उत्तर लेखन की रणनीति
1. प्रस्तावना
- लॉजिस्टिक्स की भूमिका और इसकी महत्वता पर संक्षिप्त चर्चा।
- उच्च लॉजिस्टिक्स लागत के प्रभाव को स्पष्ट करें।
2. प्रमुख चुनौतियाँ
- उच्च लॉजिस्टिक्स लागत: भारत की लागत का वैश्विक मानकों से तुलना।
- मॉडल असंतुलन: सड़क परिवहन पर अत्यधिक निर्भरता।
- बुनियादी अवसंरचना की कमी: परियोजना क्रियान्वयन में बाधाएँ।
- विनियामक जटिलता: अनुपालन में कठिनाई और कानूनी बाधाएँ।
- डिजिटल डिवाइड: तकनीकी अनुप्रयोगों की कमी।
- कौशल और मानव संसाधन चुनौतियाँ: असंगठित क्षेत्र और कौशल की कमी।
3. सुधार के उपाय
- एकीकृत मल्टीमॉडल परिवहन अवसंरचना: PM गति शक्ति और NLP का कार्यान्वयन।
- क्लस्टर-आधारित विकास: मल्टी-मॉडल लॉजिस्टिक्स पार्क का निर्माण।
- डिजिटल लॉजिस्टिक्स अवसंरचना को सुदृढ़ करना: ULIP और अन्य तकनीकी प्लेटफॉर्म का उपयोग।
- रेल और जलमार्ग का उपयोग बढ़ाना: थोक माल को स्थानांतरित करने के लिए नीतिगत प्रोत्साहन।
- राष्ट्रीय कौशल विकास मिशन: गोदाम संचालन और मल्टीमॉडल हैंडलिंग में कौशल विकास।
- असंगठित क्षेत्र को औपचारिक बनाना: अनुपालन प्रक्रियाओं को सरल बनाना।
4. आगे की राह
- लॉजिस्टिक्स क्षेत्र की दक्षता और प्रतिस्पर्धात्मकता के महत्व को पुनः स्पष्ट करें।
- भारत के वैश्विक विनिर्माण केंद्र बनने की दिशा में आवश्यकताओं को रेखांकित करें।
भारत के लॉजिस्टिक्स क्षेत्र की प्रमुख चुनौतियाँ
भारत के लॉजिस्टिक्स क्षेत्र के सामने कई संरचनात्मक समस्याएँ हैं जो इसके वैश्विक विनिर्माण केंद्र बनने की यात्रा में अवरोध डाल रही हैं:
उच्च लागत: भारत में लॉजिस्टिक्स की कुल लागत GDP के 13-15% के आसपास है, जबकि वैश्विक औसत लगभग 8-10% है।
अपर्याप्त बुनियादी ढांचा: सड़क, रेल और बंदरगाहों का बुनियादी ढांचा पुराने और अपर्याप्त हैं, जिससे माल की आपूर्ति श्रृंखला धीमी और महंगी होती है।
प्रभावी इंटर-कोनेक्टिविटी की कमी: विभिन्न परिवहन प्रणालियों (सड़क, रेल, जल) के बीच समन्वय की कमी है, जिससे समय और लागत बढ़ती है।
दक्षता और प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने के उपाय
बुनियादी ढांचा सुधार: प्रधानमंत्री गती शक्ति योजना के तहत बुनियादी ढांचे में सुधार पर जोर दिया जा रहा है। इन योजनाओं को तेज़ी से लागू करना ज़रूरी है।
डिजिटलीकरण और ऑटोमेशन: लॉजिस्टिक्स में स्मार्ट तकनीकों का उपयोग, जैसे कि AI और IoT, ट्रैकिंग और इन्वेंट्री प्रबंधन को बेहतर बना सकता है।
कस्टम्स और टैक्स सुधार: GST और मल्टीमॉडल लॉजिस्टिक्स पार्क जैसी पहलें एक समान कर ढाँचा बनाएंगी और सीमा शुल्क प्रक्रियाओं को सरल बनाएंगी।
इन उपायों से भारत अपने लॉजिस्टिक्स क्षेत्र में सुधार करके वैश्विक प्रतिस्पर्धा में वृद्धि कर सकता है।
उच्च लॉजिस्टिक्स लागत और भारत के विनिर्माण क्षेत्र की चुनौतियाँ
भारत के वैश्विक विनिर्माण केंद्र बनने की राह में उच्च लॉजिस्टिक्स लागत एक बड़ी संरचनात्मक बाधा है। भारतीय लॉजिस्टिक्स क्षेत्र में कई चुनौतियाँ हैं, जिनमें प्रमुख हैं:
अधूरी इंफ्रास्ट्रक्चर: भारतीय परिवहन नेटवर्क में अधूरी सड़कों, रेलवे ट्रैक और बंदरगाहों के कारण माल परिवहन महंगा और समयसाध्य हो जाता है।
जटिल कर व्यवस्था: विभिन्न राज्यों में भिन्न-भिन्न कर नीतियाँ और प्रक्रिया कंपनियों के लिए लॉजिस्टिक्स लागत को बढ़ाती हैं।
प्रौद्योगिकी की कमी: लॉजिस्टिक्स क्षेत्र में आधुनिक तकनीकों का सीमित उपयोग है, जिससे कार्यप्रणाली धीमी और महंगी होती है।
