उत्तर लेखन के लिए रोडमैप
परिचय
- विषय का परिचय: मध्य पूर्व के साथ भारत के बढ़ते संबंधों का संक्षिप्त विवरण।
- महत्व: ऊर्जा व्यापार से परे संबंधों का महत्व।
मुख्य बिंदु
- ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता:
- कच्चे तेल का बढ़ता आयात (53.89% तक)।
- ग्रीन हाइड्रोजन और LNG के साथ समझौते।
- व्यापार और निवेश:
- FY 2023-24 में भारत-GCC व्यापार (161.59 बिलियन डॉलर)।
- IMEC का महत्व।
- धन प्रेषण:
- भारतीय प्रवासियों का योगदान (111 बिलियन डॉलर)।
- प्रवासी भारतीयों का महत्व।
- भू-राजनीतिक सहयोग:
- संतुलित कूटनीति, रक्षा संबंधों का विस्तार।
- चाबहार बंदरगाह समझौता।
चुनौतियाँ
- ऊर्जा मूल्य में उतार-चढ़ाव: OPEC+ उत्पादन में कटौती।
- भू-राजनीतिक अस्थिरता: इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष।
- व्यापार बाधाएँ: GCC के साथ मुक्त व्यापार समझौते की कमी।
- समुद्री सुरक्षा: सुरक्षा खतरे और समुद्री डकैती।
- श्रम अधिकार: प्रवासी श्रमिकों की स्थिति।
आगे की राह
- भारत के लिए मध्य पूर्व के साथ संबंधों का महत्व और चुनौतियों का सामना करते हुए आगे बढ़ने की आवश्यकता।
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भारत का मध्य पूर्व के साथ जुड़ाव ऊर्जा व्यापार से परे कई महत्वपूर्ण कारणों से बढ़ रहा है। पहला, आतंकवाद-रोधी सहयोग। भारत ने यूएई, सऊदी अरब, और इज़राइल जैसे देशों के साथ खुफिया जानकारी साझा की है, जिससे आतंकवादी गतिविधियों को रोकने में मदद मिली है। दूसरा, भारतीय प्रवासियों का बड़ा समुदाय, जो न केवल स्थानीय अर्थव्यवस्था में योगदान देते हैं, बल्कि धन प्रेषण का भी एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं। वर्तमान में, 1.34 करोड़ अनिवासी भारतीय मध्य पूर्व में रहते हैं।
तीसरा, क्षेत्रीय संपर्क और आधारभूत संरचना परियोजनाएँ, जैसे चाबहार बंदरगाह, भारत के लिए व्यापार के नए अवसर प्रदान कर रही हैं।
हालांकि, भारत को इस क्षेत्र में अपने संबंधों को गहरा करने में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इनमें भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता, सांप्रदायिक तनाव, और स्थानीय संघर्षों में बाहरी हस्तक्षेप शामिल हैं। इसके अलावा, भारत को संतुलित विदेश नीति बनाए रखने की आवश्यकता है ताकि वह किसी एक पक्ष का समर्थन न करे, जैसे हाल में इज़राइल-फिलिस्तीनी संघर्ष के दौरान देखा गया।
इस उत्तर में भारत और मध्य पूर्व के बीच बढ़ते संबंधों के प्रमुख कारणों को अच्छे से प्रस्तुत किया गया है। आतंकवाद-रोधी सहयोग, प्रवासी भारतीयों की भूमिका, और आधारभूत संरचना परियोजनाओं का उल्लेख महत्वपूर्ण है। हालांकि, उत्तर में कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों और आंकड़ों की कमी है, जैसे:
आर्थिक डेटा: भारत-मध्य पूर्व व्यापार का कुल मूल्य और ऊर्जा व्यापार के बाहर क्षेत्रों में व्यापार वृद्धि के आंकड़े।
भौगोलिक पहलू: मध्य पूर्व में भारत के अन्य महत्वपूर्ण साझेदार देशों का उल्लेख, जैसे कतर और ओमान।
संभावित अवसर: डिजिटल, स्वास्थ्य, और शिक्षा क्षेत्रों में सहयोग के अवसरों की चर्चा।
चुनौतियों की गहराई: भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के विशेष उदाहरण और सांप्रदायिक तनावों की स्थिति पर अधिक जानकारी।
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इन बिंदुओं को शामिल करने से उत्तर और अधिक व्यापक और सूचनात्मक हो सकता है। कुल मिलाकर, उत्तर को और अधिक डेटा और विश्लेषण के साथ समृद्ध करने की आवश्यकता है, ताकि भारत के मध्य पूर्व के साथ संबंधों की जटिलताओं को स्पष्ट रूप से समझा जा सके।
मॉडल उत्तर
भारत का मध्य पूर्व के साथ जुड़ाव अब केवल ऊर्जा व्यापार तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि यह एक बहुआयामी साझेदारी में बदल गया है। इसके पीछे कई प्रमुख चालक हैं।
ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता
भारत का कच्चे तेल का आयात दिसंबर 2024 में 51% से बढ़कर जनवरी 2025 में 53.89% हो गया है। इस प्रकार, ऊर्जा सुरक्षा और दीर्घकालिक ऊर्जा संधारणीयता के लिए भारत ने UAE के साथ ग्रीन हाइड्रोजन और कतर के साथ LNG सौदे पर हस्ताक्षर किए हैं।
व्यापार और निवेश
भारत और GCC के बीच FY 2023-24 में द्विपक्षीय व्यापार 161.59 बिलियन डॉलर रहा। भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEC) आपूर्ति श्रृंखलाओं को मजबूत करेगा और व्यापार लागत को कम करेगा।
धन प्रेषण
मध्य पूर्व में लाखों भारतीय प्रवासी रहते हैं, जिनका धन प्रेषण भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में महत्वपूर्ण योगदान करता है। 2022 में भारत को 111 बिलियन डॉलर का धन प्रेषण प्राप्त हुआ, जिससे यह विश्व में सबसे अधिक है।
भू-राजनीतिक सहयोग
भारत की संतुलित कूटनीति, जैसे कि सऊदी अरब-ईरान और इज़रायल-अरब देशों के बीच, सामरिक स्वायत्तता सुनिश्चित करती है। रक्षा संबंधों का विस्तार भी हो रहा है, जैसे कि अल-मोहद अल-हिंदी अभ्यास।
चुनौतियाँ
हालांकि भारत के संबंध मजबूत हो रहे हैं, लेकिन कई चुनौतियाँ भी हैं। ऊर्जा मूल्य में उतार-चढ़ाव, जैसे कि OPEC+ उत्पादन में कटौती, भारत की ऊर्जा सुरक्षा को प्रभावित कर सकते हैं। भू-राजनीतिक अस्थिरता, जैसे इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष, कूटनीतिक चुनौतियाँ उत्पन्न करती है। इसके अलावा, GCC के साथ मुक्त व्यापार समझौते की कमी और समुद्री सुरक्षा के खतरे भी महत्वपूर्ण हैं।
आगे की राह
भारत के लिए मध्य पूर्व के साथ संबंधों को गहराई से विकसित करना आवश्यक है। इसके लिए भारत को अपनी रणनीतिक स्वायत्तता को बनाए रखते हुए बुनियादी अवसंरचना के विकास में तेजी लानी चाहिए, व्यापार समझौतों को अंतिम रूप देना चाहिए और सुरक्षा सहयोग को बढ़ाना चाहिए।