- यह लेख केंद्र और राज्यों के बीच आपदा राहत निधि को लेकर बढ़ते तनाव पर केंद्रित है।
- लेख में आपदा प्रबंधन के लिए पारदर्शी और न्यायसंगत ढांचे की आवश्यकता को रेखांकित किया गया है।
प्रमुख आपदा खतरे
- चरम मौसमी घटनाएँ
- जलवायु-जनित आपदाओं में वृद्धि: चक्रवात, बाढ़, और हीटवेव।
- चक्रवात मिचौंग (2023) ने तमिलनाडु में ₹37,000 करोड़ का नुकसान पहुंचाया।
- 2022 में 2,227 मौतें हुईं (IMD, 2024)।
- शहरी बाढ़
- अनियोजित शहरीकरण और अवरुद्ध जल निकासी के कारण बाढ़ की समस्या।
- उदाहरण: दिल्ली में 41 वर्षों में सबसे अधिक एक दिवसीय वर्षा (153 मिमी)।
- सूखा और जल की कमी
- अनियमित मानसून और भूजल की कमी से कृषि प्रभावित।
- 2023 का अगस्त 122 वर्षों में सबसे शुष्क माह घोषित।
- हिमालयी हिमनदों का पिघलना
- ग्लेशियल झील विस्फोट बाढ़ (GLOF) का खतरा बढ़ रहा है।
- अक्टूबर 2023 में उत्तरी सिक्किम में GLOF घटना हुई।
- तटीय क्षरण
- समुद्र का स्तर बढ़ रहा है, तटीय क्षेत्रों में 33.6% क्षरण हो रहा है।
- भूकंप
- उत्तरी और पूर्वोत्तर राज्यों में भूकंप का खतरा अधिक है।
- असम में 6.4 तीव्रता का भूकंप (2021)।
- औद्योगिक आपदाएँ
- रासायनिक आपदाएँ और गैस रिसाव बढ़ रहे हैं।
- जैविक आपदाएँ
- महामारी और रोगाणुरोधी प्रतिरोध का खतरा बढ़ रहा है।
संरचनात्मक मुद्दे
- अतिकेंद्रीकरण
- NDRF पर उच्च निर्भरता के कारण विलंब और अकुशलता।
- कमज़ोर स्थानीय शासन
- स्थानीय प्राधिकरणों के पास निर्णय लेने की शक्ति का अभाव।
- पुरानी प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियाँ
- तकनीकी खामियाँ और गलत पूर्वानुमान।
- अपर्याप्त शहरी नियोजन
- कमजोर भवन संहिता और जल निकासी प्रणालियाँ।
- सामुदायिक जागरूकता की कमी
- ग्रामीण क्षेत्रों में आपदा तैयारी के बारे में जागरूकता का अभाव।
- प्रौद्योगिकी का सीमित उपयोग
- पारंपरिक तंत्र पर अधिक निर्भरता।
सुधार के उपाय
- विकेंद्रीकृत प्रशासन
- राज्य और ज़िला आपदा प्रबंधन प्राधिकरणों को सशक्त बनाना।
- प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियाँ
- Doppler रडार और AI-आधारित पूर्वानुमान को उन्नत करना।
- जलवायु-लचीला बुनियादी ढांचा
- भवन संहिता का सख्ती से पालन।
- सामुदायिक जागरूकता
- स्कूलों में आपदा जोखिम शिक्षा को शामिल करना।
- प्रौद्योगिकी का लाभ
- AI और GIS-आधारित निर्णय समर्थन प्रणालियों का उपयोग बढ़ाना।
- स्वास्थ्य देखभाल सुधार
- आपातकालीन चिकित्सा सुविधाओं को स्थापित करना।
- संस्थागत सुधार
- IMD, ISRO, NDMA और NDRF के बीच समन्वय बढ़ाना।
- वित्तीय समुत्थान
- राज्य स्तरीय आपदा जोखिम बीमा योजनाओं का विस्तार करना।
आगे की राह
- भारत की आपदा प्रबंधन प्रणाली को एक विकेंद्रीकृत और प्रौद्योगिकी-संचालित ढांचे में विकसित करने की आवश्यकता है।
- प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली, सामुदायिक तैयारी और स्थायी बुनियादी ढांचे को सुदृढ़ करना आवश्यक है।