उच्च ईंधन कीमतें: भारत में ईंधन की कीमतें उच्च होने के कारण परिवहन लागत बढ़ती है, जो लॉजिस्टिक्स के खर्च को प्रभावित करती हैं।
सुझाव:
इंफ्रास्ट्रक्चर का सुधार: सड़क, रेल, और हवाई मार्गों का बेहतर विकास करना चाहिए, जिससे माल परिवहन तेज और सस्ता हो सके।
मूल्यवर्धित कर (GST) का सुधार: एक समान कर व्यवस्था से राज्यों के बीच व्यापारिक बाधाएँ समाप्त हो सकती हैं।
प्रौद्योगिकी का उपयोग: डिजिटल तकनीक, जैसे ऑटोमेशन और ट्रैकिंग सिस्टम्स, लॉजिस्टिक्स कार्यों को अधिक कुशल बना सकती हैं।
नवीकरणीय ऊर्जा का प्रयोग: ईंधन की लागत को कम करने के लिए इलेक्ट्रिक वाहनों और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा देना चाहिए।
निष्कर्ष:
लॉजिस्टिक्स क्षेत्र में सुधार भारत के विनिर्माण क्षेत्र की प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
मॉडल उत्तर
प्रस्तावना
भारत की अर्थव्यवस्था में लॉजिस्टिक्स की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। उच्च लॉजिस्टिक्स लागत, जो कि GDP का 14-18% है, भारत के वैश्विक विनिर्माण केंद्र बनने की यात्रा में एक प्रमुख संरचनात्मक बाधा है। इस मुद्दे को समझना और समाधान खोजना आवश्यक है।
प्रमुख चुनौतियाँ
1. उच्च लॉजिस्टिक्स लागत: भारत की लॉजिस्टिक्स लागत वैश्विक मानकों (लगभग 8%) से काफी अधिक है, जिससे निर्यात और घरेलू उत्पादन की प्रतिस्पर्धात्मकता प्रभावित होती है।
2. मॉडल असंतुलन: सड़क परिवहन में 66% की हिस्सेदारी है, जबकि रेलवे और जल परिवहन का योगदान केवल 31% और 3% है। यह असंतुलन लागत दक्षता को कम करता है।
3. बुनियादी अवसंरचना की कमी: भूमि अधिग्रहण और प्रशासनिक बाधाओं के कारण कई परियोजनाएँ धीमी गति से चल रही हैं। केवल 1,724 किमी DFC का कार्य पूरा हुआ है।
4. विनियामक जटिलता: विभिन्न मंत्रालयों द्वारा शासित होने के कारण अनुपालन में कठिनाई और विलंब होता है।
5. डिजिटल डिवाइड: छोटे ऑपरेटरों के पास तकनीकी उपकरणों की कमी है, जिससे कार्यक्षमता प्रभावित होती है।
6. कौशल एवं मानव संसाधन चुनौतियाँ: 90% से अधिक लॉजिस्टिक्स कार्यबल असंगठित है, जिससे उत्पादकता कम होती है।
सुधार के उपाय
1. एकीकृत मल्टीमॉडल परिवहन अवसंरचना: PM गति शक्ति और राष्ट्रीय रसद नीति (NLP) के कार्यान्वयन में तेजी लानी चाहिए।
2. क्लस्टर-आधारित विकास: औद्योगिक गलियारों और SEZ के पास मल्टी-मॉडल लॉजिस्टिक्स पार्क विकसित किए जाने चाहिए।
3. डिजिटल लॉजिस्टिक्स अवसंरचना को सुदृढ़ करना: ULIP और ICEGATE जैसे प्लेटफार्मों का व्यापक उपयोग किया जाना चाहिए।
4. रेल और जलमार्ग का उपयोग बढ़ाना: थोक माल के लिए सड़क से रेल और जलमार्ग पर स्थानांतरण के लिए प्रोत्साहन देने चाहिए।
5. राष्ट्रीय कौशल विकास मिशन: गोदाम संचालन और मल्टीमॉडल हैंडलिंग में कौशल विकास को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
6. असंगठित क्षेत्र को औपचारिक बनाना: अनुपालन प्रक्रियाओं को सरल करना और छोटे ऑपरेटरों के लिए सुविधाएँ उपलब्ध कराना आवश्यक है।
आगे की राह
भारत का लॉजिस्टिक्स क्षेत्र एकीकृत परिवहन योजना, डिजिटल नवाचार और बुनियादी अवसंरचना के आधुनिकीकरण के माध्यम से एक परिवर्तनकारी बदलाव के दौर से गुजर रहा है। इन सुधारों के माध्यम से भारत वैश्विक विनिर्माण केंद्र बनने की अपनी आकांक्षा को साकार कर सकता है।