसंधान एवं विकास पर ध्यान
- अनुसंधान एवं विकास खर्च को बढ़ाकर स्वदेशी नवाचार को बढ़ावा देना चाहिए।
हरित प्रौद्योगिकी को बढ़ावा
- रक्षा में हरित प्रौद्योगिकियों का एकीकरण करना चाहिए।
भारत का रक्षा आधुनिकीकरण आत्मनिर्भरता और वैश्विक साझेदारी के बीच संतुलन को दर्शाता है। स्वदेशी उत्पादन और निर्यात में वृद्धि जैसे उपलब्धियाँ महत्वपूर्ण प्रगति को उजागर करती हैं। आगे की राह में नवाचार, समन्वय और अनुकूलनशीलता पर ध्यान केंद्रित करना आवश्यक है।