यह संपादकीय भारत के कृषि क्षेत्र की चुनौतियों और संभावनाओं पर केंद्रित है। 46.1% कार्यबल का कृषि में योगदान केवल 17.7% GDP में।
बजट की आलोचना
- वित्त वर्ष 2026 के बजट में केवल 4% की वृद्धि, कुल ₹1.49 ट्रिलियन।
- संरचनात्मक समस्याओं का समाधान नहीं, जैसे कि अनुसंधान एवं विकास (R&D) में कमी, फसल कटाई के बाद के नुकसान और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियाँ।
प्रमुख प्रगति
- सिंचाई अवसंरचना
- 55% निवल बुआई क्षेत्र में सिंचाई।
- प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना और अटल भूजल योजना जैसे कार्यक्रम।
- जलवायु-स्मार्ट कृषि
- जलवायु-स्मार्ट कृषि पद्धतियों का तेजी से अपनाना।
- 2024 में प्रधानमंत्री द्वारा 109 फसल किस्मों का विमोचन।
- कृषि-तकनीक का विकास
- AI, IoT, और ब्लॉकचेन का उपयोग बेहतर कृषि प्रथाओं के लिए।
- e-NAM के तहत 1.78 करोड़ किसान जुड़ चुके हैं।
- कृषि ऋण और वित्तीय समावेशन
- किसान क्रेडिट कार्ड (KCC) की सीमा बढ़कर ₹5 लाख।
- प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का विस्तार।
बाधाएँ
- भूमि विखंडन
- छोटे खेतों का आकार और उनकी खंडित स्थिति।
- 86.1% किसान लघु और सीमांत हैं।
- मानसून पर निर्भरता
- केवल 55% कृषि क्षेत्र सिंचित, शेष 45% सूखे के जोखिम में।
- मृदा उर्वरता में कमी
- रासायनिक उर्वरकों के अत्यधिक प्रयोग से मृदा क्षरण।
- कम अनुसंधान निवेश
- कृषि R&D में निवेश 0.5% से कम।
- कृषि विपणन में अक्षमता
- किसानों को उपभोक्ता मूल्य का केवल 30-40% मिलता है।
समाधान के उपाय
- भूमि चकबंदी: सहकारी खेती और भूमि पूलिंग।
- सिंचाई विकास: सूक्ष्म सिंचाई और जल संरक्षण।
- कृषि R&D: सार्वजनिक-निजी भागीदारी में वृद्धि।
- कृषि विपणन में सुधार: e-NAM का सुदृढीकरण।
- संधारणीय कृषि प्रथाएँ: जैविक खेती और प्राकृतिक कृषि को बढ़ावा।
आगे की राह
- भारत को अपनी कृषि क्षमता को पूरा करने के लिए स्थायी प्रथाओं, जलवायु-स्मार्ट तकनीकों, और नीतिगत सुधारों पर ध्यान केंद्रित करना होगा।