- यह लेख सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम की घटती प्रभावशीलता पर केंद्रित है, जो कभी पारदर्शिता के लिए एक ऐतिहासिक सुधार था।
- वर्तमान में, यह प्रशासनिक प्रभुत्व, लंबित मामलों, और प्रणालीगत प्रतिरोध के कारण कमजोर हो गया है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
- 1975: सर्वोच्च न्यायालय ने सूचना के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी।
- 1982: इसे अनुच्छेद 19(1)(a) और अनुच्छेद 21 से जोड़ा गया।
- 1990 का दशक: गैर सरकारी संगठनों ने जन सुनवाई के माध्यम से भ्रष्टाचार को उजागर किया।
RTI अधिनियम का पारित होना
- 2005: व्यापक RTI अधिनियम पारित हुआ, जो केंद्र और राज्य सरकारों को कवर करता है।
- पहला RTI आवेदन: शाहिद रज़ा बर्नी द्वारा पुणे में दायर किया गया।
RTI का योगदान
- लोकतंत्र को मजबूत करना: RTI नागरिकों को सरकारी रिकॉर्ड और नीतियों तक पहुँच प्रदान करता है।
- भ्रष्टाचार से लड़ना: RTI ने कई घोटालों को उजागर किया, जैसे आदर्श हाउसिंग घोटाला।
- पारदर्शिता सुनिश्चित करना: RTI सरकारी योजनाओं के कार्यान्वयन की निगरानी करता है।
RTI की प्रभावशीलता में बाधाएँ
- सूचना आयोगों में रिक्तियाँ: 2024 में 4 लाख से अधिक अपीलें लंबित थीं।
- विधायी संशोधन: RTI (संशोधन) अधिनियम, 2019 ने सूचना आयुक्तों की स्वायत्तता को कम किया।
- प्रशासनिक प्रतिरोध: कई अधिकारी जानबूझकर जानकारी देने में विलंब करते हैं।
- लैंगिक प्रतिनिधित्व का अभाव: केवल 9% सूचना आयुक्त महिलाएँ हैं।
उपाय
- रिक्तियों की भर्ती: समय पर सूचना आयुक्तों की नियुक्ति सुनिश्चित करना।
- स्वायत्तता की बहाली: सूचना आयोगों की वित्तीय और प्रशासनिक स्वायत्तता को मजबूत करना।
- सक्रिय प्रकटीकरण: सरकारी प्राधिकरणों को सक्रिय रूप से जानकारी प्रकट करने के लिए प्रेरित करना।
- जागरूकता बढ़ाना: RTI के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए सरकारी अभियान।
आगे की राह
- RTI की प्रभावशीलता को पुनः स्थापित करने के लिए समय पर नियुक्तियों, डिजिटल पारदर्शिता, और व्हिसलब्लोअर सुरक्षा को बढ़ावा देना आवश्यक है। पारदर्शिता का भविष्य RTI के सशक्तीकरण पर निर्भर करता है।